संविधान में योगदान देने वाली-कमला चौधरी

Share Us

7982
संविधान में योगदान देने वाली-कमला चौधरी
25 Jan 2022
8 min read

Blog Post

ये तो हम सब जानते हैं कि हमारा संविधान दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है, संविधान के निर्माण में 284 लोग शामिल थे जिसमें 15 प्रगतिशील महिलाएं भी थीं और उन्हीं महिलाओं में से एक थी कमला चौधरी Kamala Choudhary जिनका भारत के संविधान निर्माण में अतुलनीय योगदान है। हमारी विडंबना है कि संविधान सभा में शामिल महिलाओं को हम भूल चुके हैं। इन सभी महिलाओं ने संविधान के साथ-साथ राष्ट्र के निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्ही में से एक विलक्षण प्रतिभा की धनी, संविधान निर्माण की शक्ति कमला चौधरी को गणतंत्र दिवस के इस अवसर पर हम नमन करते हैं और भारतीय समाज के लिए किये गए उनके बलिदान, कार्यों को हमेशा याद रखेंगे।

इस 26 जनवरी को हमें इस बात पर गर्व होगा कि हमारे देश को संविधान मिले हुए 72 साल पूरे हो चुके हैं और हम 73 वां गणतंत्र दिवस Republic day मना रहे हैं। तब से लेकर आज तक बहुत कुछ बदल गया है अगर कुछ नहीं बदला है तो वो संविधान के प्रति हमारा विश्वास और उन लोगों के लिए दिल में सम्मान और कृतज्ञता का भाव जिन्होंने देश के संविधान को बनाने में अपना अहम योगदान दिया था। हमारा भारतीय संविधान Indian Constitution दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान written constitution है और इसी किताब से भारतीय लोकतंत्र Indian democracy संचालित होता है। इसी महान संविधान के निर्माण में योगदान देने वाली कमला चौधरी Kamala Choudhary का आज हम स्मरण करते हैं। क्योंकि दुभार्ग्य से, कमला चौधरी के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। बस उनका लिखा साहित्य है जिसके बारे में लोगों को थोड़ी बहुत जानकारी होगी। आज इस गणतंत्र दिवस पर वक्त है उनके योगदानों को और उनके लिखे गए साहित्य को फिर से एक बार जीवित करने का। तो चलिए आज उन्हें याद करते हैं जिन्होंने अपना हर पल हर क्षण इस भारत देश के लिए न्यौछावर किया और संविधान के बारे में इतना ही कहूँगी कि -

“हर किसी के हितों की रक्षा हो ऐसा विधान है,

सबको जोड़कर रखे ऐसा भारत का संविधान है”

कमला चौधरी का व्यक्तिगत और साहित्यिक जीवन

लखनऊ में कमला Kamala का जन्म 22 फरवरी 1908 को हुआ था। उनके पिता राय मोहन दयाल Rai Mohan Dayal डिप्टी कलेक्टर थे। उनका परिवार लखनऊ Lucknow का एक समृद्ध परिवार था। दरअसल उनके पिता का कई शहरों में तबादला होने के कारण उनकी प्राथमिक शिक्षा ढंग से नहीं हो पायी। एक महिला होने के कारण उन्हें पढ़ाई-लिखाई के लिए उस समय काफी संघर्ष करना पड़ा था। इससे उन्हें महिलाओं की समस्याओं women's problems का अनुभव बचपन से ही हो गया था। उनकी रूचि बचपन से ही लेखन में थी और बचपन से ही वह राष्ट्रवादी विचारों nationalist ideas वाली थीं। महिलाओं की  सामाजिक स्थिति के बारे में लेखन Writing भी उन्होंने स्कूली जीवन के समय शुरु कर दिया था। उन्होंने फरवरी 1922 में जेएम चौधरी JM Chaudhary से शादी कर ली। अलग-अलग शहरों में पली-बढ़ी कमला ने पंजाब विश्वविधालय Punjab University से हिंदी साहित्य Hindi literature में रत्न और प्रभाकर की उपाधि पंजाब विश्वविधालय से हासिल की। हिंदी साहित्य में अध्यन की दक्षता प्राप्त करने के बाद कमला ने महिलाओं की आंतरिक दुनिया की पीड़ाओं को अपनी कहानियों में उजागर किया है। बहमुखी प्रतिभा की धनी multi-talented कमला चौधरी अपने समय की एक लोकप्रिय कथा लेखिका थीं। जाति, धर्म, संप्रदाय, वर्ग, प्रेम, घृणा, नैतिकता, आचार व्यवहार उनकी कहानियों के विषय हैं। उनके विषय काफी आकर्षक रहे हैं जो कि मुख्य रूप से नारीवादी Feminist रहे इसलिए उनके विषयों को बोल्ड माना जाता था। क्योंकि महिलाओं से संबंधित उनके विषय थे- विधवापन, लैंगिक भेदभाव, महिला इच्छाओं, महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य और महिला मजदूरों के शोषण पर प्रभाव। अपने लेखन में उन्होंने महिलाओं के जीवन से जुड़ी सच्चाई को उकेरा है। उन्माद (1934), पिकनिक (1936) यात्रा (1947), बेल पत्र और प्रसादी कमंडल उनकी प्रमुख रचनाएं हैं। उन्होंने महिलाओं के लिए समानता और स्वतंत्रता का काफी प्रयास किया। कमला चौधरी ने महिलाओं के लिए सामाजिक कार्यकर्त्ता social worker के रूप में भी काम किया। 

संविधान निर्माण में भागीदारी और राजनीतिक सफर

कमला चौधरी जिन्होंने संविधान, जो कि 26 नवम्बर 1949 को ग्रहण किया गया तथा 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ था, उसके निर्माण में अहम् भूमिका निभाई थी लेकिन दुर्भाग्यवश हम आज उन्हें भूल गए हैं। इस गणतंत्र दिवस Republic day के अवसर पर हम बात करते हैं उस महिला की जिनके जीवन के संघर्षों, देश और समाज के लिए किये गए योगदानों के बारे में शायद बहुत कम लोग परिचित होंगे। भारत की परम्पराओं में पहले से ही महिलाओं को सर्वोच्च स्थान दिया जाता है और उसी परंपरा की एक झलक हमारे संविधान में भी देखने को मिलती है। क्योंकि संविधान के निर्माण में 15 महान महिलाएं भी थीं जिन्होंने अपना योगदान दिया है और उन्ही 15 महिलाओं में से ही एक थी कमला चौधरी। दरअसल उस समय महिलाओं ने संविधान के निर्माण के दौरान अपने अधिकारों की बात ज़ोर-शोर से उठाई थी। फिर संविधान निर्माण के दौरान देशभर की विभिन्न अभियानों से जुड़ी महिलाओं को एकत्रित किया गया और उनसे महिला अधिकार पर बात की गई और इन्ही महिलाओं में से एक प्रगतिशील महिला कमला चौधरी भी थी। कमला चौधरी ने 1930 में अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत पारिवारिक परंपरा को तोड़ते हुए किया। वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गयी। साहित्यिक क्षेत्र में सक्रियता के साथ कमला चौधरी ने स्वाधीनता संग्राम freedom struggle में भी हिस्सा लिया। महात्मा गांधी के शुरू किए गए सविनय अवज्ञा आंदोलन Civil disobedience movement से देश की आजादी मिलने तक कमला चौधरी देश के स्वतंत्रता संग्राम के संघर्ष में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया और कारावास तक का सफर भी तय किया। 1946 में मेरठ में हुए कांग्रेस के 54वें सम्मेलन में कमला चौधरी उपाध्यक्ष बनाई गई थीं। कमला चौधरी 1947 से 1952 तक संविधान सभा की सदस्य रहीं। इसके साथ-साथ वह जिला कांग्रेस कमेटी के शहरी और प्रांतीय महिला कांग्रेस कमेटी के विभिन्न पदों पर काम करती रहीं। इसके बाद 1962 में, वह हापुड़ Hapur से आम चुनाव जीती और तीसरी लोकसभा की सदस्य बनी। एक समाज सुधारक के रूप में, एक लेखिका के रूप में, राजनीतिक कार्यकर्ता  के रूप में, संविधान को बनाने में और महिलाओं के उत्थान के लिए वह विशेष रूप से सक्रिय रहीं इसलिए आज हमारा फर्ज बनता है कि हम भी उनके कार्यों और संघर्षों को याद करें। यही हमारा उनके प्रति एक सच्चा सम्मान होगा।