राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की टैरिफ रणनीति President Donald Trump's Tariff Strategy को एक बड़ा झटका लगा है। अमेरिकी संघीय अपील कोर्ट ने फैसला सुनाया कि ट्रम्प के पास इतने व्यापक इंपोर्ट टैक्स लगाने का आपातकालीन अधिकार नहीं था। यह फैसला न केवल उनकी आक्रामक व्यापार नीति को चुनौती देता है बल्कि अमेरिकी व्यापार वार्ताओं और राजस्व संग्रहण पर भी सवाल खड़े करता है।
यह केस विशेष रूप से उन टैरिफ पर केंद्रित था जिन्हें ट्रम्प ने अप्रैल 2025 में घोषित किया था:
अमेरिका के साथ व्यापार अधिशेष रखने वाले देशों पर 50% तक के टैरिफ।
लगभग सभी व्यापारिक साझेदारों पर 10% का बेसलाइन टैक्स।
कुछ देशों पर अतिरिक्त दंड, जैसे लाओस पर 40% और अल्जीरिया पर 30%।
पहले से लगाए गए कनाडा, मेक्सिको और चीन पर टैरिफ भी इस चुनौती का हिस्सा थे। हालांकि, स्टील और एल्युमिनियम पर राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर लगाए गए टैरिफ इससे प्रभावित नहीं हुए।
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प President Donald Trump के वकीलों ने तर्क दिया कि पिछली सरकारें, जैसे निक्सन प्रशासन, आर्थिक अस्थिरता के समय आपातकालीन शक्तियों का इस्तेमाल कर चुकी हैं। उन्होंने 1917 के Trading with the Enemy Act और 1977 के IEEPA का हवाला दिया।
लेकिन Court of International Trade ने मई में कहा कि ट्रम्प के “Liberation Day” टैरिफ, कांग्रेस की मंशा से कहीं आगे थे। अपील कोर्ट ने भी इसे मानते हुए कहा कि “कांग्रेस ने राष्ट्रपति को असीमित टैरिफ शक्तियां देने का इरादा नहीं किया था।” हालांकि, कुछ असहमति जताने वाले जजों ने इसे चुनौती योग्य बताया, जिससे सुप्रीम कोर्ट में अपील की संभावना बनी हुई है।
कई सालों तक ट्रम्प ने यह दावा किया कि वे आपातकालीन शक्तियों के तहत बिना कांग्रेस की अनुमति के टैरिफ लगा सकते हैं। उन्होंने व्यापार घाटे को “राष्ट्रीय आपातकाल” बताते हुए IEEPA का उपयोग किया।
30 अगस्त 2025 को अपील कोर्ट ने 7–4 के फैसले से कहा कि ट्रम्प ने अपनी सीमा पार कर दी। हालांकि सरकार के पास अब सुप्रीम कोर्ट जाने का विकल्प है।
जुलाई 2025 तक अमेरिकी ट्रेज़री ने टैरिफ से $159 बिलियन जुटाए – पिछले साल से दोगुना।
अगर टैरिफ पूरी तरह रद्द हुए तो अमेरिका को बड़ी रिफंड देनी पड़ सकती है, जिसे न्याय विभाग ने “वित्तीय तबाही” बताया।
राजनीतिक रूप से, यह फैसला ट्रम्प की वैश्विक वार्ताओं की ताकत को कमजोर करता है। अब विदेशी देश अमेरिकी मांगों को टाल सकते हैं या पुनः वार्ता की मांग कर सकते हैं।
स्टील, एल्युमिनियम और ऑटो टैरिफ (1962 के Trade Expansion Act की धारा 232 के तहत)।
चीन पर पहले कार्यकाल में लगाए गए टैरिफ, जिन्हें राष्ट्रपति जो बाइडेन ने जारी रखा।
ये सब वैध हैं क्योंकि इन्हें अलग कानूनी प्रावधानों के तहत लागू किया गया था।
अगर सुप्रीम कोर्ट ने भी फैसला कायम रखा तो ट्रम्प के पास सीमित विकल्प होंगे:
1974 के Trade Act के तहत 15% तक का टैरिफ, अधिकतम 150 दिनों के लिए।
धारा 232 की जांच, लेकिन यह प्रक्रिया धीमी है और राष्ट्रीय सुरक्षा का आधार जरूरी होता है।
ट्रम्प ने सोशल मीडिया पर फैसले को “विनाशकारी” बताया और कहा कि इससे “अमेरिका का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा।” उनकी कानूनी टीम अब सुप्रीम कोर्ट में अपील की तैयारी कर रही है।
यह फैसला ट्रम्प की टैरिफ नीति में बड़ा मोड़ साबित हो सकता है। हालांकि कुछ टैरिफ अभी भी जारी रहेंगे, लेकिन आपातकालीन शक्तियों पर उनकी निर्भरता कम हो गई है। अगर सुप्रीम कोर्ट भी निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखता है, तो ट्रम्प का सबसे बड़ा हथियार छिन सकता है।
इसका असर केवल अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर ही नहीं, बल्कि वैश्विक व्यापार संबंधों पर भी गहराई से पड़ेगा। आने वाले महीनों में इस कानूनी लड़ाई पर पूरी दुनिया की नजरें टिकी रहेंगी।