रंगों का त्योहार होली: महत्व, परंपराएं और इतिहास

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रंगों का त्योहार होली: महत्व, परंपराएं और इतिहास
22 Mar 2024
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इस साल 24 मार्च को होलिका दहन और 25 मार्च को होली का ये पावन पर्व पूरे देशभर में मनाया जाएगा। अलग-अलग रंगो की तरह यह त्योहार अपने साथ बहुत सारी रंग-बिरंगी खुशियां भी लेकर आता है। 

जब फाल्गुन माह आता है तो वैसे ही मन में होलिकोत्सव के आने की तरंगें उमड़ने लगी है, होली का आना यानी ग्रीष्म ऋतु के आने की सूचना, दूसरे शहरों में बसे घर के लोगों, दोस्तों, रिश्तेदारों के घर आने या आपसे फिर से मिलने आने की सूचना। गुझिया, मठरी, पकवानों की खुशबू से घर आँगन के महकने की सूचना और सबसे अधिक हर्षोल्लास की सूचना। 

होली भारत का सबसे रंगीन उत्सव है। यह एक ऐसा त्यौहार है जिसमें शानदार रंगों की एक शानदार सरणी और बहुत सारे उत्सव हैं जो उत्सव के दिन को जीवंत करते हैं। होली एक रंगीन त्योहार है जो शैतान पर भगवान की जीत का जश्न मनाता है और हम सभी को अच्छाई की शक्ति की याद दिलाता है।

क्या होली केवल एक रंगोत्सव है?  क्या होली केवल एक दिन के त्योहार तक ही सीमित है? आइए आज होली को थोड़ा और समझ लें।

होली की ढेरों शुभकामनाएं ।

Happy Holi 2024....

 

होली या होलिकोत्सव Holika Utsav के विषय में जब भी बात हो तो मन भर आता है और रंगों की अनोखी छटा नैनो को सराबोर कर देती है। झूमकर रंगों से सराबोर होने का वो दृश्य मन को प्रसन्नता से सराबोर कर देता है। एक और विचार भी मन में आता है कि हमारा साल भर का इंतज़ार ख़त्म होने को है, होली बस आ ही गईं है , किन्तु .. 

-क्या होली केवल एक रंगोत्सव festival of colors है?  

-क्या होली केवल एक दिन के त्योहार तक ही सीमित है?

रंगों का त्योहार होली: महत्व, परंपराएं और इतिहास Holi Festival of Colors: Significance, Traditions and History

होली का महत्व Significance of Holi

आइए आज होली को थोड़ा और समझ लें

आरंभ होली के आरंभ से ही करतें हैं- जब फाल्गुन माह आता है तो वैसे ही मन में होलिकोत्सव के आने की तरंगें उमड़ने लगी है, होली का आना यानी ग्रीष्म ऋतु के आने की सूचना, दूसरे शहरों में बसे घर के लोगों, दोस्तों, रिश्तेदारों के घर आने या आपसे फिर से मिलने आने की सूचना। गुझिया, मठरी, पकवानों की खुशबू से घर आँगन के महकने की सूचना और सबसे अधिक हर्षोल्लास की सूचना। 

वैसे तो हम नया वर्ष 1 जनवरी को मनातें हैं किन्तु भारतीय हिन्दू नववर्ष फाल्गुन माह में होली के आगमन से ही होता है। 

(i). होली के और नाम भी है, जैसे-फगुआ, धुलेड़ी, दोल। शाहजहां के दौर में होली को 'ईद-ए-गुलाबी' या 'आब-ए-पाशी' 'Eid-e-Gulabi' or 'Aab-e-Pashi' (रंगों की बौछार) कहा जाता था। 

(ii). चूँकि बादशाह अकबर के दरबार में काफी अच्छे हिन्दू संबंध थे और स्वयं उनकी हिन्दू राजपूत रानी भी थी, इसलिए उनके दरबार में, साम्राज्य में हिन्दू त्योहार भी बड़े जोर-शोर से मनाए जाते थे, उन्ही त्योहारों में से एक था- ‘’होली ’’  

2. होली का उल्लेख की प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है

अलबरूनी Alberuni ने भी अपने ऐतिहासिक यात्रा संस्मरण में होलिकोत्सव का वर्णन किया है।

3. होली का शास्त्रीय संगीत से भी गहरा नाता है

शास्त्रीय संगीत में हर मौसम, माह, अवसरों, व्यक्ति के लिए गीत बनाए गए हैं, तो फाल्गुन माह यानि होली के गीत अछूते कैसे रहते? राजस्थान के अजमेर शहर में ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती Khwaja Moinuddin Chishti की दरगाह पर गाई जाने वाली होली के गानों का रंग ही अलग है। भारत के हर शहर, कस्बे, स्थान पर होली का अलग ही रंग देखने को मिलता है। 

4. भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं में भी होली का विस्तार रूप से वर्णन किया गया है

यही कारण है कि वृंदावन, मथुरा, बरसाना, गोकुल,Vrindavan, Mathura, Barsana, Gokul जहाँ भी राधाकृष्ण के प्रेम की छटा अधिक बिखरी है, उनसब जगहों पर होली खेलने और मनाने का एक अलग ही आनंद है- फूलों की होली, कीचड़ की होली, पानी की होली, लठमार होली। नाम एक है ‘’होली’’ किन्तु इसे यहाँ बड़े जोर शोर से मनाया जाता है। इस समय यहाँ के क्षेत्रों में- लड़कियों में राधा-रानी, गोपिकाऐं और लड़कों में कृष्ण और ग्वालबालकों की छवि देखी जाती है। 

5- काशी की रंगभरी एकादशी

भगवान शिव और उनके गणों  की होली मानकर मनाई और खेली जाती है। होली में रंग लगाकर, नाच-गाकर लोग शिव के गणों का वेश धारण होता है।

6. फिल्मों पर छाई होली

फिल्मों में भी आम ज़िंदगी को ही जिया जाता है और आम जीवन के ही उत्सव मनाए जाते हैं। रंग बरसे भीगे चुनर वाली, यह गीत भला किसे नहीं याद होगा, होली खेले रघुबीरा, यह गीत बताता है कि अयोध्या के राज्य राम भी होली खेलते थे। 

7. भाँग, पकवान और झूमने का उत्सव

होली में खुशी से झूमने का जो आनंद होता है, उसकी छटा ही अलग होती है, ठंडाई का जोश, पकवानों की मिठास, और रंगों की बरसात, शरीर के साथ साथ मन को भी प्रफुल्लित कर देती है। 

अब आते है आरंभ के आरंभ पर यानी सबसे अधिक प्रचलित होलीका की कथा पर, जिसके कारण होली से एक दिन पहले होलिकादहन किया जाता है-

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होलीका और प्रह्लाद की कहानी यानी होलीका दहन Story of Holika and Prahlad

सबसे ज्यादा मान्यता भक्त प्रहलाद Bhakta Prahlad की कहानी की है जिनके पिता हिरण्यकश्यप नाम के एक असुर राजा थे जो स्वयं को भगवान मानने लगे थे और जो कोई उनका विरोध करता था तो उसपर अत्याचार करते थे लेकिन जब उनके बेटे प्रहलाद का मन शान्ति, अहिंसा और केवल भगवान नारायण की भक्ति में लगता था। हिरण्यकश्यप यह कैसे सहन करता कि पिता यहाँ सभी देवी-देवताओं का विरोध कर रहा है और पुत्र नारायण की भक्ति कर रहा है।

समझाया, डराया किन्तु प्रहलाद नहीं माना तो उन्होंने अपनी बहन होलिका से कहा कि वो इसे आग में लेकर बैठ जाये क्योंकि होलिका को वरदान था कि उसे अग्नि जला नहीं सकती लेकिन हुआ इससे उलट, वो जल गई और अग्नि में अपनी बुआ की गोद में बैठ, नारायण का स्मरण करता हुआ प्रहलाद बच गया तब से यह दिन बुराई पर अच्छाई की जीत, असत्य पर सत्य की जीत और होलिका-दहन Holika Dahan के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

मानवों को यह सिखा गया कि बुराई कितनी भी बड़ी हो अच्छाई को नुकसान नहीं पहुंचा सकती और तब से इस दिन होलीका के लिए अग्नि जलई जाती है और उसे माना जाता है आपके अंदर की सभी बुरी यादों और बुराइयों को आप इस होलीका में दहन करके अगले होली के दिन से अपने जीवन की शुरुआत एक नई सकारात्मक ऊर्जा के साथ करिये।   

होली रंगों का त्यौहार कैसे बना? How Holi became the festival of colors?

मान्यता है कि भगवान कृष्ण रंगों से होली मनाते थे, इसलिए होली का त्यौहार रंगों colors के रूप में लोकप्रिय हुआ। वे अपने साथियों के साथ वृंदावन और गोकुल में रंगों से होली मनाते थे। शायद यही वजह है कि आज भी वृंदावन जैसी मस्ती भरी होली कहीं नहीं मनाई जाती। भारत के कई स्थानों में इस त्यौहार का संबंध वसंत की फसल पकने से भी है।

होली वसंत का त्यौहार है और इसके शुरू होते ही सर्दियां खत्म होती हैं इसलिए होली को ‘वसंत महोत्सव’ spring Festival भी कहा जाता है। कई राज्यों में यह होली का त्यौहार तीन दिन तक मनाया जाता है।

रंगो के इस त्यौहार को “फाल्गुन महोत्सव” भी कहा जाता है,ये सबसे ज्यादा ख़ुशी देने वाला त्यौहार होता है। इसमें पुराने गीतों को ब्रज की भाषा में गाया जाता है। इसमें सब मदमस्त होकर एक दूसरे से गले मिलते हैं। इस दिन भगवान कृष्ण और राधा की मूर्तियों पर भी रंग डालकर उनकी पूजा की जाती है।

मान्यता के अनुसार होली का त्योहार राधा-कृष्ण के पावन प्रेम की याद में मनाया जाता है। होली का त्यौहार वैसे तो पूरे भारत में मनाया जाता है, लेकिन उत्तर भारत में इसे बहुत अधिक उत्साह के साथ मनाया जाता है।

होली का त्यौहार सबसे मनमोहक रूप में देखने के लिए लोग ब्रज, वृन्दावन, गोकुल जैसे स्थानों पर जाते है। यहाँ की होली का अपना अलग ही सौंदर्य होता है और यहाँ पर यह त्यौहार कई दिनों तक मनाया जाता हैं। ब्रज की यह प्रथा बहुत प्रचलित है कि इसमें पुरुष महिलाओं पर रंग डालते हैं और महिलाएं उन्हें डंडे से मारती हैं।

यहाँ की होली देखने के लिए लोग दूर-दूर से यहाँ पर जाते हैं, इसे लठ्ठ मार होली भी कहते हैं। यहाँ कई स्थानों पर फूलों की होली Flowers Holi भी मनाई जाती है और गाने बजाये जाते हैं। सभी एक दूसरे से मिलकर खुशियाँ मनाते हैं।

ब्रज की होली Braj ki Holi

ब्रज की होली: रंगों का उत्सव और कृष्ण भक्ति की धूम Braj ki Holi: Festival of Colors and the Spirit of Krishna Devotion

ब्रज की होली भारत में होली के सबसे अनूठे और रंगीन रूपों में से एक है। यह न केवल रंगों का त्योहार है, बल्कि भगवान कृष्ण के जीवन और लीलाओं का उत्सव भी है। ब्रज क्षेत्र, मथुरा और वृन्दावन सहित, कृष्ण की लीला भूमि मानी जाती है, और यहीं होली का उत्सव एक अलग ही रूप ले लेता है।

ब्रज होली की खासियतें Specialties of Braj Holi

ब्रज होली कई अनूठ परंपराओं और रस्मों को समेटे हुए है, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं:

  • लठमार होली ( Lathmaar Holi): यह ब्रज की होली की सबसे प्रसिद्ध परंपराओं में से एक है। इसमें महिलाएं लाठी लेकर पुरुषों को छेड़ती हैं और पुरुष ढाल से उन वारों को रोकते हैं। यह एक हल्का-फुल्का मजाक है जो राधा और कृष्ण की लीलाओं का प्रतीक है।

  • फूलों की होली (Phoolon ki Holi): ब्रज में होली के पहले दिन फूलों की होली मनाई जाती है। मंदिरों में भगवान को फूलों से सजाया जाता है और लोग एक-दूसरे पर रंगीन फूलों की वर्षा करते हैं।

  • हुरियारे की होली (Hurriare ki Holi): यह वृन्दावन में मनाई जाने वाली एक विशेष होली है। इसमें रंगों के साथ-साथ भंग भी खेली जाती है, जो उत्सव के माहौल को और भी खुशनुमा बना देती है।

  • छड़ी मार होली (Chhadi Mar Holi): यह होली के अंतिम दिन मनाई जाती है। इस दिन नंदगांव के लोग गोकुल के लोगों पर लाठियां फेंकते हैं, जो होली के खेल का प्रतीक है।

ब्रज होली का धार्मिक महत्व (Religious Significance of Braj Holi)

ब्रज होली का धार्मिक महत्व भी काफी गहरा है। यह भगवान कृष्ण और राधा के प्रेम का प्रतीक मानी जाती है। होली के दौरान कृष्ण की बाल लीलाओं का स्मरण किया जाता है, जैसे कि उनकी गोपियों के साथ होली खेलना।

होली के दौरान मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना होती है और भगवान कृष्ण को रंग गुलाल लगाया जाता है। भक्तजन भजन-कीर्तन करते हैं और कृष्ण की लीलाओं का गुणगान करते हैं।

ब्रज होली का सांस्कृतिक महत्व (Cultural Significance of Braj Holi)

ब्रज होली सिर्फ धार्मिक त्योहार ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक उत्सव भी है। यह ब्रज क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति और परंपराओं को दर्शाता है। होली के दौरान लोकनृत्य, लोकगीत और रंगारंग कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।

ब्रज होली लोगों को एकजुट होने और आपसी भाईचारे को बढ़ावा देने का अवसर प्रदान करती है। भेदभाव मिट जाता है और सभी लोग मिलजुलकर होली का आनंद लेते हैं।

ब्रज की होली भारत की सांस्कृतिक विरासत का एक अनमोल हिस्सा है। यह रंगों का उत्सव है, कृष्ण भक्ति की धूम है और आपसी प्रेम और सौहार्द का संदेश है।

मनाइये इस साल इको-फ्रेंडली होली Celebrate eco-friendly Holi this year

हालांकि, यह देखना उत्साहजनक है कि लोग होली प्रदूषण के नकारात्मक प्रभावों के बारे में अधिक जागरूक हो रहे हैं और इस रंगीन उत्सव को मनाने के अधिक प्राकृतिक तरीकों पर लौटने का प्रयास कर रहे हैं। उत्सव हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।

हालाँकि, जब हम उत्सव में शामिल होते हैं, तो हमें अपने आसपास के वातावरण के महत्व को याद रखना चाहिए। हमें इसका ध्यान रखना चाहिए। तो, इस वर्ष, आइए हम पर्यावरण की दृष्टि से होली का आनंद लें। होली उसी तरह मनाई जाएगी जैसे हम अभी मनाते हैं लेकिन पर्यावरण की दृष्टि से अधिक जिम्मेदार तरीके से। 

फूलों की होली खेलें play holi with flowers

होली एक ऐसा त्योहार है जो वसंत के आगमन का जश्न मनाता है, और कुछ स्थानों पर लोग मौसम का स्वागत करने के लिए फूलों के गहने और पारंपरिक कपड़े पहनते हैं। यदि आप अपने समाज में या घर पर होली का उत्सव आयोजित कर सकते हैं, तो जहरीले और केमिकल युक्त रंगों का उपयोग करने के बजाय फूलों का उपयोग करना एक अच्छा विचार है।

जब फूलों को त्याग दिया जाता है, तो उन्हें बस निपटाया जाता है और पुन: उपयोग किया जाता है। केमिकल युक्त रंग त्वचा और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं और प्रदूषण में योगदान करते हैं। यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि यदि आप फूलों के साथ खेलने जा रहे हैं, तो आपको फूलों के सही निपटान की योजना बनानी होगी। उत्तर भारत के कई स्थानों जैसे लखनऊ और पुष्कर में लोग इस प्रकार के उत्सव में भाग लेते हैं।

गिले शिकवे भूलने का दिन

होली का ऐसा मौका होता है जहाँ यही कहा जाता है

- बुरा न मानो होली है                                                                

-  दिल बड़ा रखो 

- आज तो दुश्मन भी द्वार पर आए तो गले लागाओ 

इन सभी बातों से पता चलता है कि होली हर्ष का, आगे बढ़ने का, सकरात्मकता का प्रतीक है तो खुले दिल से मनाइए होली और मेरी तरफ से आप सभी होली की ढेरों शुभकामनाएं । Happy Holi ....