क्या देश के पास है राष्ट्रीय खेल?

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क्या देश के पास है राष्ट्रीय खेल?
05 Oct 2021
5 min read

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किसी भी चीज की लोकप्रियता उसे किस स्थान तक पहुंचा सकती है हॉकी उसका जीता-जागता उदाहरण है। जिस हॉकी को देश में ज्यादा जाना नहीं जाता था। कुछ खिलाडियों की मेहनत और लगन ने लोगों को उसे राष्ट्रीय खेल मानने के लिए बाध्य कर दिया। पर सच्चाई तो यही है कि भारत का कोई राष्ट्रीय खेल कभी था ही नहीं। बस पदक और लोकप्रियता ने उसे देशवासियों से यह सम्मान दिला दिया।         

मनोरंजन एक ऐसा ज़रिया है जिसकी मदद से कोई व्यक्ति दिमाग को आराम करने का अवसर देता है। क्योंकि इसी के माध्यम से मनुष्य अपने मानसिक तनाव को कम करता है। मनोरंजन के लिए कई साधन होते हैं जिससे मनुष्य खुद को आनंदित करता है। खेल मनोरंजन का सबसे बढ़िया माध्यम है। यह तनाव को कम करने में सबसे असरदार होता है। खेलों का दुनिया में कब आगमन हुआ और कौन सा खेल सबसे पहले खेला जाना शुरू हुआ इसका कहीं पर कोई उल्लेख नहीं है। हम मान सकते हैं कि मनुष्यों के साथ ही खेल भी इस दुनिया में आया होगा। खेल के प्रति लोगों की रूचि हमेशा से रही है। कोई भी व्यक्ति हो उसका कोई एक खेल प्रिय रहता ही है। यदि कोई व्यक्ति खेलने में रूचि नहीं रखता हो तो उसे खेल देखने में दिलचस्पी अवश्य रहती है। दुनिया में ऐसा कोई मनुष्य नहीं होगा जिसका किसी एक खेल के प्रति रुझान न हो। प्रत्येक देश का अपना कोई न कोई राष्ट्रीय खेल होता ही है। यह उस देश में उस खेल की लोकप्रियता के आधार पर निर्धारित किया जाता है। भारत देश में भी एक लोकप्रिय खेल है हॉकी जिसे भारत का राष्ट्रीय खेल कहा जाता है। पर क्या सच में हॉकी देश का राष्ट्रीय खेल है?  

हॉकी के रूप में देश के पास बड़ी उपलब्धि 

हॉकी एक ऐसा खेल है जिसमें भारत के पास वह महारथ हांसिल है जो दुनिया के किसी भी देश के पास नहीं है। अगर हम भारत में खेल की लोकप्रियता की बात करें तो जितना देशभर में क्रिकेट को पसंद किया जाता है उतना शायद ही किसी और खेल को किया जाता होगा। ऐसा नहीं कि यह आज की बात है। कई दशकों का इतिहास हमें यही मानने पर बाध्य करता है। हॉकी को देश में उतनी तत्परता से नहीं देखा जाता जितना कि अन्य खेलों को। लोकप्रियता के मामले में हॉकी देश में उतना लोकप्रिय नहीं जितना कि अन्य खेल है। तो आखिर क्यों है हॉकी हमारा राष्ट्रीय खेल? और किसने हॉकी को हमारा राष्ट्रीय खेल बनाया? तथा, हॉकी को कब हमारा राष्ट्रीय खेल घोषित किया गया? क्या हॉकी को आधिकारिक रूप से राष्ट्रीय खेल घोषित किया गया है?

क्या आधिकारिक रूप से हॉकी राष्ट्रीय खेल है?

यह सारे वह सवाल हैं जो मनुष्य के दिमाग में आते होंगे परन्तु एक सवाल बहुत कम ही लोगों के दिमाग में आता होगा कि हॉकी राष्ट्रीय खेल है भी या नहीं। भारत में किसी भी व्यक्ति से यदि पूछा जाये तो अधिकांश लोगों का यही उत्तर होगा कि देश का राष्ट्रीय खेल हॉकी है। परन्तु यदि हम आधिकारिक नियमों की बात करें तो कहीं से भी इस बात की पुष्टि नहीं होती है कि हॉकी हमारे देश का राष्ट्रीय खेल है। केंद्रीय युवा और खेल मंत्रालय ने इस बात की पुष्टि करते हुए यह रिपोर्ट दी थी कि किसी भी खेल को आधिकारिक तौर पर राष्ट्रीय खेल नहीं घोषित किया गया है। यह रिपोर्ट महाराष्ट्र के एक अध्यापक द्वारा फाइल किये गए आरटीआई के जवाब में दिया गया था। 

हॉकी ने छः पदक किये अपने नाम 

हॉकी देश का राष्ट्रीय खेल तब से माना जाने लगा जब ओलंपिक के इतिहास में भारतीय हॉकी पुरुष की टीम ने लगातार तीन बार गोल्ड मैडल अपने देश के नाम किये। यह समय था 1928 का जब पहली भारतीय पुरूष टीम ने न्यूज़ीलैण्ड को एक बड़े अंतर से हराकर खुद को दुनिया की नज़रों में लाया। इसके बाद टीम ने ओलंपिक में स्वर्ण पदक को जीतकर खुद को सर्वश्रेष्ठ टीम साबित कर दिया। वर्ष 1928 से 1956 का समय भारतीय हॉकी का गोल्डन एरा कहा जाता है। क्योंकि देश ने इन वर्षों में कुल छः स्वर्ण पदक भारत को दिलाये। इन सबके बीच जो सबसे ज्यादा लोगों की नज़र में आये वो थे मेजर ध्यानचंद, जिन्होंने तीन ओलंपिक में टीम के कप्तान के रूप में भारत का मार्गदर्शन किया और सबसे अधिक गोल करने का रिकॉर्ड अपने नाम किया। 

क्यों लोगों ने माना हॉकी को राष्ट्रीय खेल 

ओलंपिक में मिली सफलता ने देश में हॉकी के लिए लोगों का नज़रिया बदल दिया। देखते ही देखते हॉकी पूरे देश में मशहूर हो गयी। आज तक यह उपलब्धि देश के किसी भी खेल को नहीं मिली थी। लोगों का ध्यान हॉकी की तरफ गया और लोग इसे अपना राष्ट्रीय खेल मानने लगे, जबकि केंद्र सरकार ने अब तक इस खेल को स्वीकृति नहीं दी है। उनके मुताबिक किसी एक खेल को राष्ट्रीय खेल का दर्जा न देकर वह प्रत्येक खेल क्षेत्र को प्रोत्साहित कर रहे हैं। 

किसी भी चीज की लोकप्रियता उसे किस स्थान तक पहुंचा सकती है हॉकी उसका जीता-जागता उदाहरण है। जिस हॉकी को देश में ज्यादा जाना नहीं जाता था। कुछ खिलाडियों की मेहनत और लगन ने लोगों को उसे राष्ट्रीय खेल मानने के लिए बाध्य कर दिया। पर सच्चाई तो यही है कि भारत का कोई राष्ट्रीय खेल कभी था ही नहीं। बस पदक और लोकप्रियता ने उसे देशवासियों से यह सम्मान दिला दिया।