अंतरार्ष्ट्रीय नृत्य दिवस-International Dance Day

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अंतरार्ष्ट्रीय नृत्य दिवस-International Dance Day
28 Apr 2022
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संगीत का ज्ञान एक बहुत बड़ी ईश्वरीय देन  है, साक्षात् माँ सरस्वती का वरदान है, परन्तु इस प्रतिभा को अभ्यास से निखारना पड़ता है। संगीत की सभी विधाओं में निपुणता पाना इतना सहज नहीं है। विश्व नृत्य दिवस International Dance Day के इस अवसर पर आपसे नृत्यशैली, नृत्य की विधाएँ और एक कला के तौर पर नृत्य यानी Dance के बारे में बहुत सारी बातें करूँगीं। जब नृत्य की बात करें तो भारतीय परम्परा में सबसे पहले भगवान शिव के नटराज स्वरूप को स्मरण किया जाता है और साथ ही संगीत और कला की देवी भगवती सरस्वती की वंदना भी की जाती थी। आज भी बहुत से ऐसे नृत्य संसथान है जो शिव के नटराज स्वरुप की महत्ता और माता सरस्वती की वंदना करना भूले नहीं हैं,आप अगर यह समझ रहे है कि नृत्य के लिए तो बड़ा विशेषज्ञ होना पड़ता है तो  ऐसा नहीं है। आप भूल रहें हैं, कला तो सबमें होती है, भावना, सुख-दुःख तो सभी में होता है और हम तो यूँ ही नाचते गाते अपने भाव  हर मौके पर दर्शाते हैं।

संगीत एक साधना है, गायन, वादन, हाथों की मुद्राओं,पैरों की थिरकन और चेहरे की भावाभिव्यक्ति तीनो का समागम यानी-नृत्य, यह सभी संगीत साधना का भाग है। जिसने इस साधना को साध लिया, उससे बड़ा कलाकार कोई और नहीं, किन्तु यह साधना क्यों कहलाती है? क्यूँकि संगीत का ज्ञान एक बहुत बड़ी ईश्वरीय देन  है, साक्षात् माँ सरस्वती का वरदान है, संगीत की सभी विधाओं में निपुणता पाना इतना सहज नहीं है। वर्षों के सतत प्रयास से प्रतिदिन आप अपनी कला में महारत प्राप्त करतें हैं। कला की बात करें तो ललित कलाएँ तो इतनी सारी हैं जैसे- चित्रकला, नाट्यशास्त्र, संगीत आदि।  

29 अप्रैल को विश्व नृत्य दिवस है इसलिए आज आपसे नृत्यशैली, नृत्य की विधाएँ और एक कला के तौर पर नृत्य यानी Dance के बारे में बहुत सारी बातें करूँगीं क्यूंकि ये खास दिन है - International Dance Day अंतरराष्ट्रीय नृत्य दिवस। 

नृत्य- एक कला 

जब नृत्य की बात करें तो भारतीय परम्परा में सबसे पहले भवान शिव के नटराज स्वरूप को स्मरण किया जाता है और प्राचीन नृत्य आश्रमों में तो नटराज की मूर्ति नृत्य साधना की प्रेरणा के लिए स्थापित की जाती थी और साथ ही संगीत और कला की देवी भगवती सरस्वती की वंदना भी की जाती थी।  आज भी बहुत से ऐसे नृत्य संसथान है जो शिव के नटराज स्वरुप की महत्ता और माता सरस्वती की वंदना करना भूले नहीं हैं क्यूँकि एक नर्तक male dancer और नर्तकी/नृत्याँगना female dancer  के लिए तो इनदोनो ही ईश्वरीय स्वरूपों की आराधना सबसे बढ़कर है।  आइये पहले आपको भगवान शिव के नटराज स्वरुप के विषय में बताते हैं-

भगवान शिव, विश्व के सबसे प्रथम नृत्य देवस्वरूप- नटराज/नृत्य का राजा king of dance 

भारतीय परम्परा में वैसे देवदेव महादेव शिव के कई रूप हैं और हर रूप किसी विशेष कारण से है किन्तु उनका यह नटराज स्वरूप हर कलाप्रेमी को आकर्षित करता है, बिखरी हुई विशाल जटाएँ, नृत्य की मुद्रा।  ये शिव का वह रूप में जिस में वह उत्तम नर्तक हैं। नटराज शिव का स्वरूप यह दर्शाता है कि इस सृष्टि में, ब्रह्माण्ड में स्थित सारा जीवन, उनकी गति, कंपन तथा ब्रह्माण्ड से परे शून्य की नि:शब्दता सब कुछ एक शिव में ही तो निहित ह, जब वे तांडव करते है तो संहार करते है, वह रूप बहुत रौद्र होता है, जब प्रेम में होते है तो अपनी अर्धांगिनी, शिवप्रिया पार्वती के साथ युगल नृत्य couple dance करते हैं।  नटराज दो शब्दों के समावेश से बना है – नट (अर्थात नृत्य कला) और राज यानी स्वामी । इस नटराज स्वरूप में शिव कालाओं के आधार हैं। 

International Dance Day Image

रौद्र तांडव और आनंद तांडव में अंतर् है- रौद्र तांडव में अत्यंत क्रोध, रौद्र भावों में होते है। आनंद तांडव में प्रसन्न होते हैं और अपनी मुद्राओं से सृष्टि को  हैं। 

1,नटराज शिव की प्रसिद्ध  मूर्ति में  चार भुजाएँ होती हैं और चारों ओर अग्नि के घेरें गोले के आकर में होते हैं।

2. एक पाँव से उन्होंने अकश्मा को दबा रखा है, दूसरा पाँव नृत्य मुद्रा में ऊपर की ओर उठा हुआ है।  

3.दाहिने हाथ में डमरु पकड़ा हुआ है, इस डमरू की आवाज सृजन का प्रतीक है और  शिव की सृजनात्मक शक्ति की द्योतक है। 

4. उनके दूसरे हाथ में अग्नि है और यहाँ पर अग्नि विनाश का प्रतीक है। इसका अर्थ  है कि वे शिव ही हैं जो एक हाथ से सृजन करतें हैं तथा दूसरे हाथ से सब समाप्त या विलय । 

5.दूसरा दाहिना हाथ अभय (या आशीष) मुद्रा में उठा हुआ है जो सभी बुराईयों से हमारी रक्षा करता है।

6.नटराज शिव का उठा हुआ पांव मोक्ष का द्योतक है। उनका दूसरा बायां  हाथ उनके उठे हुए पांव की ओर इंगित करता है। इसका अर्थ यह भी है कि शिव के चरणों में ही मोक्ष है। 

7. शिव अज्ञान का विनाश करते हैं। 

8.चारों ओर उठ रही आग की लपटें इस ब्रह्माण्ड की प्रतीक हैं। 

यहाँ तो हमने आपको यह बता दिया क्यों नटराज रूपी शिव  इतने अद्भुद है कि विश्व के हर नर्तक dancer को आकर्षित करते हैं। अब नृत्य के विषय में कुछ और बातें भी कर  लेते हैं-

आपने कभी नृत्य को एक कलाकार की दृष्टि से समझा हो तो यह पाएंगें कि जब एक कलाकार कुछ भी अनुभव करता है तो वह उस बात का प्रदर्शन अपनी कला से करता है, ठीक वैसे ही जब एक नर्तक डांसर दुखी होता/होती है तब वह नृत्य में अपनी भावाभिव्यक्ति करता है, जब प्रसन्न होता है तब भी झूमकर वसंत लता की तरह अपनी मुद्राएँ दिखाता है, जब क्रोधित होता तब भी वह नृत्य के माध्यम से भाव दर्शाता है। नृत्य केवल एक कला नहीं है, यह तो सभी भावनाओं को बिना कुछ कहे एक मन से अनगिनत मनों तक पहुंचाने का माध्यम है।  वैसे नृत्य की पूरी दुनियां में अनगिनत विधाएँ हैं जिनके अनगिनत नाम हैं जैसे- बैले balle, जैज़ jazz, हिप-हॉप hip hop, स्विंग swing, बेली belly dance, सालसा salsa, लैटिन latin dance आदि।  पिछले कुछ  वर्षों रियलिटी डांस शोज़ reality dance shows जैसे भारत में-  dance india dance और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर- सो यू थिंक यू कैन डांस so you think you can dance आदि ने जिस प्रकार से आम जनता को डांस के लिए जागरूक किया, उनसभी नृत्य विधाओं  dance forms के विषय में जानकारी थी, जिसके बारे में पता  भी नहीं था और नृत्य के शौक़ीन लोगों को प्रदर्शन के लिए एक अच्छा  मंच दिया, यह सभी बातें बेहद सराहनीय है।  इन्ही कुछ वर्षों में नृत्य में प्रशिक्षित करने वाले व्यवसाय यानी कोरियोग्राफी choreography और कोरियोग्राफर्स choreographers को सशक्त पहचान दी।  ऐसा नहीं था कि इस व्यवसाय की पहले आवश्यकता नहीं थी या पहचान नहीं थी, फिर भी इन्हे आर्थिक संघर्ष तो करना ही पड़ता था।  इन सभी shows ने इन कोरियोग्राफर्स choreographers को सभी तक अपनी प्रतिभा दिखने का अवसर दिया। इसी का नतीजा है कि आम जनता भी रेमो डिसूज़ा remo desouza, टेरिन्स लेविस terence Lewis जैसे कोरियोग्राफर्स का नाम याद कराया। 

अब बात करते हैं उस समय कि जब नृत्य को अच्छी दृष्टि से नहीं देखा जाता था या फिर कोई  भी था तो उसे प्रदर्शित करना अच्छा नहीं समझा जाता था,  हम यह भूल जाते हैं कि इसी नृत्य  को  महारास में बदलकर राधाकृष्ण ने संसार में अमर कर  दिया।  कहीं पर नृत्य केवल मंदिरों में किसी विशेष अवसर पर ही प्रदर्शित किया जाता था, वह भी विशेष नृत्यांगनाओं द्वारा, जिसे कहते थे - भरतनाट्यम यानी देवताओं का नृत्य, कहीं-कहीं पर देवदासी प्रथा के कारण यह कला उनके लिए आवश्यक मानी जाती थी। यहाँ नृत्य विधाओं की बात करे तो अकेले भारत में बहुत सारी  नृत्य कलाएँ हैं, जैसे यहाँ पर हर थोड़ी दुरी के बाद क्षेत्र, भाषा, भोजन और वस्त्र बदल जाते हैं वैसे ही नृत्यशैली भी बदल जाती है। भारतीय नृत्य में बहुत साड़ी विविधताएं  हैं, इन्हें दो भागों में बाँट सकतें हैं - शास्त्रीय नृत्य तथा लोकनृत्य। अब तो अंतराष्ट्रीय स्तर पर बॉलीवुड नृत्य शैली लोकप्रिय होती जा रही हैं जो भारतीय सिनेमा पर आधारित होती है यानी जैसा फिल्मों में दिखाते हैं । जो शास्त्रीय नृत्य शैलियाँ सबसे अधिक  स्मरण में आती हैं उनके बारे में बताती हूँ -

International Dance Day Image

भरतनाट्यम, कुचिपुड़ी, कथक, मोहिनीअटट्म, मणिपुरी, ओडिसी, छाओ , बिहू, भांगड़ा आदि इनसब की जानकारी आपकी संस्कृति मंत्रालय की आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर भी ले सकतें हैं- ministry of culture, india 

यह तो वह सभी विधाएँ हैं जिनके नाम याद है, बाकी कुछ कलाओं के तो नाम याद ही नहीं  क्यूंकि इनमें बहुत विविधता है और एक लेख में एक पूरी कला समाहित करना असम्भव नहीं किन्तु कठिन अवश्य है।  

अब बात करते हैं उन धुरंधरों की जिन्होंने भारतीय शास्त्रीय नृत्य शैलियों को एक नई पहचान दी-

रुक्मिणी देवी अरुंदले Rukmini Devi Arundale, 

पंडित बिरजू महाराज Pandit Birju maharaj, 

उदय शंकर uday shankar, 

केलुचरण मोहापात्रा Kelucharan Mohapatra, 

गुरु बिपिन सिंह guru bipin  singh,   

पद्मा सुब्रह्मण्यम padma subrahmanyam, 

शोभना नरायणनन shobana narayanan, 

मृणालिनी साराभाई mrinalini sarabhai, 

लच्छू महाराज lachhu maharaj, 

यामिनी कृष्णमूर्ति yamini krishnamurthy 

यहाँ हम जितने भी  कलाकारों का नाम  ले लें कम हो होगा, किन्तु समझना यह आवश्यक है कि इन सभी हस्तियों ने तो अपने नृत्य को विश्व के सामने तब रखा जब यह असम्भव सा कार्य लगता था। 

केवल कला में प्रवीणता ही नृत्य नहीं-

आप अगर यह समझ रहे है कि नृत्य के लिए तो बड़ा विशेषज्ञ होना पड़ता है तो  ऐसा नहीं है।  आप भूल रहें हैं, कला तो सबमें होती है, भावनाएं , सुख-दुःख तो सभी में होता है और हम तो यूँ ही नाचते गाते अपने भाव  हर मौके पर दर्शाते हैं। आम इंसान खुश होता है तो सबसे पहले वह क्या करता है ?  ख़ुशी से झूम उठता है, खुद भी नाचता है और  दुसरो को भी अपने साथ नाचकर ख़ुशी में शामिल करता है, इसलिए तो कहते हैं नृत्य कुछ और नहीं केवल भावों की अभिव्यक्ति है और कोई भी कलाकार बड़ा या छोटा नहो होता केवल कलाकार होता है।  

नृत्य की बात आज कर रही हूँ किन्तु अब भी ऐसा लग रहा है कि इस एक कला के प्रभाव को, इस साधना को कैसे समेटूँ ? जब यह सोचती हूँ तो नृत्य और भक्ति के समागम का स्मरण हो आता है ये वह सम्बन्ध जो भक्ति में डूबकर मन, मस्तिष्क  और शरीर को झूमने को विवश कर देता है, यदि आपने कभी यह सुना, देखा या पढ़ा हो कि कोई व्यक्ति भक्तिगान में डूबकर नाचने लगा या झूमने लगा और यदि आपको थोड़ी हंसी छूट गई या फिर यह सब कुछ विचित्र लगा तो ऐसा नहीं है कि आप गलत है, बात केवल इतनी सी है कि आपने उस भक्तिरस में झूमकर नृत्य करने की पराकाष्ठा को नहीं समझा, जिस प्रकार से एक सूफ़ी संत या संतो की टोली, अल्लाह की मोहोब्बत में झूमकर नृत्य करने लगते है, इसने सुफियाना संगीत और नृत्य विधा को विकसित किया, इसके लिए उतनी उच्चकोटि की भक्ति की पराकाष्ठा आवश्यकता होती है, वही भक्तिरस जो चैतन्य महाप्रभु, कृष्ण भक्ति में झूमते हुए नाचकर गाते रहते थे या ये वह रास नृत्य भी हो सकता है जिसमें बांसुरी की एक धुन पर गोपियाँ कृष्ण के साथ झूमकर नृत्य करती रहती थी।  वैसे हर बार अंतराष्ट्रीय नृत्य दिवस की थीम international-dance-day.org की वेबसाइट पर घोषित कर दी जाती है, अब प्रतीक्षा है कि इस बार  की इंटरनेशनल डांस डे थीम  inernational dance day theme क्या होगी ?

लेकिन हमसभी तो साधारण है तो इन सभी उदाहरणों को विशेष न समझिये, यह सभी उदाहरण तो आपको यह बताते है कि नृत्य केवल और केवल  आपके अंतर्मन के भावो की अभिव्यक्ति है, कई जगहों पर जगराता और भजन कीर्तन होता है तो मन स्वयं झूम उठता है, किसी प्रेरणा की आवश्यकता नहीं होती, ISKCON International society for  krishna  consciousness इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कॉन्शियसनेस में कृष्णभक्ति में शामिल होने वाले सभी व्यक्ति एक जैसे नहीं होते। नृत्य हमें यही बताता है कि कला किसी भी धर्म, जाति, देश या व्यक्ति से कहीं आगे होती है। 

आशा है आपको आज का यह लेख पसंद आया होगा, आपको मेरी तरफ से अंतराष्ट्रीय नृत्य दिवस की ढेरों शुभकामनाएँ। 

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