दया की मूर्ति महर्षि दयानन्द सरस्वती

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2022
दया की मूर्ति महर्षि दयानन्द सरस्वती
26 Feb 2022
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Blog Post

हम सब ने बचपन से ही इनका नाम सुना है और इनके बारे में पढ़ा भी है कि महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती आधुनिक भारत के महान चिंतकों को में से एक हैं। वे एक कुशल व्यक्ति होने के साथ-साथ एक समाज-सुधारक, तथा जैसा कि आप सभी जानते हैं कि वे आर्य समाज के संस्थापक थे।

हमारा भारतवर्ष एक ऐसा देश है जिसकी धरती पर सबसे अधिक महापुरुषों great men ने जन्म लिया जिन्होंने समय-समय पर पूरी दुनिया को अपने अध्यात्म और समाज Spirituality and Society भाव से प्रतिपल एक रास्ता दिखाने का कार्य किया है। आप यदि भारतीय महापुरुषों की लिस्ट बनाने बैठ जाएँ तो शायद आपको काफी समय लग सकता है। समय-समय पर अंधेरे में रौशनी का काम भारत के विचारकों ने हमेशा से ही किया है शायद इसलिए आज पूरा विश्व हमें विश्व गुरु Vishwa Guru के रूप में देखता है। आज पूरे विश्व भर में भारतीय अध्यात्म की चर्चा है। परन्तु लोग कहते हैं कि जिस तरह पश्चिमी देश जैसे की अमेरिका America या अन्य देश हमारे भारत के अध्यात्म को अपना रहे ठीक उसके विपरीत हम भारतीय उसी प्राचीन जो कि मानवीय और मान्य सभ्यता है उसको छोड़ पश्चिमी सभ्यता को अपनाते जा रहे हैं और अपनी सांस्कृति विरासतों को भूलते जा रहे हैं। बहुत हद् तक ये बात बिलकुल सही है कि हमें भी दुनिया के हिसाब से चलना चाहिए और कुरीतिओं तथा कुप्रथाओं evils and malpractices का त्याग कर एक बेहतर कल का निर्माण करना चाहिए साथ ही साथ हमारे देश के महापुरुषों द्वारा दिए गए ज्ञान का पालन भी करना चाहिए।  

आज पूरे विश्व को महानतम विचारों को अपनाने की आवश्यकता है इसलिए देश दुनिया में महान विचारकों के विचारों को सुना जाये, पढ़ा जाए उसके लिए हम विचारकों के जन्मदिन और जयंती को मानते हैं, आज हम बात करेंगे दया के नन्द दयानन्द सरस्वती जी के बारे में उसके जन्मदिन के पावन  दिवस पर। हम जानेंगे उनके बारे में और उन से जुडी बातों के बारे में। 

कौन थे महर्षि दयानन्द जी 

हम सब ने बचपन से ही इनका नाम सुना है और इनके बारे में पढ़ा भी है कि महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती आधुनिक भारत के महान चिंतकों को में से एक हैं। वे एक कुशल व्यक्ति होने के साथ-साथ एक समाज-सुधारक, तथा जैसा कि आप सभी जानते हैं कि वे आर्य समाज के संस्थापक थे। उनको बचपन में सभी मूलशंकर के नाम से सम्बोधित करते थे। उनका एक प्रसिद्ध नारा था जो हम सभी ने पढ़ा है वे कहते थे कि वेदों की सत्ता को सदा सर्वोपरि माना जाना चाहिए जिसके चलते उनहोंने बोला कि वेदों की ओर लौटो Back to the Vedas. उन्होंने वेदों के प्रचार और आर्यावर्त को स्वंत्रता दिलाने के लिए मुम्बई में आर्यसमाज की स्थापना की। वे एक संन्यासी तथा एक चिन्तक थे। स्वामी दयानन्द ने वेदों के सूत्र ग्रंथों की विस्तृत व्याख्या की, इसलिए उन्हें लोग 'ऋषि' कह कर भी सम्बोधित करने लगे। क्योंकि 'ऋषयो मन्त्र दृष्टारः' (वेदमन्त्रों के अर्थ को समझाने वाला दृष्टा ऋषि होता है)। सरस्वती जी ने कर्म सिद्धान्त, पुनर्जन्म, ब्रह्मचर्य तथा सन्यास को अपने दर्शन के चार स्तम्भ बनाया। उन्होने ही सबसे पहले 1876 में 'स्वराज्य' 'Swarajya' का नारा दिया जिसे बाद में लोकमान्य तिलक ने आगे बढ़ाया। स्वराज का अर्थ होता है-‘स्वशासन’ या "अपना राज्य" self-governance" or "home-rule । भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन के समय प्रचलित यह शब्द आत्म-निर्णय तथा स्वाधीनता की माँग पर बल देता था। स्वराज शब्द का पहली बार प्रयोग स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati ने किया था। प्रारंभिक राष्ट्रवादियों (उदारवादियों) ने स्वाधीनता को दूरगामी लक्ष्य मानते हुए स्वशासन के स्थान पर अच्छी सरकार के लक्ष्य को वरीयता दी। प्रथम जनगणना के समय स्वामी जी ने आगरा से देश के सभी आर्यसमाजों को यह निर्देश दिया कि 'सब सदस्य अपना धर्म ' सनातन धर्म' लिखवाएं। क्योंकि 'हिंदू' शब्द विदेशियों की देन हैं और 'फारसी भाषा' में इसके अर्थ 'चोर, डाकू' इत्यादि हैं।

व्यक्तिगत जीवन 

स्वामी जी का जन्म 26 फरवरी 1824 को हुआ, वे जाति से एक ब्राह्मण थे। परन्तु सच तो ये है कि कोई जन्म से न तो ब्राह्मण होता है न शूद्र और इन्होंने इस बात को कायम किया अपने कर्मों और ज्ञान के प्रकाश से एक ब्राह्मण की छवि को उज्ज्वलित किया। ब्राह्मण शब्द को अपने कर्मो से परिभाषित किया। उन्होंने कहा कि ब्राह्मण वही होता हैं, जो ज्ञान का उपासक हो और अज्ञानी को ज्ञान देने वाला दानी। उनके पिता का नाम करशनजी लालजी तिवारी और माँ का नाम यशोदाबाई था। उनके पिता एक कर-कलेक्टर होने के साथ ब्राह्मण परिवार के एक अमीर, समृद्ध और प्रभावशाली व्यक्ति थे। दयानन्द सरस्वती का असली नाम मूलशंकर था और उनका प्रारम्भिक जीवन बहुत आराम से बीता। आगे चलकर एक पण्डित बनने के लिए वे संस्कृत, वेद, शास्त्रों व अन्य धार्मिक पुस्तकों के अध्ययन में लग गए। स्वामी जी ने जीवन भर वेदों और उपनिषदों का पाठ किया और संसार के लोगों को उस ज्ञान से लाभान्वित किया। इन्होंने मूर्ति पूजा को व्यर्थ बताया निराकार ओमकार में भगवान का अस्तित्व है, यह कहकर इन्होंने वैदिक धर्म को सर्वश्रेष्ठ बताया। वर्ष 1875 में स्वामी दयानन्द सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना की। 1857 की क्रांति में भी स्वामी जी ने अपना अमूल्य योगदान दिया। अंग्रेजी हुकूमत से जमकर लोहा  लिया और उनके खिलाफ एक षड्यंत्र के चलते 30 अक्टूबर 1883 को उनकी मृत्यु हो गई। 

स्वामी जी के बचपन का प्रसिद्ध किस्सा 

उनके जीवन में ऐसी बहुत सी घटनाएं हुईं हैं जिन्होंने उन्हें हिन्दू धर्म की पारम्परिक मान्यताओं और ईश्वर के बारे में गंभीर प्रश्न पूछने के लिए विवश कर दिया। एक बार शिवरात्रि की घटना है, तब वे बालक ही थे। शिवरात्रि के उस दिन उनका पूरा परिवार रात्रि जागरण के लिए एक मन्दिर में ही रुका हुआ था। सारे परिवार के सो जाने के पश्चात् भी वे जागते रहे कि भगवान शिव आयेंगे और प्रसाद ग्रहण करेंगे। उन्होंने देखा कि शिवजी के लिए रखे भोग को चूहे खा रहे हैं। यह देख कर वे बहुत आश्चर्यचकित हुए और सोचने लगे कि जो ईश्वर स्वयं को चढ़ाये गये प्रसाद की रक्षा नहीं कर सकता वह मानवता की रक्षा क्या करेगा? इस बात पर उन्होंने अपने पिता से बहस की और तर्क दिया कि हमें ऐसे असहाय ईश्वर की उपासना नहीं करनी चाहिए। इसका मतलब ये नहीं की उन्होंने ईश्वर को नकार दिया उनका बस इतना कहना और मानना था कि मूर्ति पूजा करना कहीं से भी अच्छा नहीं है यदि उपासना ही करनी है तो उस परमात्मा की कीजिये जो अमूर्त है जिसका  कोई रूप नहीं वो जो सबको एक बराबर समझता है और दुखों का नाश करता है। 

उनके द्वारा दिए गए गए ज्ञान 

स्वामी दयानंद सरस्वती भारत के एक धार्मिक नेता से अधिक थे उन्होंने अपना प्रभाव भारतीय समाज पर काफी गहरा छोड़ा। उन्होंने आर्य समाज की स्थापना की जो भारतीयों की धार्मिक धारणा में बदलाव लाया।  सबसे पहले उन्होंने मूर्तिपूजा के खिलाफ अपनी राय और खाली कर्मकांड पर व्यर्थ जोर देने के खिलाफ आवाज भी उठाई। उन्होंने भारतीय छात्रों को समकालीन अंग्रेजी शिक्षा के साथ-साथ वेदों के ज्ञान को सिखाने वाले एक अद्यतन पाठ्यक्रम की पेशकश करने के लिए एंग्लो-वैदिक स्कूलों की शुरुआत की। यद्यपि वह वास्तव में सीधे राजनीति में कभी शामिल नहीं थे, लेकिन उनकी राजनीतिक टिप्पणियां भारत के स्वतंत्रता के संघर्ष के दौरान कई राजनीतिक नेताओं के लिए प्रेरणा का स्रोत थीं। उन्हें महर्षि की उपाधि दी गई और उन्हें आधुनिक भारत के निर्माताओं में से एक माना जाता है।

कुछ जगह आपको सरस्वती जी का जन्मदिन 12 फरवरी को भी देखने को मिलेगा और कुछ जगह 26 को इसको लेकर चिंता में न रहे क्योंकि सही तारिख 26 फरवरी ही है।