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काकोरी कांड: आज ही के दिन क्रांतिकारियों ने दिया था अंजाम, जानें इतिहास

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काकोरी कांड: आज ही के दिन क्रांतिकारियों ने दिया था अंजाम, जानें इतिहास
09 Aug 2022
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News Synopsis

यूं तो भारत India को ब्रिटिश हुकुूमत British rule से आजाद कराने के लिए कई आंदोलन movement किए गए और अंग्रेजों से लोहा लेते हुए हजारों शहादतें दी गई। इसी कड़ी में 9 अगस्त यानी काकोरी कांड Kakori kand को भी नहीं भुलाया जा सकता है। 1922 में हुए गोरखपुर Gorakhpur में चौरी-चौराकांड Chauri-Chowrakand के बाद गांधी जी Gandhi jiने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया। गांधी जी के इस फैसले से युवा क्रांतिकारी  young revolutionary सबसे ज्यादा नाखुश थे। आंदोलन से निराश युवाओं ने ये फैसला लिया कि वो एक पार्टी का गठन करेंगे।

सचीन्द्रनाश सान्याल Sachindranash Sanyal के नेतृत्व में हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन Hindustan Republican Association की स्थापना की गई। योगेशचन्द्र चटर्जी Yogesh Chandra Chatterjee, रामप्रसाद बिस्मिल Ramprasad Bismil, सचिन्द्रनाथ बक्शी Sachindranath Bakshi पार्टी के महत्वपूर्ण सदस्यों में शुमार थे। बाद में चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह Chandrashekhar Azad and Bhagat Singh भी पार्टी से जुड़ गए। पार्टी का मानना था कि भारत की आजादी के लिए हथियार उठाने ही पड़ेंगे। बिना हथियार के अंग्रेजों से लोहा लेना आसान काम नहीं था। उस दौरान हथियार खरीदने के लिए पैसों की जरूरत थी। इसलिए क्रांतिकारियों ने फैसला लिया गया कि सरकारी खजाने exchequer को लूट लिया जाए।

क्रांतिकारियों ने 9 अगस्त 1925 को सहारनपुर से लखनऊ Saharanpur to Lucknow जा रही ट्रेन को लूट लिया। इस ट्रेन को काकोरी स्टेशन Kakori Station पर रोक गया और बंदूक की नोंक पर गार्ड को बंधक बनाकर घटना का अजाम दिया गया। क्रांतिकारियों Revolutionaries के 4,601 रुपए की रकम हाथ लगी। काकोरी में हुई इस ट्रेन लूट की घटना से ब्रिटिश सरकार में भूचाल मच गया। आनन-फानन में गिरफ्तारियां की गईं। जबकि घटना में केवल 10 ही लोग शामिल थे लेकिन सरकार ने एक महीने के अंदर करीब 40 लोगों की गिरफ्तार कल लिया। 6 अप्रैल 1927 को फैसला सुनाया गया।

राम प्रसाद बिस्मिल Ram Prasad Bismil, अशफाक उल्ला खान Ashfaq Ullah Khan, राजेंद्र लाहिड़ी और ठाकुर रोशन सिंह  Rajendra Lahiri and Thakur Roshan Singh को फांसी की सजा sentenced to death सुनाई गई। इसमेें कई लोगों को 14 साल तक की सजा दी गई। सरकारी गवाह बनने पर दो लोगों को रिहा कर दिया गया। चंद्रशेखर आजाद पुलिस की गिरफ्त से दूर ही रहे। फांसी के फैसले का भारतीयों ने खूब विरोध किया लेकिन अंग्रेजों ने एक न मानी।

सबसे पहले 17 दिसंबर 1927 को गोंडा जेल Gonda Jail में राजेंद्र लाहिड़ी को फांसी दी गई। आज ही के दिन 1927 में रामप्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर जेल अशफाक उल्ला खान को फैजाबाद जेल Faizabad Jail और रोशन सिंह को इलाहाबाद Allahabad में फांसी दी गई। देश के इन वीर सपूतों ने हंसते हंसते फांसी के फंदे को चूम लिया।

 

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