अटल बिहारी वाजपेयी : जिनका व्यक्तित्व आज भी अटल

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अटल बिहारी वाजपेयी : जिनका व्यक्तित्व आज भी अटल
05 Oct 2021
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दुनिया को छोड़कर सबको ही एक दिन जाना होता है, परन्तु एक महान व्यक्ति अपने पीछे लोगों को हमेशा जोश से चलते रहने और आगे जीवन के लिए संघर्ष करते रहने की प्रेरणा देकर जाता है। उन्हीं महान व्यक्तियों में से एक अटल जी भी अपने कर्मों से देश को हमेशा आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा देकर इस दुनिया को नीरस करके चले गए।   मौत की उम्र क्या है? दो पल भी नहीं, ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं।  मैं जी भर जिया, मैं मन से मरुँ, लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूँ?   अटल बिहारी वाजपेयी आज देश के प्रत्येक व्यक्ति का आदर्श हैं, उनका व्यक्तित्व हमेशा उत्साह से भरा हुआ था, जैसा बनने की कामना हर कोई करता है। 

शख़्सियत! ऐसा शब्द जो मनुष्य को संसार में हमेशा के लिए अमर कर जाता है। कहते हैं व्यक्ति कितनी भी कोशिश कर ले पर उसके अंतर्मन की सच्चाई ही उसके व्यक्तित्व को बाहर प्रदर्शित करने का कार्य करती है। खुद को हम बेहतर दिखाने की कोशिश अवश्य कर सकते हैं, परन्तु किसी भी इंसान के दिल में इज्ज़त केवल अच्छी भावनाओं से ही बन पाती है। क्योंकि तभी व्यक्ति दूसरों से जुड़ पाता है। व्यक्ति को दूसरों से अपेक्षाएं बहुत होती हैं और जो अपने सिद्धांतों पर अडिग रहकर दूसरों की अपेक्षाओं पर खरा उतर पाता है, वहीँ दुनिया में अपनी एक खास जगह बना पाता है। संसार में ऐसे कई शख्स पैदा हुए जिन्होंने अपनी एक ख़ास शख्सियत बनाई, जिनकी छवि की दुनिया आज भी मुरीद है। ऐसे कई लोग इस दुनिया में आये जिन्होंने अपने व्यव्हार से पूरी दुनिया का दिल जीता और केवल जीता ही नहीं बल्कि आज भी उनकी यादों में मौजूद हैं। भारत में ऐसी शख्सियतों की कमी नहीं है। देश में ऐसे कई नगीनों ने जन्म लिया, जिनका जीवन केवल दूसरों की भलाई में ही बीता। ऐसे शख़्सों ने भारत के मूल्य को बढ़ाया है, जिन लोगों ने समाज को सही दिशा देना ही अपने जीवन की सार्थकता समझी। इन्हीं शख्सियतों की एक मिशाल हैं भारत के मशहूर कवी और देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, जो आज भी देशवासियों की याद में अटल हैं।  

"व्यक्ति को सशक्त बनाने का अर्थ है राष्ट्र को सशक्त बनाना। और सशक्तिकरण सबसे तेजी से सामाजिक परिवर्तन के साथ तेजी से आर्थिक विकास के माध्यम से किया जा सकता है।" - अटल बिहारी वाजपेयी  

अटल जी का हिंदी विषय में थी रूचि 

अटल बिहारी वाजपेयी देश के उन चुनिंदा व्यक्तियों में से एक हैं जिनका शायद ही कोई आलोचक होगा। ग्वालियर में 1924 में 25 दिसंबर को जन्म लेने वाले अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने सम्पूर्ण जीवन में हमेशा समाजहित को ही सर्वोपरि माना। इनके पिता कृष्णा बिहारी वाजपेयी अपने पैतृक निवास के एक विद्यालय में अध्यापक थे और इनकी माता कृष्णा देवी एक गृहणी थी। अटल जी की शुरुआती पढ़ाई सरस्वती शिशु मंदिर में हुई उसके बाद इनके पिता का स्थानांतरण दूसरे विद्यालय में हो जाने के कारण इनका दाखिला भी उसी विद्यालय में कराया गया जहाँ पर इनके पिता अध्यापक थे। अटल जी की रूचि शुरू से ही हिंदी में थी, यही कारण था की इन्होंने ग्रेजुएशन हिंदी से पूरा किया। इसके बाद इन्होंने कानपुर में ही दयानन्द एंग्लो विद्यालय से राजनीती शास्त्र में मास्टर्स किया। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि जब अटल जी कानपुर से बाहर लॉ की पढ़ाई के लिए गए तो उनके साथ उनके पिता भी लॉ की पढ़ाई करने गए थे। पिता-पुत्र ने ना केवल एक विद्यालय से पढ़ाई कि बल्कि दोनों हॉस्टल में एक साथ एक कमरे में भी रहे। बाद में हिंदुस्तान-पाकिस्तान के बटवांरे के कारण लॉ की पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी।  

राजनीती में जमाई अपनी धाक 

अटल बिहारी वाजपेयी ने स्वतंत्रता संग्राम के समय में भी भारत की आजादी के लिए सेनानियों के साथ संघर्ष किया। आर्य समाज का हिस्सा रहकर इन्होंने समाज की सेवा करने का मन बनाया। इसके बाद दीनदयाल उपाध्याय के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़कर कई आंदोलनों में भाग लिया। अटल बिहारी वाजपेयी ने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने के कारण पहली बार 24 दिनों तक जेल का साक्षात्कार किया। 1975 में इमरजेंसी के समय भी वाजपेयी कई बार जेल गए। आरएसएस से जुड़े-जुड़े ही इन्होंने राजनैतिक दुनिया में कदम रखा। कई बार लोकसभा चुनाव में हारने के बाद पहली बार ये बलरामपुर से लोकसभा तक पहुँच पाए। अटल बिहारी वाजपेयी हमेशा से लखनऊ से चुनाव लड़ना चाहते थे परन्तु जनता का समर्थन नहीं होने के कारण बलरामपुर से सांसद चुने गए। और यहाँ से उनके राजनैतिक जीवन में बदलाव आया। अटल जी की क्षवि ऐसी थी कि ज्यादा समय तक कोई व्यक्ति अप्रभावित नहीं रह सकता, अंततः वो समय आ गया जब अटल जी लखनऊ वालों का दिल जीत कर वहां से सांसद चुने गए। अटल जी के बोलने के लहज़े से कोई भी अछूता नहीं रह सकता था, लोकसभा में इनके भाषण को सुनकर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहलाल नेहरू ने कहा था कि एक दिन अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री होंगे। उनकी ये भविष्यवाणी सच हुई और आगे चलकर वाजपेयी जी ने तीन बार देश के प्रधानमंत्री का भी पदभार संभाला। 

अपने सफर में अटल जी ने कई ऐसे फैसले लिए जो देशहित में लाभकारी सिद्ध हुए। 

कश्मीर के लाल-चौक पर अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने साथियों के साथ पहली बार तिरंगा फहराया। 

 इनके नेतृत्व में भारत बना नाभिकीय क्षमता का देश  

1994 में नाभिकीय परीक्षण फेल होने के बाद, 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में पोखरण में सफल नाभिकीय परीक्षण किया गया। इसके बाद भारत ने दुनिया में विज्ञान के क्षेत्र में नया कीर्तिमान हासिल किया। इस परिक्षण को पूरी तरह से गुप्त रखा गया था। यह केवल उस वक़्त के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के सहयोग से ही संभव हुआ और हम एक शक्तिशाली देश बन सके। विज्ञान के क्षेत्र में इन्होंने और भी कई महत्वपूर्ण कदम उठाये।    

पाकिस्तान से किया लाहौर समझौता 

हिंदुस्तान-पाकिस्तान दोनों ही नाभिकीय क्षमता वाले देश थे, दोनों देशों के बीच चल रहे मनमुटाव ने 1999 में कारगिल युद्ध का रूप ले लिया। जिसके बाद उस वक़्त पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ और अटल जी के बीच में लाहौर समझौता हुआ, जिसने दोनों देशों में फिर से शांति प्रक्रिया को बहाल करने में अहम भूमिका निभाई। इस समझौते के तहत शिमला समझौते में किये गए वादों को पुनः निभाने की बात कही गयी। लाहौर समझौते के लिए प्रधानमंत्री वाजपेयी पाकिस्तान के लाहौर शहर गए, जिसने दोनों देशों के बीच रिश्ते सामान्य करने की कोशिश में बड़ी पहल की। 

शिक्षा को दिया बढ़ावा 

अटल जी को बच्चों से बहुत लगाव था। बच्चों के भविष्य को सुरक्षित करने और बच्चों को पढ़ने के लिए प्रेरित करने के लिए अपने कार्यकाल में इन्होंने सर्व-शिक्षा अभियान नाम से मुहीम चलाई, जिसके तहत अटल जी ने 6-14 वर्ष के बच्चों के लिए सरकारी विद्यालयों में शिक्षा मुफ्त कर दी। इस मुहीम के लिए उन्होंने 'स्कूल चलें हम' का नारा दिया।  

आर्थिक क्षेत्र में किया सुधार 

अटल जी के कार्यकाल में भारत की आर्थिक स्थिति में भी सुधार हुआ। देश की जीडीपी दर 8 प्रतिशत रही। मुद्रास्फीति दर भी 4 प्रतिशत तक हो गयी। कई प्राकृतिक आपदाओं के आने और कारगिल युद्ध के बावजूद इन्होंने देश की आर्थिक स्थिति में गिरावट नहीं आने दी। इनके द्वारा निजीकरण को बढ़ावा देने से भारत के आर्थिक क्षेत्र में सुधार हुआ।     

कविता लिखने के शौक़ीन 

अटल बिहारी वाजपेयी को बचपन से ही कवितायेँ लिखने में बड़ी रूचि थी। अटल जी जब कक्षा 10 में थे तब से ही अपनी भावनाओं को कविताओं के माध्यम से पन्नों पर उतारते आ रहे हैं। कक्षा 10 में इन्होंने पहली कविता 'हिन्दु तन-मन, हिन्दु जीवन, रग-रग - मेरा परिचय' के नाम से लिखा। हम सब जानते हैं कि कोई भी व्यक्ति एक अच्छा लेखक तभी हो सकता है जब वो एक अच्छा पाठक हो। अटल बिहारी वाजपेयी किताबें पढ़ने के भी शौक़ीन थे। इसके साथ ही मराठी भाषा के अच्छे जानकार होने के कारण इन्होंने वीर सावरकर की कई कविताओं का हिंदी में अनुवाद किया। अपने जीवन काल में उन्होंने कई ऐसी कविताओं को लिखा, जो आज भी लोगों की जुबान पर है। 

यह चन्दन की भूमि है, अभिनन्दन की भूमि है,

यह तर्पण की भूमि है, यह अर्पण की भूमि है। 

इसका कंकर-कंकर शंकर है,

इसका बिंदु-बिंदु गंगाजल है। 

हम जियेंगे तो इसके लिए,

मरेंगे तो इसके लिए।