मानसिक तनाव, अब नहीं खायेगा भाव

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मानसिक तनाव, अब नहीं खायेगा भाव
17 Sep 2021
9 min read

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कोरोना महामारी ने आर्थिक, मानसिक और शारीरिक तौर पर लोगों को हानि पहुंचाई है। महामारी के बाद व्यक्ति के सोचने, रहने यहाँ तक कि उनके व्यवहार का भी तरीका बदल गया। डिप्रेशन, अनिद्रा जैसी बीमारियों ने अपनी जगह बनाकर लोगों की परेशानियों को और बढ़ा दिया। इस महामारी से किसी ने हार मान ली तो किसी ने कठिनाइयों का सामना कर खुद को फिर से अपनी पुरानी दुनिया में स्थापित किया। TWN आपकी मदद के लिए हमेशा ऐसे ही आगे आता रहेगा। हमारा उद्देश्य आपकी जीवन शैली को बेहतर बनाना है। 

कोरोना महामारी के कहर ने पूरी दुनिया में तबाही मचायी है। तबाही का मंजर भी ऐसा कि प्रत्येक व्यक्ति खुद को कमरे में ही बंद रखना मुनासिब समझता है। दुनिया आज असाधारण तरह से प्रगति की ओर अग्रसर है। इस आधुनिक दुनिया में नए आविष्कारों के साथ ही लोगों के बीच प्रतिस्पर्धाएं भी लगातार बढ़ती जा रही हैं। यह प्रतिस्पर्धा दूसरे मनुष्यों के साथ-साथ अपने अंदर चल रहे मानसिक तनाव को भी बढ़ावा देता है। ऐसा समय आ गया है कि हम दूसरों के लिए तो क्या, खुद के लिए भी समय नहीं निकाल पाते, जिसके कारण हमारा दिमाग स्थिर नहीं रह पाता। शरीर की तरह हमारे दिमाग को आराम और ताज़गी की ज़रूरत होती है। जिस तरह शरीर का भार बढ़ने से हम कई रोगों से ग्रसित हो जाते हैं ठीक उसी प्रकार दिमाग को आवश्यक आराम ना मिलने से वो हम मानसिक तनाव के शिकार हो जाते हैं। ऐसे में कोरोना जैसी महामारी ने मनुष्य की मानसिक स्वास्थ्य पर और बुरा असर डाला है। लॉक डाउन के लम्बे समय ने मनुष्य के दिमाग पर दबाव डाला है, जिसका नतीजा कई तरह की बीमारियों के रूप में सामने आ रहा है। ज़रूरत से ज्यादा सोचना हमारे मन को अशांत करता है और हमें कई मानसिक बीमारियों का सामना करना पड़ता है। मानसिक स्थिति का ध्यान देना हमारे लिए उतना ही ज़रूरी, है जितना की हमारा जीवन।  

कोविड में मानसिक तनाव से जूझते लोग

महामारी के दौर में एक समय ऐसा भी आया जब व्यस्त दुनिया में लोगों के पास करने के लिए कोई काम नहीं रह गया। खाली समय को किस तरह व्यतीत करना है यह लोगों के लिए परेशानी का कारण बन गया। इसके साथ ही लॉक डाउन में नौकरी का अभाव होने के कारण भी लोगों की चिंताएं बढ़ती गयीं। रोजमर्रा की ज़रूरतों को पूरा करना प्रत्येक व्यक्ति की समस्या को बढ़ा रहा था। ऐसे में दिमाग पर दबाव बनना स्वाभाविक है। कोविड महामारी पर हुए रिसर्च के मुताबिक महामारी के कारण केवल बीमार व्यक्तियों और उनके परिवार पर ही नहीं बल्कि जो लोग बीमारी का शिकार नहीं थे उन्हें भी मानसिक अस्थिरता का सामना करना पड़ा। लोगों को नींद न आना, चिंता करते रहना और लोगों में अवसाद का शिकार होना सामान्य हो गया। 

इस महामारी के प्रभाव से दुनिया का कोई भी इंसान अछूता नहीं रहा। हम बात मध्यम वर्ग के लोगों की करें या उच्च वर्ग की, कोरोना ने सबकी ज़िन्दगी पर अपना प्रभाव डाला है। ऐसे कई व्यक्ति हैं, जिन्होंने इस समस्या पर खुल कर बात की और बताया, कैसे वो इस बीमारी का शिकार हुए। खेल जगत से लेकर फिल्मी दुनिया में कई ऐसे सितारे हैं जिन्होंने इसे बाकी बीमारियों की तरह ही सामान्य बीमारी बताया। उनके मुताबिक समाज के भय बीमारी को छिपाने से यह और भी खतरनाक रूप ले लेती है। इस बीमारी से आप बातें साझा करके और इस विषय पर लोगों से खुल कर बात करके ही समाधान पा सकते हैं। 

मानसिक तनाव कमजोरी की निशानी नहीं 

यदि हम मानसिक बीमारी की स्थिति देखें तो हमें यह नजर आता है कि इसे मनुष्य की कमजोरी के रूप में देखा जाता है। यदि मनुष्य शारीरिक रूप से बीमार है, तो हम उसके प्रति संवेदना व्यक्त करते हैं, परन्तु इस परिस्थिति में हमारे सोचने का नजरिया बदल जाता है। डिप्रेशन का शिकार व्यक्ति कभी-कभी यह समझ नहीं पता कि वह किस चीज से परेशान है, और इस कारण वह अपनी यह समस्या किसी से व्यक्त नहीं कर पाता। कई शोधकर्ताओं का यह मानना है कि मानसिक रूप से कमजोर व्यक्ति यदि बातें साझा करना बंद कर दे, तो इससे उसकी स्थिति और भी बिगड़ती जाती है। ऐसे में हमें यह समझने की ज़रूरत है कि ऐसे मरीज भी सामान्य ही होते हैं। उन्हें समझने की कोशिश करें।  

मानसिक तनाव को दूर करना आसान  

कोरोना की वजह से उत्पन्न हुई इस विपत्ति को ख़त्म कर पाना आसान नहीं है, परन्तु इस समस्या को ख़त्म ना किया जा सके ऐसा भी नहीं है। ऐसे कई व्यक्तियों के उदाहरण है जिन्होंने इस बीमारी को मात देकर अपनी ज़िन्दगी को फिर सामान्य तरह से जीना शुरू किया है। लेकिन इसका एक मात्र तरीका यह है कि हम इस बीमारी को सामान्य बीमारी मानकर इसका इलाज कराएं और इसे खुल कर लोगों के साथ साझा करें जिससे हम उनकी भी सहायता कर सकें।