भारत के पंजाब केसरी

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भारत के पंजाब केसरी
28 Jan 2022
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पंजाब की शान कहे जाने वाले लाला लाजपत राय के लिए कहा जाता है की पंजाब की धरती ने एक बहुत महान व्यक्ति पैदा किया है और पंजाब की धरती ऐसे ही महान लोगों को जन्म देती रहेगी। इनकी छवि एक राष्ट्र को योद्धा या यूँ कहें कि नेशनल हीरो की रही है हमेशा। आइये जानते हैं इनके जन्म दिवस पर इनसे जुड़े कुछ खास पहलू। इनके जन्म से लेकर इनके सामाजिक, आर्थिक, व राजनितिक विचारों की कुछ महत्वपूर्ण बातें।

हमारा देश, जिसकी ज़मीन क्रांतिकारियों freedom fighters को हमेशा से जन्म देती आयी है। यदि आप पूरे  विश्व का इतिहास the world history उठा कर देख लें, तो आप पाएंगे कुछ ही क्रांतिकारियों के नाम है जो बहु चर्चित हैं जिसमें मार्टिन लूथर, अब्राहम लिंकन, कार्ल मार्क्स, Martin Luther, Abraham Lincoln, Karl Marx इत्यादि। मगर जब भारतीय क्रांतिकारियों के सन्दर्भ में बात करें तो इनकी गिनती करना आसान काम नहीं है, क्योंकि आज़ादी का जूनून हर भारतीय के सर पर सवार था कि जल्द से जल्द ब्रितानी सियासत का अंत हो और भारत के लोग एक नए भारत का आज़ाद सूरज देख सकें। इसी सूरज को उगाने में देश के पंजाब केसरी कहे जाने वाले लाला लाजपत राय बहुत बड़ा योगदान है। आइये जानते हैं इनके जन्म दिवस पर इनसे जुड़े कुछ खास पहलू। इनके जन्म से लेकर इनके सामाजिक, आर्थिक, व राजनितिक विचारों की कुछ महत्वपूर्ण बातें। किस तरह लाला जी ने देश की तात्कालिक समस्या पर ध्यान दिया और अपने विचारों से कैसे भारत की छवि को बदलने का प्रयास किया।

“पराजय और असफलता कभी-कभी विजय की ओर जरूरी कदम होते हैं।”- लाला लाजपत राय

व्यक्तिगत परिचय 

पंजाब panjab के मोंगा जिले में 28 जनवरी 1885 को पैदा होने वाले लाला लाजपत राय जी Lala  Lajpat Rai एक जैन परिवार से थे। पंजाब की शान कहे जाने वाले लाला लाजपत के लिए कहा जाता है की पंजाब की धरती ने एक बहुत महान व्यक्ति पैदा किया है और पंजाब की धरती ऐसे ही महान लोगों को जन्म देती रहेगी। इनकी छवि एक राष्ट्र को योद्धा nation warrior या यूँ कहें कि नेशनल हीरो की रही है हमेशा।  लाला जी  ने जगरांव से वकील के तौर पर अपना पेशा शुरू किया और फिर बाद में इन्होनें हिसार में अपनी प्रैक्टिस चालू रखी, 1892 तक आते-आते ये लाहौर में वकालत की प्रैक्टिस करने लगे। आपकी जानकारी हेतु बताना चाहेंगे कि दयानन्द सरस्वती Dayanand Saraswati की जीवनी या यूँ कहें की उनकी biography लाला लाजपत राय ने उर्दू urdu language में लिखी थी तथा इन्होंने आर्य समाज Arya Samaj में अपना काफी योगदान दिया क्योंकि ये दयानंद सरस्वती जी के विचारों से काफी प्रभावित थे। इनके पिता जी का नाम मुंशी राधाकृष्णनन था। लाला जी एक खुशमिजाज और समाज को राह दिखाने  वाले व्यक्ति रहे। 

लाला लाजपत राय जी एक समाजसेवी के रूप में socialist person 

लाला जी जिस प्रकार के क्रांतिकारी थे उसके अनुसार ये अनुमान तो कोई भी लगा सकता है कि वे कितने बेहतर और समाज की फिकर करने वाले समाज सुधारक रहे होंगे। ये बात उस वक़्त की है जब लाला जी अमेरिका America से 20 फरवरी 1920 को वापस आये थे तब उनहोंने अंग्रेजो के रवैयों पर विरोध तो किया ही साथ ही साथ उन्होंने ये कहते हुए अंग्रजों को चेताया की इस वक़्त का जो भी संविधानिक कार्य हो रहा है वह गलत है, क्योंकि इसने समाज को  दो भागों में बाँट दिया गया है। वे कहते हैं कि इस तरह के संविधानिक उपचार से मजदूर वर्ग और पूंजीवादियों में किसी भी प्रकार की समानता नहीं प्रदर्शित होती है, तथा इस तरह की व्यवस्था एक स्वस्थ समाज को पनपने देने के लिए घातक है। अतः इस तरह की व्यवस्था जल्द से जल्द बदलनी चाहिए इससे पहले कि समाज और अधिक बीमार हो जाए। उनका मानना था की भारतीय समाज पहले से ही कई विविधताओं से घिरा पड़ा है, जिस कारण देश एकजुट  नहीं हो पा रहा ऊपर से अंग्रेजों का "फूट डालो राज करो" divide and rule की नीति बेबुनियाद और असामाजिक है। 1920 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस  ट्रेड यूनियन के प्रथम अध्यक्ष के रूप में लाला जी चाहते थे कि ये ट्रेड यूनियन अंतर्राष्ट्रीय लेबर संस्था होनी चाहिए जो कि ब्रिटिश देश के बीच के मजदूर वर्ग और यहाँ के मजदूर वर्ग से डायरेक्ट कनेक्ट हो सके। लाला जी पूंजीवादीयों से नफ़रत और उनको समाज का दीमक बोलते थे। परन्तु वे कार्ल मार्क्स के समर्थक नहीं थे क्यूँकि, उनका कहना था कि ईश्वर के अतिरिक्त और कोई सुपर पावर नहीं है और दूसरी तरफ मार्क्स ने ईश्वर को एक सिरे से नकार दिया। 

धार्मिक आस्था और लाला लाजपत राय

लाला लाजपत राय जी आर्य समाज को मानते थे हालाँकि उनकी पैदाइश और परवरिश एक जैन परिवार में हुई थी। परन्तु स्वामी दयानंद जी के सम्पर्क में आने के बाद उन्होंने देखा कि किस तरह आर्य समाज पूरे समाज को जोड़कर चलने का कार्य करता है, किसी भी प्रकार का भेदभाव देखने को नहीं मिलता। उनका मानना था समाज जातिगत तौर पर बंटा  नहीं  होना चाहिए फिर वह किसी भी धर्म को मानने वाला समाज हो। एक समाज सुधारक के रूप में वे मनु के सामाजिक स्ट्रक्चर structure को यूनिफार्म नहीं मानते थे वैसे ही मुस्लिमों का अलग-अलग समुदाय में बंटा होना ये सब उनके हिसाब से एक देश के या समाज के उज्जवल भविष्य हेतु कम उचित है। उनके द्वारा लिखी गयी किताब आर्य समाज में उन्होंने कहा एक आर्य समाजी के तौर पर वे Inequality या असमानता को अपने हिसाब से कोई स्थान नहीं देना चाहते फिर चाहे वह जातिगत हो या आर्थिक रूप से ही क्यूँ न हो। 

एक राष्ट्रीयवादी नेता के तौर पर 

ये बात तो जग जाहिर है कि लाला जी एक कर्मठ और भारत की आजादी हेतु जी जान लगाने वाले स्वतंत्रता सेनानी थे। असल लड़ाई तब शुरू हुई जब देश के उच्च स्तर के नेताओं के बीच आपसी फूट पड़ी और लाला लाजपत राय जी बाल गंगाधर तिलक के साथ गरम दल में अपने आपको शरीक कर लिए तथा तीनों बड़े राष्ट्रवादी नेताओं ने, (जिनको बाल लाल पाल के नाम से संबोधित किया जाता है) ये कहते हुए कांग्रेस से इस्तीफ़ा दे दिया कि अंग्रेजों के साथ मिल कर काम करने का मतलब है देश की जनता की आँखों में धूल झोंकना या उनको धोका देना। इसके चलते लाला लाजपत राय जी और मोती लाल नेहरु दो अलग-अलग दल के प्रमुख नेता हो गए। लाला जी बाल और पाल के साथ गरम दल के प्रमुख थे और मोतीलाल जी कांग्रेस के साथ-साथ नरम दल के प्रमुख थे।

लाला जी साइमन simon के द्वारा प्रस्तावित किये गए साइमन कमीशन simon commission के पुरजोर विरोधी थे तथा वे इस कमीशन को वापस ले लेने के लिए विरोध प्रदर्शन करने में सबसे अग्रिणी नेता थे।

क्या था साइमन कमीशन? आईये जानते हैं एक नज़र में 

साइमन कमीशन  सात ब्रिटिश सांसदो का समूह था, जिसका गठन 8 नवम्बर 1927 में भारत में संविधान सुधारों के अध्ययन के लिये किया गया था और इसका मुख्य कार्य था, मानटेंगयु चेम्स्फ़ो्द सुधार The Montagu–Chelmsford Reforms कि जॉच करना था। 1928 में साइमन कमीशन भारत आया। भारतीय आंदोलनकारियों में साइमन कमीशन वापस जाओ के नारे लगाए और जमकर विरोध किया। साइमन कमीशन के विरुद्ध होने वाले इस आंदोलन में कांग्रेस के साथ साथ मुस्लिम लीग ने भी भाग लिया। इसे साइमन आयोग (कमीशन) इसके अध्यक्ष सर जोन साइमन के नाम पर रखा गया था । साइमन आयोग के मुख्य सुझाव निम्नलिखित थे :-

1.भारत में एक संघ की स्थापना हो जिसमें ब्रिटिश भारतीय प्रांत और देशी रियासत शामिल हों।

2.केन्द्र में उत्तरदायी शासन की व्यवस्था हो।

3.वायसराय और प्रांतीय गवर्नर को विशेष शक्तियाँ दी जाए।

4.एक लचीले संविधान का निर्माण हो।

इन सब सुझावों में काफी हद तक भारतीयों का नुकसान था और ब्रिटिश सरकार का फायदा इसलिए इसका विरोध करना अति आवश्यक था और साइमन को भारत से ब्रिटेन भेजने हेतु सभी ने नारा दिया simon go back । 

लाला जी की मृत्यु 

इन्हीं सब विरोधों के बीच जो नहीं घटना चाहिए था वो घटा, 30 अक्टूबर 1928 को इन्होंने लाहौर में साइमन कमीशन के विरुद्ध आयोजित एक विशाल प्रदर्शन में हिस्सा लिया, जिसके दौरान हुए लाठी-चार्ज में ये बुरी तरह से घायल हो गये। विरोध प्रदर्शन के समय जब लाला जी सबसे आगे थे तभी लाला जी को लाठी लगने से उनकी मृत्यु हो गयी। लाला जी की मृत्यु से सारा देश उत्तेजित हो उठा और चंद्रशेखर आज़ाद, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव व अन्य क्रांतिकारियों ने लालाजी पर जानलेवा लाठीचार्ज का बदला लेने का निर्णय किया। इन देशभक्तों ने अपने प्रिय नेता की हत्या के ठीक एक महीने बाद अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर ली और 17 दिसम्बर 1928 को ब्रिटिश पुलिस के अफ़सर सांडर्स को गोली से उड़ा दिया। लालाजी की मौत के बदले सांडर्स की हत्या के मामले में ही राजगुरु, सुखदेव और भगतसिंह को फाँसी की सजा सुनाई गई।

लाला जी के अंतिम शब्द यही थे कि, “मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी ब्रिटिश सरकार के ताबूत में एक-एक कील का काम करेगी।”