फुटवियर की भारतीय बाज़ार में भूमिका

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फुटवियर की भारतीय बाज़ार में भूमिका
02 Oct 2021
7 min read

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भारतीय बाजार में फुटवियर उद्योग एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। जिसकी बढ़ती आधुनिकता के कारण दिन प्रतिदिन मांग बढ़ती जा रही है। बढ़ती मांग के साथ ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के आने से पारंपरिक बाज़ारों को काफ़ी चुनौतियों का सामना भी करना पड़ा रहा है। लेकिन फिर भी इन उद्योगों को अच्छा लाभ हो रहा है। भारत फुटवियर का अच्छा हब है, हमें कोशिश करना है कि हम भारत में इसे और बढ़ावा दे सकें। 

भारतीय बाजार में फुटवियर उद्योग एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। जिसकी बढ़ती आधुनिकता के कारण दिन प्रतिदिन मांग बढ़ती जा रही है। बढ़ती मांग के साथ ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के आने से पारंपरिक बाज़ारों को काफ़ी चुनौतियों का सामना भी करना पड़ा रहा है। लेकिन फिर भी इन उद्योगों को अच्छा लाभ हो रहा है।

फुटवियर की‌ बढ़ती मांग

आज के भारतीय फैशन और लाइफ़स्टाइल  मार्केट, फिटनेस और वेल-बींग के बढ़ते चलन ने फुटवियर स्टाइलिंग को काफी बढ़ावा दिया है।

तलवों से लेकर आत्मा तक, जूते हमारे मानवीय अनुभव में बहुत बड़ा योगदान करते हैं। आधुनिक जीवनशैली और खरीदारी की आदतों में चल रहे बदलावों ने फुटवियर उद्योगों को काफी प्रभावित किया है। विनिर्माण क्षेत्र पर सरकार के ध्यान के साथ विशेष रूप से स्थापित और संगठित ब्रांडो के लिए फुटवियर उद्योग के भविष्य की संभावनाएं आशाजनक हैं।

शिल्पकारों का देश होने के कारण भारत को हमेशा जूते बनाने के अपने पारंपरिक शिल्पकार के रूप में देखा जाता है। ग्रामीण कारीगरों द्वारा बनाए गए कुछ पारंपरिक जूतों में कोल्हापुर में चमड़े की चप्पलें ,जोधपुर में कशीदाकारी जूती, सिक्किम में इंडो-तिब्बत के जूते इत्यादि शामिल हैं। निर्माण के पारंपरिक तरीकों का उपयोग करने वाले फुटवियर उद्योगों ने हाल के दशकों में स्पष्ट रूप से प्रौद्योगिकी को दिल में बसा लिया है और इससे जूता बनाने और जूता पहनने वालों दोनों को बहुत फायदा हुआ है।

क्योंकि भारत विविधता से परिपूर्ण राष्ट्र है इसलिए पूरे देश में पाए जाने वाले पारंपरिक जूतों के प्रकार भी विविध हैं। भारत में छोटे और मध्यम वर्ग के उद्योगों को अपने निर्यात योगदान को बनाए रखने और बढ़ाने के साथ-साथ क्लस्टरिंग के विकास और इस तरह की कई और गतिविधियों के माध्यम से फुटवियर क्षेत्र के विकास और उन्नति में एक प्रमुख भूमिका निभानी है।

भारतीय फुटवियर उद्योग

भारतीय फुटवियर उद्योग कृषि के बाद दूसरा सबसे बड़ा रोजगार प्रदान करता है। उत्पादकों के मामले में भारत दूसरे स्थान पर है। यह दुनिया के सबसे उत्पादन में 9.57 % का योगदान देता है। भारत में लगभग 1.10‌ मिलियन‌ कर्मचारी फुटवियर निर्माण उद्योग से जुड़े हैं।

फुटवियर बाज़ार ऊंचाइयों पर

समय के साथ-साथ फुटवियर उद्योग आधुनिक खुदरा ढांचे की ओर बढ़ रहा है। प्रौद्योगिकी को अपनाना इसका एक उदाहरण है। पारंपरिक फुटवियर क्षेत्र पूरे देश में फैला है लेकिन आधुनिक क्षेत्र प्रमुख रूप से शहरों और महानगरों तक ही सीमित है जो निर्यात के प्रमुख केंद्र हैं। चीन और अमेरिका के बाद फुटवियर की खपत करने में भारत तीसरे स्थान पर है ,जबकि फुटवियर उत्पादकों के मामले में दूसरे स्थान पर है। भारतीय फैशन और लाइफस्टाइल बाज़ार में वृद्धि ने उद्योगों को भी बढ़ावा दिया है।

डिजिटल बाज़ार का पारंपरिक बाज़ार पर प्रभाव 

वर्तमान में भारत के फैशन बाज़ार का एक बड़ा हिस्सा डीजिटल रूप से प्रभावित है। बढ़ती मांग के कारण ई-कॉमर्स मॉडल ने फुटवियर उद्योग में प्रवेश किया है। कई ओबामा और प्रीमियम फुटवियर ब्रांडों ने ई-कॉमर्स का उपयोग करके बाज़ारों को टैप करने का प्रयास कर रहे हैं। ऑनलाइन रिटेलिंग ने देशभर में राष्ट्रीय उपभोक्ताओं को लक्षित किया है ना कि सिर्फ खुद के क्षेत्रीय खुदरा विक्रेताओं के रूप में प्रबंधित किया है। इसने ऑनलाइन रिटेलिंग यानी मल्टी-चैनल, ओमनी चैनल और वेबसाइटों की नई संभावनाओं के द्वार खोल दिए हैं।

ऑनलाइन खरीददारी से विक्रेताओं को भी कई मामलों में आसानी हो गई है, लोग घर बैठे चीजों को खरीद कर मंगा लेते हैं। एक तरफ जहां डिजिटल बाजार के आने से कई चीजें आसान हो गई हैं और इसको सफलता भी मिल रही है, वहीं दूसरी तरफ इससे छोटे दुकानदारों और पारंपरिक बाजारों को नुकसान भी हो रहा है। इसका मुख्य कारण यह है कि लोग ऑनलाइन बाजारों की तरफ ज्यादा रुख करते जा रहे हैं।

अन्य चुनौतियां 

फुटवियर उद्योगों को इसके अलावा भी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। जैसे :-

• पुराने हो चुके‌ स्टॉक का रोटेशन न हो पाना।

• ऑनलाइन मार्केट में ग्राहक द्वारा शुरू किए गए रिटर्न का उच्च प्रतिशत।

• पारंपरिक दुकानदारों द्वारा एकाधिक गोदामों और स्टोरों का प्रबंध करना।

• स्टॉक का प्रभावी उपयोग करना।

• अन्य दुकानदारों और उद्योगों के साथ प्रतिस्पर्धा