कैसे मिले हर बच्चे को कान्हा सा स्नेह

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कैसे मिले हर बच्चे को कान्हा सा स्नेह
30 Aug 2021
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हर बच्चा खुशहाल ज़िन्दगी का हकदार होता है। प्रत्येक बच्चे का जीवन अच्छा हो और वह सभ्य समाज को आगे ले जाने के लिए एक काबिल मनुष्य बन पाए, इसकी जिम्मेदारी केवल उसके माता-पिता की नहीं बल्कि समाज में मौजूद प्रत्येक व्यक्ति की होती है। खासकर ऐसे बच्चों के लिए समाज की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है, जो माता-पिता के सानिध्य से वंचित रह जाते हैं। तथा रात के अंधेरे में जुगनू की रोशनी पाना भी उनके लिए चांद हांसिल करने जैसा होता है। यदि वास्तव में हम हर बच्चे को कान्हा जितना स्नेह दें तो हर बच्चे का भविष्य सुरक्षित रहेगा।             

बच्चे भगवान का रूप होते हैं, यह मान्यता हमारे यहां सदियों से चली आ रही है। भारत में तो कई ऐसे दिवस भी मनाए जाते हैं, जिनमें बच्चों की भगवान के रूप में पूजा की जाती है। हर लड़के को भगवान श्री कृष्ण का और हर लड़की को देवी मां का रूप कहा जाता है। पर क्या देश का हर बच्चा प्रत्येक व्यक्ति से इतना प्यार और दुलार पाता है? क्या हर बच्चा भगवान की तरह पूजा जाता है। अगर हम आंकड़ों को देखें तो यह मान्यता हमें अधूरी नज़र आती है। समाज में यह मान्यताएं शायद केवल उन लोगों के लिए ही वैध हैं जो ऐसे परिवार से आते हैं जिनके माता-पिता आर्थिक रूप से मजबूत हैं। भारत में ऐसे कई बच्चे हैं जिनके या तो मां-बाप नहीं हैं और यदि हैं भी तो वह इस स्थिति में नहीं हैं कि अपने बच्चों को अच्छा भविष्य दे पाएं। परन्तु देश में ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो इन बच्चों का भविष्य अच्छा कर सकें। कुछ लोगों की कोशिशों ने इन बच्चों का भविष्य संवारा भी है।

देश की कुल 4 प्रतिशत जनसंख्या अंधेरे में

देश में करीब 20 मीलियन( 2 करोड़ ) बच्चे ऐसे हैं, जिनके माता-पिता नहीं हैं। देश की कुल जनसंख्या का 4 प्रतिशत फुटपाथ, झोपड़-पट्टी और ऐसी जगहों पर रहने के लिए मजबूर हैं, जो बच्चों के लिए उचित स्थान नहीं। हमें अक्सर फुटपाथ पर, ट्रैफिक सिग्नलों पर यह बच्चे गाड़ियों को साफ करते हुए, कुछ सामान बेचते हुए दिख जाते हैं। और इनके प्रति हमारा व्यवहार किसी अछूते व्यक्ति के साथ रहने वाले व्यवहार जैसा रहता है। हम उनके साथ इस तरह व्यवहार करते हैं जैसे वह कोई अपराध करके आए हैं। वहीं दूसरी तरफ कुछ ऐसे भी लोग हैं जो इन बच्चों को सुनहरा भविष्य देने का काम करते हैं।

अनाथालय बन रहे बच्चों के माता-पिता

देश में अनाथालय वह छाया है जो बच्चों के लिए आश्रय बनता है, जहां पर वह अपने सपनों को सच करने और बढ़िया जीवन जीने की तरफ आगे बढ़ते हैं। अनाथालय में रहकर बच्चे बहुत कुछ सीखते है। सड़कों पर रहने वाले बच्चों के लिए अनाथालय इसलिए भी सही रहता है क्योंकि यहां पर वह कई बच्चों के साथ रहते हैं और उनके साथ बहुत कुछ सीखते हैं। अनाथलाय में बच्चों को हर चीज की शिक्षा दी जाती है। और यदि बच्चा किसी एक काम में निपुण है तो उस काम को करने के लिए उसे अवसर भी मिलते हैं। सबसे बड़ी बात किसी अनाथालय की यह रहती है कि वहां पर रहने वाला कोई बच्चा कभी बोझ नहीं समझा जाता।

अनाथालय में योगदान कर दबाव करें कम

इन अनाथालयों को चलाने के लिए, बच्चों की जरूरतों को पूरा करने के लिए आर्थिक आधार की जरूरत पड़ती है। देश का प्रत्येक व्यक्ति इस आधार में अपना योगदान दे सकता है। अनाथालय में अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार खर्च उठा कर बच्चों के अच्छे भविष्य की वजह बन सकता है। इसके लिए जरूरी नहीं कि हम बहुत ज्यादा दान करें, जितनी हमारी शक्ति है हम उतना ही दें। यदि मनुष्य अधिक सक्षम है तो वह पूरा खर्च भी उठा सकता है। इससे अनाथालयों पर आने वाला दबाव कम होगा तथा वे अन्य बच्चों के जीवन को सुधारने की कोशिश करेंगे।

छोटी मदद से भी बच्चों को मिलता सहारा

कभी-कभी हम इतने सक्षम नहीं होते कि किसी बच्चे का पूरा खर्च उठा पाएं। परन्तु हमारी यह इच्छा अवश्य होती है कि हम बच्चों के लिए कुछ करें। ऐसे में हम केवल एक बच्चे की शिक्षा का खर्च उठा कर भी उस बच्चे की ज़िन्दगी संवार सकते हैं। यदि देश के चार में से एक व्यक्ति जिनकी आर्थिक स्थिति ठीक है, ऐसा करते हैं, तो देश की जितनी जनसंख्या है उसके आधार पर, कोई बच्चा अशिक्षित नहीं रह जाएगा। शिक्षा के अलावा भी हम बच्चों की किसी एक जरूरत को पूरा करके उनके चेहरे पर मुस्कान ला सकते हैं। हमारी छोटी सी भी मदद बच्चों के लिए महत्वपूर्ण है।  

बच्चा गोद लेकर संवारे उनका भविष्य

हमारे देश में दो स्थितियां होती हैं, पहली जिनमें माता-पिता अपने बच्चे को अपने पास नहीं रखना चाहते, बच्चे को कहीं भी छोडकर खुद से दूर कर देते हैं। दूसरी परिस्थिति वह है जिसमें, जो बच्चों को अपनी ज़िंदगी में चाहते हैं परन्तु जैविक रुप से माता-पिता नहीं बन पाते। ज़िन्दगी में खालीपन को दूर करने के लिए वह कई चिकित्सकीय प्रणालियों का सहारा लेते हैं। यदि ऐसे में मनुष्य उन बच्चों को अपने बेटे या बेटी के रूप में स्वीकार कर लें तो उस बच्चे के साथ उनका भी जीवन सुखमय हो जाएगा। आज के समय में भारत में कई लोग सरोगेसी के सहारे माता-पिता बनने की कोशिश करते हैं। यदि यह लोग बच्चों को वैधानिक रूप से गोद लेकर उन्हें अच्छी परवरिश दें तो कई बच्चों की ज़िन्दगी सुधर जाएगी।