मौत का सच 

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मौत का सच 
07 Oct 2021
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ये हकीक़त है इस दुनिया की हम सबको किसी दिन अपनों को खोना होगा और एक दिन खुद को भी, लेकिन हमारा ह्रदय दुनिया की दर्दनाक सच्चाई मान नहीं सकता। हमें आदर्शों के अनुसार ज़िन्दगी को खूबसूरत बनाना चाहिए न कि उसे बोझ की तरह सहन करना चाहिए।   

इंसान के जन्म से ज़िन्दगी की शुरुआत होती है और मौत ज़िन्दगी का अंत। हम ज़िन्दगी को सफर की तरह जीते हैं, उसे खूबसूरत बनाने की कोशिश करते हैं , खुद को समझते हैं, ज़िन्दगी के रहस्य का पता लगाते हैं। लेकिन ज़िन्दगी का कोई भरोसा नहीं। हम कब, कहां, कैसे दम तोड़ दें कुछ कहा नहीं जा सकता। किसी की ज़िन्दगी बहुत लम्बी होती है तो किसी की बहुत ही छोटी। दिल के किसी कोने में खुद को खोने का डर हमें हमेशा रहता है। हम जब ज़िन्दगी को समझने लगते हैं, तो उसे जीना हमारे लिए आसान हो जाता है, वरना ज़िन्दगी हमें बहुत परेशान करने लगती है। मनुष्य विज्ञान के शीर्ष पर पहुंच गया है, लेकिन अभी तक मौत का सच उसे नहीं पता। मरने के बाद इंसान कहां जाते हैं? मरने के बाद क्या सच में इंसान अपने कर्मों के अनुसार स्वर्ग या नर्क जाते हैं? आखिर कितनी अजीब सी बात है, एक जीती जागती ज़िन्दगी अचानक से किसी कारणवश मौत की हकीक़त से रूबरू हो जाती है। इंसान जब धरती पर अस्तित्त्व में आया तब उसे पता लगा होगा कि एक दिन उसे यहाँ से विदा भी लेना होगा। लेकिन क्या वह वापस धरती पर आने वाला है? या धरती से कहीं और जाने वाला है? किसी भी धर्म का मनुष्य हो उसे इस धरती को छोड़ कर जाना ही पड़ता है, बस उसके शरीर को दफ़्न कर, जला कर या ताबूत में रख कर विदा किया जाता है। लेकिन जाना तो सबको है, इस बात को हम यदि स्वीकार कर लें तो क्या स्वर्ग की परिकल्पना जो हमने मरने के बाद की है, वह धरती पर ही देखने को नहीं मिल जाएगा? हर इंसान इस बात से वाकिफ़ होने के बाद जीवन की इज्ज़त करेगा। मनुष्य हर गलत काम करने का विचार त्याग देगा। हम सारी उमर शौहरत के पीछे भागते हैं। उसके लिए हम शाम-दाम-दंड-भेद सब कुछ अपनाने की कोशिश करते हैं। कुछ प्राणी तो चंद पैसों के खातिर किसी प्राणी के प्राण लेने के लिए भी नहीं झिझकते, क्या उन्हें यह पता नहीं कि एक दिन उनकी भी सांसे कुछ इसी तरह थम जाएँगी, फिर वह इन पैसों का क्या करेंगे? आखिर जीवन का कुछ तो उद्देश्य होगा, जिसे हमें सार्थक बनाना चाहिए या उसे व्यर्थ काम कर के उसके मूल विचार को ही खत्म कर देना चाहिए? आखिर महाभारत में भी हमने देखा है कि किस तरह कर्म हमें इसी धरती पर जीवन और मौत देता है। रामायण में हमने जीवन के आदर्शों को सीखा, कुरान में हमें अल्लाह के दिए गए जीवन के नियम ही तो सीखने को मिलते हैं?

जितनी भी धर्म की पुस्तके हैं, उसमें हमें जीवन कैसे जीना है, उसकी सीख दी गयी है। जैसे इंसानों ने देश चलाने के लिए संविधान बनाया उसी तरह यह पुस्तकें हमारे जीवन का संविधान हैं। यदि इन किताबों के अनुसार हम जीवन-यापन करते हैं, तो हमें जीवन एक खूबसूरत सफर लगता है अन्यथा यह हमें एक अनसुलझी पहेली लगती है। हम जब इस ज़िन्दगी में आते हैं तो अपनी एक नई दुनिया बनाते हैं। जब तक हम सब ज़िंदा हैं, तब तक हमें कोई नहीं पूछता या हमारे बारे में अच्छे विचार नहीं रखता है। मनुष्य किसी चीज़ की कदर तभी करता है, जब वह चीज़ उससे दूर चली जाती है। उसी तरह जब कोई जान-पहचान का व्यक्ति ज़िन्दगी से अलविदा करता है, तब जाकर हमारी आँखों में उसके लिए संवेदना आती है। ऐसा नहीं है कि अन्य मनुष्य भी अपना जीवन त्याग देते हैं, समय किसी के लिए नहीं थमता और धीरे-धीरे मनुष्य के जाने के बाद वह केवल यादों में ज़िंदा रहता है। इसलिए मनुष्य को ज़िन्दगी भर आदर्श स्थापित करना चाहिए, हम आखिर अंत में पंच-तत्व में विलीन होने वाले हैं, तो क्यों न कुछ ऐसा कर के ज़िन्दगी से विदा लें ताकि जाने के बाद भी हमें याद करने वाले ज़िन्दगी भर न भूल सकें और हमारे कर्मों का अनुसरण करें। हर मनुष्य की दुनिया में वह और उससे जुड़े उसके करीबी होते हैं, जब हमें किसी अपने को खोना पड़ता है। हम उसकी दहकती चिता को देखते हैं, उसमें एक ज़िन्दगी जलती है। जिस ज़िन्दगी के इर्द-गिर्द एक दुनिया बसती थी, उस दुनिया को तन्हा कर वो चिता विदा लेती है, तरसती आंखे और चीरती आँहे चीखती हैं, उस ज़िन्दगी को वापस ज़िंदा देखने के लिए पर वह शरीर मजबूर है, अब वह लौट नहीं सकता। जान निकलने के बाद वह इतना कठोर बन गया है कि अब उसे कोई फर्क नहीं पड़ता। ये हकीक़त है इस दुनिया की हम सबको किसी दिन अपनों को खोना होगा और एक दिन खुद को भी, लेकिन हमारा ह्रदय दुनिया की दर्दनाक सच्चाई मान नहीं सकता।