आज़ादी की लड़ाई में मंगल पांडे और भगत सिंह का योगदान

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आज़ादी की लड़ाई में मंगल पांडे और भगत सिंह का योगदान
09 Aug 2022
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स्वतंत्रता सेनानियों के लिए उनका जीवन, उनका परिवार, उनके दोस्त, उनकी खुशी से कहीं ज्यादा ज़रूरी देश को आज़ाद करना था। देश को आज़ाद करने में उन्होंने अपनी जान तक की परवाह नहीं की और हंसते-हंसते अपने प्राण दे दिए। अगर आज हम सब एक स्वतंत्र देश में रहने का आनंद ले रहे हैं तो ये स्वतंत्रता सेनानियों के संघर्षों  और बलिदान Struggle of Freedom Fighters की वजह से मुमकिन हो पाया है। 

आज हम आपको भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दो खास महानायक- मंगल पांडे और भगत सिंह के बारे में बताएंगे, जिनकी वजह से आज देश आज़ाद है। 

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भारत की आजादी की लड़ाई India's freedom struggle में लाखों लोगों ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया और इनमें कुछ ऐसे भी लोग थे, जो महायानक थे और जो एक नई प्रतिमा के साथ उभरे। अगर देश 15 अगस्त, 2022 को अपनी आजादी के 75 साल India's 75 years of Independence  पूरा कर रहा है और इसी उपलक्ष में पूरा देश आज़ादी का अमृत महोत्सव Azadi Ka Amrit Mahotsav मना रहा है तो उसका कारण है वे स्वतंत्रता सेनानी Freedom Fighters, जो देश की आज़ादी के लिए लड़े, कई यातनाएं सहीं, लाठियां खाईं लेकिन देश को कभी झुकने नहीं दिया,और अपने प्राणों की आहुति दे कर हमें स्वतंत्र किया। 

कुछ आरज़ू नहीं है, है आरज़ू तो बस यह,

रख दे कोई ज़रा सी खाके वतन कफन में। 

खाके वतन का अर्थ वतन की मिट्टी है। 

स्वतंत्रता सेनानियों के लिए उनका जीवन, उनका परिवार, उनके दोस्त, उनकी खुशी से कहीं ज्यादा ज़रूरी देश को आज़ाद करना था। देश को आज़ाद करने में उन्होंने अपनी जान तक की परवाह नहीं की और हंसते-हंसते अपने प्राण दे दिए। अगर आज हम सब एक स्वतंत्र देश में रहने का आनंद ले रहे हैं तो ये स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान Struggle of Freedom Fighters की वजह से मुमकिन हो पाया है। 

आज हम आपको भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दो खास महानायक- मंगल पांडे और भगत सिंह के बारे में बताएंगे, जिनकी वजह से आज देश आज़ाद है। 

Role of Mangal Pandey and Bhagat Singh in Freedom Struggle

मंगल पांडे Mangal Pandey

मंगल पांडे Mangal Pandey का जन्म 19 जुलाई,1827 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में हुआ था। उनकी मां का नाम अभय रानी और पिता का नाम दिवाकर पांडे था। ईस्ट इंडिया कंपनी East India company की स्वार्थी नीतियों के कारण मंगल पांडे को अंग्रेजी हुकुमत से बहुत नफरत थी। सन् 1849 में वह ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में शामिल हुए थे और बैरकपुर की सैनिक छावनी में बंगाल नेटिव इन्फैंट्री की 34वीं रेजीमेंट के पैदल सेना के सिपाही रहे। बंगाल यूनिट में एनफील्ड पी.-53 राइफल में जब नई कारतूसों का इस्तेमाल शुरू किया गया तो कहीं से एक खबर सैनिकों के बीच फैल गई। खबर ये थी कि कारतूसों को बनाने में सूअर और गाय की चर्बी का इस्तेमाल किया जा रहा है। यह एक गंभीर विषय था क्योंकि हिंदू धर्म में गाय को मां समान माना जाता है वहीं मुस्लिमों में सूअर वर्जित होता है। दिक्कत ये थी कि नई बंदूक में कारतूस को दांत से काटना पड़ता था। सैनिकों ने नए बंदूकों को इस्तेमाल करने से साफ मना किया। जब 9 फरवरी, 1857 को यह कारतूस सैनिकों को बांटा जा रहा था, तो मंगल पांडे ने उसे लेने से साफ-साफ मना कर दिया। 

अंग्रेज़ी अफसर इस बात से इतना गुस्सा हो गए कि उन्होंने मंगल पांडे को अपनी वर्दी उतारने का आदेश दिया और उनसे उनके हतियार देने को कहा। मंगल पांडे ने अंग्रेज़ी अफसर की बात को मानने से इंकार किया और अंग्रेज अफसर मेजर ह्यूसन Hugeson जब उनसे उनकी रायफल छीनने आए तो उनको तुरंत मौत के घाट उतार दिया। अंग्रेज अधिकारी लेफ्टिनेंट बॉब Baugh की भी उन्होंने हत्या कर दी। 

भारतीय इतिहास में इसे 1857 का विद्रोह Revolt of 1857 के नाम से जाना जाता है। इस घटना के बाद सिपाहियों ने उन्हें गिरफ्तार किया और कोर्ट मार्शल द्वारा उनपर मुकदमा चलाया गया, जिसमें उन्हें फांसी की सज़ा सुनाई गई। कोर्ट के फैसले के अनुसार मंगल पांडे को 18 अप्रैल,1857 को फांसी देनी थी लेकिन अंग्रेजों ने 10 दिन पहले यानी की 8 अप्रैल,1857 को ही उन्हें फांसी दे दी। ऐसा बताया जाता है कि जल्‍लादों ने भी उन्हें फांसी देने से इंकार कर दिया था और उनके सामने गर्दन झुकाए खड़े थे। 

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भगत सिंह Bhagat Singh

भगत सिंह का 28 सितंबर, 1907 को लायलपुर जिले (जो अब पाकिस्तान में है) में हुआ था। उस समय पूरे देश में ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह का माहौल था। उनके परिवार में भी देश भक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी और इसी का असर भगत सिंह पर भी हुआ। 

बचपन से ही वह कुछ ऐसे असाधारण काम कर जाते थे जिसको देखकर और सुनकर लोगों को आश्चर्य होता था। एक बार की बात है जब वह अपने पिता किशन सिंह के साथ कहीं जा रहे थे। रास्ते में उनके पिता के घनिष्ठ मित्र मिल गए, जो अपने खेत में बुवाई कर रहे थे। मित्र को देखकर भगत सिंह के पिता उनके पास गए और हाल चाल पूछने लगे। तभी उनके मित्र ने देखा कि भगत सिंह खेत में छोटे-छोटे तिनके रोप रहे हैं। पिता के मित्र ने पूछा कि क्या कर रहे हो भगत? इस पर भगत सिंह ने उत्तर दिया, 'बंदूके बो रहा हूं।'  

भगत सिंह के बारे में एक और किस्सा है। बात 13 अप्रैल,1919 की है जब देश में रॉलेट एक्ट Rowlatt Act of 1919 का विरोध किया जा रहा था और इसी कानून के विरोध में अमृतसर के जलियांवाला बाग Jallianwala Bagh में एक सभा हो रही थी। अचानक से वहां पर अंग्रेजी पुलिस आई और उन्होंने चारों तरफ से प्रदर्शनकारियों को घेर लिया। जनरल डायर के आदेश पर प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाई गई और सैकड़ों मासूम मारे गए। इस घटना ने देश को झकझोर कर रख दिया। जलियांवाला बाग की घटना Jallianwala Bagh massacre की वजह से भगत सिंह के घर में भी सभी लोग बेहद दुखी और घबराए हुए थे। भगत सिंह जलियांवाला बाग की मिट्टी लेकर घर आए और अपनी बहन अमरो से कहा कि 'अमरो, यह मिट्टी नहीं, शहीदों का खून है।' उन्होंने उसी दिन देश के लिए बलिदान होने की कसम खाई।

1923 में उन्होंने बीए में एडमिशन लिया और नेशनल कॉलेज, लाहौर में उनकी कई क्रांतिकारियों से दोस्ती हुई। जब घर वालों ने शादी की बात की तो भगत सिंह ने कहा कि यह शादी का वक्त नहीं है, देश मुझे पुकार रहा है और उसे मेरी ज़रूरत है। मैं तन, मन और धन से देश की सेवा करना चाहता हूं। 

जब काकोरी काण्ड Kakori Conspiracy Case में राम प्रसाद बिस्मिल Ram Prasad Bismil समेत चार क्रांतिकारियों को फांसी की सज़ा सुनाई गई तो भगत सिंह इस बात से भड़क गए और चंद्रशेखर आज़ाद Chandra Shekhar Azad के साथ मिलकर भगत सिंह ने क्रांतिकारी संगठन तैयार किया।

भगत सिंह, राजगुरु Shivaram Rajguru और सुखदेव ने 1928 में लाहौर में एक ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स John Saunders की गोली मारकर हत्या कर दी थी और इसके बाद बटुकेश्वर दत्त और भगत सिंह ने सेंट्रल एसेंबली में बम फेंका था। बम फेंकने के बाद वे दोनों भागे नहीं बल्कि आज़ादी का नारा लगाने लगे और गिरफ्तारी दी। 

लाहौर षड़यंत्र मामले Lahore Conspiracy Case में बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास दिया गया और भगत सिंह Bhagat Singh, सुखदेव Sukhdev Thapar और राजगुरू Shivaram Rajguru को फांसी की सज़ा सुनाई गई। 23 मार्च,1931 की शाम सात बजे भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को फांसी पर लटका दिया गया। जिस समय भगत सिंह को फांसी दी गई थी, उस समय उनकी उम्र मात्र 23 वर्ष थी।इन स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में ये कहना भी कम होगा कि-

लड़े जंग वीरों की तरह,

तब खून खौल फौलाद हुआ। 

मरते दम तक डटे रहे वो, 

तब ही तो देश आज़ाद हुआ।।