1857 के गदर ने ही तैयार की थी चौरीचौरा कांड की पृष्ठभूमि

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1857 के गदर ने ही तैयार की थी चौरीचौरा कांड की पृष्ठभूमि
11 Aug 2022
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News Synopsis

पूर्वांचल Purvanchal के प्रमुख शहरों में गोरखपुर Gorakhpur की गिनती की जाती है। यह ऐतिहासिक और धार्मिक Historical and Religious अहमियत वाला शहर रहा है। डॉ. सदािशव राव अल्तेकर Dr. Sadashiv Rao Altekar ने इस शहर के बारे में सही ही कहा था, गोरखपुर जनपद के इतिहास से बहुत कुछ सीखना है। अगर इस शहर की बात की जाए तो सीने में आग और धड़कता दिल वहां के लोगों की पहचान रही है। गोरखपुर की खासियत ये है कि यहां के लोग कभी लंबे समय तक गुलाम नहीं रहे। जब किसी ने गुलाम बनाने की कोशिश की तो उनके सीने की आग धधक उठी और वह बगावत पर उतर आए। 1857 के गदर के पहले बागी मंगल पांडेय भी पूर्वाचल के बलिया के ही रहने वाले थे।

ऐसे में चौरीचौरा Chauri Chaura कांड के पहले 1857 की बगावतों पर सिलसिलेवार एक नजर डालना जरूरी होगा। यही बगावत बाद में चौरीचौरा के घटना की पृष्ठभूमि बनी।  1857 से ही गोरखपुर कई ऐतिहासिक घटनाओं का गवाह रहा है। यहां सतासी, नरहरपुर और बढ़यापुर जैसी रियासतें थीं जिन्होंने ब्रिटिश हुकूमत British Government से लोहा लिया और उनके पराक्रम के कारण उनका नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया। सतासी - देवरिया मुख्यालय Deoria Headquarters से 23 किमी दूर रुद्रपुर और आस-पास के करीब 87 गांव उस समय राजा उदित नारायण सिंह Raja Udit Narayan Singh के अधीन थे। 8 मई 1857 को इन्होंने अपने सैनिकों के साथ गोरखपुर से सरयू नदी के रास्ते आजमगढ़ Azamgarh जा रहे खजाने को लूटकर फिरंगियों के साथ जंग करने की घोषणा कर दी।

साथ ही अपनी सेना के साथ घाघरा के तट पर मोर्चा संभाल लिया। तत्कालीन कलेक्टर डब्ल्यू पीटरसन Collector W Peterson इस सूचना से आग बबूला हो गया। बगावत को कुचलने और राजा की गिरफ्तारी के लिए उसने एक बड़ी फौज रवाना की। इसकी सूचना राजा को पहले ही लग गयी। उन्होंने ऐसी जगह मोर्चेबंदी की जिसकी भनक अंग्रेजों को नहीं लगी। अप्रत्याशित जगह पर जब फिरंगी फौज से उनकी मुठभेड़ हुई तो अंग्रेजी फौज के पांव उखड़ गए। राजा के समर्थक ब्रिटिश नौकाओं British Boats द्वारा भेजे जाने वाली रसद सामग्री पर नजर रखते थे। मौका मिलते ही या तो उसे लूट लेते थे या नदी में डूबो देते थे। सतासी राज को कुचलने के लिए बिहार और नेपाल से सैन्य दस्ते मंगाने पड़े थे।

अगर नरहरपुर की बात करें तो यहां के राजा हरि प्रसाद सिंह Raja Hari Prasad Singh ने 6 जून 1857 को बड़हलगंज चौकी  Barhalganj Chowki पर कब्जा कर वहां बंद 50 कैदियों को मुक्त करा कर बगावत का बिगुल फूंक दिया था। साथ ही घाघरा के घाटों को भी अपने कब्जे में ले लिया।