तकनीकी कंपनियों के लिए Fake News बड़ी चुनौती

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तकनीकी कंपनियों के लिए Fake News बड़ी चुनौती
09 Dec 2021
9 min read

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इस लेख में आपको इस बात की जानकारी देंगे कि किस तरह फेक न्यूज Fake News तकनीक Technology से लड़ाई कर रही है और जीत भी फेक न्यूज की हो रही है। आम इंसान जिस की भलाई अच्छी खबरों से है, उसे फेक न्यूज का सामना करना पड़ रहा है।

जिस तरह पूरी दुनिया में तकनीक Technology सर चढ़कर बोल रही है, वहीं इसकी कई खामियां Drawbacks भी बेचारे आम इंसान को भुगतनी पड़ती हैं। माना कि तकनीक से देश और दुनिया ने काफी कुछ हासिल किया है, लेकिन बढ़ती प्रौद्योगिकी में भी फेक न्यूज  Fake News का बोलबाला है। तकनीक इस वक़्त फेक न्यूज से परेशान चल रही है। अगर इकोनामिक टाइम्स की एक रिपोर्ट को देखा जाए तो एक गांव ऐसा भी है जिसने फेक न्यूज के चलते आज तक कोरोना टीका Corona Vaccination भी नहीं लगाया है। आपको जानकर हैरानी होगी, इसलिए हम आज इस लेख में आपको इस बात की जानकारी देंगे कि किस तरह फेक न्यूज तकनीक से लड़ाई कर रही है और जीत भी फेक न्यूज की हो रही है। आम इंसान जिस की भलाई अच्छी खबरों से है, उसे फेक न्यूज का सामना करना पड़ रहा है।

फेक न्यूज ने रोक दिया पूरे गांव का कोरोना टीका

इकनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक हिमाचल प्रदेश के एक गांव में व्हाट्सएप Whatsapp पर चल रही एक फेक न्यूज के चक्कर में किसी ने भी कोरोना टीका नहीं लगवाया। फेक न्यूज इतना बुरा असर डालती है कि पूरा गांव केवल एक खबर की वजह से टिके से वंचित रह गया। 

बताया जाता है कि इस गांव में ज्यादा पढ़े लिखे लोग भी नहीं है। कुछ ही लोग हैं जो केवल मोबाइल चला सकते हैं, उनकी स्थानीय भाषा बोल सकते हैं और समझ सकते हैं। इस तरह की दशा में तकनीकी कंपनियों को इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि किस तरह एक खबर जो की फर्जी Fake है वह लोगों तक पहुंचती है और असर डालती है।

फेक न्यूज में अनुवाद का किरदार

अगर बात की गहराई को समझ जाए तो किसी भी फेक न्यूज के पीछे कई कारण होते हैं, लेकिन इसमें सबसे बड़ा मुद्दा है अनुवाद Translation का क्योंकि खबरें किसी और भाषा में होती हैं और उनका अनुवाद होने के बाद उन्हें क्षेत्रीय भाषा में व्हाट्सएप पर Viral फैला दिया जाता है। साथ ही इस बात पर सोशल मीडिया Social Media प्लेटफॉर्म Platform और तथ्य की जानकारी कर रहे अधिकारियों का ध्यान भी नहीं होता।

मौजूदा समय की बात की जाए तो अंग्रेजी, हिंदी, बंगाली, मराठी, कन्नड़, सहित कुछ क्षेत्रीय भाषाओं में बनी और प्रसारित सामग्री के तथ्यों की जांच जा रही है।

इस मुद्दे को लेकर मुंबई स्थित फैक्ट चेकिंग पोर्टल SM Hoax Slayer के संस्थापक पंकज जैन बताते हैं कि सच्चाई या तथ्य कई लोगों तक उनकी स्थानीय भाषा में नहीं पहुंच पाते, जैसा कि वे अंग्रेजी या हिंदी में होते हैं।

बड़ा सवाल

क्षेत्रीय भाषाओं Regional Languages में फर्जी खबरों की अक्सर अनदेखी क्यों की जाती है? क्या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस  Artificial Intelligence AI उनका पता लगाने में सफल नहीं होता? क्या इस समस्या को हल करने के लिए पर्याप्त स्थानीय जांचकर्ता Fact Checkers मौजूद है?

फैक्ट चेकिंग केवल कुछ भाषाओं के लिए

साल 2011 के नेशनल सेंसस National Census की बात की जाए तो भारत में 121 भाषाएं बोली जाती हैं, जिनमें से 22 भाषाएं संविधान की आठवीं अनुसूची का हिस्सा हैं। बड़े पैमाने पर देखा जाए तो केवल हिंदी और कुछ अन्य भाषाओं की ही फेक्ट चेकिंग की जाती है।

बड़े सोशल मीडिया माध्यम का योगदान जानें

अगर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म यूट्यूब Youtube की बात की जाए तो यूट्यूब में कोविड-19 महामारी के दौरान फेक न्यूज से बचने के लिए एक मुहिम चलाई थी, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि यूट्यूब पर फैक्ट चेकिंग केवल हिंदी Hindi और इंग्लिश English में की जाती है।

इस मामले में अगर फेसबुक Facebook की बात की जाए तो फेसबुक के पास 20 भारतीय भाषाओं और इंग्लिश के लिए फैक्ट चेक करने वाले मौजूद हैं। फेसबुक पर मशीनी पद्धति के अलावा इंसानों द्वारा भी फैक्ट चेक किए जाते हैं। इसमें हिंदी, बंगाली, तमिल, मलयालम, पंजाबी, उर्दू, कन्नड़, मराठी, गुजराती, आसामी, तेलुगु, ओरिया, मारवाड़ी छत्तीसगढ़ी, मैथिली, भोजपुरी कोंकणी आदि भाषाएं शामिल है। फेसबुक पर अब तक 15000 कंटेंट रिव्यूअर Content Reviewer शामिल है, जो 70 भाषाओं का दिन-रात 24/7 फैक्ट चेक करते हैं।

सोशल मीडिया माध्यमों ने फैक्ट चेकिंग के मामले में कई लोगों को जोड़ा है और भले ही अच्छा काम क्यों न किया हो, लेकिन सच्चाई यह है कि फेक न्यूज़ फिर भी फैलती है, जिस पर लगाम लगाना बेहद जरूरी है। अगर हिमाचल प्रदेश के उस गांव की बात की जाए तो फेक न्यूज का चलन पूरी तरह समझ में आ जाता है, चाहे कितनी भी जांच की जाए, लेकिन एक पूरा गांव जब फेक न्यूज की चपेट में आता है, पूरी तकनीक पिछड़ी नजर आती है।

कितनी तेजी से बढ़ा फेक न्यूज का चलन

अगर एनसीआरबी NCRB, National crime records bureau के आंकड़े देखे जाएं तो फेक न्यूज 214% की गति से बड़ी है, साल 2018 में जहां 280 फेक न्यूज़ ही फैली थी। वह 2019 में 486 हो गई, लेकिन 2020 का आंकड़ा आपको हिला सकता है, यह गति इतनी तेजी से बढ़ी कि फेक न्यूज के मामले 1527 हो गए।इन मामलों को ठीक करने के लिए विशेषज्ञ मानते हैं कि एआई AI के साथ-साथ तथ्य जांच में स्थानीय विशेषज्ञता को बढ़ावा देना होगा।