भारत की GDP 2025: क्या 50% US टैरिफ बड़ा झटका साबित होंगे?

News Synopsis
भारत की अर्थव्यवस्था, जो दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, वित्त वर्ष 2025-26 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में धीमी होती नजर आई है। रॉयटर्स के सर्वे के अनुसार, भारत की GDP वृद्धि दर 6.7% रही, जबकि पिछली तिमाही में यह 7.4% थी। घरेलू मांग और सरकारी खर्च ने थोड़ी राहत दी है, लेकिन अमेरिका द्वारा भारतीय निर्यात पर 50% टैरिफ लगाए जाने से आने वाले समय में जोखिम और बढ़ गए हैं।
भारत की आर्थिक वृद्धि पर अमेरिकी टैरिफ का असर (Impact of US Tariffs on India’s Economic Growth)
कमजोर होती वृद्धि की रफ्तार (India’s Growth Momentum Slows)
पहली तिमाही में शहरी मांग में कमजोरी, निजी निवेश की सुस्ती और निर्यात में अनिश्चितता देखने को मिली। विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत अभी भी कई देशों से बेहतर स्थिति में है, लेकिन वैश्विक व्यापारिक दबाव इसे चुनौतीपूर्ण बना रहे हैं।
अमेरिकी टैरिफ से निर्यात और रोजगार पर खतरा (US Tariffs Put Exports and Jobs Under Pressure)
अमेरिका ने हाल ही में भारतीय निर्यात पर टैरिफ दोगुना कर 50% कर दिया है। इसका सीधा असर इन श्रम-प्रधान उद्योगों पर पड़ेगा:
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वस्त्र और परिधान (Textiles & Garments)
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जूते और चमड़े का उद्योग (Footwear & Leather)
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आभूषण और रत्न (Jewellery & Gems)
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रसायन और प्रोसेस्ड फूड (Chemicals & Processed Food)
HSBC की मुख्य अर्थशास्त्री प्रांजल भंडारी Pranjal Bhandari, Chief Economist, HSBC के अनुसार, यदि यह टैरिफ पूरे साल लागू रहे तो भारत की GDP वृद्धि दर में 0.7% की कमी हो सकती है। साथ ही, लाखों रोजगार प्रभावित हो सकते हैं, जिससे भारत का "चीन के विकल्प" के रूप में उभरना कठिन हो जाएगा।
घरेलू मजबूती: मानसून और सरकारी खर्च (Domestic Resilience: Monsoon and Government Spending)
कठिनाइयों के बीच कुछ कारक भारत की मदद कर रहे हैं:
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अच्छी बारिश से ग्रामीण मांग और FMCG सेक्टर मजबूत हुआ।
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सरकार का बुनियादी ढांचे और कल्याण योजनाओं पर खर्च बढ़ा।
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खाद्य मुद्रास्फीति जुलाई में 1.55% पर आ गई, जिससे लोगों की क्रय शक्ति बढ़ी।
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टैरिफ बढ़ने से पहले निर्यातकों ने जल्दी ऑर्डर पूरे कर कुछ राहत पाई।
निजी क्षेत्र और कंपनियों की सतर्कता (Cautious Corporate and Private Sector Environment)
RBI के अनुसार, 1,736 कंपनियों की बिक्री वृद्धि दर घटकर 5.3% पर आ गई, जो पिछली तिमाही में 6.6% थी। कारण हैं:
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शहरी उपभोक्ता मांग में कमी
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कारोबार का घटता भरोसा
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ऊंची उत्पादन लागत
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वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता
छोटे और निर्यात-निर्भर SMEs सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं।
सरकार और आरबीआई की नीतिगत प्रतिक्रिया और प्रतिउपाय (Policy Response and Countermeasures of Government and RBI)
भारत सरकार और Reserve Bank of India RBI ने इन चुनौतियों से निपटने के लिए कई कदम उठाए हैं:
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आवश्यक वस्तुओं पर GST कटौती
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S&P Global की रेटिंग अपग्रेड, जिससे विदेशी निवेश आकर्षित हो सकता है
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लगातार इन्फ्रास्ट्रक्चर निवेश
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RBI ने FY 2025-26 के लिए GDP वृद्धि अनुमान 6.5% बनाए रखा है
आगे क्या? (What Lies Ahead?)
आगामी तिमाहियों के लिए प्रमुख जोखिम होंगे:
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श्रम-प्रधान उद्योगों का भविष्य
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निजी निवेश की वापसी
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अमेरिका-भारत व्यापार वार्ता
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उपभोक्ता भावना और मुद्रास्फीति
निष्कर्ष (Conclusion)
भारत की आर्थिक वृद्धि वर्तमान समय में सकारात्मक और स्थिर दिशा में आगे बढ़ रही है, लेकिन अमेरिकी टैरिफ इसका बड़ा अवरोधक साबित हो सकते हैं। अगर यह स्थिति लंबे समय तक बनी रहती है तो भारतीय निर्यातकों के लिए वैश्विक प्रतिस्पर्धा कठिन हो जाएगी, जिससे रोजगार सृजन और विदेशी निवेश दोनों प्रभावित हो सकते हैं।
विशेषकर वस्त्र, स्टील, फार्मा और आईटी जैसी इंडस्ट्रीज़ पर सीधा दबाव पड़ सकता है। हालांकि, भारत की मजबूत घरेलू मांग, तेजी से बढ़ता मध्यम वर्ग और सरकारी सुधारात्मक नीतियाँ देश को इस चुनौती से निपटने की क्षमता देती हैं।
इंफ्रास्ट्रक्चर निवेश और “मेक इन इंडिया” जैसी पहलकदमियाँ निर्यात पर पड़ने वाले नकारात्मक असर को संतुलित करने में सहायक हो सकती हैं। आने वाले महीनों में भारत को अपनी व्यापार नीतियों में लचीलापन दिखाते हुए, नए बाजारों की तलाश करनी होगी ताकि विकास दर पर कोई बड़ा संकट न आए और देश अपनी वैश्विक आर्थिक स्थिति को मजबूती से बनाए रख सके।