हरित क्रांति: भारत का विकास की तरफ पहला कदम

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जीवन की ज़रूरत में सबसे पहले अन्न है, किसानों की ही मेहनत से भारत संपन्न है....
भारत संसाधनों का धनी देश है, जिसका मुख्य आधार कृषि है। कृषि भारत की पहचान है, कृषि ही देश की अर्थव्यवस्था की मूल जड़ है। विश्व में भारत एक कृषि प्रधान देश के नाम से जाना जाता है। देश ने सबसे पहले कृषि के दम पर ही समाज से गरीबी को दूर करने का कार्य शुरू किया था, जिसमें हम काफी हद तक कामयाब भी हुए। कृषि ने किसानों को जीने का मकसद दिया है।
भारत में हरित क्रांति उस अवधि को संदर्भित करती है जब आधुनिक प्रक्रियाओं और प्रौद्योगिकी को अपनाने के कारण भारतीय कृषि एक प्रणाली में बदल गई थी जैसे कि HIY बीजों, सिंचाई सुविधाओं, ट्रैक्टरों, कीटनाशकों और उर्वरकों के उपयोग के कारण। अधिक कृषि उत्पादों के उत्पादन में इसकी सफलता के कारण, 1950 और 1960 के दशक में हरित क्रांति तकनीक पूरे विश्व में फैल गई थी। यह कृषि के प्रति एकड़ उत्पादित कैलोरी की संख्या में काफी वृद्धि करता है। भारत में हरित क्रांति Green Revolution in India के बारे में अधिक जानने के लिए यह ब्लॉग आपके लिए उपयोगी होगा ।
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प्रकृति एक अद्भुत संरचना है। प्रकृति खुद को हरा-भरा रखने के लिए खुद ही संसाधनों को उपलब्ध कराती है। प्रकृति एक शिल्पकार है, जो उत्कृष्ठ रचनाएं करती है। मनुष्य के जीवन को सुगमता से चलाने का आधार, प्रकृति अपने हिस्से से ही देती है। भारत देश के परिपेक्ष में भी प्रकृति ने बहुत कुछ दिया है। भारत संसाधनों का धनी देश है, जिसका मुख्य आधार कृषि है। कृषि भारत की पहचान है, कृषि ही देश की अर्थव्यवस्था की मूल जड़ है।
विश्व में भारत एक कृषि प्रधान देश India is an agricultural country के नाम से जाना जाता है। देश ने सबसे पहले कृषि के दम पर ही समाज से गरीबी को दूर करने का कार्य शुरू किया था, जिसमें हम काफी हद तक कामयाब भी हुए। कृषि ने किसानों को जीने का मकसद दिया है। इन सबके बावजूद, इतने संसाधन होने के बावजूद भी देश इसका उपयोग पूरी तरह से नहीं कर पा रहा था।
इस कमी को पूरा करने का कार्य किया 1960 में भारत में आयी हरित क्रांति ने। देश में हरित क्रांति Green Revolution ने सूरज की पहली किरण की तरह दस्तक दी, जिसकी रोशनी समय के साथ अधिकाधिक बढ़ती और फैलती रही। रोशनी की इस किरण ने देश के सबसे बड़े इलाके को प्रभावित किया। साथ में औद्योगिक क्षेत्र में भी इसने उत्कृष्ठ योगदान दिया।
विश्व में हरित क्रांति का जन्म Birth of Green Revolution in the world
हरित क्रांति का जन्म 1960 में नार्मन अर्नेस्ट बोरलॉग ने की थी। इन्हें हरित क्रांति का पिता भी कहा जाता है। इस 1970 में इन्हें गेहूं के ज्यादा उत्पादन वाले बीजों का अविष्कार करने के लिए विश्व के सबसे श्रेष्ठ पुरस्कार नोबेल प्राइज से सम्मानित किया गया। जबकि भारत में हरित क्रांति का श्रेय एम एस स्वामीनाथन को जाता है। हरित क्रांति के माध्यम से गेहूं, दाल, चावल के उत्पादन में किस तरह से वृद्धि की जाए, यह बताया जाता है। हरित क्रांति को कई देशों ने अपनाया और इससे कृषि को बेहतर करने का प्रयत्न किया, जिसमें वो सफल भी रहे।
भारत में हरित क्रांति का प्रवेश Entry of Green Revolution in India
भारत में हरित क्रांति को एम एस स्वामीनाथन के द्वारा लाया गया। इसे लाने का मुख्य उद्देश्य था कि जिस नाम से देश जाना जाता है, वह सच में उसकी पहचान बन सके। हरित क्रांति को देश में विकसित करते समय कुछ महत्वपूर्ण बातों को ध्यान में रखा गया। हरित क्रांति को लॉन्च करते समय इस बात का ध्यान रखा गया कि देश को 5 साल के अंदर ही भुखमरी से बाहर निकला जा सके।
इसके साथ ही उत्पादन वृद्धि से कृषि और औद्योगिक क्षेत्र agriculture and industrial sector को लम्बे समय तक प्रभावी बनाया जा सके। देशवासियों को रोजगार उपलब्ध कराना भी हरित क्रांति का एक मुख्य उद्देश्य था। ऐसे तरीकों का अध्ययन जिसके माध्यम से पौधों को जलवायु परिवर्तन और कीटों के वार से बचाया जा सके यह भी हरित क्रांति किउद्देश्य में शामिल था। हरित क्रांति का मुख्य उद्देश्य कृषि को व्यवसाय के तौर पर विश्व स्तर पर ले जाना था। हरित क्रांति के अंतर्गत गेहूं, चावल, दाल,ज्वर,बाजरा और मक्का जैसे अनाज आते हैं, जो प्रत्येक मनुष्य के भोजन का आधार हैं। इस तथ्य से इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि कृषि उत्पादन की वृद्धि से देश की अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ता।
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हरित क्रांति क्या है: What is Green Revolution
विकासशील देशों में उन्नत किस्मों और बढ़े हुए उर्वरक और अन्य रासायनिक इनपुट के कारण गेहूं और चावल की पैदावार में तेजी से वृद्धि को "हरित क्रांति" के रूप में जाना जाता है, जिसका कई लोगों की आय और खाद्य आपूर्ति पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है। विलियम गौड William Gaud ने "हरित क्रांति" शब्द को जन्म दिया और नॉर्मन बोरलॉग Norman Borlaug को इसके संस्थापक के रूप में माना जाता है, जिसके कारण उन्हें 1970 में गेहूं की उच्च उपज वाली किस्मों को विकसित करने के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
भारत में हरित क्रांति के जनक Father of Green Revolution in India
1965 के वर्ष में, भारतीय भारतीय ने एक आनुवंशिकीविद् geneticist की देखरेख में हरित क्रांति की शुरुआत की, जिसे भारत में हरित क्रांति के जनक के रूप में भी जाना जाता है उनका नाम है एम.एस. स्वामीनाथन M.S. Swaminathan । भारत के भीतर क्रांति, खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि के लिए अग्रणी, ज्यादातर पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के क्षेत्र में। इस उपक्रम में प्रमुख मील का पत्थर गेहूं की उच्च उपज वाली किस्मों (एचवाईवी) high-yielding varieties (HYV) के बीज और गेहूं के जंग प्रतिरोधी उपभेदों rust resistant strains of wheat का विकास था। भारत में हरित क्रांति के दौरान उनके प्रयासों के लिए पहचाने जाने वाले व्यक्तित्व और संस्थान हैं,
मुख्य वास्तुकार और भारत में हरित क्रांति के जनक - एम.एस. स्वामीनाथन
हरित क्रांति के राजनीतिक पिता और खाद्य और कृषि मंत्री - चिदंबरम सुब्रमण्यम Chidambaram Subramaniam
गेहूँ क्रांति के जनक Father of Wheat Revolution - दिलबाग सिंह अठवाल Dilbagh Singh Athwal
IARI - भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान। IARI – Indian Agricultural Research Institute.
भारत में हरित क्रांति के उद्देश्य Green Revolution in India Objectives
भारत में हरित क्रांति की कई विशिष्ट विशेषताएं हैं।
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कृषि क्षेत्रों के आकार में वृद्धि
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डबल क्रॉपिंग सिस्टम, या साल में दो बार फसल उगाने की प्रथा।
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बांधों के निर्माण और अन्य बुनियादी सिंचाई तकनीकों को अपनाने के कारण अब व्यापक सिंचाई परियोजनाओं से पानी प्राप्त किया जा सकता था।
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उन्नत आनुवंशिकी वाले बीजों के नए प्रभेदों से उत्पन्न उच्च उपज वाली किस्मों के बीजों का उपयोग करना।
गेहूं, चावल, ज्वार, बाजरा और मक्का प्रमुख फसलें थीं। नई रणनीति के दायरे में भोजन के अलावा अन्य अनाज उत्पादों को शामिल नहीं किया गया था। कई वर्षों तक गेहूं हरित क्रांति की नींव बना रहा।
भारत में हरित क्रांति की उपलब्धियां Green Revolution in India Achievements
देश की हरित क्रांति के परिणामस्वरूप भारत में कई फसल पैटर्न समायोजन और कृषि प्रगति हुई है।
किसान आज हरित क्रांति की बदौलत धन का आनंद लेते हैं। कृषि को एक लाभदायक पेशा माना जाता है। पंजाब में उपभोक्ता उत्पादों की मांग बढ़ी है। पंजाब में जीवन स्तर में वृद्धि हुई है। गेहूं, चावल, कपास, चना, मक्का और बाजरा सहित सभी फसलों का प्रति हेक्टेयर उत्पादन बढ़ा है। कारण बेहतर बीज हैं। हरित क्रांति का उद्योग विकास पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है। ट्रैक्टर, डीजल इंजन, कंबाइन, थ्रेशर और पम्पिंग सेट जैसे कृषि उपकरण बनाने वाले उद्योग लगाए गए हैं।
उत्पादन वृद्धि हरित क्रांति की प्राथमिक उपलब्धि है। 1965-1966 में 33.89 लाख टन अनाज का उत्पादन हुआ। 1980-1981 में उत्पादन बढ़कर 119 लाख टन हो गया। ग्रामीण जनता अब हरित क्रांति की बदौलत धन का आनंद लेती है। बम्पर फसलों ने ग्रामीण आबादी को काम के विकल्प दिए हैं। उनके जीवन स्तर में सुधार हुआ है। बहुफसली और रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग के परिणामस्वरूप श्रम की आवश्यकता बढ़ गई। बुवाई और कटाई के मौसम में श्रमिकों की भारी कमी देखी जाती है। नतीजतन, हरित क्रांति ने नौकरियां पैदा की हैं।
फसलों की उपज में हुई वृद्धि
हरित क्रांति का असर भारत में दिखा। भारत जिस उद्देश्य की आपूर्ति के लिए इस क्रांति को देश में लेकर आया था, वो उसमें सफल हुआ। देश में फसलों की पैदावार बढ़ी और इतनी बढ़ी कि अब भारत अपने खाने के लिए, भविष्य सुरक्षा में संरक्षित करने के आलावा दूसरे देशों को अनाज का निर्यात करने में भी सक्षम हो गया। यह वह दौर था जब देश का कृषि क्षेत्र उद्योग का क्षेत्र बन गया। भारत में नयी तकनीकियों और नए उर्वरकों जैसे और तरीकों के इस्तेमाल से उद्योग के क्षेत्र में बढ़ने लगा। कृषि अब किसानों के लिए आय का जरिया बन गयी। क्रांति के आने से तकनीकी के क्षेत्र में भी विकास हुआ। ट्रैक्टर, उर्वरक, कीटनाशक, पम्पिंग सेट जैसी वस्तुओं की मांग बढ़ने से इनका भी औद्योगिक क्षेत्र में निर्माण शुरू हुआ। जिसने विकास की राह में अहम किरदार निभाया। हरित क्रांति से आज हमारा देश भारत विश्व में अनाज का बहुत बड़ा निर्यातक देश है।
सारांश -
हरित क्रांति ने पूरे देश की रूप रेखा बदल दी। गरीबी की मार झेल रहा देश अपने पैरों पर खड़ा हो गया और दूसरों को भी सहारा देने के काबिल हो गया। किसानों की मुश्किलें आसान हो गयीं और वो दिल से मुस्कुराने लगा। देश की अर्थव्यवस्था कृषि का हाथ पकड़कर विकास को अपना लक्ष्य मानते हुए लगातार आगे की ओर बढ़ रही है। कई मुश्किलों को पार करके विश्व में अपनी पहचान बनाता देश नयी दिशा की ओर निकल पड़ा। आज देश विश्व की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, जिसमें कृषि के विकास ने मुख्य भूमिका अदा की है।