पर्यावरण में देखे गए कई परिवर्तन दीर्घकालिक हैं, जो समय के साथ धीरे-धीरे घटित होते हैं। जैविक कृषि Organic Farming कृषि-पारिस्थितिकी तंत्र पर कृषि हस्तक्षेपों के मध्यम और एक लम्बे प्रभाव पर विचार करती है। इसका उद्देश्य मिट्टी की उर्वरता या कीट समस्याओं को रोकने के लिए पारिस्थितिक संतुलन स्थापित करते हुए भोजन का उत्पादन करना है। स्वस्थ भोजन उगाने के लिए, हमें स्वस्थ मिट्टी से शुरुआत करनी चाहिए। यदि आप मिट्टी को हानिकारक कीटनाशकों और रसायनों से बचते हैं ।
जैविक खेती पर्यावरण के स्वास्थ्य में सुधार करने का प्रयास करती है और पर्यावरण की मदद करती है। यह पारिस्थितिकी तंत्र को नष्ट करने के बजाय उसके प्रबंधन पर निर्भर करता है। जैविक क्षेत्र में किसानों को उन उत्पादों की "जैविकता" सुनिश्चित करने के लिए नियमों का पालन करना चाहिए ।
पर्यावरण पर जैविक खेती के लाभ बहुत अधिक हैं, यह ब्लॉग उनमे से कुछ सबसे प्रभावशाली प लाभों से आपको परिचित कराएगा ।
जिस तरह से पूरे विश्व की जनसँख्या बढ़ रही है तथा अजैविक खाद वाली भोजन सामग्री का बाजार बढ़ता जा रहा है। उसी बीच एक मंद गति से प्रगति करती हुई जैविक खेती दिन व दिन पनप रही है, जो कि मानवीय स्वास्थ्य के लिहाज़ से अति आवश्यक है। हर दौर में कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो दूसरे के हित के लिए कार्य करते हैं, पर्यावरण के लिए कार्य करते हैं, एवं जलवायु को स्वच्छ करने के लिए कुछ कार्य करते हैं। जैविक खेती Organic Farming की पहल भी कुछ ऐसी ही पहल है, हालाँकि ये प्राचीन पद्दति है, जो आज फिर अपना सर उठा रही है, जो कि आने वाले भविष्य के लिए लाभकारी भी है।
जैविक खेती एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा भूमि की उपजाऊ क्षमता soil fertility में वृद्धि हो जाती है ताकि, भूमि लंबे अंतराल तक खेती लायक बनी रहे। जैविक खेती में सिंचाई के अन्तराल में वृद्धि होती है। जैविक खेती के उपयोग से रासायनिक खाद chemical fertilizer पर निर्भरता कम होने से लागत में कमी आती है और विषैली फसल लोगों तक नहीं पहुँचती तथा साथ ही साथ फसलों की उत्पादकता में वृद्धि increasing the productivity of crops होती है। इससे किसानों को भी लाभ होता है और वह किसानी को एक व्यवसाय से हटकर भी समझ पाते हैं।
इसका सबसे बड़ा लाभ उन सब छोटे-छोटे कीटों को भी मिलेगा जो मिट्टी की उर्वरता को बढ़ने में मदद करते हैं क्योंकि अजैविक खाद द्वारा उनके खत्म होने से मिट्टी में उपस्थित रासायनिक क्रियायें मंद पड़ जाती हैं जो कि घातक है।
किसानों को जैविक खेती से होने वाले लाभ (Jaivik kheti ke labh)- जिस तरह से जैविक खेती से फसल की उपज बढ़ रही है, उसको देखते हुए ये अनुमान लगाया जा सकता है कि किसानों को इसका प्रत्यक्ष लाभ मिल रहा है। रोज़-रोज़ नए तरीके खोज-खोज कर लोग जैविक खेती को बढ़ावा दे रहे हैं। किसानों की आय में वृद्धि हुई है और जैविक खेती से हुई फसलों को डिमांड बढ़ी है।
वर्षा आधारित क्षेत्रों rainfed areas में जैविक खेती की विधि और भी अधिक लाभदायक है। जैविक विधि द्वारा खेती करने से उत्पादन की लागत तो कम होती है साथ ही साथ किसान भाइयों को आय अधिक प्राप्त होती है। अंतराष्ट्रीय बाजार की स्पर्धा में जैविक उत्पाद अधिक खरे उतरते हैं। जिसके फलस्वरूप सामान्य उत्पादन की अपेक्षा में किसान अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं। जैविक खेती के कई लाभ (Benefits of Organic Farming) होते हैं। कुछ मुख्य लाभ निम्नलिखित हैं:
आधुनिक समय में निरन्तर बढ़ती हुई जनसंख्या, पर्यावरण प्रदूषण, भूमि की उर्वरा शक्ति का संरक्षण एवं मानव स्वास्थ्य के लिए जैविक खेती की राह अत्यन्त लाभदायक व प्रभावपूर्ण साबित हुई है। मानव जीवन के सम्पूर्ण विकास के लिए ये अत्यधिक आवश्यक है कि प्राकृतिक संसाधन प्रदूषित न हों, शुद्ध वातावरण रहे एवं पौष्टिक आहार मिलता रहे। इसके लिये हमें जैविक खेती की कृषि पद्धतियाँ अपनाना होगा जोकि हमारे अतिआवश्यक संसाधनों एवं मानवीय पर्यावरण को प्रदूषित किये बगैर मनुष्य जाती को खाद्य सामग्री उपलब्ध करा सकेगी तथा हमें खुशहाल जीने की राह दिखा सकेगी।
ये कुछ महत्वपूर्ण लाभ हैं जोकि जैविक खेती द्वारा आसानी से संभव हैं।
जैविक खेती के कई अन्य फायदे भी हैं जो निम्न हैं -
पारंपरिक खेती traditional farming में इस्तेमाल होने वाले कई तरह के सिंथेटिक कीटनाशक synthetic insecticide जानवरों और इंसानों दोनों के लिए हानिकारक हो सकते हैं। कभी-कभी, ये कीटनाशक हवा में घुल सकते हैं और भूजल स्रोत भी इस प्रकार खेत के आसपास के क्षेत्र को प्रदूषित कर सकते हैं। इसके अलावा, जो खरपतवार हमेशा कीटनाशकों के संपर्क में रहते हैं, वे रसायनों के प्रति प्रतिरोध पैदा करना शुरू कर देते हैं, जिससे खरपतवारों का एक मजबूत रूप बन जाता है जो उन्हें नियंत्रित करने के लिए मजबूत रसायनों की जरूरत पड़ती है । जैविक खेती में, कीटनाशकों का उपयोग पूरी तरह से छोड़ दिया जाता है जिससे प्रदूषण का खतरा कम हो जाता है।
जैविक खेती के विपरीत, पारंपरिक खेती मूल्यवान पोषक तत्वों को छीन लेती है और सिंथेटिक उर्वरकों के माध्यम से कृत्रिम रूप से पोषक तत्वों को वापस लौटा देती है। यह विधि स्वस्थ जीवाणुओं या अन्य अपघटकों के विकास को प्रोत्साहित नहीं करती है जो मिट्टी के स्वास्थ्य को स्थिर करते हैं। इसका मतलब यह है कि जब एक पारंपरिक किसान अपने खेत को बैठने के लिए छोड़ देता है, तो मिट्टी को पोषक तत्वों nutrients to the soil को वापस पाने के लिए संघर्ष करना पड़ेगा और इसमें भी अधिक समय लगेगा। जैविक खेती स्थायी कृषि प्राप्त करने का प्रयास करती है और बैक्टीरिया और डीकंपोजर Bacteria and Decomposers के अस्तित्व को बढ़ावा देती है जिससे मिट्टी अधिक टिकाऊ होती है। अंत में, यह कृत्रिम रूप से उपचारित मिट्टी artificially treated soil की तुलना में बेहतर तरीके से भूमि कटाव soil erosion से लड़ता है। इसका मतलब है कि मिट्टी को अधिक समय लगेगा और यह हवा या बारिश से नहीं बहेगी।
जैविक खेती पौधों में जैव विविधता प्राप्त करने का प्रयास करती है - इसका मतलब है कि पौधों की कई प्रजातियाँ एक निश्चित वर्ष के दौरान खेत में पनपती हैं। मिट्टी के लिए जैव विविधता स्वस्थ होने के अलावा, यह कीटों की आबादी को नियंत्रित करने में भी मदद करती है और अधिक संतुलित पारिस्थितिकी तंत्र balanced ecosystem सुनिश्चित करके जंगली जीवों जैसे हिरण, सरीसृप, कृन्तकों, पक्षियों और अन्य जानवरों के लिए एक स्वस्थ वातावरण बनाती है।
जैविक खेती एक संतुलित, प्राकृतिक और वातावरण संरक्षण के दृष्टिकोण से बेहतर विकल्प होता है, हालांकि कुछ मुख्य हानियां भी होती हैं। निम्नलिखित कुछ मुख्य जैविक खेती की हानियां हैं:
पहला कारण वातावरण संरक्षण है। जैविक खेती में खाद, कीटनाशक और जलवायु न्यूनतम मात्रा में उपयोग किए जाते हैं, जो प्राकृतिक तरीके से पैदा होते हैं और वातावरण को नुकसान पहुंचाने वाले तत्वों का उपयोग नहीं करते हैं। इसलिए, जैविक खेती वातावरण संरक्षण के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।
दूसरा कारण स्वस्थ खाद्य संसाधनों की आवश्यकता है। जैविक खेती में उपयोग किए जाने वाले उत्पादों का खाद्य तत्व मूल रूप से स्थानीय खेती से ही प्राप्त होता है, जिससे खेती के स्वस्थ विकास के लिए संतुलित पोषण में सुनिश्चित होता है।
तीसरा कारण सामाजिक उत्थान की आवश्यकता है। जैविक खेती में उत्पादों की गुणवत्ता सुधार होती है जिससे खेतीकरों को बेहतर मूल्य मिलता है और साथ ही स्थानीय अर्थव्यवस्था में भी सुधार होता है।