भारत में मेडिकल डायग्नोसिस में एआई कैसे ला रहा है क्रांति

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भारत में मेडिकल डायग्नोसिस में एआई कैसे ला रहा है क्रांति
11 Sep 2025
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भारत का हेल्थकेयर सिस्टम इस समय एक बड़े बदलाव के दौर से गुजर रहा है। देश की आबादी 1.4 अरब से ज्यादा है और तेजी से बढ़ती बीमारियाँ, खासकर क्रॉनिक डिज़ीज़ (लंबे समय तक चलने वाली बीमारियाँ), बड़ी चुनौती बन चुकी हैं। ग्रामीण इलाकों में अभी भी गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं की कमी है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, भारत में हर 1,511 लोगों पर सिर्फ एक डॉक्टर है, जबकि मानक 1,000 लोगों पर एक डॉक्टर होना चाहिए। रेडियोलॉजी और पैथोलॉजी जैसे क्षेत्रों में यह कमी और भी ज्यादा है, क्योंकि यहाँ विशेषज्ञ डॉक्टरों की संख्या बहुत कम है।

इसी बीच, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) मेडिकल डायग्नोसिस के क्षेत्र में गेम-चेंजर बनकर सामने आ रहा है। एआई से डॉक्टर बीमारियों को जल्दी पहचान पा रहे हैं, डायग्नोसिस की गलतियाँ कम हो रही हैं और मरीजों को सस्ता इलाज मिल रहा है।

कैंसर की पहचान करने वाले एआई टूल्स से लेकर क्रॉनिक बीमारियों के लिए प्रेडिक्टिव एनालिटिक्स तक, यह तकनीक भारत में स्वास्थ्य सेवाओं की बड़ी खाई को पाट रही है।

इस आर्टिकल में हम देखेंगे कि एआई का मेडिकल डायग्नोसिस Use of AI in Medical Diagnosis में कैसे इस्तेमाल हो रहा है, कौन-कौन से भारतीय स्टार्टअप इसमें काम कर रहे हैं, सरकार की क्या पहलें हैं, और भविष्य में इसके सामने क्या चुनौतियाँ और संभावनाएँ हैं।

बीमारियों की पहचान और इलाज में एआई की बढ़ती भूमिका  (The growing role of AI in the diagnosis and treatment of diseases)

भारत का हेल्थकेयर सेक्टर इस समय बड़े बदलाव के दौर से गुजर रहा है। कई प्रगति होने के बावजूद, अब भी एक बड़ी समस्या बनी हुई है—ग्रामीण क्षेत्रों में अच्छी स्वास्थ्य सेवाओं की कमी और शहरों के अस्पतालों पर बढ़ता दबाव।

डॉक्टरों की कमी और असमानता (Shortage and Uneven Distribution of Doctors)

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) World Health Organization (WHO) के अनुसार, हर 1,000 लोगों पर एक डॉक्टर होना चाहिए। भारत ने 2024 की शुरुआत में इस मानक को पीछे छोड़ दिया और अब औसतन हर 900 लोगों पर एक डॉक्टर है। लेकिन यह आँकड़ा केवल औसत है। असलियत यह है कि ज़्यादातर डॉक्टर बड़े शहरों में हैं, जबकि ग्रामीण इलाकों में उनकी भारी कमी है।

रेडियोलॉजिस्ट्स की कमी (Shortage of Radiologists)

इंडियन रेडियोलॉजिकल एंड इमेजिंग एसोसिएशन (IRIA) Indian Radiological and Imaging Association (IRIA) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में सिर्फ 20,500 रेडियोलॉजिस्ट हैं, जबकि आबादी 1.4 अरब से अधिक है। इस कमी की वजह से खासकर दूर-दराज़ इलाकों में बीमारियों का समय पर निदान नहीं हो पाता और मरीजों को सही इलाज में देर हो जाती है।

डॉक्टरों के साथी के रूप में एआई (AI as a Partner, Not a Replacement)

ऐसे समय में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) डॉक्टरों के लिए एक बड़ी मदद बनकर सामने आ रहा है। यह डॉक्टरों की जगह नहीं लेता, बल्कि उनकी क्षमता को बढ़ाता है। एआई सिस्टम्स बड़ी मात्रा में मेडिकल डेटा का विश्लेषण कर सकते हैं, बीमारियों के खतरे की भविष्यवाणी कर सकते हैं और मरीजों के लिए पर्सनलाइज्ड ट्रीटमेंट प्लान बनाने में मदद करते हैं।

बीमारियों की पहचान में सटीकता और तेजी लाकर एआई भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र को अधिक सुलभ और न्यायसंगत बनाने की दिशा में अहम कदम साबित हो रहा है।

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चिकित्सा निदान में एआई के मुख्य उपयोग (Key Applications of AI in Medical Diagnostics)

एआई (AI) का रोल मेडिकल डायग्नोसिस में बहुत व्यापक है। यह अलग-अलग मेडिकल क्षेत्रों में नई-नई तकनीकें और समाधान दे रहा है।

मेडिकल इमेजिंग और रेडियोलॉजी (Medical Imaging and Radiology)

एआई-आधारित टूल्स रेडियोलॉजी के काम करने के तरीके को बदल रहे हैं। ये एक्स-रे, सीटी स्कैन और एमआरआई को तेजी से पढ़कर बीमारियों की शुरुआती पहचान में मदद करते हैं। जैसे—टीबी, फेफड़ों का कैंसर और हड्डी के फ्रैक्चर।

एआई सिस्टम उन स्कैन को प्राथमिकता दे सकते हैं जिनमें गंभीर समस्या हो, जिससे रेडियोलॉजिस्ट का काम कम हो जाता है और रिपोर्ट जल्दी मिल जाती है।

उद्देश्य डॉक्टरों को बदलना नहीं है, बल्कि उनकी क्षमताओं को और बेहतर बनाना है। कई स्टार्टअप ऐसे एआई प्लेटफॉर्म बना रहे हैं जो कुछ ही सेकंड में चेस्ट एक्स-रे का विश्लेषण कर लेते हैं और रेडियोलॉजिस्ट को “दूसरी राय” (second opinion) देते हैं।

पैथोलॉजी और लैब डायग्नोसिस (Pathology and Lab Diagnostics)

एआई सिस्टम अब डिजिटल पैथोलॉजी स्लाइड्स और ब्लड सैंपल्स का विश्लेषण कर सकते हैं। इससे असामान्यताओं की पहचान अपने आप हो जाती है।

कैंसर की डायग्नोसिस में एआई एल्गोरिदम बायोप्सी इमेज में कैंसर कोशिकाओं की सही-सही पहचान और गिनती कर लेते हैं। इससे प्रक्रिया तेज, स्केलेबल और कम गलतियों वाली बनती है।

भारत की Neuberg Diagnostics कंपनी पहले ही इस तकनीक को अपना चुकी है और एआई को डिजिटल पैथोलॉजी के साथ जोड़ रही है।

प्रेडिक्टिव एनालिटिक्स और पर्सनलाइज्ड मेडिसिन (Predictive Analytics and Personalized Medicine)

एआई की भविष्यवाणी करने की क्षमता लंबे समय तक चलने वाली बीमारियों (chronic diseases) में बहुत उपयोगी है।

यह मरीजों का पुराना मेडिकल डेटा, जेनेटिक जानकारी, लाइफस्टाइल और लैब रिपोर्ट्स का विश्लेषण कर सकता है। इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि बीमारी कैसे बढ़ेगी और किस मरीज को ज्यादा खतरा है।

डॉक्टर इस आधार पर पहले ही इलाज शुरू कर सकते हैं और हर मरीज के लिए अलग-अलग ट्रीटमेंट प्लान बना सकते हैं। यह तरीका डायबिटीज और हार्ट डिजीज जैसे मामलों में खासतौर पर कारगर है।

प्वाइंट-ऑफ-केयर और रिमोट डायग्नोसिस (Point-of-Care and Remote Diagnostics)

एआई हेल्थकेयर को ज्यादा मोबाइल और सुलभ बना रहा है। अब एआई-पावर्ड मोबाइल ऐप्स और छोटे-छोटे डायग्नोस्टिक डिवाइस से ग्रामीण और दूर-दराज़ इलाकों में भी शुरुआती जांच हो सकती है।

उदाहरण के लिए, एआई-आधारित रेटिनल इमेजिंग डिवाइस डायबिटिक रेटिनोपैथी (अंधेपन का एक बड़ा कारण) की जांच बिना किसी विशेषज्ञ डॉक्टर की मौजूदगी में कर सकते हैं।

बाद में विशेषज्ञ दूर से ही इन रिपोर्ट्स को देखकर डायग्नोसिस कर सकते हैं। इससे मरीजों को लंबे समय तक इंतजार और यात्रा करने की परेशानी नहीं झेलनी पड़ती।

भारतीय स्टार्टअप्स और सरकारी पहल से मिल रही रफ्तार (Indian Startups and Government Initiatives Fueling Growth)

भारत में हेल्थकेयर सेक्टर में एआई (AI) को अपनाने में स्टार्टअप्स और सरकारी पहल एक मजबूत भूमिका निभा रहे हैं। इनका उद्देश्य है स्वास्थ्य सेवाओं की चुनौतियों को दूर करना और ऐसे समाधान तैयार करना जो बड़े स्तर पर इस्तेमाल हो सकें, सभी तक पहुँचें और किफायती हों।

आगे बढ़ते भारतीय एआई हेल्थ-टेक स्टार्टअप्स (Leading Indian AI Health-Tech Startups)

भारत का स्टार्टअप इकोसिस्टम एआई आधारित मेडिकल इनोवेशन में सबसे आगे है। ये कंपनियाँ सिर्फ विदेशी मॉडल कॉपी नहीं कर रही हैं, बल्कि भारत की ज़रूरतों के हिसाब से तकनीक विकसित कर रही हैं। यहाँ बड़ी आबादी, विविध क्लीनिकल जरूरतें और सीमित संसाधन हैं, जिनके लिए अलग तरह के समाधान चाहिए।

निरमाई हेल्थ एनालिटिक्स (Niramai Health Analytix)

निरमाई ने Thermalytix Technology बनाई है, जो ब्रेस्ट कैंसर की जांच के लिए एक गैर-आक्रामक (non-invasive) और बिना रेडिएशन वाला एआई समाधान है। इसमें दर्दनाक मैमोग्राम की जगह थर्मल इमेजिंग का इस्तेमाल होता है। यह तकनीक स्तनों में तापमान के बदलाव को स्कैन करती है और एआई इन पैटर्न्स को पढ़कर ट्यूमर की संभावना पहचान लेता है।

निरमाई का SMILE-100 सिस्टम अमेरिका की FDA से मंजूरी पा चुका है। यह कंपनी के लिए बड़ी उपलब्धि है और इसे वैश्विक बाजार में भी प्रवेश दिला रही है। भारत में यह मॉडल बेहद कारगर है क्योंकि यह पोर्टेबल है, सस्ता है और मरीजों की प्राइवेसी का भी ध्यान रखता है। यही कारण है कि इसे शहरों और गाँवों दोनों में बड़े स्तर पर स्क्रीनिंग कैंप्स में आसानी से इस्तेमाल किया जा सकता है।

क्योर.एआई (Qure.ai)

क्योर.एआई मेडिकल इमेजिंग के क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर अग्रणी कंपनी है। इसके एआई प्लेटफॉर्म 90 से अधिक देशों और 3,000+ सेंटर्स पर उपयोग हो रहे हैं। इसका मुख्य प्रोडक्ट qXR सिर्फ एक मिनट में चेस्ट एक्स-रे को स्कैन करके टीबी, फेफड़ों का कैंसर और निमोनिया जैसी बीमारियों की पहचान कर लेता है। यह खासकर इमरजेंसी वार्ड्स में बेहद उपयोगी है।

क्योर.एआई ने हाल ही में 65 मिलियन डॉलर की सीरीज D फंडिंग हासिल की है। कंपनी इसका इस्तेमाल अमेरिकी बाजार में विस्तार और दूसरी हेल्थ-टेक कंपनियों को अधिग्रहित करने के लिए करेगी। इसके अलावा, GE Healthcare और Johnson & Johnson MedTech जैसी दिग्गज कंपनियों के साथ साझेदारी करके यह अपने एआई सॉल्यूशंस को अस्पतालों के वर्कफ्लो में शामिल कर रही है, जिससे बीमारियों की शुरुआती पहचान और भी आसान हो रही है।

सिगटपल (SigTuple)

सिगटपल एआई और रोबोटिक्स का इस्तेमाल करके पैथोलॉजी और नेत्र विज्ञान (ophthalmology) डायग्नोसिस को ऑटोमेट करने में अग्रणी है। इसका मुख्य प्रोडक्ट AI100 एक स्मार्ट रोबोटिक माइक्रोस्कोप है, जो ब्लड और यूरिन सैंपल को डिजिटाइज करता है।

एआई इन डिजिटल इमेजेज का विश्लेषण करके कोशिकाओं की पहचान और असामान्यताओं को खोजता है। फिर पैथोलॉजिस्ट इसे दूर से ही रिव्यू कर सकते हैं। यह तकनीक खासकर भारत में बहुत उपयोगी है क्योंकि यहाँ पैथोलॉजिस्ट की कमी है। अब एक ही विशेषज्ञ टेलिपैथोलॉजी के जरिए कई जगहों से आने वाले मामलों को संभाल सकता है।

सिगटपल को ब्लड स्मीयर एप्लिकेशन के लिए US FDA की मंजूरी भी मिल चुकी है। इसके अलावा HORIBA जैसी कंपनियों के साथ साझेदारी ने भारत में इसकी तकनीक के अपनाने की गति को और तेज कर दिया है।

हेल्थकेयर में एआई को समर्थन देने वाली सरकारी पहल (Government Initiatives Supporting AI in Healthcare)

भारत सरकार एआई (AI) को बढ़ावा देने के लिए नीतियों, फंडिंग और रणनीतिक साझेदारियों पर लगातार काम कर रही है।

आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन (Ayushman Bharat Digital Mission - ABDM)

यह भारत में डिजिटल हेल्थ इकोसिस्टम की बुनियाद है। इसमें हर नागरिक के लिए एक यूनिक हेल्थ आईडी बनाई जाती है और मरीजों के रिकॉर्ड को डिजिटाइज किया जाता है।

यह डेटा स्ट्रक्चर एआई सिस्टम्स के लिए बेहद जरूरी है, ताकि वे सही तरीके से सीख सकें और काम कर सकें। यह पहल स्टार्टअप्स को भी मदद करती है, क्योंकि अब उन्हें अपने एआई-आधारित डायग्नोस्टिक टूल्स को जोड़ने के लिए एक स्टैंडर्ड प्लेटफॉर्म मिल रहा है।

इंडिया एआई मिशन (IndiaAI Mission)

सरकार ने बड़े वित्तीय निवेश के साथ इस मिशन की शुरुआत की है, ताकि भारत को एआई का वैश्विक लीडर बनाया जा सके।

इस मिशन का एक खास हिस्सा है AI Application Development, जिसका लक्ष्य है स्वास्थ्य जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों के लिए नए समाधान बनाना। इसके तहत IndiaAI Innovation Centre बनाया गया है, जो रिसर्च और डेवलपमेंट को बढ़ावा देता है और स्टार्टअप्स को स्वदेशी एआई मॉडल बनाने के लिए प्रोत्साहित करता है।

हेल्थकेयर में एआई के लिए सेंटर ऑफ एक्सीलेंस (Centers of Excellence for AI in Healthcare)

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय Ministry of Health and Family Welfare ने एम्स दिल्ली और PGIMER चंडीगढ़ जैसे संस्थानों को सेंटर ऑफ एक्सीलेंस घोषित किया है।

ये केंद्र सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़ी चुनौतियों जैसे टीबी और मातृ स्वास्थ्य के लिए एआई-आधारित समाधान विकसित करने और लागू करने पर काम कर रहे हैं।

पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप्स (Public-Private Partnerships)

सरकार स्टार्टअप्स, अस्पतालों और बड़ी टेक कंपनियों के बीच साझेदारी को बढ़ावा दे रही है।

उदाहरण के तौर पर, गोवा सरकार, Qure.ai और AstraZeneca ने मिलकर एक एआई-आधारित फेफड़ों के कैंसर स्क्रीनिंग प्रोग्राम की शुरुआत की है।

ऐसी साझेदारियाँ बेहद महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि इससे प्रयोगशालाओं में बनी नई तकनीक सीधे समुदाय तक पहुँचती है। साथ ही यह मॉडल सस्ता और बड़े स्तर पर लागू किया जा सकता है।

चुनौतियाँ और भविष्य की दिशा (Challenges and Future Outlook)

डेटा प्राइवेसी और सुरक्षा (Data Privacy and Security)

एआई आधारित डायग्नोस्टिक्स के लिए बड़ी मात्रा में मरीजों का संवेदनशील डेटा चाहिए होता है। ऐसे में डेटा की गोपनीयता और सुरक्षा सुनिश्चित करना ज़रूरी है। सरकार का डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट (DPDP Act) सही दिशा में कदम है, लेकिन भारत के बिखरे हुए हेल्थकेयर सिस्टम में इसे लागू करना चुनौतीपूर्ण है।

बिखरा हुआ हेल्थकेयर सिस्टम (Fragmented Healthcare System)

भारत का हेल्थकेयर सिस्टम बहुत बिखरा हुआ है। अलग-अलग मानक और इलेक्ट्रॉनिक हेल्थ रिकॉर्ड (EHRs) की कमी के कारण एआई सिस्टम को एक समान और उच्च गुणवत्ता वाला डेटा नहीं मिलता। इससे एआई को सभी जगह प्रभावी ढंग से काम करने में कठिनाई होती है।

अधिक लागत (High Implementation Costs)

एआई आधारित आधुनिक डायग्नोस्टिक टूल्स लगाने के लिए शुरुआत में बहुत अधिक निवेश की ज़रूरत होती है। छोटे क्लीनिक और ग्रामीण अस्पतालों के लिए यह खर्च वहन करना मुश्किल हो जाता है।

नियम और कानून की कमी (Regulatory Gaps)

भारत में हेल्थकेयर में एआई के इस्तेमाल के लिए नियम और कानून अभी पूरी तरह तय नहीं हुए हैं। एक स्पष्ट गाइडलाइन की आवश्यकता है ताकि डॉक्टर और मरीज दोनों एआई आधारित समाधान पर भरोसा कर सकें।

भविष्य की दिशा (The Future)

रिपोर्ट्स के अनुसार, भारत का एआई आधारित मेडिकल डायग्नोस्टिक्स बाजार 2024 में लगभग 55.04 मिलियन डॉलर का था और 2033 तक इसके 546.95 मिलियन डॉलर तक पहुँचने की संभावना है। इस दौरान इसकी वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) 26.90% रहने का अनुमान है।

इस तेज़ी से बढ़ते बाजार को सरकारी नीतियों का समर्थन, बढ़ते हुए क्रॉनिक डिज़ीज़ (लंबी अवधि की बीमारियाँ), और हेल्थ-टेक स्टार्टअप्स की बढ़ती संख्या आगे बढ़ा रही हैं।

नई तकनीकें जैसे क्वांटम एआई (Quantum AI) और जेनरेटिव एआई (Generative AI) भविष्य में हेल्थकेयर को और बदल सकती हैं। क्वांटम एआई बहुत बड़े डेटा को तेज़ी से विश्लेषित कर सकता है और ऐसे पैटर्न ढूंढ सकता है जिन्हें सामान्य कंप्यूटर नहीं पकड़ पाते। वहीं जेनरेटिव एआई नई मेडिकल इमेज बनाने और बीमारियों की प्रगति को समझाने में मदद कर सकता है।

भविष्य का सपना है कि एआई भारत के हेल्थकेयर सिस्टम में पूरी तरह से जुड़ जाए, ताकि समय पर बीमारी की पहचान, व्यक्तिगत इलाज और सबसे अहम—हर नागरिक को सस्ती और समान स्वास्थ्य सेवाएं मिल सकें।

निष्कर्ष (Conclusion)

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस अब भविष्य की कल्पना नहीं है, बल्कि यह भारत की हेल्थकेयर दुनिया को तेजी से बदल रहा है। निरमाई के थर्मल इमेजिंग से ब्रेस्ट कैंसर की पहचान से लेकर सिगट्यूपल के पैथोलॉजी रिपोर्टिंग को तेज़ बनाने तक, एआई डॉक्टरों को तेज़ और सटीक टूल्स दे रहा है।

सरकारी पहल, स्टार्टअप इनोवेशन और बढ़ती स्वास्थ्य सेवाओं की मांग के साथ, एआई आधारित डायग्नोस्टिक्स सस्ती, सुलभ और सटीक हेल्थकेयर देने में बड़ी भूमिका निभाएगा।

हालाँकि लागत, नियम और डेटा सुरक्षा जैसी चुनौतियाँ मौजूद हैं, लेकिन सरकार, निजी क्षेत्र और मेडिकल समुदाय के सहयोग से इन्हें दूर किया जा सकता है।

भारत जब डिजिटल हेल्थकेयर की ओर आगे बढ़ रहा है, तब एआई की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण होगी—ताकि हर नागरिक, चाहे शहर में हो या गाँव में, अमीर हो या गरीब, सभी को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं मिल सकें।