जब फाल्गुन माह आता है तो वैसे ही मन में होलिकोत्सव के आने की तरंगें उमड़ने लगी है, होली का आना यानी ग्रीष्म ऋतु के आने की सूचना, दूसरे शहरों में बसे घर के लोगों, दोस्तों, रिश्तेदारों के घर आने या आपसे फिर से मिलने आने की सूचना। गुझिया, मठरी, पकवानों की खुशबू से घर आँगन के महकने की सूचना और सबसे अधिक हर्षोल्लास की सूचना।
होली भारत का सबसे रंगीन उत्सव है। यह एक ऐसा त्यौहार है जिसमें शानदार रंगों की एक शानदार सरणी और बहुत सारे उत्सव हैं जो उत्सव के दिन को जीवंत करते हैं। होली एक रंगीन त्योहार है जो शैतान पर भगवान की जीत का जश्न मनाता है और हम सभी को अच्छाई की शक्ति की याद दिलाता है।
क्या होली केवल एक रंगोत्सव है? क्या होली केवल एक दिन के त्योहार तक ही सीमित है? आइए आज होली को थोड़ा और समझ लें।
होली या होलिकोत्सव Holika Utsav के विषय में जब भी बात हो तो मन भर आता है और रंगों की अनोखी छटा नैनो को सराबोर कर देती है। झूमकर रंगों से सराबोर होने का वो दृश्य मन को प्रसन्नता से सराबोर कर देता है। एक और विचार भी मन में आता है कि हमारा साल भर का इंतज़ार ख़त्म होने को है, होली बस आ ही गईं है , किन्तु ..
-क्या होली केवल एक रंगोत्सव festival of colors है?
-क्या होली केवल एक दिन के त्योहार तक ही सीमित है?
आरंभ होली के आरंभ से ही करतें हैं- जब फाल्गुन माह आता है तो वैसे ही मन में होलिकोत्सव के आने की तरंगें उमड़ने लगी है, होली का आना यानी ग्रीष्म ऋतु के आने की सूचना, दूसरे शहरों में बसे घर के लोगों, दोस्तों, रिश्तेदारों के घर आने या आपसे फिर से मिलने आने की सूचना। गुझिया, मठरी, पकवानों की खुशबू से घर आँगन के महकने की सूचना और सबसे अधिक हर्षोल्लास की सूचना।
वैसे तो हम नया वर्ष 1 जनवरी को मनातें हैं किन्तु भारतीय हिन्दू नववर्ष फाल्गुन माह में होली के आगमन से ही होता है।
(i). होली के और नाम भी है, जैसे-फगुआ, धुलेड़ी, दोल। शाहजहां के दौर में होली को 'ईद-ए-गुलाबी' या 'आब-ए-पाशी' 'Eid-e-Gulabi' or 'Aab-e-Pashi' (रंगों की बौछार) कहा जाता था।
(ii). चूँकि बादशाह अकबर के दरबार में काफी अच्छे हिन्दू संबंध थे और स्वयं उनकी हिन्दू राजपूत रानी भी थी, इसलिए उनके दरबार में, साम्राज्य में हिन्दू त्योहार भी बड़े जोर-शोर से मनाए जाते थे, उन्ही त्योहारों में से एक था- ‘’होली ’’
अलबरूनी Alberuni ने भी अपने ऐतिहासिक यात्रा संस्मरण में होलिकोत्सव का वर्णन किया है।
शास्त्रीय संगीत में हर मौसम, माह, अवसरों, व्यक्ति के लिए गीत बनाए गए हैं, तो फाल्गुन माह यानि होली के गीत अछूते कैसे रहते? राजस्थान के अजमेर शहर में ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती Khwaja Moinuddin Chishti की दरगाह पर गाई जाने वाली होली के गानों का रंग ही अलग है। भारत के हर शहर, कस्बे, स्थान पर होली का अलग ही रंग देखने को मिलता है।
यही कारण है कि वृंदावन, मथुरा, बरसाना, गोकुल,Vrindavan, Mathura, Barsana, Gokul जहाँ भी राधाकृष्ण के प्रेम की छटा अधिक बिखरी है, उनसब जगहों पर होली खेलने और मनाने का एक अलग ही आनंद है- फूलों की होली, कीचड़ की होली, पानी की होली, लठमार होली। नाम एक है ‘’होली’’ किन्तु इसे यहाँ बड़े जोर शोर से मनाया जाता है। इस समय यहाँ के क्षेत्रों में- लड़कियों में राधा-रानी, गोपिकाऐं और लड़कों में कृष्ण और ग्वालबालकों की छवि देखी जाती है।
भगवान शिव और उनके गणों की होली मानकर मनाई और खेली जाती है। होली में रंग लगाकर, नाच-गाकर लोग शिव के गणों का वेश धारण होता है।
फिल्मों में भी आम ज़िंदगी को ही जिया जाता है और आम जीवन के ही उत्सव मनाए जाते हैं। रंग बरसे भीगे चुनर वाली, यह गीत भला किसे नहीं याद होगा, होली खेले रघुबीरा, यह गीत बताता है कि अयोध्या के राज्य राम भी होली खेलते थे।
होली में खुशी से झूमने का जो आनंद होता है, उसकी छटा ही अलग होती है, ठंडाई का जोश, पकवानों की मिठास, और रंगों की बरसात, शरीर के साथ साथ मन को भी प्रफुल्लित कर देती है।
अब आते है आरंभ के आरंभ पर यानी सबसे अधिक प्रचलित होलीका की कथा पर, जिसके कारण होली से एक दिन पहले होलिकादहन किया जाता है-
सबसे ज्यादा मान्यता भक्त प्रहलाद Bhakta Prahlad की कहानी की है जिनके पिता हिरण्यकश्यप नाम के एक असुर राजा थे जो स्वयं को भगवान मानने लगे थे और जो कोई उनका विरोध करता था तो उसपर अत्याचार करते थे लेकिन जब उनके बेटे प्रहलाद का मन शान्ति, अहिंसा और केवल भगवान नारायण की भक्ति में लगता था। हिरण्यकश्यप यह कैसे सहन करता कि पिता यहाँ सभी देवी-देवताओं का विरोध कर रहा है और पुत्र नारायण की भक्ति कर रहा है।
समझाया, डराया किन्तु प्रहलाद नहीं माना तो उन्होंने अपनी बहन होलिका से कहा कि वो इसे आग में लेकर बैठ जाये क्योंकि होलिका को वरदान था कि उसे अग्नि जला नहीं सकती लेकिन हुआ इससे उलट, वो जल गई और अग्नि में अपनी बुआ की गोद में बैठ, नारायण का स्मरण करता हुआ प्रहलाद बच गया तब से यह दिन बुराई पर अच्छाई की जीत, असत्य पर सत्य की जीत और होलिका-दहन Holika Dahan के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
मानवों को यह सिखा गया कि बुराई कितनी भी बड़ी हो अच्छाई को नुकसान नहीं पहुंचा सकती और तब से इस दिन होलीका के लिए अग्नि जलई जाती है और उसे माना जाता है आपके अंदर की सभी बुरी यादों और बुराइयों को आप इस होलीका में दहन करके अगले होली के दिन से अपने जीवन की शुरुआत एक नई सकारात्मक ऊर्जा के साथ करिये।
हालांकि, यह देखना उत्साहजनक है कि लोग होली प्रदूषण के नकारात्मक प्रभावों के बारे में अधिक जागरूक हो रहे हैं और इस रंगीन उत्सव को मनाने के अधिक प्राकृतिक तरीकों पर लौटने का प्रयास कर रहे हैं। उत्सव हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।
हालाँकि, जब हम उत्सव में शामिल होते हैं, तो हमें अपने आसपास के वातावरण के महत्व को याद रखना चाहिए। हमें इसका ध्यान रखना चाहिए। तो, इस वर्ष, आइए हम पर्यावरण की दृष्टि से स्थायी तरीके से होली का आनंद लें। होली उसी तरह मनाई जाएगी जैसे हम अभी मनाते हैं लेकिन पर्यावरण की दृष्टि से अधिक जिम्मेदार तरीके से।
होली एक ऐसा त्योहार है जो वसंत के आगमन का जश्न मनाता है, और कुछ स्थानों पर लोग मौसम का स्वागत करने के लिए फूलों के गहने और पारंपरिक कपड़े पहनते हैं। यदि आप अपने समाज में या घर पर होली का उत्सव आयोजित कर सकते हैं, तो जहरीले और केमिकल युक्त रंगों का उपयोग करने के बजाय फूलों का उपयोग करना एक अच्छा विचार है।
जब फूलों को त्याग दिया जाता है, तो उन्हें बस निपटाया जाता है और पुन: उपयोग किया जाता है। केमिकल युक्त रंग त्वचा और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं और प्रदूषण में योगदान करते हैं। यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि यदि आप फूलों के साथ खेलने जा रहे हैं, तो आपको फूलों के सही निपटान की योजना बनानी होगी। उत्तर भारत के कई स्थानों जैसे लखनऊ और पुष्कर में लोग इस प्रकार के उत्सव में भाग लेते हैं।
होली का ऐसा मौका होता है जहाँ यही कहा जाता है
- बुरा न मानो होली है
- दिल बड़ा रखो
- आज तो दुश्मन भी द्वार पर आए तो गले लागाओ
इन सभी बातों से पता चलता है कि होली हर्ष का, आगे बढ़ने का, सकरात्मकता का प्रतीक है तो खुले दिल से मनाइए होली और मेरी तरफ से आप सभी होली की ढेरों शुभकामनाएं । Happy Holi ....