पुरानी जीन्स…

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पुरानी जीन्स…
31 Jul 2021
9 min read

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हम भारतीय किसी भी चीज़ को जब तक पूरी तरह से इस्तेमाल ना कर लें उसे फेंकते नहीं हैं। जैसे एक टूथब्रश का ही उदाहरण लेलें। हम उससे तब तक इस्तेमाल करते हैं जब तक वो पूरी तरह से ख़राब न हो जाये। वैसे तो आज कल पूरी दुनिया ही आधुनिक हो गयी है। हम किसी और की क्या बात करें, हम खुद पुराने सामान को इस्तेमाल नहीं करना चाहते। अब वो चाहें कपड़े ही क्यों ना हों। मगर एक शख्स ने पुरानी जीन्स को इस्तेमाल करके उससे नए नए उत्पादों को आकर्षक बनाया है। आप इस पहल को देखेंगे तो सोचेंगे ये काम तो हम भी कर सकते थे। 

हम भारतीय किसी भी चीज़ को जब तक पूरी तरह से इस्तेमाल ना कर लें उसे फेंकते नहीं हैं। जैसे एक टूथब्रश का ही उदाहरण लेलें। हम उससे तब तक इस्तेमाल करते हैं जब तक वो पूरी तरह से ख़राब न हो जाये। वैसे तो आज कल पूरी दुनिया ही आधुनिक हो गयी है। हम किसी और की क्या बात करें, हम खुद पुराने सामान को इस्तेमाल नहीं करना चाहते। अब वो चाहें कपड़े ही क्यों ना हों। मगर एक शख्स ने पुरानी जीन्स को इस्तेमाल करके उससे नए नए उत्पादों को आकर्षक बनाया है। आप इस पहल को देखेंगे तो सोचेंगे ये काम तो हम भी कर सकते थे।

प्रकृति और पर्यावरण पर होने वाले अभियानों में बहुत से लोग भाग लेते हैं। आयोजनों के दौरान पौधे लगाने और पानी बचाने जैसी कसमें खाते हैं। लेकिन इनमें से बहुत ही कम लोग होते हैं जो इन कसमों को कर्म में बदलते हैं। जो सही मायनों में पर्यावरण के लिए कुछ करते हैं। आज ऐसे ही एक उद्यमी की कहानी हम आपको बता रहे हैं, जिनका व्यवसाय एक अनोखे तरीके से प्रकृति के अनुकूल काम कर रहा है।

हम बात कर रहे हैं दिल्ली में रहने वाले सिद्धांत कुमार की। सिद्धांत, ‘डेनिम डेकॉर’ के नाम से अपना स्टार्टअप चलाते हैं और इसके अंतर्गत पुरानी-बेकार डेनिम जीन्स को पुनः उपयोग करके इको-फ्रेंडली और खूबसूरत उत्पाद बना रहे हैं। IIT बॉम्बे से डिज़ाइन में मास्टर्स करने वाले सिद्धांत मूल रूप से बिहार के मुंगेर से हैं। पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्हें बेंगलुरु की एक कंपनी में नौकरी करने का मौका मिला था। लेकिन सिद्धांत को वह काम ज्यादा रास नहीं आया। वह कुछ अलग करना चाहते थे और इसी क्रम में, वह 2012 में दिल्ली पहुँच गए।

दिल्ली में उन्होंने अपना खुद का एक स्टार्टअप शुरू किया और अलग-अलग तरह के ‘ऑन द टेबल’ गेम्स बनाने लगे। लेकिन इसके साथ-साथ उन्होंने पुरानी डेनिम की चीजें भी बनाना शुरू कर दिया था।

उन्होंने बताया, “मैं दिल्ली में किराये के घर में रह रहा था। उस समय मैंने जो घर लिया, उसकी दीवारें बहुत ही प्लेन और सादा थी। इसलिए मैंने उन पर कुछ कलाकारी करने की सोची। मुझे और कुछ समझ नहीं आया तो मैंने अपनी पुरानी जीन्स को ही इस्तेमाल करके, उस दीवार पर डेकॉर किया। इसके बाद, जो भी मेरे घर आता तो सभी लोग पूछने लगे कि ये कैसे किया? बहुत सुंदर है।”

तैयार किए 400 तरह के उत्पाद :-

सिद्धांत बताते हैं कि उनका पहला स्टार्टअप कुछ समय तक अच्छा चला लेकिन फिर उन्हें परेशानी आने लगीं। इसलिए उन्होंने अपना फोकस डेनिम पर लगाया क्योंकि उनका आईडिया और उत्पाद दोनों ही लोगों को पसंद आ रहे थे। शुरुआत में, उन्होंने अपने जानने वालों से पुरानी जीन्स इकट्ठा की थी। लेकिन जब उन्होंने तय किया कि वह अपना उद्यम शुरू करेंगे तो उन्होंने कपड़ों के बदले बर्तन बेचने वाले कुछ लोगों के साथ व्यापारिक सम्बन्ध बना लिए । ये लोग गाँव-शहरों में बर्तन बेचने जाते थे और बदले में कपड़े लेते थे। इन पुराने कपड़ों में जीन्स भी उन्हें मिलती थी।

ये जीन्स सिद्धांत उनसे खरीदने लगे और अपने उत्पादों पर काम करने लगे। सिद्धांत ने अपने स्टार्टअप को ‘डेनिम डेकॉर’ का नाम दिया और आज वह पुरानी डेनिम से लगभग 400 तरह के उत्पाद बना रहे हैं। जिनमें बैग, डायरी, पेन स्टैंड, लालटेन, केतली, बोतलें, सोफे कवर, पर्दे, स्टूल आदि शामिल हैं। सबसे दिलस्चस्प बात है कि पुरानी डेनिम से नए उत्पाद बनाने की प्रक्रिया में वह कम से कम वेस्ट उत्पन्न करते हैं और जो कतरन बच जाती है, उससे अब वह ‘पोट्रैट’ बना रहे हैं।

हर महीने करते हैं 1000 पुरानी जीन्स का पुनः उपयोग:-

शायद ही आपको पता हो कि कॉटन कॉरडरॉय से बनी एक जीन्स की जोड़ी को बनाने में लगभग 1000 लीटर पानी खर्च होता है। ऐसे में, जब यह जीन्स पुरानी हो जाती हैं और लोग इन्हें कचरे में फेंक देते हैं तो न सिर्फ साधनों का बल्कि पर्यावरण का भी नुकसान है। लेकिन सिद्धांत हर महीने लगभग 1000 पुरानी जीन्स को अपसायकल करके प्रकृति के अनुकूल काम कर रहे हैं। साथ ही, उनके इस काम से लगभग 40 लोगों को रोजगार मिल रहा है। हमारे उत्पाद सामान्य ग्राहकों के साथ-साथ बड़े-बड़े ब्रांड्स भी खरीदते हैं। अब तो डेनिम बेचने वाली कई ब्रांड्स भी हमसे अपने शोरूम की सजावट करवा रहे हैं । हम यह पूरी सजावट पुरानी और बेकार जीन्स से ही करते हैं।

लॉकडाउन में भी उन्होंने लोगों के लिए डेनिम के मास्क बनाए थे। जब लोगों को नौकरी से निकाला जा रहा था, तब सिद्धांत ने लगभग 25 कारीगरों के यहां मशीन लगवाकर उन्हें काम दिया। इस तरह से वह लॉकडाउन के दौरान भी बिज़नेस कर पाए थे। आज उनके उत्पाद भारत के अलावा जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका जैसे देशों में भी जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि अब उनका सालाना टर्नओवर डेढ़ करोड़ रुपए तक पहुँच चुका है।

है ना कितना अच्छा स्टार्टअप ! फिर आप अब  किसका इंतजार कर रहे हैं? सिद्धांत के जैसे आप भी अपने सिद्धांत बनाइये और शुरू हो जाइये अपनी सकारात्मक सोच के साथ कुछ बेहतर करने की तलाश में ।