रामकृष्ण परमहंस जयंती पर विशेष

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 रामकृष्ण परमहंस जयंती पर विशेष
04 Mar 2022
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जग में सुंदर है दो नाम चाहे कृष्ण कहो या राम, दोनो ही नाम एक ही व्यक्ति के नाम के साथ जुड़कर उसके व्यक्तित्व का पर्याय बन जाएँ तो? आज बात कर रहे हैं उस व्यक्ति की जिसने नरेंद्र को स्वामी विवेकानंद बनने की राह दिखायी- स्वामी रामकृष्ण परमहंस, क्यूँकि आज मनायी जा रही है रामकृष्ण परमहंस जयंती। आप भी पहचानने का प्रयास करिये अपने अंदर के ज्ञान और परम ब्रह्म को, यह आवश्यक नहीं है कि आप उसी स्तर तक पहुँचें, कभी-कभी सच्चे हृदय के स्वर को सुन आने की क्षमता भी अदभुद कहलाती है।

यह तो गीतों में, लेखनी में सुना था - जग में सुंदर है दो नाम चाहे कृष्ण कहो या राम। यदि यह दोनो ही नाम एक ही व्यक्ति के नाम के साथ जुड़कर उसके व्यक्तित्व का पर्याय बन जाएँ तो?

आज बात कर रहे हैं उस व्यक्ति की जिसने नरेंद्र को स्वामी विवेकानंद बनने की राह दिखायी- स्वामी रामकृष्ण परमहंस Swami Ramkrishna Pramahans, क्यूँकि आज मनायी जा रही है रामकृष्ण परमहंस जयंती Ramkrishna Pramahans Jyanti ।

फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भारत वैचारिक दिशा में परिवर्तन की क्रांति आई । रामकृष्ण परमहंस जी के पिता खुदीराम और माता चंद्रा देवी Khudiram and Mata Chandra Devi थीं, रामकृष्ण परमहंस जी के बचपन का नाम गदाधर था । उनकी पत्नी का नाम शारदामणि देवी था।  रामकृष्ण जी के गुरु का नाम तोतापुरी था। रामकृष्ण परमहंस जी के वास्तविक नाम गदाधर के विषय में भी ​​​​कुछ बातें प्रचलित हैं-एक यह कि उनके पिता को स्वप्न में भगवान विष्णु दर्शन दिए थे और पुत्र रुप में जन्म लेने की बात कही थी, इस वजह से उनका नाम गदाधर रखा गया था, फिर उनकी मां ने भी एक ऐसी ही​ मिलती-जुलती घटना का जिक्र किया था। ईश्वर की प्राप्ति के लिए उन्होंने कठोर साधना और भक्ति का जीवन बिताया और अपनी कड़ी साधना के बाद यह निष्कर्ष पाया कि संसार के सभी धर्म सच्चे हैं और उनमें कोई भिन्नता नहीं। वे ईश्वर तक पहुँचने के भिन्न-भिन्न साधन मात्र हैं।

विपरीत परिस्थिति में पूरे परिवार का भरण-पोषण कठिन होता चला गया।बड़े भाई रामकुमार चट्टोपाध्याय, गदाधर को अपने साथ कोलकाता ले गए। बड़े भाई रामकुमार चट्टोपाध्याय को दक्षिणेश्वर काली मंदिर Dakshineswar Kali Temple के मुख्य पुजारी के रूप में नियुक्त किया गया था। रामकृष्ण और उनके भांजे ह्रदय रामकुमार की सहायता करते थे। रामकृष्ण को देवी प्रतिमा को सजाने का दायित्व दिया गया था। 1856 में रामकुमार के मृत्यु के पश्चात रामकृष्ण को काली मंदिर में पुरोहित के तौर पर नियुक्त किया गया। रामकुमार की मृत्यु के बाद श्री रामकृष्ण ज़्यादा ध्यान मग्न रहने लगे। वे काली माता के मूर्ति को अपनी माता और ब्रम्हांड की माता के रूप में देखने लगे। कहा जाता हैं की श्री रामकृष्ण को काली माता के दर्शन ब्रम्हांड की माता के रूप में हुआ था। रामकृष्ण इसका वर्णन करते हुए कहते हैं " घर ,द्वार ,मंदिर और सब कुछ अदृश्य हो गया , जैसे कहीं कुछ भी नहीं था! और मैंने एक अनंत तीर विहीन आलोक का सागर देखा, यह चेतना का सागर था। जिस दिशा में भी मैंने दूर दूर तक जहाँ भी देखा बस उज्जवल लहरें दिखाई दे रही थी, जो एक के बाद एक ,मेरी तरफ आ रही थी।

विवाह-

यह एक सामाजिक मानवीय सोच है कि यदि कोई समाज की बनाई गई नियम-क़ानूनों और बेड़ियों से अलग कुछ करता है तो उसे व्यक्ति को अलग नज़रिये से देखती है। उसे कोई सामान्य मानने को तैयार ही नहीं होता,  रामकृष्ण परमहंस के साथ भी ऐसा ही हुआ।

अफवाह फ़ैल गयी थी की दक्षिणेश्वर में आध्यात्मिक साधना के कारण रामकृष्ण का मानसिक संतुलन ख़राब हो गया था। रामकृष्ण की माता और उनके बड़े भाई रामेश्वर रामकृष्ण का विवाह करवाने का निर्णय लिया। उनका यह मानना था कि शादी होने पर गदाधर का मानसिक संतुलन ठीक हो जायेगा, शादी के बाद आये ज़िम्मेदारियों के कारण उनका ध्यान आध्यात्मिक साधना से हट जाएगा।  यहाँ भी रामकृष्ण ने आश्चर्यचकित कर दिया और स्वयं ही अपनी होने वाली अर्धांगिनी शारदामुनि का पता बताया,  यह बताया कि उनके लिए कन्या जयरामबाटी Kanya Jayarambati (जो कामारपुकुर से 3 मील दूर उत्तर पूर्व की दिशा में हैं) में रामचन्द्र मुख़र्जी के घर पा सकते हैं। 1859 में 5 वर्ष की शारदामणि मुखोपाध्याय और 23 वर्ष के रामकृष्ण का विवाह संपन्न हुआ।
 

वैराग्य-

अपने बड़े भाई की मृत्यु से वह अत्यंत दुखी थे। यह भी कहा जाता है कि भैरवी ब्राह्मणी का दक्षिणेश्वर में आगमन से उन्हें तंत्र की शिक्षा दी थी। तोतापुरी महाराज से अद्वैत वेदांत का  ज्ञान लाभ किया और जीवन्मुक्त की अवस्था को प्राप्त किया। सन्यास ग्रहण करने के वाद उनका नया नाम हुआ श्रीरामकृष्ण परमहंस।

स्वामी विवेकानंद और रामकृष्ण मिशन Ramakrishna Mission स्थापना-

रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानन्द Swami Vivekananda  का नाम एक दूसरे के पूरक  हैं।यदि किसी भी एक की बात हो और दूसरे की ना हो तो यह अन्याय होगा और वह भी अगर रामकृष्ण परमहंस जैसा गुरु और विवेकानंद जैसा शिष्य हो तो उल्लेख क्यूँ ना हो । यही कारण है कि अपने गुरु रामकृष्ण की प्रेरणा से रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। रामकृष्ण मिशन की स्थापना 1 मई सन् 1897 को, रामकृष्ण परमहंस के परम् शिष्य स्वामी विवेकानन्द ने की। इसका मुख्यालय कोलकाता  के निकट बेलूर  मठ में है। इस मिशन की स्थापना के केंद्र में वेदांत  दर्शन का प्रचार-प्रसार है। रामकृष्ण मिशन दूसरों की सेवा और परोपकार को कर्मयोग मानता है।

मनाइये रामकृष्ण परमहंस जयंती-

 रामकृष्ण के अनुसार मनुष्य जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य है ईश्वर प्राप्ति। रामकृष्ण कहते थे की कामिनी कंचन ईश्वर प्राप्ति के सबसे बड़े बाधक हैं। श्री रामकृष्ण परमहंस की जीवनी  के अनुसार, वे तपस्या, सत्संग और स्वाध्याय आदि आध्यात्मिक साधनों पर विशेष बल देते थे। वे कहा करते थे, "यदि आत्मज्ञान प्राप्त करने की इच्छा रखते हो, तो पहले अहम्भाव को दूर करो। क्योंकि जब तक अहंकार दूर न होगा, अज्ञान का पर्दा  कदापि न हटेगा। तपस्या, सत्सङ्ग, स्वाध्याय आदि साधनों से अहंकार  दूर कर आत्म-ज्ञान प्राप्त करो, ब्रह्म को पहचानो।

तो आप भी पहचानने का प्रयास करिये अपने अंदर के ज्ञान और परम ब्रह्म को, यह आवश्यक नहीं है कि आप उसी स्तर तक पहुँचें, कभी-कभी सच्चे हृदय के स्वर को सुन आने की क्षमता भी अदभुद कहलाती है।

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https://www.thinkwithniche.in/blogs/details/national-youth-day-swami-vivekanand-jayanti