क्यों है इमामबाड़ा इतना रोचक?

Share Us

8700
क्यों है इमामबाड़ा इतना रोचक?
31 Jul 2021
9 min read

Blog Post

समय कोई भी हो रोजगार की जरूरत हमेशा ही पड़ती है। इमामबाड़े की ये ऐतहासिक कहानी हम सभी को बतलाती है कि, किस तरह से रोजगार की कमी के कारण इमामबाड़ा एक बार टूट कर फिर खड़ा किया गया ताकि लोगों को रोजगार मिल सके। आज भी इमामबाड़ा न जाने कितने लोगों को छोटे-छोटे रोज़गार दे रहा है, जिसकी गिनती करना मुश्किल है चाहे वो गाइड का रोजगार हो, चाहे फोटोग्राफर का रोजगार हो या फिर और भी ढेर सारे छोटे-छोटे काम धंधे हो। एक इमारत कई घरों की चिराग़पोशी आज भी कर रही है।

एक ऐसी कहानी जो सब जानते हैं, सबकी आँखों में कम-से-कम एक बार तो शहर लखनऊ का इमामबाड़ा गुज़रा ही होगा। और अगर नहीं गुज़रा तो चलिए आज घुमा देते हैं। आप सभी की नज़र में इस लाजबाव इमारत को आपके हृदय में अंकित करा देने का प्रयास करेंगे। साथ ही साथ ये भी जानेंगे की कौन-कौन से बिज़नेस उससे ही सटे पनप रहे हैं, तथा कोरोना महामारी के दौर में उनपर क्या असर पड़ा और अब हम किन-किन व्यवसायों को इमामबाड़े से जोड़कर शुरू कर सकते हैं। इमामबाड़ा अपने नाम की ही तरह बड़े शान से खड़ा है। लखनऊ शहर की ताजपोशी में अपनी खूबसूरती को कई दशकों से बिखेरता चला आ रहा है। इमामबाड़ा एक बुलंद इमारत की तरह खड़ा यकायक, और तमाम मौसमी थपेड़ों को सहता हुआ आज भी ताज़ा सांसे ले रहा है।

इमामबाड़े ने पहली बार 1784 में साँस लेना शुरू किया। मतलब की 1784 में ये बुलंद ईमारत बनकर तैयार हुई, जिसको लखनऊ के नवाव आसफउद्दौला के सानिध्य में बनाया गया। तमाम रहस्य लिए इमामबाड़ा एक वास्तुकार और संकल्पकार किफ़ायत उल्लाह के द्वारा तैयार किया गया। किफ़ायत उल्लाह ताजमहल के वास्तुकार के निकटतम थे। इमाम बाड़े की अद्भुत कारीगरी देखते ही बनती हैं। इमामबाड़े में तीन विशाल कक्ष हैं और उसी से जुड़े 20 फिट लम्बे गलियारे हैं। इसे बनाने वाले की जितनी तारीफ की जाए कम है। एक विरासत के रूप में इमामबाड़ा अपनी रौनक लखनऊ शहर को देता रहता  है।


इमामबाड़े के रोचक तथ्य  

इमामबाड़े की छत जो की 15 मीटर ऊँची है, जो आपको आपकी बुलंदी का एहसास कराने के लिए काफी है।  इमाम बाड़े में एक भूल भुलैया है, जिसमे इतने रास्ते हैं, की आप खुदको भूल ही जायेंगे। भूलभुलैया में 1000 से ऊपर अनुमानित रास्ते हैं जो आपको गुम कर देने के लिए काफी हैं। ऐसा माना जाता है की पहले के लोग इसमें गुम होकर वापस ही नहीं लौटे। उन्होंने अपनी जान निकाल दी मगर निकल कर बाहर नहीं आ पाये। इतनी अदुभुत कारीगरी आज की बेहतरीन इमारतों को भी पीछे छोड़ देने के लिए काफी है।  

भूलभुलैया की सुरगों का जाल ऐसा है की आप जान कर हैरत में पड़ जाएंगे की इन सुरंगों के रास्ते तीन बड़े-बड़े शहरों में जाकर खुलते थे जिसमे दिल्ली, कलकत्ता और फैजाबाद शहर शामिल थे। 

इमामबाड़े में बाबड़ी के नाम से जो बहुत चर्चित है वो क्या है? बाबड़ी वहां एक कुआँ है, जो सीढ़ीदार है ये शाही हमाम इमामबाड़े से होते हुए शाही गोमती नदी से जुड़ा है। 

रूमी दरवाज़ा कई सालों से पुराने लखनऊ के साथ-साथ पुरे लखनऊ को कई रास्ते दिखता है इस में तीन मंज़िलें हैं, जहाँ से पूरे लखनऊ की बनाबट और लालिमा क्या!  खूबसूरत दिखती है। यह दरवाज़ा 60 फ़ीट ऊँचा है। एक नायब बुलंदी की तरह रूमी दरवाज़ा और इमामबाड़ा स्थिर हैं लखनऊ की ज़मी पर, और सबके ह्रदय में भी। 

क्यों बनाया गया ये अविश्वसनीय इमामबाड़ा इतिहास कहता है कि वर्ष 1785 में  रोजगार की कमी आजाने से धीरे-धीरे यहाँ भुखमरी और अकाल पड़ जाने की वजह से इमामबाड़े को फिर से तोड़ कर दुबारा बनवाया गया, ताकि लोगों को रोजगार मिल पाए उस दौर के अकाल के वक़्त।  

लखनऊ शहर की शान इमामबड़ा

समय कोई भी हो रोजगार की जरूरत हमेशा ही पड़ती है। इमामबाड़े की ये ऐतहासिक कहानी हम सभी को बतलाती है कि, किस तरह से रोजगार की कमी के कारण इमामबाड़ा एक बार टूट कर फिर खड़ा किया गया ताकि लोगों को रोजगार मिल सके। आज भी इमामबाड़ा न जाने कितने लोगों को छोटे-छोटे रोज़गार दे रहा है, जिसकी गिनती करना मुश्किल है चाहे वो गाइड का रोजगार हो, चाहे फोटोग्राफर का रोजगार हो या फिर और भी ढेर सारे छोटे-छोटे काम धंधे हो। एक इमारत कई घरों की चिराग़पोशी आज भी कर रही है। 

मगर कोविड के दौर ने तमाम छोटे-छोटे व्यवसायों को बंद कर दिया। अब समस्या ये है की लोग कैसे और कौन से रोजगार शुरू कर सकते हैं। कुछ व्यवसाय जिनके बारे में हम विचार कर सकते हैं, जैसे की गाइड का काम ऑनलाइन हो जाए तो, छोटे छोटे उद्द्योगी अपनी वस्तुए ऑनलाइन सेल कर सकते हैं आदि।