गाँधी, 30 जनवरी और शहीद दिवस

Share Us

4014
गाँधी, 30 जनवरी और शहीद दिवस
30 Jan 2022
9 min read

Blog Post

1947 की एक सुबह जब पूरा देश आज़ादी freedom की दहलीज़ पर खड़ा था और एक महान देश दो देशों में बंट चुका था, सब कुछ ठीक चल रहा था, तभी वह शाम भी आ गई जब एक महान नेता का सूर्य अस्त होने ही वाला था। बात 30 जनवरी 1948 के शाम की है, उधर दूर से ही पृथ्वी को हर रोज़ तकने वाला सूरज रोज़ की तरह अस्त हो रहा था और इधर विश्व के महान विचारकों में सबसे अव्वल गिने जाने वाले महात्मा गाँधी संध्याकाल की प्रार्थना को जाते हुए नाथूराम गोडसे के द्वारा चलायी गयी गोली का शिकार होकर शहीद हो  गए, इस तरह उस शाम दो सूरज अस्त हुए।

महात्मा गाँधी mahatma gandhi  एक ऐसा नाम, जो पूरे विश्व में अहिंसा की मिसाल भी है और अहिंसावादी विचारधारा की निरंतर जलती हुई लौ भी है। पूरी दुनिया को अहिंसा non-violence का पाठ पढ़ाने वाले मोहनदास करम चंद गाँधी mohan das karam chand gandhi मरते दम तक अपनी इसी विचारधारा पर अडिग रहे और अपने पीछे छोड़ कर गए हैं हजारों अहिंसावादी विचारकों non-violence thinker की विरासत। हम सब आज भी जानते हैं कि अपनी ideology के द्वारा उन्होंने अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया था और साथ ही साथ वे सबसे सफल व्यक्ति भी रहे हैं, लोगों के प्रभावित करने के हिसाब से। 

1947 की एक सुबह जब पूरा देश आज़ादी freedom की दहलीज़ पर खड़ा था और एक महान देश दो देशों में बंट चुका था, उस वक्त लोगों ने खून की धार को भी बहते देखा और जलती हुई ट्रेनों का मंज़र भी देखा। एक ख़ुशी के साथ इतने दुखों का पहाड़ भी पूरे देश को हिलाने के लिए काफी था। समय बीतते-बीतते नए नवेले आज़ाद भारत में जिस तरह खुशियाँ अपने दामन को सामान्य रूप दे रहीं थी वैसे ही खून से नहाई हुई सड़के, ट्रेनें और लोग भी अपने दुखों से भरे घावों को भर चुके थे। इन सब घटनाओं को छः माह बीत चुके थे, आज़ाद भारत नई-नई हवा में साँसे लेने में मशगूल था। सब कुछ ठीक चल रहा था, तभी वह शाम भी आ गई जब एक महान नेता का सूर्य अस्त होने ही वाला था। बात 30 जनवरी 1948 के शाम की है, उधर दूर से ही पृथ्वी को हर रोज़ तकने वाला सूरज रोज़ की तरह अस्त हो रहा था और इधर विश्व के महान विचारकों में सबसे अव्वल गिने जाने वाले महात्मा गाँधी संध्याकाल की प्रार्थना को जाते हुए नाथूराम गोडसे nathuram godsey के द्वारा चलायी गयी गोली का शिकार होकर शहीद हो  गए, इस तरह उस शाम दो सूरज अस्त हुए। ये घटना भारत की राजधानी नयी दिल्ली में घटी मगर शोक का वातावरण पूरे विश्व में फैलते देर नहीं लगी। 

मगर इससे पहले कि हम महात्मा गाँधी की मौत का कारण जाने हम उनसे जुड़े कुछ किस्सों का भी बात कर लेते हैं और उनकी महानता की जरा कुछ झलक देख लेते हैं। तो आइये जानते हैं उनकी काहनी, उनका सामाजिक कार्यकर्ता social worker के रूप में योगदान, राजनितिक विचार, अहिंसावादी विचार, और भी बहुत कुछ, तो  आइये एक-एक करके पर्दा उठाते हैं और कहानी को आगे बढाते हैं। 

पारिवारिक जीवन एवं कुछ किस्से 

गुजरात gujarat के एक तटीय नगर पोरबंदर porbandar नामक स्थान पर 2 अक्टूबर सन् 1969 को पैदा होने वाले मोहनदास करमचंद गाँधी के पिता करमचंद गाँधी हिन्दू धर्म  के थे। गाँधी जी एक हिन्दू परिवार में पैदा हुए थे इनकी माता का नाम पुतलीबाई putlibai था जोकि इनके पिता  की चौथी पत्नी थीं, क्योंकि इससे पहले इनके पिता की तीनों पत्नियों का स्वर्गवास प्रसवपीड़ा के समय हो गया था। मोहनदास का विवाह बहुत कम उम्र में हो गया था महज़ तेहरा साल की उम्र में और इनकी पत्नी का नाम कस्तूरबा बाई  मनकजी Kasturba Bai Manakji था फिर इनका नाम छोटा करके कस्तूरबा गाँधी कर दिया गया। मोहनदास और कस्तूरबा के चार सन्तान हुईं जो सभी पुत्र थे जिसमें हरीलाल गाँधी, मणिलाल गाँधी, रामदास गाँधी और देवदास गांधी जन्में। पोरबंदर से उन्होंने मिडिल और राजकोट से हाई स्कूल किया, दोनों परीक्षाओं में शैक्षणिक स्तर वह एक साधारण छात्र रहे। मैट्रिक के बाद की परीक्षा उन्होंने भावनगर के शामलदास कॉलेज से कुछ समस्या के साथ उत्तीर्ण की। जब तक वे वहाँ रहे अप्रसन्न ही रहे क्योंकि उनका परिवार उन्हें बैरिस्टर बनाना चाहता था।

अपने 19वें जन्मदिन से लगभग एक महीने पहले ही 4 सितम्बर 1888 को गांधी यूनिवर्सिटी कॉलेज लन्दन University College London में कानून की पढ़ाई करने और बैरिस्टर बनने के लिये इंग्लैंड चले गये। उनकी माँ ने उनसे वचन लिया था कि तुम लन्दन में शाकाहारी भोजन का ही सेवन करोगे और मांस मदिरा से दूरी बनाये रखोगे। गाँधी जी ने ऐसा ही किया उनको थोड़ा वक्त जरुर लगा एक बेहतर रेस्टोरेंट तलाशने में पर वे इस काम में सफल हो गए। फिर तो बाद में उन्होंने शाकाहारी समाज की सदस्यता ग्रहण की और इसकी कार्यकारी समिति के लिये उनका चयन भी हो गया जहाँ उन्होंने एक स्थानीय अध्याय की नींव रखी। बाद में उन्होने संस्थाएँ गठित करने में महत्वपूर्ण अनुभव का परिचय देते हुए इसे श्रेय दिया। वे जिन शाकाहारी लोगों से मिले उनमें से कुछ थियोसोफिकल सोसायटी Theosophical society के सदस्य भी थे। इस सोसाइटी की स्थापना विश्व बन्धुत्व universal brotherhood को प्रबल करने के लिये की गयी थी और इसे बौद्ध धर्म एवं सनातन धर्म के साहित्य के अध्ययन के लिये समर्पित किया गया था।  

लोगों ने गांधी जी को  श्रीमद्भागवत गीता  पढ़ने के लिये प्रेरित किया। हिन्दू, ईसाई, बौद्ध, इस्लाम और अन्य धर्मों Hinduism, Christianity, Buddhism, Islam and other religions के बारे में पढ़ने से पहले गांधी जी ने धर्म में विशेष रुचि नहीं दिखायी। इंग्लैंड और वेल्स बार एसोसिएशन में वापस बुलावे पर वे भारत लौट आये किन्तु बम्बई में वकालत करने में उन्हें कोई खास सफलता नहीं मिली। बाद में एक हाई स्कूल शिक्षक के रूप में अंशकालिक नौकरी का प्रार्थना पत्र अस्वीकार कर दिये जाने पर उन्होंने जरूरतमन्दों के लिये मुकदमे की अर्जियाँ लिखने के लिये राजकोट को ही अपना स्थायी मुकाम बना लिया। हालाँकि ये काम भी उनका लम्बे समय तक नहीं चला।  

राष्ट्रवादी नेता के तौर पर गाँधी 

गाँधी जी का एक किस्सा बहुत मशहूर है जहाँ से गाँधी जी का गाँधी के रूप में सफ़र शुरू हुआ, वह सार था या वह किस्सा था साउथ अफ्रीका south africa में हुए उनके साथ दुर्व्यवहार का किस्सा। क्या था वो किस्सा आइये जानते हैं एक नज़र में जिसके चलते  गाँधी एक अहिंसावादी और लोकप्रिय नेता बनके उभरे। साल 1893 से 1914 तक अपने शुरूआती जीवन के लगभग दो दशक उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में बिताए. दक्षिण अफ्रीका में उनका अधिकतर समय एक वक़ील और सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर गुज़रा.

गाँधी ऐसे दक्षिण अफ्रीका पहुँचे थे जो भीतर से बँटा हुआ था, जहाँ अन्याय हो रहा था, जहाँ ब्रितानी और डच मूल के अफ्रीकियों के ही अलग- अलग उपनिवेश थे। यहाँ मूल अफ्रीकियों के साथ ही भारत से लाए गए मजदूर और पेशेवर कर्मचारी रहते थे। वहाँ क्योंकि उनके क्लाइंट गोरे लोगों की सामजिक असमानता का सामना करने वाले होते थे इसलिए उन्होंने एक सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर भी अपना सामानांतर करियर शुरू किया। देश में आजादी की अलख जगाने से पहले महात्‍मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में वहां के लागों के साथ हो रहे भेदभाव और उनके आंदोलन के लिए लंबी लड़ाई लड़ी थी। गांधी जी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन Civil disobedience movement पहली बार शुरुआत यहाँ से ही की थी, यही कारण है कि गांधी जी को जितना सम्‍मान भारत में मिलता है, उतना ही दक्षिण अफ्रीका में भी। गाँधी जी उन दिनों दक्षिण अफ्रीका के नटाल प्रांत में रहते थे। किसी काम से दक्षिण अफ्रीका में वह एक ट्रेन के फर्स्ट क्लास कंपार्टमेंट में सफर कर रहे थे। उनके पास वैध टिकट भी था, लेकिन काला होने के कारण उनको कंपार्टमेंट से निकाल दिया गया। वास्तव में अन्याय के खिलाफ खड़े होने की यही हिम्मत तो सविनय अवज्ञा आन्दोलन का कारण बनी। फिर तो वे अपने इस सफल आन्दोलन के चलते भारत में बड़े बड़े राष्ट्रवादी नेताओं ने उनको कहा कि आप देश की आज़ादी के लिए हमारा साथ दें और दिशा प्रदान करें। वहां की सफलता के वाद गाँधी 1914 को भारत वापस आये जिसको हम लोग प्रवासी दिवस migrant day के रूप में मनाते हैं। 

गाँधी के आन्दोलन और उपाधियाँ 

सबसे अधिक यदि किसी ने बिना लाठी, बिना तलवार के आन्दोलन को सफल बनाया था वे थे महात्मा गाँधी। 

चम्पारण सत्याग्रह 1917 

अहमदाबाद मिल मजदूर आंदोलन 1918

खिलाफत आन्दोलन 1919

असहयोग आंदोलन 1920

सविनय अवज्ञा आंदोलन 1930

भारत छोड़ो आंदोलन 1942

उपाधियाँ

गाँधी जी को महत्मा की उपाधि रविन्द्रनाथ टैगोर ने दी 

गाँधी जी को बापू की उपाधि भी रविन्द्रनाथ टैगोर ने ही दी 

राष्ट्रपिता की उपाधि सुभाष चन्द्र बोस ने दी 

अंग्रजों ने भारत को कैसर-ए-हिन्द की उपाधि दी थी  

ये कुछ ख़ास उपाधियाँ थी जो भारत के लोगों ने और अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें प्रदान की थीं    

किसी ने कहा है की विचार व्यक्ति से ज्यादा महत्वपूर्ण होते हैं। इंसान नश्वर है पर विचारधारा शाश्वत है जो पीढ़ी दर पीढ़ी,युगों तक न सिर्फ जिन्दा रहता है बल्कि समाज को दिशा देता है और आने वाली नई पीढ़ी का मार्गदर्शन भी करता है। गांधी के व्यक्ति नहीं एक विचारधारा है इसीलिये यो हमेशा जिन्दा रहेंगे और शताब्दियों तक रहती दुनिया तक प्रासंगिक और प्रभावशाली रहेंगे। इसलिए गांधी का अस्तित्व कभी नहीं ख़त्म होगा। 

"गांधी जिन्दा है"