भगवतगीता -जीवन का सार

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भगवतगीता -जीवन का सार
16 Feb 2022
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महाभारत के युद्ध में अचानक श्रीकृष्ण, जो अर्जुन के सारथी बने हुए थे वह अर्जुन को युद्धभूमि - कुरुक्षेत्र के बीचोंबीच ले जातें हैं और उससे अपने चारों तरफ की परिस्थिति को उससे समझने को कहते हैं और उसके मन के असमंजस को दूर करने के लिए गीता का महाज्ञान देते हैं । भगवतगीता केवल अर्जुन और कृष्ण के बीच का संवाद नहीं है यह अर्जुन रूपी मानव जाति जो अपने कर्म को भूलकर दुनिया के मोहपाश में बंध गई है, जो सही गलत के अंतर में फँसकर रह गई है। पर क्या भगवतगीता  का सार केवल इतना ही है जितना हमने आज तक सुन रखा है? आखिर ऐसा क्या है भगवतगीता में कि इन्हे अनुवाद करके विश्व के हर कोने में पढ़ा जा रहा है।

महाभारत के युद्ध में अचानक श्रीकृष्ण, जो अर्जुन के सारथी बने हुए थे वह अर्जुन को युद्धभूमि - कुरुक्षेत्र के बीचोंबीच ले जातें हैं और उनसे  अपने चारों तरफ की परिस्थिति को  समझने को कहते हैं और उसके मन के असमंजस को दूर करने के लिए गीता का महाज्ञान देते हैं । भगवतगीता केवल अर्जुन और कृष्ण के बीच का संवाद नहीं है यह अर्जुन रूपी मानव जाति जो अपने कर्म को भूलकर दुनिया के मोहपाश में बंध गई है, जो सही गलत के अंतर में फँसकर रह गई है ।  श्रीकृष्ण रूपी परमात्मा अर्जुन रूपी मानव को मार्ग दिखातें हैं और कहतें  हैं - 

                            कर्मण्ये वाधिका रस्ते मा फलेषु कदाचन।

                           मा कर्म फल हेतु र्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्व कर्मणि॥

जिसका अर्थ है- तेरा कर्म करने में ही अधिकार है, उसके फल में नहीं ।

                        इसलिए तू कर्म फल में हेतु रखने वाला मत हो,

                       तथा तेरी अकर्म में (कर्म न करने में) भी आसक्ति न हो । 

पर क्या भगवतगीता  का सार केवल इतना ही है जितना हमने आज तक सुन रखा है? आखिर ऐसा क्या है भगवतगीता में कि इन्हे अनुवाद करके विश्व के हर कोने में पढ़ा जा रहा है, लोग प्रेरित भी हो रहें हैं और अपने अंदर के अर्जुन को भी जगा रहें हैं। भगवत गीता को विश्वविद्यालयों में  भी दर्शनशास्त्र के विद्यार्थियों को पढ़ाया जाता है। गीता को मूलतः  तीन भागों के योग के सिद्धांत में बाँटा गया हैं -ज्ञानयोग, कर्मयोग, भक्तियोग ।  यानी आपके जीवन के तीन गूढ सत्य । आप अपने धर्म पर ध्यान दें, कर्म करतें  रहें और ज्ञान का साथ कभी न छोड़ें। 

वैसे गीता में पूरे 18 अध्याय हैं और हर अध्याय का नाम हैं जैसे -

1-प्रथम अध्याय का नाम अर्जुनविषादयोग है। वह गीता के उपदेश का विलक्षण नाटकीय रंगमंच प्रस्तुत करता है जिसमें श्रोता और वक्ता दोनों ही कुतूहल शांति  के लिए नहीं वरन् जीवन  की प्रगाढ़ समस्या के समाधान के लिये प्रवृत्त होते हैं।

 2-दूसरे अध्याय का नाम सांख्ययोग  है। इसमें जीवन की दो प्राचीन सम्मानित परंपराओं  का तर्कों द्वारा वर्णन आया है। अर्जुन को उस कृपण स्थिति में रोते देखकर कृष्ण ने उनको ध्यान  दिलाया है कि इस प्रकार का क्लैव्य और हृदय की क्षुद्र दुर्बलता अर्जुन जैसे वीर के लिए उचित नहीं।

3-सांख्य की व्याख्या का उत्तर सुनकर कर्मयोग नामक तीसरे अध्याय में अर्जुन ने इस विषय में और गहरा उतरने के लिए स्पष्ट प्रश्न किया कि सांख्य और योग इन दोनों मार्गों में आप किसे अच्छा समझते हैं और क्यों नहीं यह निश्चित कहते कि मैं इन दोनों में से किसे अपनाऊँ? इसपर कृष्ण ने भी उतनी ही स्पष्टता से उत्तर दिया कि लोक में दो निष्ठाएँ या जीवनदृष्टियाँ हैं-सांख्यवादियों के लिए ज्ञानयोग है और कर्ममार्गियों के लिए कर्मयोग है। 

4. चौथे अध्याय में, जिसका नाम ज्ञान-कर्म-संन्यास-योग है, यह बताया गया है कि ज्ञान प्राप्त करके कर्म करते हुए भी कर्मसंन्यास का फल किस उपाय से प्राप्त किया जा सकता है। यहीं गीता का वह प्रसिद्ध आश्वासन है कि जब - जब धर्म की ग्लानि होती है तब-तब मनुष्यों के बीच भगवान का अवतार होता है, अर्थात् भगवान की शक्ति विशेष रूप से मूर्त होती है।

यहाँ भगवान कृष्ण अर्जुन से यानी नारायण, नर से कहतें  हैं कि - 

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥४-७॥

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।

धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥४-८॥

श्री कृष्ण कहते हैं की जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है तब तब मैं अपने स्वरूप की रचना करता हूँ| ॥४-७॥

साधुओं की रक्षा के लिए, दुष्कर्मियों का विनाश करने के लिए, धर्म की स्थापना के लिए मैं युग-युग में मानव के रूप में अवतार लेता हूँ| ॥४-८

 

इस प्रकार से हर भगवतगीता के हर अध्याय  में कोई न कोई गूढ सत्य को प्रत्यक्ष लाने का प्रयास किया गया है । जीवन में कैसा भी समय चल रहा हो यह गीत आपके जीवन के लक्ष्य की ओर बढ़ने को प्रेरित करती है। 

कई व्यक्तियों को प्रेरित किया है भगवतगीता ने -

1-सुनीता विलियम्स जो अपने अभियान को सफलतापूर्वक पूरा करने वाली पहली  सफल भारतीय अंतरिक्ष यात्री रहीं हैं , इन्होंने भी अपनी अंतरिक्ष यात्रा में भगवतगीता अपने साथ रखी थी। 

2-अल्बर्ट आइंस्टीन ने भी भगवतगीता का उल्लेख किया है। 

3-हाल ही में हॉलिवूड अभिनेता विल स्मिथ ने भी ट्विटर twitter पर जिक्र किया था कि -  भगवतगीता ने मेरे अंदर के अर्जुन को जगाया है । 

इस प्रकार से यह आपकी जीवन की हर समस्या का सार यह आपको अपने शब्दों में समाधान करता है। यह संसार कैसे बना, जीवन की उत्पत्ति कैसे हुई, विश्वपुरुष का सिद्धांत। एक तरह से देखें तो श्रीकृष्ण सत्य ही कहतें  हैं कि आदि और आरंभ  दोनों ही वह स्वयं है। युद्ध का आरंभ भी उन्होंने ही किया है और अंत भी वही करेंगे और मानव रूपी अर्जुन यदि परिस्थितियों के समक्ष हथियार डाल देगा तो परमात्मा रूपी कृष्ण ऐसा हर रास्ता अपनाएंगें जिससे वह हथियार उठाए और जीवनरूपी कुरुक्षेत्र में अपनी परिस्थितियों का सामना करे।