दया की रोशनी बिखेरता विश्व दयालुता दिवस

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दया की रोशनी बिखेरता विश्व दयालुता दिवस
13 Nov 2021
9 min read

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विश्व दयालुता दिवस की शुरुआत आज से कुछ वर्ष पहले 1998 में वर्ल्ड काइंडनेस मूवमेंट संगठन द्वारा की गई थी। दयालुता की बात करें तो यह एक शब्द मात्र नहीं है, अपितु यह भाव के साथ-साथ एक कृत्य भी है। आप इसको यूँ समझिये यदि आप प्रेम से भरे हुए हैं तो आपके अंदर दया की भावना विद्यमान होगी ही, जो एक भाव भी है और कृत्य भी।

कितनी अजीब बात है, हम पूरे दिन शब्दों की टोली पर बैठ कर सफ़र करते हैं, कहने का मतलब सीधा साफ है कि हम शब्दों के माध्यम से अपने विचारों का आदान प्रदान करते हैं। मगर शब्दों के जाल को यदि हटा कर देखें तो कहीं न कहीं हम पाएंगे कि शब्द भी हमारे भावों का ही प्रतिबिंब shadow मात्र हैं। भाव किसी भी अवस्था में हो सकते हैं फिर चाहें वह प्रेम भाव हो, घृणा भाव हो या दयालुता का भाव हो। दयालुता की बात करें तो यह एक शब्द मात्र नहीं है, अपितु यह भाव के साथ-साथ एक कृत्य भी है। आप इसको यूँ समझिये यदि आप प्रेम से भरे हुए हैं तो आपके अंदर दया की भावना विद्यमान होगी ही, जो एक भाव भी है और कृत्य भी।

पूरा विश्व दयालुता दिवस मना रहा है world kindness day

देखा जाए तो दयालुता दिवस, दिवस मनाने जैसा दिन नहीं परन्तु दयालुता भाव को और अधिक विशिष्ट बनाने के लिए इस दिन को एक निश्चित तारीख दे दी गयी है, जोकि प्रत्येक वर्ष 13 november को मनाया जाता है। विश्व दयालुता दिवस की शुरुआत आज से कुछ वर्ष पहले 1998 में वर्ल्ड काइंडनेस मूवमेंट संगठन द्वारा की गई थी और इसकी शुरुआत हुई थी 1997 के टोक्यो सम्मेलन में दुनिया भर के दयालु संगठनों द्वारा की गई थी। साल 2019 में इस संगठन को स्विस कानून के तहत एक आधिकारिक एनजीओ के रूप में पंजीकृत किया गया था। वर्तमान समय में, वर्ल्ड काइंडनेस मूवमेंट में लगभग 28 से अधिक राष्ट्र शामिल हैं। इन संगठनों का किसी भी धर्म से कोई संबंध नहीं है वे निस्वार्थ भाव से, दया भाव से सेवा करने में लगे हुए हैं। 

दयालुता भाव शब्द से परे है

आज पूरा विश्व दयालुता की चादर में खुद को ढकना चाहता है और बहुत हद तक ऐसा होने में हम सभी को कामयाबी भी मिली है। अगर इतिहास की ओर झांकें तो हम पाएंगे कि हम आज पहले से बहुत बेहतर स्थिति में हैं। जिस विश्व ने बीते समय में गुलामी की जंजीरे पहनी हों, वह आज़ादी freedom को पाकर यूँ तृप्त हुआ कि किसी ने पूरे विश्व के भीतर असंख्य अमृत की बूंदे डाल दी हों। एक समय ऐसा भी रहा है, जब दया भाव का नाम-ओ-निशान न के बराबर ही था। 

इस बात को कहने में किसी भी प्रकार की हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए कि मनुष्य ने ही मनुष्यों का अहित किया है। आप चाहें तो बीते बासी पन्ने उठा के देख लें, प्रत्येक देश दूसरे देश को अपने अधीन बनाये हुए था। हम उसी विश्व में तो रहते हैं, जहाँ लोगों ने दो विश्व युद्ध देखे उस युद्ध में मनुष्यों का निर्दयी रूप देखा। इस तरह के ऐसे ख़ौफ़नाक मंज़र याद आते हैं, चाहें उसमें छोटी से छोटी घटनाये हों या फिर परमाणु बमों की क्रूर brutal घटना हो।

ऐसा भी नहीं की आज सब कुछ अच्छा ही चल रहा है ऐसा नहीं कि समूचा विश्व जैसे दयालुता के वृक्षरोपण में लगा हुआ है, बल्कि आज भी कई देश आतंक को पाले हुए हैं। आतंक से हमारा तात्पर्य दो तरह से है, एक तो वे देश जो आर्थिक बढ़ोतरी के चक्कर में लोगों का शोषण कर रहे हैं और एक वे जो हथियारों के दम पर लोगों का शोषण कर रहें हैं। फिर भी उम्मीद की किरण कभी भी पूरी तरह से नहीं मरती, वह हर रोज़ हमारे मस्तिष्क में अपनी छाप छोड़ते हुए कहती है कि जागों और इस पूरे विश्व को दया की दृष्टि से देखो हम सब एक हैं, यह असली पहचान कही जाएगी इस दिवस की जिसको हम दयालुता का दिवस कहते हैं।   

अंततः कह सकते हैं कि हम मनुष्यों को थोड़ा वास्तविक होना ही पड़ेगा क्योंकि हमारे स्वभाव में ईश्वर ने प्रेम और दया का भाव भी जीवंत किया है, जिसको अपनाने से ही पूरे विश्व का कल्याण संभव है। दयालुता दिवस पर आईये हम सब मिल कर ये प्रण लेते हैं कि पूरे विश्व को एक प्रेम के सूत्र में पिरोने की कोशिश करते हैं। क्यों न दयालुता की भावना के तहत विकास किया जाए और विश्व शांति की ओर कदम बढ़ाये जाए। आज बहुत से देश इस ओर अग्रसर हैं जिसमें भारत हमेशा से सबसे आगे रहा है। 

दयालुता का भाव रखने वाला व्यक्ति ही ईश्वर की सबसे खूबसूरत रचना है।