अपने उद्गम स्थान से ही संस्कृत क्यों हो रही लुप्त?

Post Highlight
प्राचीन समय से संस्कृत भाषा भारत की एक महत्त्वपूर्ण भाषा रही है। संस्कृत भारत की सिर्फ एक भाषा ही नहीं बल्कि एक भारतीय संस्कृति है। लेकिन दुर्भाग्यवश आज यह लुप्त होती जा रही है जिसका संरक्षण और पुनर्विकास आवश्यक है।
Podcast
Continue Reading..
प्राचीन काल से ही, संस्कृत भाषा Sanskrit language भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण भाषा रही है। यह दुनिया की सबसे प्राचीन भाषा ancient language है, जो सभी भाषाओं में सबसे परिपूर्ण है। यह प्राचीन भारत द्वारा दुनिया को दिया गया सबसे बड़ा खज़ाना है। संस्कृत साहित्य एक ऐसा सागर है जिसमें ज्ञान के अनेक मोती समाए हुए हैं। यह संस्कृत भाषा हमारे वेदों, पुराणों, शास्त्रों और काव्यों का स्त्रोत है और यह देवताओं की भाषा मानी जाती है। संस्कृत विश्व की दैवीय मातृभाषा divine mother tongue मानी जाती है। ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है, जहां संस्कृत ने अपना योगदान नहीं दिया हो। यह अनेक क्षेत्रों में अग्रणी रही है जैसे, चिकित्सा, विज्ञान, योग, इतिहास, दर्शन, ज्योतिष Medicine, science, yoga, history, philosophy, astrology। लेकिन आज के समय में इसी महान भाषा का पतन होता जा रहा है और पतन भी इस तरह का यह स्वयं अपने उद्गम स्थान से ही लुप्त होती जा रही है ।
संस्कृत के लुप्त होने का है यह कारण
वास्तव में, कोई भी भाषा किसी विशेष धर्म की नहीं होती। लेकिन विभिन्न धर्म और समुदाय के लोग अपने अनुसार अलग-अलग भाषाएं बोलते हैं। यह भाषाएं असल में लोगों को विभाजित करने के बजाय उनको जोड़ने का काम करती हैं। भारत में बोली जाने वाली भाषाएं यहां की लौकिक विविधता को दर्शाती हैं। भारत एक ऐसा देश है जहां मुसलमानों को संस्कृत बोलते और हिंदुओं को फारसी बोलते देखा गया है। लेकिन आज भारत में अंग्रेजी व्यापक रूप से बोली जाती है। आज लोगों की अंग्रेजी पर इतनी पकड़ हो गई है जितनी किसी अमेरिकी या ब्रिटिश American or British की होती है। असल में, संस्कृत या फिर हिंदी भाषा के पतन का सबसे बड़ा कारण यह है कि लोग आज अंग्रेजी भाषा की ओर अधिक ढलते जा रहे हैं।
वर्तमान समय में, संस्कृत को सिर्फ पंडितों की भाषा मानी जाती है। संस्कृत आज सिर्फ लोगों के एक छोटे दायरे तक सीमित होकर रह गई है। संस्कृत के एक सीमित लोगों तक सिकुड़ कर रह जाने का सबसे मुख्य कारण पंडितों का सूक्ष्म दृष्टिकोण भी है जिन्होंने कभी इसे सामान्य लोगों तक पहुंचाने की कोशिश नहीं की। इसके अलावा लोग संस्कृत भाषा को बहुत ही कठिन समझते हैं और यह भी एक कारण है कि लोग इसे सीखने या बोलने से बचते हैं। यह तो स्वाभाविक है कि जब कोई भाषा वहां के आम लोगों द्वारा बोली नहीं जाती तो उस भाषा की स्वयं ही मृत्यु हो जाती है। इसलिए यह जरूरी है कि इसे भारतीय लोगों के बीच लोकप्रिय बनाया जाए। आज उत्तर भारतीय स्कूलों में छात्रों को संस्कृत पढ़ाया जाती है लेकिन यह सिर्फ एक ढोंग ही मालूम पड़ता है। स्कूलों में संस्कृत एक खराब शिक्षा प्रणाली का हिस्सा हो गयी है, जो मात्र उच्च अंक प्राप्त करने का विषय बन चुकी है। आज स्कूलों में योग्य शिक्षकों की कमी के कारण शिक्षक संस्कृत भाषा को सिर्फ रटने पर जोर देते हैं, इससे छात्रों को कोई वास्तविक सीख नहीं मिलती। आज शिक्षा क्षेत्र में संस्कृत के अध्यापकों की भारी कमी है। हमारी समझ में संस्कृत को बढ़ावा देने के लिए कोई भी प्रभावी कदम नहीं उठाए जा रहा हैं। इसके पीछे सरकारें कोई प्रयास नहीं करतीं जिससे विश्वविद्यालयों को अपने पाठ्यक्रमों में संस्कृत के लिए समर्पित कई छात्र नहीं मिलते क्योंकि वे आवश्यक शिक्षा प्रदान करने में विफल हो जाते हैं।
दुनिया में एकमात्र संस्कृत दैनिक समाचार पत्र sanskrit daily newspaper "सुधारा Sudhara" ने इसके प्रकाशन को जीवित रखने में मदद करने के लिए सरकार से धन की मांग की लेकिन उन्हें कोई भी जवाब नहीं मिला जबकि भारत में यह फंड आरक्षित होते हैं। इसलिए हम कह सकते हैं कि सरकारों की भी इस ओर भागीदारी नहीं होती।
निष्कर्ष
संस्कृत भाषा को प्रायः सिर्फ हिंदू धर्म से जोड़ा जाता है। लेकिन किसी भी भाषा को किसी धर्म विशेष तक सीमित रखने की धारणा गलत है। संस्कृत को केवल धार्मिक ग्रंथों वाली भाषा के रूप में भ्रमित नहीं किया जाना चाहिए। बल्कि इसके पुनर्विकास के लिए आवश्यक कदम उठाए जाने चाहिए। कोई भी भाषा बोलने या सीखने के लिए थोपी नहीं जानी चाहिए लेकिन शायद अगर संस्कृत भाषा की ओर अगर ध्यान दिया जाए तो कुछ सुधार की उम्मीद की जा सकती है। हमें यह समझना होगा कि संस्कृत सिर्फ एक भाषा ही नहीं बल्कि एक भारतीय संस्कृति है जिसका संरक्षण आवश्यक है।