साक्षर: समृद्धि का हस्ताक्षर (विश्व साक्षरता दिवस)

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साक्षर: समृद्धि का हस्ताक्षर (विश्व साक्षरता दिवस)
07 Sep 2021
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आज के समय में प्रत्येक व्यक्ति का साक्षर होना और शिक्षित होना बहुत महत्व रखता है, क्योंकि आज पूरा विश्व बहुत तेजी से रात-दिन दौड़ रहा है, विज्ञान बहुत व्यापक रूप ले चुका है। ऐसे में शिक्षा एक ऐसा सूत्र है जो पूरी दुनिया को समझने और परखने के लिए काफी है। पढ़ाई-लिखाई हर किसी के लिए जरूरी है फिर चाहे वह लड़की हो या लड़का, स्त्री हो या पुरुष, जवान हो या वृद्ध। 

हर किसी का अपना हस्ताक्षर होना चाहिए 

विश्व का हर व्यक्ति साक्षर होना चाहिए…. 

मनुष्य जाति अपनी सभ्यता को और सभ्य करने के लिए निरंतर ही प्रयासरत रही है। सदियों से मनुष्य अपने कदमों को आगे बढ़ाते हुए नित प्रतिदिन कुछ न कुछ नया करने की होड़ में रहा है। मनुष्य ने कभी नहीं सोचा होगा कि अपने भीतर से कब वह आदिमानव को पछाड़ता हुआ आज के युग का सबसे शक्तिशाली प्राणी बन जायेगा। परन्तु कहते हैं न "ईश्वर के आलावा कुछ भी पूर्ण नहीं है" शायद इसलिए हम रोज़-रोज़ बढ़ते हैं, हम रोज़-रोज़ कुछ नया बनाते हैं, नया सीखते हैं और विकास की तरफ चालयमान रहते हैं। 

वस्तुता: हमारा विकास एक दिन में नहीं हुआ बल्कि कई पहलुओं का एक सूत्र में होना हमारे विकास का कारण है, जिसमें शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण माध्यम है। शिक्षित होना प्रत्येक व्यक्ति का अधिकार है। शिक्षा हमारी सोच में कुछ न कुछ नया करने के लिए शक्ति और सामर्थ्य पैदा करती है। शिक्षा मनुष्य को सभ्यता की सीढियाँ प्रदान करती है। परन्तु एक बात जो पूरे विश्व का ध्यान केंद्रित करती हुई नज़र आयी वह थी कि जिन लोगों का ध्यान शिक्षा की ओर बिल्कुल नहीं है, उन्हें कैसे शिक्षा के लिए प्रेरित किया जाये। यह सवाल पूरी मनुष्य जाति के विकास के लिए अति आवश्यक था। तमाम विचार विमर्शों के पश्चात एक रास्ता निकाला गया कि लोगों को शिक्षा की तरफ कैसे मोड़ा जाये, इस दिशा में कार्य करते हुए विश्व के लोगों ने सभी के लिए साक्षरता को अनिवार्यरूपेण कर दिया। 

साक्षरता से तात्पर्य - साक्षरता का अर्थ है कि "प्रत्येक व्यक्ति को कम से कम अक्षरों का ज्ञान होना ही चाहिए।" परन्तु इसका मतलब यह भी नहीं कि आप सिर्फ भाषिये अक्षरों तक सिमित रहें, साक्षर व्यक्ति को कम से कम एक भाषा में साधारण रूप से लिखना, बोलना और पढ़ना तो आना ही चाहिए। साथ ही साथ उसको रोज़मर्रा में प्रयोग होने वाली गणित का भी ज्ञान हो जैसे जोड़, घटाना, गुणा, भाग आदि। साक्षर व्यक्ति को ही पढ़ने के लिए प्रेरित किया जा सकता है यदि उसने कभी कलम नहीं उठायी, तो फिर कैसे हम उसे शिक्षित होने के लिए प्रेरित कर सकते हैं।

जिस तरह शिक्षा एक सागर भांति है वहीँ साक्षरता एक बूँद है, यदि मनुष्य को बूँद का ज्ञान नहीं होगा तो वह सागर को कैसे जानेगा। वो कहावत है न बूँद-बूँद से ही सागर बनता है। इसी बूँद को आधिकारिक रूप देने का काम संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक संगठन(UNESCO) ने वर्ष 1965 में किया जिसको पूरे विश्व ने 1966 को मान्यता प्रदान की। वर्ष 1967 से प्रत्येक वर्ष के सितंबर माह की 8 तारीख़ को विश्व साक्षरता दिवस मनाया जाता है। विश्व की साक्षरता दर वर्तमान में लगभग 86.3% है तथा भारत की साक्षरता दर लगभग 74.6 है। जितने विकसित देश हैं उनमें से कुछ देशों की साक्षरता दर 100 फीसदी भी है जैसे ग्रीनलैंड, अंडोरा, नार्थ कोरिया, उज्बेकिस्तान, आदि। परन्तु कुछ देशों का लिट्रेसी रेट बहुत ही निम्न स्तर पर है जैसे कि साऊथ सूडान, गिन्नी, नाइजर आदि। 

बदलते भारत की साक्षरता - विश्व स्तर पर भारत अपनी छाप प्रत्येक क्षेत्रों में छोड़ता ही रहता है। फिर बात हो सुई बनाने की या मंगल पर अपना कृत्रिम सेटेलाइट पहुंचाने की। जब अपना देश आज़ाद हुआ था तब यहाँ की साक्षरता दर 18 % आँकी गयी। पुरानी सदी को नींद से जागने वाली सदी कहा जाए तो इसमें कोई दोराय नहीं होगी, क्योंकि उस वक़्त प्रत्येक देश एक दूसरे को अपनी गुलामी की ज़ंजीरों में जकड़े हुए था। सभ्यताएं बनती थी-टूटती थी, द्वितीय विश्वयुद्ध ने जब मानवीय नरसंहार देखा तब लोगों की आँखें खुली और विश्व ने पहली बार एक दूसरे के बारे में सोचना शुरू किया। तब तक तो लोग साक्षारता जैसे शब्द से कहा जाए तो परिचित भी नहीं थे, साक्षर होना तो दूर की बात थी। 

आज़ादी के बाद शिक्षा पर विशेष ध्यान देना शुरू किया गया उसी दरमियाँ UNESCO ने 1965 में साक्षरता दिवस की घोषणा की तथा भारत ने इसको स्वीकारते हुए अपने देश में साक्षरता दर को तेजी से बढ़ाना शुरू किया। भारत में फिर भी अनपढ़ों की संख्या ज्यादा ही थी कई सालों तक जिसमें महिलाओं की साक्षरता तो न के बराबर ही थी। 1988 में बड़ा बदलाब देखने को मिला जब भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय साक्षरता मिशन अभियान चलाया गया। जिसमें 15 से 35 वर्ष के लोगों को प्रेरित किया गया पढ़ने के लिए। बाद में 2009 में 86 वें संविधान संसोधन के द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा मिशन लाया गया। यह एक बड़ा बदलाब था भारतीय शिक्षा प्रणाली का। इसके तहत 6 से 14 तक की उम्र के बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने का प्रावधान किया गया। इस मिशन के द्वारा साक्षरता दर में बहुत तेजी से सुधार आया। 86 वे संविधान संसोधन में ये उल्लेखित किया गया कि शिक्षा पाना सभी का अधिकार है जिसको "राइट टू एजुकेशन" का नाम दिया गया। 

भारत आज साक्षरता के जिस पायदान पर है वहां से और ऊपर जाने के लिए प्रयासरत है। उसके लिए राज्यों को एक साथ शिक्षा के विकास हेतु कार्य करते रहना होगा। अंग्रेजी हुकूमत को गए कई साल हो गए हैं अगर अब भी हम ग़रीबी, अशिक्षा और ऐसी तमाम ज़रूरी आवश्यकताओं को मुहैया न करा पाए तो दोष किसको मढ़ा जायेगा ? यद्यपि कुछ राज्यों ने साक्षरता की ओर बहुत ही शानदार प्रदर्शन दिखाया है जिसमें केरल की साक्षरता दर लगभग 96 फीसदी है और वहीँ कुछ राज्यों का प्रदर्शन अभी भी चिंताजनक है जिसमें बिहार की सबसे कम 61.8 फीसदी के आसपास है। सीधी सी बात है, शिक्षित समाज ही देश का भविष्य निर्धारित करता है। अगर आज के समय में भी हम लोगों की साक्षरता का आँकड़ा 100 फीसदी तक नहीं ले जा पाए तो न जाने कब हम एक पूर्ण शिक्षित देश बना पाएंगे। आज का समय यह होना चाहिए शिक्षा को लेकर कि 'जब उगाओगे बाँस तब ही बजेगी बाँसुरी' मतलब जब साक्षरता बढ़ेगी तभी शिक्षा का विकास होगा। 

वर्ष 2021 के विश्व साक्षरता की थीम - इस वर्ष की थीम है "मानव केंद्रित पुनर्प्राप्ति के लिए साक्षरता: डिजिटल विभाजन को कम करना।" थीम का तात्पर्य यह है, जिस तरह से पूरे विश्व ने कोविड के दौर को झेला है उसको याद करते ही दुःख का अनुभव होता है विश्व भर के छात्रों की शिक्षा बाधित हुई। सार्थक साक्षरता में बच्चों को कई असमानताओं का सामना पड़ा जैसे कि अभी भी पूरा विश्व डिजिटल शिक्षा के नहीं जुड़ा है। जिस कारण बच्चों ने 2  साल से शिक्षा ले ही नहीं पायी है। साक्षरता कि पहुँच समान रूप से वितरित नहीं की गई है और असमानताओं के मामले में लगातार डिजिटल विभाजन को भी उजागर किया, जिसमें सीखने के सीमित विकल्प हैं। इन सब को देखते हुये इस बार इस थीम को रखा गया है।

विश्व भर में इतने सारे दिवस मनाये जाते हैं। प्रत्येक दिवस को मनाने का मूल कारण यही होता है कि उस क्षेत्र में अभी भी बहुत ध्यान देने की आवश्यकता है, वह विषय अभी भी उभार की स्थिति में आने के लिए प्रयासरत है और उस विषय का उत्थान करना अति आवश्यक है, मानवीय सभ्यता का लिए। विश्व साक्षरता दिवस को मनाया जाना भी इसीलिए ही जरूरी है। आज के समय में प्रत्येक व्यक्ति का साक्षर होना और शिक्षित होना बहुत महत्व रखता है, क्योंकि आज पूरा विश्व बहुत तेजी से रात-दिन दौड़ रहा है, विज्ञान बहुत व्यापक रूप ले चुका है। ऐसे में शिक्षा एक ऐसा सूत्र है जो पूरी दुनिया को समझने और परखने के लिए काफी है। पढ़ाई-लिखाई हर किसी के लिए जरूरी है फिर चाहे वह लड़की हो या लड़का, स्त्री हो या पुरुष, जवान हो या वृद्ध।