1991 के आर्थिक सुधारों के बाद से ही यह बात बार-बार कही जाती रही है कि सरकार का काम व्यापार करना नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल में ही यह बात ज़ोर देकर दोहराई है। व्यापार करना सरकार का काम नहीं है इसलिए अर्थव्यवस्था का पूरी तरह से सरकार के नियंत्रण मे रहना ठीक नहीं है। वर्तमान समय में लोग सरकारी संस्थानों की अपेक्षा निजी संस्थानों को अधिक महत्व देते है, क्योंकि प्राइवेट सेक्टर में कार्यों को प्राथमिकता दी जाती है। निजीकरण Privatization एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके द्वारा सार्वजानिक क्षेत्र को किसी निजी कम्पनी के हाथों में सौप दिया जाता है। यानि इसमें संस्था का स्वामित्व सरकार के हाथों से निकल कर निजी व्यक्तियों या समूहों के हाथ में चला जाता है। निजीकरण में सरकारी कंपनियां 2 तरीकों से निजी कंपनियों में तब्दील हो जाती हैं- एक विनिवेश (Disinvestment) और दूसरा (Transfer of Ownership) स्वामित्व का हस्तांतरण। इस आर्टिकल में निजीकरण क्या होता है, इसके उद्देश्य, इसके फायदे और नुकसान के बारें में विस्तार से पूरी जानकारी दी गयी है।
आजकल निजीकरण Privatization शब्द का शोर काफी सुनायी दे रहा है। क्योंकि सरकार द्वारा नियंत्रित अधिकतर कंपनियां निजीकरण की राह पर हैं। सरकार सभी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर निजीकरण यानी सरकारी कंपनियों को बेचने पर जोर दे रही है। निजीकरण, यह एक ऐसा विषय है जिसके बारे में पिछले कुछ सालों में देश में काफी बहस हो रही है और सबसे ज्यादा विवाद रेलवे और बैंकों के निजीकरण को लेकर रहा है। वैसे निजीकरण को लेकर लोगों के अपने-अपने तर्क हैं। कोई इसे सही बता रहा है तो कोई इसे गलत। नयी आर्थिक नीति के तहत साल 1991 मे भारतीय अर्थव्यवस्था Indian Economy में कई महत्वपूर्ण सुधार किये गए थे। भारतीय अर्थव्यवस्था को देश और विदेश के निजी क्षेत्र के व्यापारियों के लिए खोल दिया गया था। किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए निजीकरण महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे बाजार में एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा healthy competition बनती है और रोजगार पैदा होता है। यह व्यवस्था, ग्राहक सेवाओं और वस्तुओं के मानक में सुधार करके लाभ को अधिकतम करने के लिए काम करता है। चलिए आज इस आर्टिकल में विस्तार से जानते हैं कि निजीकरण क्या है और क्या अर्थव्यवस्था के लिए निजीकरण जरुरी है ?
निजीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमे क्षेत्र या उद्योग को सार्वजनिक क्षेत्र से निजी क्षेत्र में स्थानांतरित Shifting from Public Sector to Private Sector किया जाता है। यानि निजीकरण एक ऐसी आर्थिक प्रक्रिया है जिसके तहत सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम, औद्योगिक संस्थान और इकाइयों को निजी क्षेत्र मे स्थानांतरित किया जाता है। यहाँ पर स्थानांतरित करने का अर्थ है कि स्वामित्व सरकार के हाथों से निकल कर निजी व्यक्तियों या समूहों के हाथ मे आ जाता है। निजीकरण से आशय ऐसी औद्योगिक इकाइयों को निजी क्षेत्र में हस्तांतरित किये जाने से है जो अभी तक सरकारी स्वामित्व एवं नियंत्रण government ownership and control में थी।
निजीकरण के समर्थकों का कहना है कि निजी क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा अधिक कुशल प्रथाओं को बढ़ावा देती है, जो अंततः बेहतर सेवा और उत्पाद, कम कीमत और कम भ्रष्टाचार उत्पन्न करती है। निजी शब्द का अर्थ होता है व्यक्तिगत अर्थात जो सार्वजनिक परिधि से बाहर हो। निजी क्षेत्र मे ऐसी इकाइयां, संस्थान या उद्योग आते हैं जिनमे मालिकाना हक़ किसी एक व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह का होता है। हम कह सकते हैं कि ऐसी इकाइयां, संस्थान या उद्योग जो सार्वजनिक नियंत्रण के बाहर आते हैं उन्हें निजी क्षेत्र कहा जाता है।
किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए निजीकरण काफी महत्वपूर्ण है। क्योंकि इससे बाजार में एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा के साथ साथ रोजगार भी पैदा होता है। यह व्यवस्था, ग्राहक सेवाओं और वस्तुओं के मानक में सुधार करके लाभ को अधिकतम करने के लिए काम करता है। जिस अर्थ में निजीकरण का प्रयोग किया जाता है, वह विश्वभर में विनिवेश की प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में शेयरों को राष्ट्र स्वामित्व वाली कंपनियों से निजी क्षेत्र को बेचना सम्मिलित है।
भारत प्राइवेट और सार्वजनिक क्षेत्र दोनों के साथ एक मिश्रित अर्थव्यवस्था mixed economy है लेकिन सार्वजनिक क्षेत्र 1991 तक अप्रभावी तरीके से अक्षमता से प्रभावित था। भारत में निजीकरण की शुरुआत साल 1991 में हुई थी। उस समय देश आर्थिक संकट Economic Crisis से गुजर रहा था। इसलिए तब भारत में निजीकरण की शुरुआत तत्कालीन वित्त मंत्री डॉ मनमोहन सिंह Finance Minister Dr Manmohan Singh ने 1991 में एक बड़े आर्थिक संकट के दौरान की थी और सरकार ने घाटे में चल रही कम्पनियों को निजी क्षेत्रो को बेचने का फैसला किया। ऐसे कठिन समय मे अंतरष्ट्रीय फंडिंग एजेंसियों International Funding Agencies ने सरकार को आर्थिक उदारीकरण Economic Liberalization की तरफ मुड़ने पर विवश किया। इस तरह साल 1991 में नई आर्थिक नीति New Economic policy के अंतर्गत देश मे निजीकरण Privatization की प्रक्रिया शुरू हुई. उसके बाद से यह प्रक्रिया जारी रही और निजीकरण की यह प्रक्रिया बाद की सरकारों ने भी जारी रखी। 1991 की नई औद्योगिक नीति में सार्वजनिक क्षेत्र के लिए कई सुधार उपाय शामिल थे। उनमें से कुछ घाटे में चल रही कंपनी को निजी क्षेत्र में बेचना था और निजी भागीदारी के लिए बढ़ावा दिया गया। 1991 से लेकर अब तक विभिन्न क्षेत्रो में समय-समय पर कई बार प्राइवेटाइजेशन किया गया है। वर्ष 1997 में सरकार नें सार्वजनिक क्षेत्र की 11 कंपनियां जो लाभ की स्थिति में थी, उन्हें नवरत्न का दर्जा दिया इसके साथ ही सार्वजनिक क्षेत्र के इन उपक्रमों को पर्याप्त स्वायत्तता भी प्रदान की गयी ताकि वह अन्तरराष्ट्रीय स्तर International Level पर अपनी पहचान बना सके। इसमें उपक्रम एमटीएनएल, वीएसएनएल, आईओसी, एचएएल, बीपीसीएल, सेल और गेल MTNL, VSNL, IOC, HAL, BPCL, SAIL and GAIL आदि थे। अब तो सरकार सभी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर निजीकरण यानी सरकारी कंपनियों को बेचने का काम ज़ोर-शोर से करने जा रही है।
सार्वजनिक क्षेत्रों का निजीकरण क्यों ज़रूरी है? क्यों सरकार को सार्वजनिक क्षेत्रों को निजी हाथों में सौंपने की ज़रूरत पड़ी? यह कई ऐसे सवाल हैं जो हर किसी के जेहन में जरूर आते हैं। आखिर ऐसे कौन से कारण थे जिनके कारण सरकार को आर्थिक नीति के तहत निजीकरण की शुरुआत करनी पड़ी। दरअसल इसका मुख्य कारण आज़ादी के बाद देश की बिगड़ी हुई अर्थव्यवस्था को सुधारना improve the country's deteriorating economy था और देश की प्रतिव्यक्ति आय व राष्ट्रीय आय को बढ़ाना था। जिससे बेरोजगारी को कम किया जा सके, लोगों का जीवन स्तर सुधारने का प्रयास किया जा सके इसके अलावा सबसे बड़ी बात देश का विकास development of the country हो सके। उस समय देश की अर्थव्यवस्था को चलाने के लिए निजीकरण का कदम उठाना पड़ा और इन तमाम बातों के कारण ही निजीकरण की ज़रूरत महसूस हुई।
दरअसल जब देश साल 1990 मे देश आर्थिक बदहाली के दौर से गुजर रहा था। उस वक्त देश में विकास संबंधी सभी कार्य हो रहे थे लेकिन विकास के लिए जिन चीज़ों की ज़रूरत थी वो नहीं मिल पा रही थीं। इन परेशानियों से बचने के लिए 1991 में सरकार द्वारा आर्थिक नीति के तहत उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण Liberalization, Privatization and Globalization की नीतियाँ अपनाई गयीं। निजीकरण की ज़रूरत क्यों पड़ी इसके अन्य मुख्य कारण भी जान लेते हैं जैसे सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में आवश्यकता से अधिक कर्मचारी हैं। जहां 2 लोग काम कर रहे हैं वहाँ एक व्यक्ति की आवश्यकता है। साथ ही सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों का खराब प्रदर्शन और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों का घाटे में चलना भी निजीकरण का कारण है। इसके अलावा सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में राजनीतिक नेताओं का हस्तक्षेप Interference of Political Leaders और सार्वजनिक क्षेत्र में निर्णय लेने की धीमी प्रक्रिया slow decision making process से परियोजनाओं में देरी होना है।
आईडीबीआई बैंक अब निजीकरण की राह पर है। आईडीबीआई बैंक (IDBI Bank) के निजीकरण के लिए शुरुआती बोलियां जमा करने की आखिरी तारीख को करीब एक महीने तक आगे बढ़ाया जा सकता है। अभी बोली जमा करने की अंतिम तारीख 16 दिसंबर है जिसे जनवरी तक बढ़ाया जा सकता है। सरकार IDBI Bank में अपनी कुल 60.72% हिस्सेदारी बेचना चाहती है। सरकार और LIC की IDBI Bank में कुल 94.71 फीसदी हिस्सेदारी है। सरकार ने IDBI Bank में कुल 60.72% फीसदी हिस्सेदारी बेचकर बैंक का निजीकरण करने के लिए बीते 7 अक्टूबर को बोलियां मंगायी थी। अब सरकार LIC के साथ मिलकर इस वित्तीय संस्थान में यह हिस्सेदारी बेचेगी। इसके लिए बोलियां जमा करने या एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट (EOI) जमा करने की अंतिम तिथि 16 दिसंबर, 2022 तय की गई थी।
बैंक के निजीकरण का विरोध
वर्तमान समय में सरकार द्वारा निजीकरण की नीति अपनाई जा रही है। बैंक के निजीकरण के मामले में ऑल इंडिया आईडीबीआई आफिसर्स एसोसिएशन All India IDBI Officers Association ने नाराजगी जताई है। ऑल इंडिया आईडीबीआई आफिसर्स एसोसिएशन (एआईआईडीबीआईओ) के महासचिव कोटेश्वर राव और सचिव सौरव कुमार Koteswara Rao and Secretary Sourav Kumar ने प्रेस वार्ता के दौरान कहा कि सरकार द्वारा आईडीबीआई बैंक को निजी हाथों को बेचने का यह कदम बैंक कर्मचारियों के साथ-साथ डिपोजिटर्स को भी खतरे में डालेगा। वहीं अखिल भारतीय बैंक अधिकारी संघ, हरियाणा इकाई के चेयरमेन जीएस ओबराय ने कहा कि यदि बैंक निजी कंपनियों के हाथों में चला जाता है तो अर्ध शहरी और ग्रामीण शाखाएं किसानों को लोन देना बंद कर देगी। साथ ही यह छोटे व्यवसायिकों के साथ स्ट्रीट वेंडर्स, एजुकेशन लोन्स आदि को सामान्य रूप से अनसेक्योर्ड लोन के रूप में पेश किए जाने वाले छोट लोन्स को देना भी बंद कर सकता है।
कई लोगों का मानना है कि ना सिर्फ बैंक कर्मियों के लिए बल्कि देश में नौकरी करने वाले तमाम मजदूर कर्मचारियों के लिए यह समय बहुत ही खतरनाक है। वैसे ही नोटबंदी से देश की अर्थव्यवस्था को काफी नुकसान हुआ है। साथ ही कोरोना में अर्थव्यवस्था का और भी बुरा हाल हुआ है। कोरोना काल में 1500 बैंक कर्मी कार्य करते हुए शहीद हुए। लोगों का कहना है कि बैंकों का विलय देशहित में नहीं है। बैंक में नई भर्ती पर लगभग रोक लगा दी गई है। अब बैंक में जो भी भर्ती होगी वह कांटेक्ट पर होगी। बैंकों के निजीकरण का विरोध करने के लिए इस समय देश के अंदर तमाम कर्मचारी एक साथ मिलकर संघर्ष कर रहे हैं।
केंद्र सरकार Central Government जल्दी ही एक और सरकारी कंपनी का निजीकरण privatisation करने जा रही है और अगले साल की शुरुआत में सरकार द्वारा इसके लिए बोलियां मंगवाई जाएंगी। इसको लेकर पूरी योजना बन गई है। सरकारी बैंकों और कई कंपनियों में हिस्सेदारी बेचने के बाद में अब और कंपनी का प्राइवेटाइजेशन जल्द ही किया जाएगा। दरअसल एक अधिकारी ने बताया कि केंद्र सरकार कंटेनर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया Container Corporation of India (कॉनकॉर) CONCOR के निजीकरण के लिए अगले वर्ष जनवरी में शुरुआती बोलियां आमंत्रित कर सकती है। कॉनकॉर की रण्नीतिक बिक्री अगले वित्त वर्ष में पूरी होने का अनुमान है क्योंकि इस प्रक्रिया के पूरा होने में लगभग दस महीने का वक्त लगता है। इसके अलावा कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय से भारतीय नौवहन निगम (SCI) की गैर-प्रमुख एवं भूमि परिसंपत्तियों को अलग करने की मंजूरी भी इस महीने मिलने की उम्मीद है, जिसके बाद सरकार मार्च या अप्रैल में एससीआई के लिए वित्तीय बोलियां आमंत्रित कर सकती है।
लांग प्रूफ रेंज Long Proof Range मतलब, एलपीआर (LPR) को भी निजी हाथों में सौंपे जाने की तैयारी है। इसके लिए एक निजी कंपनी के साथ सरकार की बात चल रही है। सिर्फ जबलपुर के एलपीआर को ही निजी हाथों में सौंपने की तैयारी नहीं है बल्कि देश की जितनी भी निर्माणियों के पास प्रूफ रेंज हैं उन सभी को लेकर ऐसी ही योजना पर सरकार काम कर रही है। इससे क्या फायदा और क्या नुकसान होगा इसको लेकर अभी कुछ अनुमान नहीं लगाया जा सकता, लेकिन ऐसा करने से काफी कुछ बदल जाएगा। माना जा रहा है कि देश में जितने भी प्रूफ रेंज हैं सभी को निजी हाथों में दिए जाने की तैयारी है। इसके पीछे उद्देश्य यह है कि सरकार अपना व्यय घटाकर काम की रफ्तार में तेजी लाना चाह रही है। एलएंडटी के नाम की चर्चा एलपीआर को लासन एंड टूब्रो कंपनी को दिए जाने पर विचार चल रहा है। वैसे कर्मचारी यूनियनाें का कहना है कि इस पर कोई अंतिम निर्णय अभी तक नहीं लिया गया है, लेकिन इसके संदर्भ में बात काफी आगे तक बढ़ चुकी है। एलएंडटी पहले ही रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में उतर चुकी है।
निजीकरण के उद्देश्य निम्न हैं -
प्रबंधकीय योग्यता और दक्षता प्रदान करना।
कंपनियों की प्रोफिटेबिलिटी बढ़ाने के लिए।
अर्थव्यवस्था की विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के आवश्यक वित्तीय संसाधनों को जुटाना।
सार्वजनिक उद्यमों की परिचालन दक्षता में सुधार करने के लिए ।
संसाधनों के बेहतर उपयोग के लिए।
घाटे के बजट के लिए संसाधन तैयार करना।
अगर सरकार को अपनी किसी ईकाई से लगातार नुकसान हो रहा है तो सरकार उस ईकाई को निजी क्षेत्र में हाथों में बेच देती है।
उद्योगों में प्रतिस्पर्धी कुशलता विकसित करना।
कई बार अर्थव्यवस्था की गति को बढ़ाने के लिए सरकार उदारीकरण की प्रकिया अपनाती है।
विदेशी पूंजी को आमंत्रित करने के लिए।
घरेलू उद्योगों के वैश्वीकरण के लिए।
प्रतियोगिता में वृद्धि करना
निर्यात प्रोत्साहन के माध्यम से विदेशी मुद्रा अर्जित करना।
कई बार सरकार अपने राजस्व में बढ़ोत्तरी के लिए भी कंपनियों का निजीकरण करती है।
बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ाने के लिए भी सरकार निजीकरण का सहारा लेती है। इससे बाजार में प्रतिस्पर्धा बनी रहती है।
सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों की उत्पादकता और दक्षता बढ़ाने के लिए।
राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण कई सरकारी कंपनियां सही से काम नहीं कर पाती है और विकास की गति धीमी पड़ जाती है। यही वजह है सरकार कंपनियों का निजीकरण करती है।
तेजी से औद्योगिकीकरण के लिए वातावरण तैयार करना ।
बाहय ऋणों को घटाना।
सरकार द्वारा कल्याणकारी गतिविधियों को प्राथमिकता देना।
वाणिज्यिक आधार पर सार्वजनिक उद्यम संचालित करने के लिए।
अर्थव्यवस्था की विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के आवश्यक वित्तीय संसाधनों को जुटाना।
सरकार को घाटे में चल रहे उद्यमों से मुक्त करने के लिए।
औद्योगिक शांति की रक्षा के लिए।
स्वामित्व का स्थानांतरण का तात्पर्य सरकार द्वारा कंपनी की एकमुश्त बिक्री कर दी जाती है यानि उस सरकारी कम्पनी पर सरकार का किसी प्रकार का स्वामित्व और प्रबंधन नहीं रह जाता है और सरकार का उस कम्पनी में किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं होता है। हम कह सकते हैं कि इसमें सरकारी कंपनी के स्वामित्व और प्रबंधन से सरकार अपने आप को अलग कर लेती है।
विनिवेश मतलब लगाया गया पैसा वापस लेना। किसी सरकारी कंपनी की परफॉरमेंस को सुधारने के लिये यह किया जाता है। इसमें सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (सरकारी कंपनी) के हिस्से (Shares) को निजी क्षेत्र को बेचकर विनिवेश किया जाता है। विनिवेश का मतलब किसी कार्य में लगायी गयी पूँजी वापस लेना है। भारत में मुख्य रूप से किसी कम्पनी की परफॉरमेंस अर्थात कार्यों की गुणवत्ता सुधारनें के लिए यही किया जाता है। विनिवेश यानि जब सरकार योजनाबद्ध तरीके से कुछ गैर जरुरी क्षेत्र की सार्वजनिक इकाइयों मे कुछ हिस्सेदारी निजी क्षेत्र को बेचती है। सरकार इन कंपनियों मे पूंजी को आमंत्रित करती है और समय के साथ इनकी स्थिति को सुधारने का प्रयास करती है। सरकार द्वारा इन कम्पनियों के शेयर बेचनें का मुख्य उद्देश्य वित्तीय अनुशासन में सुधार और आधुनिकीकरण Financial discipline reform and modernization की सुविधा देना होता है। ऐसी कई कम्पनिया हैं जैसे NTPC नेशनल थर्मल पॉवर कार्पोरेशन (एनटीपीसी) National Thermal Power Corporation, (NTPC),एयर इंडिया Air India, ओएनजीसी ONGC आदि जिनमें सरकार द्वारा विनिवेश किया गया है।
सरकार अर्थव्यवस्था के कई क्षेत्रों को अपनी नियंत्रण मे रखती है। यानि इन क्षेत्रों मे निजी व्यापरियों के लिए प्रतिबन्ध होते हैं। ये क्षेत्र जैसे परमाणु ऊर्जा, रेल, रक्षा Nuclear Power, Rail Defense से जुड़े क्षेत्र आदि हैं। इसके द्वारा सरकार निजी क्षेत्र को कुछ प्रतिबंधित क्षेत्र मे व्यापार करने की अनुमति देती है। इस अविनियमन नीति के कारण व्यापार के कुछ सिमित क्षेत्रों से सरकार का एकाधिकार कम होता है।
निजीकरण के फ़ायदे निम्न हैं-
सार्वजनिक कंपनी का बाज़ार पर एकाधिकार Market Monopoly होता है। प्रतिस्पर्धा नहीं होने के कारण कई बार गुणवत्ता पर ध्यान नहीं दिया जाता है। वहीं निजी क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा होने के कारण गुणवत्ता का पूरा ध्यान रखा जाता है। इसके साथ ही प्रतिस्पर्धा Competition के कारण सस्ता माल और सेवाएं दी जाती हैं। यानि कुशल प्रबंधन क्षमता, कार्यक्षेत्र मे विशेषज्ञता और बाजार मे स्वस्थ प्रतिस्पर्धा Efficient management capability, expertise in the field and healthy competition in the market के के चलते निजी क्षेत्र के उत्पादों की गुणवत्ता ज्यादा अच्छी होती है।
विनिवेश, निजीकृत कम्पनियों को बाजार अनुशासन से अवगत कराएगा जिससे वे बाजार ताकतों का और तेजी से मुकाबला कर सकेंगे। वे और अधिक दक्ष बनने के लिए बाध्य होंगे और वे अपने ही वित्तीय और आर्थिक बल पर जी सकेंगे। वे अपनी वाणिज्यिक आवश्यकताओं की पूर्ति और अधिक व्यावसायिक तरीके से कर सकेंगे।
निजी क्षेत्र मे राजनीतिक हस्तक्षेप political interference बिलकुल भी नहीं होता। निजी क्षेत्र की कंपनी बाजार में मांग और आपूर्ति demand and supply के अनुसार फैसले लेती है। इससे अच्छी गुणवत्ता और दाम में कमी good quality and low price आती है।
निजी क्षेत्र मे कंपनी का प्रदर्शन अच्छा होता है और कंपनी के कर्मचारियों पर भी अच्छे प्रदर्शन का दबाव होता है।
उचित संरचना और उत्तम साधनों के चलते निवेशक Investor भी सार्वजनिक कंपनी के बजाय निजी क्षेत्र की कंपनी में निवेश करना ज्यादा पसंद करते हैं। यही वजह है कि सार्वजनिक क्षेत्र के मुकाबले निजी क्षेत्र की कंपनियों मे बढ़िया निवेश पाया जाता है।
निजी क्षेत्र मे निर्धारित उदेश्यों की पूर्ति के लिए साधनो का उचित उपयोग किया जाता है। इसलिए सार्वजनिक क्षेत्र के मुकाबले निजी क्षेत्र की कंपनियों की उत्पादकता बढ़िया होती है।
निजीकरण से प्रदर्शन मे सुधार होगा। सरकार द्वारा संचालित उद्योग अधिकतर राजनीति से प्रेरित होते हैं और फैसले देर से होते है। जिसका असर सार्वजानिक क्षेत्र की कंपनियों के कार्यप्रदर्शन पर पड़ता है । वहीं निजी क्षेत्र की कंपनिया मुनाफे पर ध्यानकेंद्रित करती हैं। यही वजह है कई कि उनकी कार्यक्षमता बेहतर होती है।
निजी क्षेत्र मे निर्धारित उदेश्यों की पूर्ति के लिए साधनो का उचित उपयोग किया जाता है। इसलिए सार्वजनिक क्षेत्र के मुकाबले निजी क्षेत्र की कंपनियों की उत्पादकता बढ़िया होती है।
निजीकरण प्रक्रिया के चलते कंपनियों के प्रबंधन उत्तम होते हैं। क्योंकि निजी कंपनियों के प्रबंधक कंपनी के मालिक के प्रति जवाबदेह होते है इसलिए वे मुनाफे को बढ़ाने के लिए प्रबंधन के उत्तम से उत्तम तरीके को अपनाते है।
निजीकरण से भ्रष्टाचार मे कमी Reduction in Corruption रहती है और राजनीतिक हस्तक्षेप मे कमी से भ्रष्टाचार के अवसर भी कम हो जाते हैं।
निजी क्षेत्र की कंपनियों का लक्ष्य सिर्फ व्यापरिक लाभ कमाना होता है इसलिए इस क्षेत्र में सामाजिक उद्देश्यों के प्रति उदासीनता नजर आती है।
सरकार जनता के प्रति जवाबदेह भी होती है। इसलिए सार्वजनिक उद्योगों की सफलता और असफलता के लिए सरकार को जनता बाध्य कर सकती है। वहीं निजी क्षेत्र के उद्योगपतियों की जनता के प्रति कोई जवाबदेही नहीं होती है।
निजीकरण की प्रक्रिया की सबसे बड़ी कठिनाई यूनियन के माध्यम से श्रमिकों की ओर से होने वाले विरोध हैं। श्रमिक अक्सर बडे़ पैमाने पर छटंनी, नौकरी छूट जाने के डर से और काम के वातावरण में परिवर्तन जैसी बातों से सहमे रहते हैं।
सहचर पूंजीवाद (Crony Capitalism) को बढ़ावा मिलता है। सहचर पूंजीवाद ऐसी अवस्था है जिसमे सरकार कुछ गिने चुने प्रभावशाली उद्योगपतियों के पक्ष मे नीतियां बनाती है। जिसके कारण अर्थव्यवस्था मे कुछ गिने चुने लोगो का कब्ज़ा हो जाता है।
सहचर पूंजीवाद के कारण सरकार के आर्थिक फैसलों का फायदा केवल कुछ गिने चुने उद्योगपति वर्ग को ही मिलता है। इस वजह से बाजार मे एकाधिकार बढ़ता है। यदि निजी क्षेत्र में अगर बाज़ार में किसी कंपनी का एकाधिकार होता है तो प्रतिस्पर्धा ना होने कारण कंपनी अपने फायदे के लिए चीजों के दाम बढ़ा देती है।
निजी क्षेत्र केवल अपने हित के लिए काम करता है।
निजीकरण माध्यम से अर्थव्यवस्था पर सरकार का नियंत्रण कम होता है तो निजी उद्योगपतियों का दबदबा बढ़ जाता है। जिसके कारण जहां एक तरफ रोजगार की कोई गारन्टी नहीं रहती वही दूसरी तरफ प्रति व्यक्ति आय दर मे असंतुलन भी बढ़ जाता है।
निजीकरण से निजी क्षेत्र मे सामाजिक उद्देश्यों के प्रति उदासीनता नजर आती है। सिर्फ और सिर्फ व्यापरिक लाभ कमाना ही निजी क्षेत्र का एकमात्र लक्ष्य होता है।