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आजादी का अमृत महोत्सव: शहीद-ए-आज़म सरदार भगत सिंह

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आजादी का अमृत महोत्सव: शहीद-ए-आज़म सरदार भगत सिंह
01 Aug 2022
8 min read

News Synopsis

हमारे देश भारत को बड़े ही संघर्ष के बाद 15 अगस्त 1947 को आजादी मिली थी। देश को यह आजादी इतनी आसानी से नहीं मिली थी। असंख्य देशप्रेमियों के बलिदान के बाद हमें आजादी नसीब हुई थी। अतः यह आजादी सभी देशवासियों के लिए बहुमूल्य है। इसी बहुमूल्य आजादी के वर्षों के जश्न का नाम है “आजादी का अमृत महोत्सव Azadi Ka Amrit Mahotsav देशभर में यह जश्न एक उत्सव की भांति मनाया जा रहा है। आगामी 15 अगस्त 2022 को आजादी का 75वां वर्ष पूर्ण हो जाएगा।

आजादी का अमृत महोत्सव मनाने का उद्देश्य लोगों को स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान और त्याग के बारे में जानकारी देना है। इसी दिशा में हम भी आपको भारत को आज़ादी दिलाने वाले वीर सेनानियों की वीरगाथा से रूबरू करायेंगें। आज हम जिसके बारे में बात करेंगें उनका नाम सरदार भगत सिंह Sardar Bhagat Singh है। भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को लायलपुर के बंगा में (जो अब पाकिस्तान में है) हुआ था। ग़ुलाम हिंदुस्तान में पैदा हुए भगत सिंह ने बचपन से ही मुल्क को अंग्रेज़ी हुकूमत से आज़ाद कराने का सपना देखा था। कम उम्र में ही इस आज़ादी के लिए जद्दोजहद किया और एक दिन ऐसा भी आया के अंग्रेज़ी हुकूमत की बुनियाद को हिलाकर रख दिया और ख़ुद हँसते-हँसते फांसी का फंदा चूम लिया। भगत सिंह ने शहादत ज़रूर क़ुबूल कर ली लेकिन अपने जज्बे की वजह से वह हर नौजवान के हीरो बन गए।

अक्टूबर 1928 में लाहौर में साइमन कमीशन Simon Commission के खिलाफ मार्च का नेतृत्व करते हुए लाला लाजपत राय Lala Lajpat Rai गंभीर रूप से घायल हो गए थे। उनपर अंग्रेजों ने लाठीचार्ज किया था। कुछ दिनों बाद राय का निधन हो गया था। इस घटना ने देश को दुख और गुस्से में डुबो दिया था। भगत सिंह और उनके युवा साथियों ने लाला लाजपत राय की मौत के बाद हथियार उठा लिया। उन्होंने अपने हीरो की मौत का बदला लेने का संकल्प लिया। 17 दिसंबर 1928 को सिंह और अन्य ने लाहौर में पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स John Saunders की गोली मारकर हत्या कर दी और साइकिल से भाग निकले। 

चार महीने बाद भगत सिंह और उनके साथियों ने फिर से हमला किया। भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त Bhagat Singh and Batukeshwar Dutt ने दिल्ली विधानसभा Delhi Assembly के अंदर बम फेंके। इसके बाद भागने की कोशिश किए बिना दोनों ने पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। उनपर सैंडर्स की हत्या के मामले में भी केस चला। 24 आरोपियों में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव Rajguru and Sukhdev को मौत की सजा सुनाई गई थी। इसने देश को हिलाकर रख दिया। इसके परिणाम स्वरुप पूरे देश में क्रांति की एक नई बहार चली और देश का बच्चा- बच्चा देश के लिए अपनी कुर्बानी देने के लिए उठ खड़ा हो गया। आज़ादी के अमृत महोत्सव में हम उन्हें याद करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।