स्वामी विवेकानन्द- साधारण व्यक्ति की असाधारण सोच 

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स्वामी विवेकानन्द- साधारण व्यक्ति की असाधारण सोच 
27 Dec 2021
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स्वामी विवेकनद ने कहा था - गीता में कहे गए उपदेश ब्रह्म सत्य का प्रमाण है- ''जो भी मुझ तक आता है, चाहे कैसा भी हो, मैं उस तक पहुंचता हूं, लोग अलग-अलग रास्ते चुनते हैं, परेशानियां झेलते हैं, लेकिन आखिर में मुझ तक पहुंचते हैं।'' जो व्यक्ति इनती कम आयु में जीवन के गूढ़ सत्य को समझकर दूसरों की मदद में लग गया हो, उससे बड़ा ज्ञानी भला कौन हो सकता है। स्वामी विवेकानंद ऐसे ही भारतीय विचारों के के प्रतीक रहे हैं। 

1893  की  शिकागो Chicago की वो धर्म सभा, जिसमें न जाने कितने दिग्गज धर्म प्रवर्तक, अपने-अपने सम्प्रदायों के प्रधान, लगभग सभी महत्वपूर्ण व्यक्ति मौजूद थे। उस धर्म सभा में जो भी व्यक्ति मंच पर आया उसने सभी दर्शकों को अलग-अलग संबोधन से बुलाया, किसी ने कहा - देवियों और सज्जनों, तो किसी ने कहा - RESPECTED MADAM /SIR, लेकिन एक व्यक्ति जो बड़े ही साधारण से कपड़ों में, मुख पर तेज लिए बेहद शांत चित्त से मंच पर आया और खड़ा हुआ तो कुछ व्यक्तियों के हंसने कि आवाज़ आई फिर उस व्यक्ति ने अंग्रेजी भाषा  में सभा को सम्बोधित किया -  ''MY DEAR BROTHERS AND SISTERS'' (मेरे प्रिय भाइयों और बहनों)  इतना सुनने के बाद पूरी सभा शांत हो गई, कुछ लोग जिनको यह भ्रम था कि साधारण कपड़ों में शायद कोई भारतीय ज्ञान देने आया होगा, मंच पर खड़े उस व्यक्ति के दमदार भाषण, आत्मविश्वास से भरी आवाज़ सुनकर, उन लोगो में भी सन्नाटा छा गया। मंच पर खड़े वह व्यक्ति थे स्वामी विवेकानंद Swami Vivekananda

स्वामी विवेकानंद ने उस सम्मेलन में आए लोगों के साथ-साथ पूरे विश्व का मन जीत लिया। उनके उस भाषण में उन्होंने सभी अमेरिकी भाई-बहनों का आभार व्यक्त किया। अपनी भारत भूमि के पुत्र होने का गर्व बाँटा क्योंकि इसी भूमि ने उन्हें सहिष्णुता और धर्म निरपेक्षता Tolerance and Secularism का पाठ सिखाया था। उनके विषय में यदि कोई भी बात शुरू की जाए तो शायद समय कम पड़ जाए, उनके विचारों को भारत ही नहीं देश- विदेश के कई महानुभावों ने अपने मन में स्थान दिया और जीवन में भी उतारा। 

लक्ष्य पर ध्यान केन्द्रित करने की सीख 

स्वामी विवेकानन्द का यह कथन आज भी कई भारतीय स्कूलों और शैक्षिक संस्थानों में लिखा मिलता है - ''उठो जागो और अपने लक्ष्य की और दौड़ो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाए ''। उनका यह कथन न जाने कितने युवाओं को अपने जीवन के लक्ष्य को पाने की प्रेरणा देता है। स्वयं माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी उनके बताए विचारों का अनुसरण भी करते हैं। इसी कारण हर वर्ष 12 जनवरी को स्वामी विवेकानन्द जयंती मनाई जाती है।

पूर्णत: भारतीय विचारधाराओं के सकारात्मक प्रवर्तक 

 जिनके गुरु स्वयं स्वामी रामकृष्ण परमहंस Ramakrishna Paramahamsa हों उनका शिष्य (स्वामी विवेकानंद) तो उनसे और भी आगे जाएगा। स्वामी विवेकानंद की विशेषता यह थी कि वह अपने विचार कभी भी किसी पर थोपते नहीं थे बल्कि वह मूल विचारों के समर्थक और समय के साथ चलने में विश्वास रखने वाले व्यक्ति थे, यही कारण है कि वह युवाओं में बहुत लोकप्रिय थे। आज भी स्वामी विवेकान्द के विचारों और व्यक्तित्व का बहुत सम्मान किया जाता है

नारी सम्मान और दूसरों की  सहायता  

शिकागो सम्मेलन में एक महिला ने स्वामी विवेकानन्द से प्रभावित होकर उनके जैसे ही पुत्र  पाने की इच्छा प्रकट की, इस पर स्वामी जी ने विनम्रता से कहा -'' मुझे ही अपना पुत्र समझ लें माता''। ये कहानी एक तरफ विवेकानन्द की उदारता बताती है तो दूसरी तरफ नारी जाति के लिए विशेष सम्मान भी दिखाती है। उन्होंने स्वयं कहा था - सच्चा पुरुष वही होता है जो हर परिस्थिति में नारी का सम्मान करे। दीन-दुखियों और ना जाने कितने बीमारों की सेवा उन्होंने स्वयं को भूलकर की थी, जैसे उनका सारा जीवन केवल दूसरों के लिए ही था।

दर्शनशास्त्र

स्वामी विवेकानन्द स्वयं विचारों का एक महासागर थे, यही कारण है कि दर्शनशास्त्र philosophy जैसे गूढ़ विषय के पाठ में स्वामी विवेकानन्द के विचारों को छात्रों की किताबों में शामिल किया गया है, ताकि युवाओं तक उनकें विचार पहुंचें।