निष्पक्ष पत्रकारिता क्या है?

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निष्पक्ष पत्रकारिता क्या है?
10 Jan 2023
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देखा जाये तो निष्पक्ष पत्रकारिता Fair journalism आज की एक सबसे बड़ी चुनौती है। संचार क्रांति के इस दौर में मीडिया की भूमिका बेहद अहम है और ग्रामीण व शहरी हर क्षेत्र में जागरूकता का माध्यम मीडिया ही है। पत्रकारिता में निष्पक्षता एक मुहावरा बन कर रह गया है और इसी के समानांतर यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या वाकई कोई पत्रकार निष्पक्ष रह सकता है ? पत्रकार भी इसी समाज का हिस्सा हैं, समाज में रहते हुए जो कुछ एक पत्रकार देखता समझता है उसे अपने विवेक के तराजू पर तौल कर उसी के मुताबिक तय करता है कि उसे कहाँ खड़े होना है। सिर्फ सत्य की तरफ खड़ी होने वाली पत्रकारिता अब नहीं रही अब मूल्य नहीं व्यक्ति और पार्टी आधारित, एजेंडा वाली पत्रकारिता ही शेष है। पत्रकारिता हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह सिर्फ इस डिजिटल युग में ही नहीं बल्कि काफी पुराने समय से ही हमारे दैनिक क्रियाकलाप के एक अंग के रूप में अपनी जगह बनाता रहा है। 

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आधुनिक युग में पत्रकारिता को भी पैसा कमाने के ज़रिये के रूप में देखा जाने लगा है। पहले भी स्थिति कुछ उत्तम नहीं थी लेकिन अब बद से बदतर ज़रूर होती जा रही। पत्रकार वह है जो कोई खबर को बिना तोड़ मरोड़ कर, निष्पक्ष और सटीक जानकारी  को आम जन तक पहुँचाये। उसकी कलम से लिखी खबर जनहित में हो।

लेकिन अब पत्रकारों की स्थिति ठीक नही, सत्ता बदलने के साथ-साथ पत्रकार की कलम में निष्पक्ष होने की कला अब मरती दिख रही है। ये लोकतंत्र के लिए घातक है। जागरूक आम-जन को अखबार पढ़ते समय चाटूकारिता स्पष्ठ रूप से समझ आती है। कुछ गिने-चुने न्यूज़ चैनल ने तो मानो पत्रकारिता की हत्या कर दी हो। 24 घण्टे न्यूज़ आपको सुनाई देगी कुछ तो खुद से बनाई भी जाती हैं। रोज न्यूज़ रूम में बैठे पत्रकार प्राइम टाइम शो में किसी विशेष उद्देश्य से बैठे होते हैं।

कुछ काफी शोर मचाते हैं कुछ काफी नरम रहते हैं। उन्हें देखने वाली जनता के दिमाग को रोज भ्रमित किया जाता है। सत्ता में जो सरकार रहती है पत्रकार उसी की चाटूकारिता करने पर विवश होते हैं। ऐसा ना करने पर पत्रकार को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ सकता है। अब तो सरकार पर सवाल उठाने पर देशद्रोही घोषित कर दिया जाता है।

बहुत कम पत्रकार पत्रकारिता की राह चुनते है। वही चाटूकारिता करने पर फायदे के अतिरिक्त और कुछ नही, केवल पत्रकार के जगह अपको सत्ता का दलाल घोसित कर दिया जाएगा। मनुष्य का स्वभाव है की वह पहले अपने स्वार्थ के में बारे सोचता है और ऐसे पत्रकार सही मायने में देशद्रोही हैं। हकीकत तो ये है कि पत्रकारिता रोजगार नही बल्कि एक उपाधि है, जो खुद से पहले देशहित के बारे में विचार करे।

पत्रकारिता और पत्रकार Journalism and Journalists

जिसकी कलम बिकाऊ ना हो, उसने सच्चाई लिखने, बोलने का संकल्प लिया हो। जो निष्पक्ष हो, सटीक हो। यही एक पत्रकार की देशभक्ति है। पारदर्शिता, जवाबदेही भी अब समाप्त हो चुकी है। क्योंकि ना तो अब पत्रकार तीखे सवाल कर सकता है और ना ही जवाब मांग सकता है। वर्ल्ड प्रेस फ़्रीडम इंडेक्स world press freedom index के मुताबिक 180 देशों में से हम 142वीं रैंक पर है। यही हमारी कमज़ोरी है। जिस देश में पत्रकार चाटुकार हों तो फिर किसकी और किस बात पर सवाल जवाब हो? चौथे स्तंभ का निर्माण तीनों स्तम्भों की प्रहरी के लिए किया गया था ना की चाटूकारिता के लिए। ऐसे में आम-जन करे तो क्या करे? नागरिक धर्म आजमायें और जागरूक रहें।

निष्पक्ष पत्रकारिता Fair journalism

निष्पक्ष का अर्थ है कि पत्रकार किसी भी खबर का तर्क दोनों तरफ से जनता तक पहुँचाये, और उसमें पत्रकार के खुद के विचार की बू नहीं आनी चाहिए। पत्रकार आखिर लिखकर, बोलकर खबरों को लोगों तक पहुँचता है। लिखना और बोलना भी एक तरह की कला है, उदारण के तौर पर यदि आज तेज़ बारिश हो रही है, इस खबर को बताने के तरह-तरह तरीके हो सकते हैं। लेकिन जब ख़बरों में तथ्य ही गायब हो जाएं तो समझ लीजिये पत्रिकारिता की दुर्गति होने लगती है। पत्रकारिता में भी अब व्यवसाय ने अपनी प्रबलता स्थापित कर दी है। टीआरपी Television Rating Point  TRP का चक्कर बाबू-भैया हर मीडिया चैनलों के सर चढ़ कर बोल रहा है। भले चाहें पत्रकारिता सूली पर क्यों न चढ़ जाये। ऐसा नहीं है कि अब पत्रकारिता नहीं की जा रही, लेकिन उससे ज्यादा पत्रकारिता का दिखावा किया जा रहा। पत्रिकारिता का यह बदलता स्वरुप नकारात्मकता को अपनी तरफ खींच रहा हैं, कहीं न कहीं हम सब इसे महसूस कर सकते हैं। मीडिया चैनलों को देखने वालों के मुताबिक अब हम यह बता सकते है कि इस चैनल को देखने वाला सत्ता का समर्थक है, या इस चैनल को देखने वाला विपक्ष का समर्थक है। और यहीं साबित हो जाता है कि निष्पक्ष पत्रकारिता का अंत हो रहा है। इससे हम कैसे उभर सकते हैं? हमें पहचानने की जरूरत होगी, खबरों की पड़ताल करनी होगी। अब ख़बरों को सुनने, पढ़ने वालों की एक और जिम्मेदारी होगी, उन्हें तय करना होगा कि जो खबर वह सुन रहे या पढ़ रहे हैं वह निष्पक्ष है या नहीं। पत्रकार को देश हित में कार्य करना चाहिए न की सत्ता या अपने स्वयं के हित में, यही एक मात्र विकल्प है की हम पत्रकारिता को पूर्ण रूप से मरने से बचा सकते हैं।

निष्पक्ष पत्रकारिता क्या है? What is fair journalism?

पत्रकारिता में स्वतंत्रता freedom in journalism एक बड़ी चुनौती है। सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि दुनिया भर में पत्रकारों को चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। वैसे इस क्षेत्र में चुनौतियों का सिलसिला कोई नई बात नहीं है। हम कह सकते हैं कि कारपोरेटर एवं सरकारी दबाव के बीच ethical journalism नैतिक पत्रकारिता करना आज के परिवेश में बड़ी समस्या बनकर उभरी है, जिससे कई खबरें या तो दब जाती है या फिर कई खबरों को दबा दिया जाता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक पत्रकारों पर कई हमले होते हैं और कई की मौत हो जाती है। जिसमें हत्या की वजह उनकी पत्रकारिता थी। प्रेस परिषद को चाहिए कि निष्पक्ष और वास्तविक पत्रकारों के हितों की रक्षा के लिए कारगर कदम उठाए वरना खबर देने वालों की खबर देने वाला भी नही मिलेगा। पत्रकारों को भी चाहिए कि वे न केवल निष्पक्ष तरीके से मुद्दों को देखें बल्कि एक निष्पक्ष रवैया भी अपनायें। इस तरह से, कहानियों को तर्कसंगत और शांत तरीके से प्रस्तुत किया जा सकता है। 

एक वे पत्रकार हैं जो आज भी सुबह से शाम तक मेहनत करते हैं उन्हें बड़े शहरों में बमुश्किल 15-20 हज़ार रुपये मिल पाते हैं उनका घर खर्चा तक नहीं चल पाता है। दूसरी ओर हर दिन एक नया नैरेटिव बेचनेवाले समाज का “भ्रमित करने वाला वाला धंधा” खूब चला रहे हैं। उन्हें बुद्धिजीवी पत्रकारों की आवश्यकता नही उन्हें धंधेबाज उन लोगों की आवश्यकता है जो मीडिया हाउस को भी दें और खुद भी कमाएं। न्यूज़ एंकर news anchor की यह विवशता है कि वे अगर ऐसा नही करेंगे तो उन्हें निकाल दिया जाएगा। ऐसे में सवाल यह है कि एक श्रमजीवी पत्रकार कैसे जी सकता है। कुछ तो ऐसा हो कि पत्रकारों की आजीविका सुनिश्चित हो।

भारत मे कई चैनल्स है और लगभग सवा लाख पत्र पत्रिकाएं हैं। इनमें राष्ट्रीय हित और राष्ट्रीय संस्कृति national interest and national culture को बढ़ावा देने वाले कितने हैं? इसलिये निष्पक्ष पत्रकारों के लिए जरुरी कदम उठाए जाने चाहिए। 

निष्पक्ष और निर्भीक खबरें पाठक तक पहुंचाना ही पत्रकारिता की खास पहचान है। नई अर्थव्यवस्था से पूर्व (1991) भी इस देश में पत्रकारिता थी, लोग लिखे पर विश्वास करते थे। कहावत भी थी सौ बकी एक लिखी। “प्रेस” शब्द को लोकतंत्र के चौथे स्तंभ fourth pillar of democracy के रूप में देखा जाता था। दलीय पत्रकारिता तब भी थी। “पांचजन्य” संघ विचारधारा का था तो “ब्लिट्ज” वामपंथी विचारधारा का, और “नेशनल हेराल्ड” कोंग्रेस की विचारधारा पर था। इसी प्रकार अन्य समाचार पत्र भी थे। समाचारों में मिलावट बहुत कम या नगण्य होती थी लेकिन आज ऐसा नहीं है बहुत कुछ बदल गया है।

समाचारपत्र की बात करें तो खुली अर्थव्यवस्था ने समाचारपत्र को उत्पाद (प्रोडक्ट) बना दिया है। समाचार पत्र का पाठक अब पाठक नही रहा। उसका अवमूल्यन होकर ग्राहक हो गया। पहले किसी भी समाचार पत्र का संपादक विद्वान व्यक्ति होता था उसके नाम से समाचारपत्र की पहचान होती थी। पत्रकार निष्पक्ष और निर्भीक होते थे। अखबार में छपी खबर का उल्लेख संसद में होता था। अब स्थिति बदल चुकी है समाचार पत्र में छपे समाचार पर विश्वास करना कठिन हो गया है। दरअसल अखबार में अक्सर पेड न्यूज paid news होती है। अब वह सब कुछ छपने लगा है जो वास्तव में पत्रकारिता होती ही नहीं है। 

सवाल उठता है कि क्या आज का मीडिया निष्पक्ष पत्रकारिता करता है? तो आपको बता दें कि सरकारी कागज़ पर छपने वाले अखबार और सरकारी व अन्य विज्ञापन पर चलने वाले न्यूज़ चैनल निष्पक्ष तो कभी नहीं रहे लेकिन पहले हालत इतनी ख़राब नहीं थी अब काफी कुछ बदल चुका है। हालांकि कुछ ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल अभी भी निष्पक्ष पत्रकारिता कर रहे हैं किंतु सरकार उन्हें दबाने में लगी है।

वैसे भारत देश में निष्पक्ष पत्रकारिता ख़त्म हो रही है बल्कि हो चुकी है। समाचार चैनलों पर इस समय निष्पक्ष कुछ भी नहीं दिखाया जाता सब कुछ आर्थिक हितों के अनुसार तय होता है, सब कुछ प्रायोजित है कि क्या दिखाना है और क्या नहीं दिखाना। न्यूज़ चैनल पर चीख चीख कर तेज आवाज में समाचारों की वकालत करते एंकरों की आत्मा मर चुकी है और अगर कुछ लोगों की आत्मा जिंदा भी है तो कहीं ना कहीं सच को झूठ और झूठ को सच बनाकर पेश करने की चुभन उनको अंदर ही अंदर महसूस होती रहती है लेकिन वे चाहकर भी इससे निकल नहीं सकते क्योंकि झूठी प्रसिद्धि के मोह को वह चाहकर भी छोड़ नहीं सकते।

सच कहें तो पूंजीवाद capitalism इस कदर देश में हर संस्था पर, पूरे सिस्टम पर हावी हो चुका है की निष्पक्षता जैसा शब्द तो सिर्फ डिक्शनरी में ही रह गया है।

स्वच्छ, निष्पक्ष व निर्भीक पत्रकारिता, clean, fair and fearless journalism से ही लोकतंत्र मजबूत होगा। आज पत्रकारिता का महत्व पहले से अधिक बढ़ गया है। पत्रकारिता समाज का दर्पण होता है। पत्रकार की लेखनी समाज की गंदगी को दूर करती है और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।