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समाज को एक ऐसा आकार देना जो सबके नज़रिए से एक जैसा ही दिखे, विकास को सही मायने में परिभाषित करता है। समाज से बुरे व्यवहार को दूर करके ही विकास को एक स्थिर घर प्रदान किया जा सकता है। जिसकी संगत में रहकर समाज नामक घर में हम स्वयं को सुनहरा भविष्य देते हैं।
समाज मनुष्य द्वारा निर्मित वह घर है, जिसमें व्यक्ति अपनी आवश्यकतानुसार उसमें बने नियमों को परिवर्तित करता है। आवश्यकता पड़ने पर वह समाज की छत को नए रूप में ढालता है, ताकि उसके अंदर रहने वाले लोग सुरक्षित रह सकें। परन्तु इसके साथ यह ध्यान रखना भी ज़रूरी होता है कि उस छत को किन पदार्थों से निर्मित किया जा रहा है, क्योंकि हम तभी सही ढंग से समाज में परिवर्तन ला पाएंगे। हम मानव विकास को बहुत अधिक महत्त्व देते हैं। हमारे लिए हम विकास करके ही समाज का चेहरा बदल सकते हैं। यह तथ्य सत्य भी है, क्योंकि सामाज में नए रीति-रिवाजों का आगमन तभी होता है जब हम अपनी मानसिकता को विकसित करते हैं, अर्थात उसे सकारात्मकता की ओर ले जाते हैं। विकास वास्तव में मानसिकता की बदली हुई सोच है, जो समाज में उपस्थित कुरीतियों को नष्ट करने के लिए प्रेरित करता है। यदि हम दुनिया में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को ऐसा आवरण नहीं दे पा रहे हैं, जहां वह चैन की सांस ले सकें और आज़ादी से अपनी भावना को व्यक्त कर सकें, तो हम विकास की ओर अग्रसर नहीं है।
हम कह सकते हैं कि सामाजिक परिवर्तन तथा विकास एक दूसरे के पूरक हैं तथा एक-दूसरे के पर्यायवाची भी। सामाजिक परिवर्तन विकास का कारक बनता है तथा विकास सामाजिक परिवर्तन का। ऐसे कई साक्ष्य हैं जहां यह बात सिद्ध होती है। समाज का सकारात्मक दिशा में परिवर्तन तभी हुआ है, जब एक नई सोच ने जन्म लिया है।
हम चाहें हरित क्रांति की बात करें, श्वेत क्रांति की, नई तकनीकी के खोज की या फिर महिलाओं के उत्थान के लिए उठाए गए अनेक कदमों की, इन सब क्षेत्रों ने अपना रूप तब बदला, जब किसानों, जानवरों, विज्ञान तथा महिलाओं इत्यादि के लोगों ने अपना नज़रिया बदला। कुछ लोगों की बदली सोच ने विकास का रास्ता खोला, इसके पश्चात विकास ने अन्य लोगों की सोच को बदला।
हमें ऐसा समाज निर्मित करना है, जहां अधिक सक्षम होने का अस्तित्व तो रहे, परन्तु वह केवल अपने लिए नहीं, समाज हित के लिए हो। सामाजिक परिवर्तन केवल मनुष्यों से नहीं वातावरण से भी प्रभावित होता है। हमारा मन स्वच्छता के प्रति दृढ़ संकल्पित होना चाहिए। गंदगी को प्रत्येक परिपेक्ष में समाज से पूर्ण रूप से नष्ट करना है। यह शरीर और मन दोनों को स्वस्थ रखेगा तथा विकास की परिभाषा को परिभाषित करने में मदद करेगा।
समाज को एक ऐसा आकार देना जो सबके नज़रिए से एक जैसा ही दिखे, विकास को सही मायने में परिभाषित करता है। समाज से बुरे व्यवहार को दूर करके ही विकास को एक स्थिर घर प्रदान किया जा सकता है। जिसकी संगत में रहकर समाज नामक घर में हम स्वयं को सुनहरा भविष्य देते हैं।

समाज मनुष्य द्वारा निर्मित वह घर है, जिसमें व्यक्ति अपनी आवश्यकतानुसार उसमें बने नियमों को परिवर्तित करता है। आवश्यकता पड़ने पर वह समाज की छत को नए रूप में ढालता है, ताकि उसके अंदर रहने वाले लोग सुरक्षित रह सकें। परन्तु इसके साथ यह ध्यान रखना भी ज़रूरी होता है कि उस छत को किन पदार्थों से निर्मित किया जा रहा है, क्योंकि हम तभी सही ढंग से समाज में परिवर्तन ला पाएंगे। हम मानव विकास को बहुत अधिक महत्त्व देते हैं। हमारे लिए हम विकास करके ही समाज का चेहरा बदल सकते हैं। यह तथ्य सत्य भी है, क्योंकि सामाज में नए रीति-रिवाजों का आगमन तभी होता है जब हम अपनी मानसिकता को विकसित करते हैं, अर्थात उसे सकारात्मकता की ओर ले जाते हैं। विकास वास्तव में मानसिकता की बदली हुई सोच है, जो समाज में उपस्थित कुरीतियों को नष्ट करने के लिए प्रेरित करता है। यदि हम दुनिया में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को ऐसा आवरण नहीं दे पा रहे हैं, जहां वह चैन की सांस ले सकें और आज़ादी से अपनी भावना को व्यक्त कर सकें, तो हम विकास की ओर अग्रसर नहीं है।
हम कह सकते हैं कि सामाजिक परिवर्तन तथा विकास एक दूसरे के पूरक हैं तथा एक-दूसरे के पर्यायवाची भी। सामाजिक परिवर्तन विकास का कारक बनता है तथा विकास सामाजिक परिवर्तन का। ऐसे कई साक्ष्य हैं जहां यह बात सिद्ध होती है। समाज का सकारात्मक दिशा में परिवर्तन तभी हुआ है, जब एक नई सोच ने जन्म लिया है।
हम चाहें हरित क्रांति की बात करें, श्वेत क्रांति की, नई तकनीकी के खोज की या फिर महिलाओं के उत्थान के लिए उठाए गए अनेक कदमों की, इन सब क्षेत्रों ने अपना रूप तब बदला, जब किसानों, जानवरों, विज्ञान तथा महिलाओं इत्यादि के लोगों ने अपना नज़रिया बदला। कुछ लोगों की बदली सोच ने विकास का रास्ता खोला, इसके पश्चात विकास ने अन्य लोगों की सोच को बदला।
हमें ऐसा समाज निर्मित करना है, जहां अधिक सक्षम होने का अस्तित्व तो रहे, परन्तु वह केवल अपने लिए नहीं, समाज हित के लिए हो। सामाजिक परिवर्तन केवल मनुष्यों से नहीं वातावरण से भी प्रभावित होता है। हमारा मन स्वच्छता के प्रति दृढ़ संकल्पित होना चाहिए। गंदगी को प्रत्येक परिपेक्ष में समाज से पूर्ण रूप से नष्ट करना है। यह शरीर और मन दोनों को स्वस्थ रखेगा तथा विकास की परिभाषा को परिभाषित करने में मदद करेगा।
समाज को एक ऐसा आकार देना जो सबके नज़रिए से एक जैसा ही दिखे, विकास को सही मायने में परिभाषित करता है। समाज से बुरे व्यवहार को दूर करके ही विकास को एक स्थिर घर प्रदान किया जा सकता है। जिसकी संगत में रहकर समाज नामक घर में हम स्वयं को सुनहरा भविष्य देते हैं।