क्या है जैविक खेती- ऐसी खेती जिसमें दीर्घकालीन व स्थिर उपज प्राप्त करने के लिए कारखानों में निर्मित रसायनिक उर्वरकों, कीटनाशियों व खरपतवारनाशियों तथा वृद्धि नियन्त्रक का प्रयोग न करते हुए जीवांशयुक्त खादों का प्रयोग किया जाता है। भारतीय दृष्टि से देखें तो,भारत एक दशक से भी अधिक समय से खाद्यान के मामले में आत्मनिर्भर रहा है।
आज के दौर में जिस तरह से मनुष्य जाति ने अपनी संख्या को इतना बढ़ा लिया है, जिसको एक नाम दिया गया “जनसँख्या विस्फोट” जो कि चिंता का विषय है। क्योंकि जैसे-जैसे जनसँख्या बढ़ती है वैसे-वैसे हर तरह की जरूरत बढ़ती है। वर्तमान समय की बात करें तो, इस समय मनुष्य जाति की जनसँख्या 7.9 अरब हो गयी है। बढ़ती जनसंख्या में सबसे बड़ी समस्या है भोजन को व्यवस्थित तरीके से बांटना या डिस्ट्रीब्यूट करना। ये एक चुनौती से भरा टास्क भी है क्योंकि आज जिस तरह से लोग फसलों को उगाने में तरह-तरह की ज़हरीली खाद का प्रयोग कर रहे हैं उसको देखते हुए कई तरह की बीमारियां देखने को मिलती हैं, फिर चाहे वो कैंसर ही क्यों न हो।
लाभ और हानि के दौर में मनुष्य की जिम्मेदारी बनती है कि वह जो उत्पादित कर रहा है वह कईयों के लिए घातक सामिग्री तो नहीं है। इस लाभ-हानि के दौर में आजकल जो सबसे महत्वपूर्ण और आवश्यक पहलु निकल का आया है वह है जैविक खेती।
क्या है जैविक खेती- ऐसी खेती जिसमें दीर्घकालीन व स्थिर उपज प्राप्त करने के लिए कारखानों में निर्मित रसायनिक उर्वरकों, कीटनाशियों व खरपतवारनाशियों तथा वृद्धि नियन्त्रक का प्रयोग न करते हुए जीवांशयुक्त खादों का प्रयोग किया जाता है, तथा मृदा एवं पर्यावरण प्रदूषण पर नियंत्रण होता है। इस तरह की खेती को ही जैविक खेती कहते हैं, जो कि हमारे शरीर को स्वस्थ एवं रोगमुक्त रखने का काम करती है।
क्यूँ ज़रूरी है जैविक खेती- बहुत पहले से ही मानव स्वास्थ्य के अनुकुल तथा प्राकृतिक वातावरण के अनुरूप खेती की जाती थी, जिससे जैविक और अजैविक पदार्थों के बीच आदान-प्रदान का क्रम निरन्तर चल रहा था, जिसके फलस्वरूप जल, भूमि, वायु तथा वातावरण प्रदूषित नहीं होता था। भारत वर्ष में प्राचीन काल से कृषि के साथ-साथ गौ पालन किया जाता था, अर्थात कृषि एवं गोपालन संयुक्त रूप से अत्याधिक लाभदायी था, जोकि प्राणी मात्र व वातावरण के लिए अत्यन्त उपयोगी था। परन्तु बदलते परिवेश में गोपालन धीरे-धीरे कम हो गया तथा कृषि में तरह-तरह की रसायनिक खादों व कीटनाशकों का प्रयोग हो रहा है, जिसके फलस्वरूप जैविक और अजैविक पदार्थो के चक्र का संतुलन बिगड़ता जा रहा है और वातावरण प्रदूषित होकर, मानव जाति के स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है। अब हम रसायनिक खादों, जहरीले कीटनाशकों के उपयोग के स्थान पर, जैविक खादों एवं दवाईयों का उपयोग कर, अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं जिससे भूमि, जल एवं वातावरण शुद्ध रहेगा और मनुष्य एवं प्रत्येक जीवधारी स्वस्थ रहेंगे।
जलवायु परिवर्तन के चलते जैविक खेती ने दुनिया भर में एक महत्वपूर्ण स्थान बना लिया है। भारत सरकार राष्ट्रीय मिशन सतत कृषि (NMSA ) के तहत विभिन्न योजनाओं के माध्यम से जैविक खेती को बढ़ावा दे रही है। सरकार ने देश में जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए NMSA के तहत परम्परागत कृषि विकास योजना (pkvy) और जैविक मूल्य वर्धित विकास (ovcder) योजनाएं शुरू की हैं। इस योजना में राज्य सरकारें प्रत्येक 20 हेक्टेयर भूमि के लिए क्लस्टर के आधार पर अधिकतम एक हेक्टेयर भूमि के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करके किसानों का समर्थन करेंगी। सरकार ने तीन साल के लिए परिवर्तन की अवधि के दौरान प्रत्येक हेक्टेयर भूमि के लिए लगभग 730 डॉलर आवंटित किए हैं। भारत सरकार ने जैविक बाजार के विकास के लिए लगभग $15 मिलियन और भागीदारी गारंटी योजना (PGS) के लिए लगभग $44 मिलियन के निवेश की भी घोषणा की, जो एक जैविक गुणवत्ता आश्वासन प्रणाली है जो उत्पादक को प्रमाणित करती है जो जैविक खेती में सक्रिय रूप से भाग ले रहे हैं।
अंततः इसको भारतीय दृष्टि से देखें तो,भारत एक दशक से भी अधिक समय से खाद्यान के मामले में आत्मनिर्भर रहा है। भारत में जैविक कृषि समृद्ध हो रही है और 2030 तक 1.5 बिलियन लोगों को भोजन कराने में योगदान देगी। भारत में जैविक खेती तेजी से बढ़ रही है और निवेशक इस बात से सहमत हैं कि इस क्षेत्र में चुनौतियां मौजूद हैं, लेकिन जैसे ही किसानों को लाभ और जैविक खेती की स्थापना के बारे में जागरूकता और शैक्षिक प्रशिक्षण का प्रसार होगा, एक सकारात्मक आर्थिक परिणाम सामने आएगा।