सुबह का सफ़र

Share Us

1317
सुबह का सफ़र
11 Nov 2021
7 min read

Blog Post

प्रत्येक मनुष्य, प्रत्येक क्षण एक सफर पर चलता रहता है। कभी वह उस कहानी को याद रख सहेज लेता है तो, कभी वह कहानी उसके स्मरण में नहीं रह पाती है। ज़रूरी नहीं कि हर सफ़र सुखद हो, परन्तु हम मोह के कारणों से एक स्थान पर कभी रुक नहीं सकते हैं।

वक्त की सुई ने जब भोर के पांच बजे का साथ पकड़ा तो, पक्षियों के चहचहाहट की आवाज़ के साथ फोन गुर्रा कर मुझे नींद से जगाने लगा। रोज की तरह आज भी उसके गुर्राने से मुझ पर कोई खास फर्क नहीं पड़ा और मैं थोड़ा और सोने के स्वप्न में खोने ही वाली थी कि बगल में लेटी दीदी की आवाज़ आई; 

तनु.....

  उठो, जाना नहीं है क्या...?

उनकी आवाज़ से कानों में पहुंचे शोर ने दिमाग को झकझोर कर आंखों को जबरन खोला और 

कहां कि;

    अबे बुड़बक 6 बजे की ट्रेन है,

  जाना नहीं है, यहीं रहना है क्या।

झटपट बिस्तर छोड़कर मैं घर के ऊपरी छोर' जहां पर मुझे नहा-धोकर तैयार होना था, जाने के लिए सीढ़ियां चढ़ने लगी।

अभी हम पहले ही फ्लोर पर पहुंचे थे कि ज़ोरो महाराज, जो कि घर में सबके सबसे चहेते हैं और खुद को घर के राजकुमार से कम नहीं समझते, ऊपर से ही भौंकने लगे और चाचा को बताने लगे कि नीचे से कोई तो ऊपर आ रहा है। जब हमारे और ज़ोरो के बीच की दूरी कम हुई या यूं कहूं उन महाराज को हमारा चेहरा स्पष्ट रूप से दिखाई दिया तो छण भर में पूरी परिस्थिति ही बदल गई।

ज़ोरो महाराज मुझ पर इस क़दर प्यार लुटा रहे थे मानों वह मुझसे बरसों बाद मिले हों। थोड़ी देर तक मुझ पर प्यार लुटाने के बाद वे अपने खिलौनों से खेलने लगे और मैं खुद को शहर छोड़ने के लिए सज्ज करने लगी।

जब नहा-धोकर मैं बाहर निकली तो छोटी बहन ने चाय बनाकर पहले से ही मेरे तनाव को कम करने का इंतजाम कर दिया था। चाय पीते-पीते अपनों से थोड़ी बहुत जाने की प्रक्रिया के बारे में गुफ्तगू होती रही।

चाय पीने के बाद चाचा को हमने घड़ी की तरफ इशारा करते हुए कहा; 

चलें....?

चाचा ने बड़े निर्झरता से कहा;

हां हां चलो हम तो तैयार ही हैं।

इसके बाद मैं station जाने के लिए नीचे को आई और बाकी सब मुझे अलविदा कहने को। घर के बाहर चाचा ने car start की और मुझे बैठने को कहा।

सबकी तरफ उदास नज़रों से देखते हुए मैंने सबको गुडबाय कहा और गाड़ी में बैठकर नए सफ़र की तलाश में निकल गयी।