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आजादी के 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के राजनैतिक कारण, जानें इतिहास

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आजादी के 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के राजनैतिक कारण, जानें इतिहास
30 Jul 2022
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News Synopsis

भारत India से ब्रिटिश शासन British rule को खदेड़ने के लिए 1857 का संग्राम भारतीय इतिहास Indian history में बहुत अहम माना जाता है। देश की आजादी के लिए इस संग्राम की शुरुआत 10 मई, 1857 को मेरठ से हुई थी, जो धीरे-धीरे कानपुर Kanpur, बरेली Bareilly, झांसी Jhansi, दिल्ली  Delhi, अवध तक फैल गई। क्रांति की शुरुआत तो एक सैन्य विद्रोह Military rebellion के रूप में हुई, लेकिन समय के साथ उसका स्वरूप बदल कर ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध एक जनव्यापी विद्रोह के रूप में हो गया, जिसे भारत का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम भी माना जाता है। 19वीं सदी की पहली आधी सदी के दौरान ईस्ट इंडिया कंपनी East India Company का भारत के बड़े हिस्से पर कब्जा हो चुका था। जैसे-जैसे ब्रिटिश शासन का भारत पर प्रभाव बढ़ता गया, वैसे-वैसे भारतीय जनता के बीच ब्रिटिश शासन के खिलाफ असंतोष फैलता गया। प्लासी के युद्ध Battle of Plassey के एक सौ साल बाद ब्रिटिश राज के दमनकारी और अन्यायपूर्ण शासन Oppressive and unjust rule के खिलाफ असंतोष विद्रोह के रूप में भड़कने लगा जिसने भारत में ब्रिटिश शासन की नींव हिला दी। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम Freedom struggle की बात की जाए तो इससे पहले देश के अलग-अलग हिस्सों में कई घटनाएं घट चुकी थीं। 1857 के विद्रोह की मुख्य वजह व प्रमुख राजनीतिक कारण Political reasons ब्रिटिश सरकार की 'गोद निषेध प्रथा' या 'हड़प नीति' थी। यह अंग्रेजों की विस्तारवादी नीति Expansionist policy, थी जो ब्रिटिश भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी के दिमाग की उपज थी। कंपनी के गवर्नर जनरलों ने भारतीय राज्यों को अंग्रेजी साम्राज्य में मिलाने के उद्देश्य से कई नियम बनाए। उदाहरण के लिए, किसी राजा के निःसंतान होने पर उसका राज्य ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा बन जाता था। राज्य हड़प नीति के कारण भारतीय राजाओं Indian kings में बहुत असंतोष पैदा हुआ था। रानी लक्ष्मी बाई Rani Lakshmi Bai के दत्तक पुत्र को झांसी की गद्दी पर नहीं बैठने दिया गया। हड़प नीति के तहत ब्रिटिश शासन ने सतारा, नागपुर और झांसी Nagpur and Jhansi को ब्रिटिश राज्य में मिला लिया। अब अन्य राजाओं को भय सताने लगा कि उनका भी विलय थोड़े दिनों की बात रह गई है। इसके अलावा बाजीराव द्वितीय , Bajirao II के दत्तक पुत्र नाना साहेब Nana Saheb की पेंशन रोक दी गई जिससे भारत के शासक वर्ग में विद्रोह की भावना मजबूत होने लगी। ये आग और तब भड़की जब बहादुर शाह Bahadur Shah द्वितीय के वंशजों को लाल किले में रहने पर पाबंदी लगा दी गई। कुशासन के नाम पर लार्ड डलहौजी Lord Dalhousie ने अवध का विलय करा लिया जिससे बड़ी संख्या में बुद्धिजीवी, अधिकारी एवं सैनिक बेरोजगार हो गए। इस घटना के बाद जो अवध पहले तक ब्रिटिश शासन का वफादार था, अब वब भी उनके विद्रोही बन चके थे। 

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