Gi Tag (जीआई टैग) क्या है?

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Gi Tag (जीआई टैग) क्या है?
24 Mar 2022
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किसी भी वस्तु या उत्पाद को उसके मूल क्षेत्र से जोड़ने के लिए दिया जाने वाला प्रतीक जीआई टैग (GI Tag) कहलाता है। जीआई टैग हमें यह बताने में मदद करता है कि यह वस्तु मुख्य रूप से कहां पैदा हुई और इसका संबंध किस जगह से है। जीआई टैग मिलने पर किसी भी ब्रांड को या उस जगह को एक पहचान मिलती है। जीआई टैग (GI Tag) उस वस्तु की गुणवत्ता को प्रदर्शित करता है। इस आर्टिकल के माध्यम से आप जीआई टैग के बारे में विस्तार से समझ सकते हैं कि जीआई टैग क्या है और कैसे मिलता है वस्तुओं को जीआई टैग।

हमारे देश भारत में विभिन्न तरह की वस्तुओं का निर्माण किया जाता है। भारत में कई सारे ऐसे उत्पाद है जो भारत की संस्कृति को दर्शाते हैं। आपने कई वस्तुओं से संबंधित जीआई टैग GI Tag शब्‍द जरूर सुना होगा, आखिर ये जीआई टैग क्‍या है। दरअसल जीआई टैग किसी भी वस्‍तु की पहचान के लिए जरूरी होता है। जीआई टैग किसी वस्तु को तब दिया जाता है जब वह उत्पाद किसी क्षेत्र की विशेषता को दर्शाते हैं। जीआई टैग कानूनी तौर पर वस्तुओं के उत्पादन को एक पहचान प्रदान करती है। जीआई टैग उत्पाद के लिए एक प्रतीक चिन्ह के समान होता है। चलिए आज इसी जीआई टैग के बारे में सब कुछ विस्तार से जानते हैं।

जीआई टैग क्या है ?

Gi tag यानि Geographical Indication Tag और हिंदी में इसे भौगोलिक संकेत कहते हैं। यदि कोई वह वस्तु या उत्पाद किसी क्षेत्र की विशेषता को दर्शाते हैं तो उसे Gi tag दिया जाता है। जीआई टैग द्वारा किसी वस्तु या उत्पाद को एक अलग पहचान मिलती है। वर्ल्‍ड इंटलैक्‍चुअल प्रॉपर्टी ऑर्गनाइजेशन World Intellectual Property Organization (WIPO) के मुताबिक जियोग्राफिकल इंडिकेशंस टैग एक प्रकार का लेबल होता है जिसमें किसी प्रोडक्‍ट को विशेष भौगोलि‍क पहचान special geographical identity दी जाती है। किसी खास फसल, प्राकृतिक और मैन्युफैक्चर्ड प्रोडक्ट्स को यह टैग दिया जाता है। जीआई टैग भारत की विरासत, संस्कृति और पहचान को बचाने preserve culture and identity और उसे दुनियाभर में प्रसिद्ध करने का एक तरीका है। जीआई टैग का कानून असली प्रोडक्ट्स की गरिमा को बनाए रखने के लिए लाया गया। किसी भी उत्पाद को जीआई टैग मिलना अपने आप में एक बहुत बड़ी बात होती है। क्योंकि जीआई टैग मिलने से उस वस्तु का महत्व काफी बढ़ जाता है और साथ ही उसकी कीमत भी बढ़ती है। जिस वस्तु को यह टैग मिलता है, वह उसकी विशेषता बताता है। जीआई टैग यह बताता है कि कोई उत्पाद विशेष कहां पैदा (Production Centre) हुआ है या कहां बनाया जाता है। जीआई टैग वो किस जगह का है, उसकी पहचान होते हैं। जीआई टैग किसी भी क्षेत्र की खास पहचान प्रॉडक्‍ट को देते हैं। जीआई टैग एक तरह का लेबल या टैग होता है जो किसी वस्तु विशेष को या किसी प्रोडक्ट को भौगोलिक पहचान पहचान देती हैं। जीआई टैग किसी उत्पाद को उसकी बनावट, पहचान और गुणवत्ता texture, identity and quality के आधार पर दिया जाता है।

जीआई टैग की शुरुआत कब हुई और जीआई टैग क्यों शुरू हुआ ?

राष्ट्रीय स्तर पर यह कार्य वस्तुओं का भौगौलिक सूचक, पंजीकरण और संरक्षण अधिनियम 1999, Geographical indications of goods ‘registration and protection act 1999’ के तहत किया गया है और यह सितंबर 2003 से लागू हुआ। यानि जीआई टैग की शुरुआत साल 2003 में भारत की धरोहर को बचाए रखने के लिए हुई थी। साल 2003 से वस्तुओं को उनकी गुणवत्ता के आधार पर जीआई टैग दिया जाने लगा। यह भारत की विरासत और पहचान को बचाने और उसे दुनियाभर में प्रसिद्ध करने की एक कानूनी प्रक्रिया है। जीआई टैग 10 वर्षों तक मान्य रहता है। यदि किसी वस्तु को जीआई टैग मिल जाता है, तो टैग का लाभ 10 वर्षों तक मिलता रहता है और 10 वर्ष पूरे हो जाने के बाद जीआई टैग को फिर से रिन्यू करना पड़ता है। अब ये भी जान लेते हैं कि जीआई टैग क्यों शुरू हुआ। दरअसल जब भारत का agreement World Trade Organization “WTO” से हुआ तो तब भारत में यह खतरा था कि कहीं अलग-अलग देश भारत के वस्तुओं की नकल न करें। क्योंकि भारत के मशहूर उत्पादों की नकल कर नकली सामान बाजार में खूब बेचे जाने लगे थे। इससे देश की धरोहर और विरासत को खतरा महसूस हो रहा था। इससे भारत की आर्थिक स्थिति के साथ-साथ भारत की संस्कृति पर भी बुरा प्रभाव पड़ सकता था इसीलिए अपने देश की धरोहर को बचाए रखने के लिए जीआई टैग को लागू किया गया था क्योंकि असली प्रोडक्ट्स की गरिमा को बनाए रखना जरुरी था।

GI Tag कौन देता है और किसे मिलता है जीआई टैग ?

भारत में जीआई टैग किसी खास फसल, प्राकृतिक और मैन्‍युफैक्‍चर्ड प्रॉडक्‍ट्स Special crop, natural and manufactured products को दिया जाता है। मतलब यह टैग खास फसलों को और भारत के विशिष्ट क्षेत्रों में तैयार किए जाने वाले प्रोडक्ट्स को दिया जाता है। अलग-अलग क्षेत्रों को अलग-अलग वस्तुओं के उत्पादन के लिए जीआई टैग दिया जाता है और यह जी आई टैग GI Tag कई बार 2 राज्यों को एक साथ भी दिया जाता है। दरअसल उन राज्यों में एक ही तरह के वस्तुओं का उत्पादन होता है। जब कोई वस्तु किसी एक खास जगह पर बनती है तो उस वस्तु की पहचान उसी क्षेत्र से बन जाती है। जैसे चावल की पैदावार भारत के कई सारे क्षेत्रों में होती है लेकिन जीआई टैग विशेष तौर पर पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश Punjab, Haryana, Himachal Pradesh जैसे राज्यों को दिया गया है। भारत में वाणिज्‍य मंत्रालय के तहत आने वाले डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्‍ट्री प्रमोशन एंड इंटरनल ट्रेड के द्वारा जीआई टैग दिया जाता है। अलग-अलग क्षेत्रों को अलग-अलग वस्तुओं के उत्पादन के लिए जीआई टैग दिया जाता है। जीआई टैग न सिर्फ वस्तु को बल्कि उस वस्तु से संबंधित राज्य, संस्थाओं को भी दिया जाता है। जीआई टैग उन उत्पादों को दिया जाता है जो उत्पाद वास्तविकता पर खरे उतरते हैं।

जीआई टैग देने से पहले उस वस्तु की उत्पादन, गुणवत्ता और विशेषताओं Production, quality and characteristics को बहुत ही बारीकी से देखा जाता है। भली भांति परखने के लिए उस वस्तु की क्‍वालिटी और पैदावार की अच्छे से जांच की जाती है। यह भी तय किया जाता है कि वहां की भौगोलिक स्थिति और जलवायु का कितना योगदान है यानि बहुत ही बारीकी से जांच करने के बाद उस वस्तु को उसके भौगोलिक क्षेत्र के अनुसार जीआई टैग प्रदान किया जाता है।

अब तक कितनी वस्‍तुओं को मिला टैग और जीआई टैग के फायदे

अब तक भारत में जीआई सूची में कुल 370 उत्पाद जुड़ गए हैं। साल 2004 में देश में सबसे पहले दार्जिलिंग की चाय Darjeeling tea को जीआई टैग मिला था। तब से लेकर अब तक कई उत्पादों को जीआई टैग मिल चुका है। अब तक सबसे ज्यादा जीआई टैग जर्मनी Germany को मिले हैं। दूसरे नंबर पर सबसे ज्यादा GI Tag हासिल करने वाला देश चीन है। जीआई टैग को हासिल करने के लिए चेन्नई स्थित जीआई डेटाबेस GI database में अप्लाई करना पड़ता है।

इसमें कश्मीर का केसर और पश्मीना शॉल Saffron and Pashmina Shawl of Kashmir, हिमाचल का काला जीरा, तिरुपति के लड्डू, बंगाल का रसगुल्ला, Tirupati Laddu, Bengal Rasgulla छत्तीसगढ़ का जीराफूल, बीकानेरी भुजिया, ओडिशा की कंधमाल हल्दी, महाबलेश्वर स्ट्रॉबेरी, कर्नाटक की कुर्ग अरेबिका कॉफी, केरल के वायनाड की रोबस्टा कॉफी, आंध्र प्रदेश की अराकू वैली अरेबिका, कर्नाटक की सिरसी सुपारी, बुंदेलखंड क्षेत्र का महोबा का पान Mahoba paan of Bundelkhand, दार्जीलिंग की चाय,रतलामी सेव, नागपुर के संतरे, रतलाम की सेव, अलबाग का सफेद प्याज, भागलपुर का जर्दालु आम, बनारस की बनारसी साड़ी, राजस्थान का फुलकारी (हस्तशिल्प ), Banarasi saree from Banaras, Phulkari (handicraft) of Rajasthan मध्य प्रदेश के झाबुआ का कड़कनाथ मुर्गा, राजस्थान का दाल बाटी चूरमा, कोलकाता की मिष्टि दोई सहित कई उत्पादों को जीआई टैग मिल चुका है।

जीआई टैग से विदेशी बाजार में भी काफी फायदा मिलता है। जीआई टैग को अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में एक ट्रेडमार्क की तरह देखा जाता है। जीआई टैग के जरिये उत्पादों को कानूनी संरक्षण मिलता है। किसी उत्पाद को जीआई टैग मिलने से देश के साथ-साथ विदेशों में भी उस उत्पाद के लिए बाजार मिल जाते हैं। जीआई टैग से उस वस्तु का महत्व बहुत अधिक बढ़ जाता है और साथ ही उसकी कीमत भी बढ़ जाती है। लोग उस जगह पर उस सामान को देखने और खरीदने के लिए आते हैं और वस्तु की बिक्री बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। जीआई टैग मिलने से उस क्षेत्र को अलग से पहचान मिलती है। उस क्षेत्र में व्यापार को भी बढ़ावा मिलता है। जीआई टैग के द्वारा वस्तु के नकल पर रोकथाम लगाया जाता है और जीआई टैग के द्वारा भारत की सभ्यता और संस्कृति को सुरक्षित और सहेज कर रखा जाता है।

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