सादगी की मिसाल- सुधा मूर्ति

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 सादगी की मिसाल- सुधा मूर्ति
12 Jan 2022
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चाहे टीचिंग हो, सोशल वर्क हो, लेखन हो या इंजीनियरिंग हो हर चीज़ को सुधा नारायण मूर्ति ने पूरी लगन और शिद्दत से किया है। सुधा मूर्ति कहती हैं कि उन्होंने सभी भूमिकाओं के साथ न्याय करने का प्रयास किया है। उन्होंने खुद को इस काबिल बनाया कि लोग आज उन्हें आत्मविश्वास और सादगी की मिसाल मानते हैं।

'सादा जीवन उच्च विचार' simple living and high thinking ये कई लोग बोलते हैं लेकिन ऐसे बहुत कम लोग होते हैं जो इस सिद्धांत को सच में अपना पाते हैं। 'सादा जीवन उच्च विचार' को अपनी असल जिंदगी में अपनाने वालीं और आत्मविश्वास की जीती-जागती मिसाल सुधा नारायण मूर्ति Sudha Narayan Murthy का नाम तो आपने ज़रूर सुना होगा।

सुधा मूर्ति एक टीचर, सोशल वर्कर, पॉपुलर राइटर teacher, social worker and popular author और टाटा मोटर्स की पहली महिला इंजीनियर हैं। इसके साथ-साथ वह इंफोसिस Infosys के फाउंडर एन आर नारायणमूर्ति N.r. Narayana Murthy की पत्नी हैं। चाहे टीचिंग हो, सोशल वर्क हो, लेखन हो या इंजीनियरिंग हो हर चीज़ को इन्होंने पूरी लगन और शिद्दत से किया है। सुधा मूर्ति कहती हैं कि उन्होंने सभी भूमिकाओं के साथ न्याय करने का प्रयास किया है।

पर क्या सुधा मूर्ति के जीवन में सब कुछ पहले से ही आसान रहा है? 

नहीं, सुधा मूर्ति जी को भी कई कठिनाइयों का सामान करना पड़ा था लेकिन अपनी मेहनत, लगन, आत्मविश्वास और पॉजिटिव नेचर  की मदद से उन्होंने खुद को इस काबिल बनाया कि लोग आज उन्हें आत्मविश्वास और सादगी की मिसाल मानते हैं। 

जब सुधा मूर्ति जी ने इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला लिया था, उस समय इंजीनियरिंग में महिलाओं की रुचि नहीं हुआ करती थी और यह पूरी तरह से पुरुषों का वर्चस्व था। उन्हें एडमिशन भी इस शर्त पर मिला कि तुम्हें साड़ी पहननी होगी, लड़कों से बात नहीं करनी है और कैंटीन में नहीं जाना है। इतना ही नहीं एडमिशन मिलने के बाद भी उन्हें कॉलेज में कुछ दिक्कतों का सामना करना पड़ा, जैसे कभी उनके ऊपर कोई कागज के एयरोप्लेन फेंक देता था, तो कभी कोई उनकी सीट पर इंक गिरा देता था लेकिन सुधा मूर्ति ने इन सब बातों का प्रभाव खुद पर नहीं पड़ने दिया और उनका कक्षा में पहला स्थान आया। सुधा मूर्ति के लिए यह कोई जश्न मनाने वाली बात नहीं थी क्योंकि उन्हें हमेशा से पता था कि उन्हें क्या करना है। उनके लक्ष्य आम लोगों की तरह सामान नहीं थे और उन्हें खुद के ऊपर कभी डाउट भी नहीं हुआ कि क्या वाकई मैं अपने लक्ष्य को पूरा कर पाऊंगी। सुधा मूर्ति की हमेशा से ही विज्ञान में रुचि थी और यही वजह थी कि उन्होंने उस चीज़ की पढ़ाई की, जो उन्हें सही लगा।

पहले का समय आज की तरह नहीं था और लड़कियों का कॉलेज जाना ही बड़ी बात है। सुधा मूर्ति का इंजीनियर बनने का सफर आसान नहीं था क्योंकि उस समय महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर नहीं चलती थीं। सुधा मूर्ति ने अपने धैर्य के बल पर सब कुछ सहा लेकिन कभी हार नहीं मानी। 

जब सुधा मूर्ति जी ने टेल्को TATA Engineering and Locomotive Company (TELCO) को छोड़ने का निर्णय लिया तो उस समय उनकी मुलाकात जेआरडी टाटा से हुई। जेआरडी टाटा J R D Tata को यह बात थोड़ी अजीब लगी कि जिस नौकरी को पाने के लिए सुधा मूर्ति ने इतनी मेहनत की, वह उसे क्यों छोड़ रही हैं। इस पर सुधा मूर्ति ने बताया कि अब से वह इंफोसिस के लिए काम करेंगी। यह सुनने पर जेआरडी टाटा ने कहा कि कंपनी से मुनाफा कमाने पर उसे लोक कल्याण public welfare में जरूर लगाएं। सुधा मूर्ति बताती हैं कि यह बात वह आज तक नहीं भूली हैं और लोक कल्याण के लिए वह इंफोसिस फाउंडेशन infosys foundation के साथ काम कर रही हैं। इसके साथ-साथ गरीब तबके के लोगों का जीवन अच्छा बनाने के लिए उन्होंने हर संभव प्रयास किए हैं।

सुधा मूर्ति ने हमेशा अपने पति एन आर नारायणमूर्ति का साथ दिया। सुधा मूर्ति का मानना है कि इंफोसिस जैसी कंपनी बनाना एक तपस्या है। इंफोसिस के शुरुआत के दिनों में एन आर नारायणमूर्ति ने घर को ही ऑफिस बना लिया था, उस वक्त फाइनेंशियली मजबूत रहने में लिए सुधा मूर्ति ने Walchand group of Industries नामक कंपनी में काम भी किया था। इतना ही नहीं उन्होंने इंफोसिस में क्लर्क और प्रोग्रामर के साथ-साथ एक कुक की भी भूमिकाएं निभाईं थी।

सुधा मूर्ति का मानना है कि जीवन में हमें बिना किसी अपेक्षा के साथ अच्छा काम करना चाहिए क्योंकि जब हम अपेक्षा करते हैं, तभी दुख होता है। उनका कहना है कि आपसे जीवन में हर तरह के लोग मिलेंगे। कुछ लोग अच्छाई के बदले अच्छाई करेंगे वहीं कुछ लोग इसके विपरित होंगे लेकिन चाहे कोई अच्छा करे या बुरा, हमें किसी से भी प्रभावित नहीं होना चाहिए और अपना काम करते रहना चाहिए।