संविधान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली महिलायें

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संविधान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली महिलायें
29 Oct 2021
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भारतीय संविधान निर्माण में महिलाओं का अमूल्य योगदान रहा है। भारतीय संविधान अपनाए जाने के बाद 26 जनवरी 1950 को इसे लागू किया गया था। इस संविधान को मूल रूप देने वाली समिति में 15 महिलायें भी शामिल थीं। हमारी विडंबना है कि सभा में शामिल महिलाओं को हम भूल चुके हैं। इन सभी महिलाओं ने संविधान के साथ-साथ राष्ट्र के निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। संविधान निर्माण की इन 15 मातृ शक्ति को हम नमन करते हैं और भारतीय समाज के लिए किये गए उनके बलिदान, कार्यों को हमेशा याद रखेंगे।

भारतीय संविधान को 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया था। संविधान सभा में कुल 379 सदस्य थे। इनमें से हमें कुछ ही नाम याद हैं। इनमें 15 महिलायें भी थी पर हममें से इनको बहुत कम लोग जानते हैं। उनमें से हर एक महिला प्रतिभा की धनी थी। आज हम उन महिलाओं के बारे में जानेंगे जिनका संविधान निर्माण में अहम योगदान रहा है। 

दक्षिणायनी वेलायुधन

दक्षिणायनी वेलायुधन का जन्म 4 जुलाई 1912 को हुआ था। ये संविधान सभा की सबसे युवा सदस्य थीं और समाज के शोषित वर्गों की नेता भी थीं। साल 1945 में दक्षिणायनी को कोचीन विधान परिषद में राज्य सरकार द्वारा नामित किया गया था। 1946 में संविधान सभा के लिए चुनी जाने वाली वह पहली और एकमात्र दलित महिला थीं। उन्होंने कहा था कि देश में ऐसा कोई समुदाय न बचे जिसे अछूत कह कर पुकारा जाए। 1935 से 1945 तक उन्होंने त्रिचूर और त्रिपुनिथुरा के सरकारी हाई स्कूलों में एक शिक्षिका के रूप में काम किया। संसद में उन्होंने शिक्षा के मामलों में विशेष रूप से अनुसूचित जातियों के लिए विशेष रुचि ली। वेलायुधन ने सार्वजनिक शिक्षा के माध्यम से गैर-भेदभाव के प्रावधानों को लागू करने का आह्वान किया और कहा "अगर संविधान सभा एक जातिगत भेदभाव की निंदा करती है, तो यह एक बड़ा सार्वजनिक संकेत होगा और "संविधान का काम इस बात पर निर्भर करेगा कि लोग भविष्य में खुद को कैसे संचालित करते हैं। पहली और एकमात्र एससी महिला विधायक दक्षिणायनी वेलायुधन को सम्मानित करते हुए, केरल सरकार ने "दक्षिणायनी वेलायुधन पुरस्कार" की घोषणा की जो राज्य की अन्य महिलाओं को सशक्त बनाने में योगदान देने वाली महिलाओं को दिया जाता है।

अम्मू स्वामीनाथन

अम्मू स्वामीनाथन का जन्म केरल के पालघाट जिले के अनाकारा में हुआ था। साल 1946 में मद्रास निर्वाचन क्षेत्र से यह संविधान सभा का हिस्सा बनी थीं। 24 नवंबर 1949 को संविधान के मसौदे को पारित करने के लिए अम्मू ने एक भाषण में कहा था कि ‘बाहर के लोग कह रहे हैं कि भारत ने अपनी महिलाओं को बराबर अधिकार नहीं दिए हैं। अब हम कह सकते हैं कि जब भारतीय लोग स्वयं अपने संविधान को तैयार करते हैं तो उन्होंने देश के हर दूसरे नागरिक के बराबर महिलाओं को अधिकार दिए हैं। अम्मू कभी स्कूल नहीं गई। उन्हें घर पर ही मलयालम में थोड़ी बहुत शिक्षा ग्रहण करने का मौका मिला। महिलाओं के अधिकारों के पक्ष में उन्होंने हमेशा बात की। महिलाओं को समान कानूनी अधिकार दिलवाने के लिए डॉ. अंबेडकर के अथक प्रयासों के साथ खुद को उन्होंने पूरी ताकत के साथ जोड़ा। संविधान पारित होने के बाद भी वह सार्वजनिक जीवन में सक्रिय रहीं। वह लोकसभा और राज्यसभा की सदस्य बनीं। उन्होंने स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में भी बहुत योगदान किया। वे 1952 में लोकसभा के लिए और 1954 में राज्यसभा के लिए निर्वाचित की गईं। उन्होंने भारत स्काउट्स एंड गाइड (1960-65) और सेंसर बोर्ड की भी अध्यक्षता की।

दुर्गाबाई देशमुख 

दुर्गाबाई का जन्म 15 जुलाई 1909 को राजमुंदरी में हुआ था। बारह वर्ष की उम्र में गैर-सहभागिता आंदोलन (Non Co-operation movement) में भाग लेने वाली दुर्गाबाई देशमुख बाल्य काल से ही समाज सेवा में आगे थीं। दुर्गाबाई केंद्रीय सामाजिक कल्याण बोर्ड, राष्ट्रीय शिक्षा परिषद और राष्ट्रीय समिति पर लड़कियों और महिलाओं की शिक्षा जैसे कई केंद्रीय संगठनों की अध्यक्ष थीं। आंध्र केसरी टी प्रकाशन के साथ उन्होंने मई 1930 में मद्रास शहर में नमक सत्याग्रह आंदोलन में भाग लिया। 1936 में आंध्र महिला सभा की स्थापना की, जो एक दशक के अंदर मद्रास शहर में शिक्षा और सामाजिक कल्याण का एक महान संस्थान बन गया। वह संसद और योजना आयोग की सदस्य भी थीं। 1971 में भारत में साक्षरता के प्रचार में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें चौथे नेहरू साहित्यिक पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 1975 में, उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। 

बेगम एजाज रसूल

एजाज जी मालरकोटला के रियासत परिवार में पैदा हुई थी। वह संविधान सभा की एकमात्र मुस्लिम महिला सदस्य थीं। साल 1950 में, भारत में मुस्लिम लीग भंग होने के बाद वह कांग्रेस में शामिल हो गयी थीं। 1950 में, भारत में मुस्लिम लीग भंग होने के बाद वह कांग्रेस में शामिल हो गयीं। वह 1952-54 में राज्य सभा के लिए चुनी गईं और 1969 से 1989 तक उत्तर प्रदेश विधान सभा की सदस्य रहीं। साथ ही, 1969 से 1971 के बीच, वह सामाजिक कल्याण और अल्पसंख्यक मंत्री भी रहीं। 1937 के चुनावों में, वह उन कुछ महिलाओं में से एक थीं, जिन्होंने एक गैर-आरक्षित सीट से सफलतापूर्वक चुनाव लड़ा और यूपी विधान सभा के लिए चुनी गईं। अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि के बावजूद, वह ज़मींदारी उन्मूलन के लिए अपने मजबूत समर्थन के लिए जानी जाती थीं। 2000 में, सामाजिक कार्यों में उनके योगदान के लिए उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। बेगम एजाज रसूल ने धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षित सीटों की मांग को स्वेच्छा से छोड़ने के लिए मुस्लिम नेतृत्व के बीच आम सहमति बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 

कमला चौधरी

कमला चौधरी का जन्म 22 फरवरी 1908 को लखनऊ के एक समृद्ध परिवार में हुआ था। स्कूली जीवन से ही उनकी साहित्य में गहरी रूचि थी। बचपन से ही वह राष्ट्रवादी विचारों वाली थीं। साल 1930 में गांधी जी द्वारा शुरू की गई सविनय अवज्ञा आंदोलन में उन्होंने सक्रियता से हिस्सा लिया था। सविनय अवज्ञा आंदोलन में सक्रिय कमला चौधरी स्वाधीनता आंदोलन के दौरान कई बार जेल गईं। वह अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की उपाध्यक्ष और लोकसभा के सदस्य के रूप में चुनी गई थीं। कमला चौधरी 1947 से 1952 तक संविधान सभा की सदस्य रहीं। बहमुखी प्रतिभा की धनी कमला चौधरी अपने समय की लोकप्रिय कथा लेखिका थीं। उनकी कहानियां आमतौर पर महिलाओं की आंतरिक दुनिया से संबंधित होती थी। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान ही उनकी कई कहानियां प्रकाशित हुईं। जाति, धर्म, संप्रदाय, वर्ग, प्रेम, घृणा, नैतिकता, आचार व्यवहार उनकी कहानियों के विषय हैं। कमला चौधरी की तरह हंसा जिवराज मेहता, लीला रॉय, मालती चौधरी, पूर्णिमा बनर्जी, राजकुमारी अमृत कौर, रेनुका रे, सरोजिनी नायडू, सुचेता कृपलानी, विजया लक्ष्मी पंडित, एनी मास्कारेन, इन  महिलाओं ने भी संविधान निर्माण में अहम भूमिका निभाई है।