सबसे पहले यह समझना आवश्यक है कि यह वह व्यक्तित्व हैं जिसने विश्व को यह बताया कि एक सफल पुरुष के पीछे एक महिला का हाथ होता था। यदि आप ध्यान से इनके जीवन की यात्रा और व्यक्तित्व से रूबरू होना चाहतें हैं तो पहले यह समझिये कि कैसे आप अपने सपने को साकार करने के लिए सालों साल संघर्ष करते रहे, प्रतीक्षा करते रहे पर लगातार उस लक्ष्य के लिए प्रयासरत रहना उन्होंने कभी भी नहीं छोड़ा, और आने वाली पीढ़ी को प्रेरित किया कि स्वप्न देखते हो तो उसे पूरा करने का सामर्थ्य भी लाओ।
प्रसिद्ध सॉफ़्टवेयर कंपनी infosys technologies के संस्थापक और जानेमाने उद्योगपति, एक बेहद सफल businessman - ये सभी कुछ तो हमने नारायण मूर्ति के विषय में सुना है लेकिन यदि आज नारायण मूर्ति की बात करें तो सबसे पहले यह समझना आवश्यक है कि यह वो व्यक्तित्व हैं जिसने विश्व को यह बताया कि एक सफल पुरुष के पीछे एक महिला का हाथ हो सकता है। यदि आप ध्यान से इनके जीवन की यात्रा और व्यक्तित्व से रूबरू होना चाहतें हैं तो पहले यह समझिये कि कैसे आप अपने इस सपने को साकार करने के लिए सालों साल संघर्ष करते रहे, प्रतीक्षा करते रहे पर लगातार उस लक्ष्य के लिए प्रयासरत रहना उन्होंने कभी भी नहीं छोड़ा, शायद यही कारण है कि आज infosys company जिसका इतना बड़ा नाम और रुतबा है कभी यह एक साधारण से व्यक्ति का असाधारण स्वप्न था, जो उसने अपने दोस्तों को साथ जोड़कर शुरू किया था।
Infosys की कहानी
नारायण मूर्ति की कहानी अधूरी रहेगी अगर हमने इनके सपने यानी Infosys की कहानी आपके साथ नहीं बाँटी। 1981 में startup शब्द का नाम भी नहीं सुना होगा लेकिन इस समय नारायण मूर्ति अपने इस startup के विषय में ना ही सिर्फ सोच चुके थे बल्कि अपने हिस्से के प्रयास, अपने हिस्से का संघर्ष भी शुरू कर चुके थे। Infosys की स्थापना 2 जुलाई, 1981 को पुणे में एन आर नारायण मूर्ति के द्वारा की गई। इनके साथ और छह अन्य लोग थे: नंदन निलेकानी, एनएसराघवन, क्रिस गोपालकृष्णन, एस डी.शिबुलाल, के दिनेश और अशोक अरोड़ा, राघवन के साथ आधिकारिक तौर पर कंपनी के पहले कर्मचारी मूर्ति ने अपनी पत्नी सुधा मूर्ति (Sudha Murthy) से 10,000 उधार लेकर कम्पनी की शुरुआत की। अगर आपको लगता है कि नारायण मूर्ति infosys के पहले कर्मचारी थे तो ऐसा नहीं है, पहले कर्मचारी N S राघवन थे। कम्पनी की शुरुआत उत्तर मध्य मुंबई में माटुंगा में राघवन के घर में infosys consultancy private limited के रूप में हुई जो एक पंजीकृत कार्यालय था। ये सभी दोस्त आपस में infosys के co-founder थे। शुरुआत काफी संघर्षपूर्ण थी। धन की कमी के कारण इस कम्पनी को स्थापित करने में समस्याएँ थी। 1983 तक तो इस बहुराष्ट्रीय सूचना प्रौद्योगिकी सेवा कंपनी ( multinational information technology services company) में एक computer तक की उपलब्धता नहीं थी, यदि आप 80 के दशक के अनुसार सोचें तो तकनीकी व्यवस्थाएँ या तो अत्यधिक महँगी थी या विदेशों में उपलब्ध थी या फिर एक आम आदमी का इस विषय में सोचना बहुत ही असम्भव सा लगता था।
नारायण मूर्ति ने अपने एक interview में कहा था - ‘’हम सभी दोस्तों ने शुरुआत तो कर ली थी पर इसके बाद सभी दोस्त कहीं बाहरी देशों के रोज़गार के लिए जा चुके थे, मैं यहीं भारत में रुका ताकि जो हमने जो सोचा हैं उसके लिए प्रयासरत रहूँ’’ इस प्रयास में bank के चक्कर काटना, धन की व्यवस्था, आर्थिक तरक्की के प्रयास, यह सभी कुछ शामिल था।
यहाँ तक कि अपनी पसंद के कम्प्यूटर के महत्वपूर्ण विकल्पों को भी नारायण मूर्ति अफोर्ड नहीं कर पा रहे थे। पर कहतें हैं ईश्वर भी उन्ही की सहायता करता है जो स्वयं अपनी सहायता करता है। आखिरकार इसके दो वर्ष बाद यह computer खरीदने में सफल हो पाए, यानी Data General 32-bit MV8000.
1981 से लेकर सन 2002 तक श्री मूर्ती इनफ़ोसिस के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) रहे और अपने नेतृत्व में उन्होंने एक छोटी सी सॉफ्टवेयर कंपनी को दुनिया के बड़ी कंपनियों के समकक्ष खड़ा कर दिया।1999 में वह स्वर्णिम अवसर आया जब इन्फ़ोसिस ने इतिहास रचा, जब कम्पनी के शेयर अमरीकी शेयर बाज़ार NASDAQ ( National Association of Securities Dealers Automated Quotations) में रजिस्टर हुए। infosys ऐसा कर दिखाने वाली पहली भारतीय कम्पनी थी। नारायणमूर्ति 1981 से लेकर 2002 तक कम्पनी के मुख्य कार्यकारी निदेशक रहे। 2002 में उन्होंने कमान अपने साथी नन्दन नीलेकनी Nandan Nilekani को थमा दी, लेकिन फिर भी इन्फ़ोसिस कम्पनी के साथ वे मार्गदर्शक के दौर पर जुड़े रहे। नारायणमूर्ति 1992 से 1994 तक NASSCOM (National Association of Software and Service Companies) के भी अध्यक्ष रहे।
1989 में एक बार infosys को मंदी का दौर भी देखना पड़ा था पर नारायणमूर्ति का फिर भी यही फैसला था वह अपने स्वप्न के साथ खड़े रहेंगे और उनके मित्रों ने उनकी इस बात को समझा। आज यह भारत की सबसे बड़ी आईटी कंपनियों में से एक है जिसके पास 30 जून 2008 को (सहायकों सहित) 94,379 से अधिक पेशेवर थे। इसके भारत में 9 विकास केन्द्र हैं और दुनिया भर में 30 से अधिक कार्यालय हैं। वित्तीय वर्ष 2007-2008 के लिए इसका वार्षिक राजस्व US$4 बिलियन से अधिक थी और उस समय इसकी बाजार पूंजी US$30 बिलियन से अधिक थी।1996 में, इन्फोसिस ने कर्नाटक (बंगलुरु ) राज्य में इन्फोसिस संस्थान बनाया. जो स्वास्थ्य रक्षा (health care), सामाजिक पुनर्वास और ग्रामीण उत्थान, शिक्षा, कला और संस्कृति के क्षेत्रों में कार्य कर रहा है।
नारायण मूर्ति , एक साधारण व्यक्तित्व और प्रतिभावान मस्तिष्क
मैसूर के एक साधारण से मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मे, सरकारी विद्यालयों में पढ़े। मैसूर विश्वविद्यालय से Bachelor of engineer की degree ली और IIT कानपुर से Master of technology में परास्नातक किया।अपने कार्यजीवन का आरंभ नारायणमूर्ति ने पाटनी कम्प्यूटर सिस्टम्स (PCS), पुणे से किया। बाद में अपने दोस्त शशिकांत शर्मा और प्रोफेसर कृष्णय्या के साथ 1984 में पुणे में system research institute की स्थापना की थी। 1989 में नारायणमूर्ति ने infosys कम्पनी की स्थापना की। जो कुछ भी उन्होंने अपने जीवन में प्राप्त किया -संघर्ष से, कड़ी मेहनत से और सबसे अधिक आत्मवश्वास से प्राप्त किया।आत्मविश्वास ही वह कड़ी है जिससे उन्होंने अपने लक्ष्य के लिए बहुत सब्र और हिम्मत दिखाई। बचपन से ही प्रतिभावान मस्तिष्क के धनी नारायण मूर्ति विद्यालय और college जीवन में भी अपने calculations की दुनिया में प्रसन्न रहते थे और इसी प्रतिभा ने उनकी हिम्मत और आत्मविश्वास को बनाए रखा। अच्छा-बुरा हर वक़्त जो भी आया पर उनके इस स्वप्न पर दृढ़विश्वास ने ही नारायण मूर्ति को विश्व में पहचान दी।
जीवनसंगिनी का साथ -सुधा मूर्ति -
नारायण मूर्ति के जीवन की के विषय में कोई भी बात तब तक पूरी नहीं होती जब तक उनकी सफलता के लिए उनकी सबसे बड़ी शक्ति बनकर उभरी उनकी पत्नी और बेहद प्रतिभावान महिला-सुधा मूर्ति। एक बेहद प्रतिभाशाली लेखिका, उन्ही की तरह बुद्धिजीवी मस्तिष्क की धनी हैं। यही वह व्यक्ति थी जिन्होंने उनकी प्रतिभा का भरोसा किया, सम्मान किया। जब इन दोनो का विवाह हुआ तो सुधा मूर्ति आर्थिक रूप और शैक्षिक रूप से सुदृढ़ थी। घर की, जीवन की बाँगडोर को सुधामूर्ति ने ही सम्हाला और नारायण मूर्ति को अपने स्वप्न को साकार करने को प्रेरित किया। नारायण मूर्ति और सुधा मूर्ति का यह मधुर सम्बन्ध ही था जिसने नारायण मूर्ति को अपने इस स्वप्न को संघर्ष की दिशा में प्रयासरत रहने की हिम्मत दी। सुधा मूर्ति ने हमेशा अपने interviews में कहा है कि - ''हम दोनो एक दूसरे को कभी नियंत्रित करने का प्रयास नहीं करते बल्कि एक दूसरे का सम्मान करतें हैं''। सुधा मूर्ति के हर कथन में यही बात झलकती है कि अपने पति के सपनों और प्रतिभा को पहचानकर उन्होंने विश्वास रखा और मुस्कुराकर उनका पूरा साथ दिया।
पुरस्कार
नारायण मूर्ति को पद्मभूषण, श्री पद्म विभूषण और Officer of the Legion of Honor -फ्राँस सरकार के सम्मानों से अलंकृत किया जा चुका है। इनके हिस्से में तो इतने पुरस्कार हैं जिनकी गिनती भी कम होगी - Ernst young world entrepreneur of the year, honorary commander of the order of the British Empire, sayaji ratna award, philanthropist of the year आदि। इनमें से कुछ पुरस्कार तो विश्व के अलग-अलग देशों से है ।
इन्होंने पुस्तक भी लिखी है -A better India: A Better world
नारायण मूर्ति का व्यक्तित्व ही ऐसा है कि आज भी वह बेहद साधारण जीवन जीना पसंद करतें हैं । नारायण और सुधा मूर्ति दोनो ही एक दूसरे की शक्ति भी है और प्रेरणा भी, शायद उनकी यही सादगी है हर किस को भा जाती है। उनकी आँखों ने जो उज्ज्वल स्वप्न देखा वह स्वप्न पूरा करके दिखाया और आने वाली पीढ़ी को प्रेरित किया कि स्वप्न देखते हो तो उसे पूरा करने का सामर्थ्य भी लाओ।