छठ कोई त्योहार नहीं, एक भावना है

Share Us

4397
छठ कोई त्योहार नहीं, एक भावना है
27 Oct 2021
8 min read

Blog Post

वास्तव में, इस त्योहार की पवित्रता और सुंदरता को बयान करना बहुत ही कठिन कार्य है। इसका पता करने के लिए व्यक्ति को इसे अनुभव करना चाहिए। जो इसे अनुभव करते हैं उनके लिए इससे दूर रहना जैसे असंभव है। पूरे परिवार के साथ मनाया जाने वाला यह पर्व अत्यंत हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह पर्व सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि कैलिफोर्निया, सिंगापुर, मॉरिशस जैसे विदेशी शहरों में भी मनाया जाता है। यदि कम शब्दों में कहें तो यह पर्व हर व्यक्ति के दिल को छू लेने वाला महापर्व है।

छठ, बिहार का सबसे महत्त्वपूर्ण पर्व माना जाता है जो अत्यंत ही आनंदमयी होता है। इस पर्व को बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में ‌विशेष रूप से मनाया जाता है। हर व्यक्ति ‌जिसने इस पर्व का अनुभव किया होता है, वह इसका बेसब्री से इंतजार करता है। पूरे परिवार को साथ रखने लाने वाला यह पर्व बहुत ही पारंपरिक तरीके से मनाया जाता है। चार‌ इन दिनों में मनाया जाने वाला यह पर्व अत्यंत व्रतधारियों के‌ लिए बहुत ही कठिन होता है क्योंकि इस पर्व के दौरान परवैतिन 36 घंटे से भी अधिक समय का उपवास करती हैं। नहाय-खाय, खरना, संध्या अर्घ्य और उषा अर्घ्य के साथ इस पर्व का समापन किया जाता है। समारोह के दौरान घाटों की सुंदरता लोकगीत इसकी सुंदरता को और बढ़ाते हैं। प्रत्येक बिहारी इस पर्व से ‌भावनात्मक रूप से जुड़ा होता है। 

छठ महापर्व

छठ पर्व, बिहार के निवासियों के लिए एक त्योहार से कई अधिक एक भावना है, छुट्टियां लेकर घर लौटने का वह बहाना है जिसका एक बिहारी साल भर इंतज़ार करता है। यह बिहार का सबसे महत्त्वपूर्ण, पूजनीय और पवित्र त्योहार है। दिवाली के छः दिन बाद मनाया जाने वाला यह त्योहार लोकपर्व से महापर्व बन गया है। विशेष रूप से बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में मनाया जाने वाला यह पर्व अब लोकप्रसिद्ध बन‌ गया है। भक्तों में इस पर्व की विशेष आस्था है।

छठ पर्व की मान्यताएं

हिंदू धर्म में सूर्य उपासना का बहुत महत्त्व है। छठ पर्व पर सूर्य की उपासना की जाती है। पृथ्वी पर जीवन को बनाए रखने और समृद्धि और स्वास्थ्य प्रदान करने के लिए सूर्य को धन्यवाद देते हुए भक्त सूर्य भगवान को नमन करते हैं। सूर्य भगवान के साथ-साथ इस पर्व के दौरान सूर्य देव की पत्नी उषा और प्रत्युषा की भी आराधना की जाती है। चार दिन में मनाया जाने वाले इस पर्व का अनुष्ठान अत्यधिक कठिन माना जाता है। इस पर्व के दौरान व्रतधारी 36 घंटे से भी अधिक समय तक कठोर व्रत का पालन करते हैं। भारतीय पौराणिक शास्त्रों में इस पर्व का इस पर्व का अत्यधिक महत्व बताया गया है। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत की शुरुआत महाभारत काल में सबसे पहले सूर्य पुत्र कर्ण ने की थी। रामायण, महाभारत और वैदिक काल से भी इसकी कई मान्यताएं हैं। हालॉंकि इस पर्व की उत्पत्ति को लेकर अनेकों मान्यताएं और कहानियॉं बताई जाती हैं। 

छठ महापर्व के नियम

यह चार दिवसीय पर्व मात्र नदियों में डुबकी लगाने जितना नहीं है बल्कि यह एक उत्सव की तरह मनाया जाने वाला महापर्व है। खीर और ठेकुआ की सुगंध से लेकर छठ गीतों की मधुर ध्वनि मन को आकर्षित करती है और इस त्योहार की‌ सुंदरता को बढ़ाती है। 

नहाय-खाय

इस पर्व का पहला दिन नहाय-खाय से शुरू होता है। इस‌ दिन भक्त पवित्र स्नान करने के बाद प्याज लहसुन के बिना भोजन पकाते हैं। भोजन में मुख्य रूप से कद्दू-भात पकाया जाता है। भोजन ग्रहण करने के बाद उनका उपवास शुरू होता है जो अगली शाम को तोड़ा जाता है। 

खरना

छठ पर्व के दूसरे दिन को खरना के नाम से जाना जाता है। इस दिन मिट्टी के बर्तनों में गुड़ की खीर और चपाती बनाने की परंपरा है। परवैतिन इसी प्रसाद के साथ अपना व्रत तोड़ती हैं और बचे हुए छटी मैय्या के प्रसाद को अन्य लोगों में वितरित किया जाता है। इस दिन का प्रसाद ग्रहण करने के बाद भक्त फिर से 36 घंटे का उपवास रखते हैं। 

संध्या अर्घ्य

तीसरे दिन संध्या अर्घ्य का दिन होता है। इस दिन परवैतिन अन्य भक्तों के साथ डूबते सूर्य को अर्घ्य देने के लिए घाटों पर जाती हैं। अर्घ्य दूध और गंगाजल का प्रसाद होता है जिसे अमृत माना जाता है। जैसा कि यह पर्व सर्दियों में मनाया जाता है इसलिए कमर तक नदी के पानी में खड़े होना अत्यधिक कठिन होता है। व्रतधारियों का यह दिन बिना कुछ खाए-पिए व्यतीत होता है।

अंतिम अर्घ्य

पूजा का चौथा व अंतिम दिन को उषा अर्घ्य के नाम से जाना जाता है। इस दिन सुबह-सुबह भक्त घाटों पर जाकर उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं। इस अंतिम अर्घ्य के साथ परवैतिन प्रसाद के साथ अपने व्रत का समापन करती हैं।

महापर्व की विशेष छटाएं

प्रसाद के हिस्से को छोड़कर भी यह पर्व बहुत तरीकों से मन को लुभाती है। यह पर्व परिवार और दोस्तों को जोड़ने का पर्व है। लोग अपने घरों में इस समारोह में मौजूद होने के लिए हर संभव प्रयास करते हैं। अनेकों कारणों की वजह से यह लोगों का प्रिय त्योहार माना जाता है। त्योहार के दौरान घाटों की सुंदरता देखने योग्य होती है। घाटों पर दियों की रोशनी और अर्घ्य के समय आतिशबाजी घाटों को रोशन करते हैं। पूरे घाट को लैंप और गन्ने के डंठलों से सजाया जाता है। पर्व में छठ के लोकगीत इस पर्व की सुंदरता में चार चांद लगाते हैं। यह लोकगीत अति शुभता और सकारात्मकता को दर्शाते हैं।