प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय कैबिनेट ने एक ऐतिहासिक फैसला लिया है, जिसके तहत भारत अब रेयर अर्थ परमानेंट मैग्नेट मैन्युफैक्चरिंग में दुनिया के बड़े देशों की कतार में खड़ा होगा, इसके लिए सरकार ने 7,280 करोड़ रुपए के बजट वाली मेगा योजना को मंजूरी दे दी है।
इस योजना का मकसद भारत में हर साल 6,000 मीट्रिक टन की Integrated REPM Production Capacity तैयार करना है, अभी भारत की मांग का बड़ा हिस्सा आयात से पूरा होता है, लेकिन इस स्कीम के लागू होने के बाद भारत न सिर्फ आत्मनिर्भर बनेगा, बल्कि Global Supply Chain में भी बड़ा खिलाड़ी बन जाएगा।
सरकार की इस योजना का सबसे बड़ा लक्ष्य है, कि भारत अपनी Rare Earth Permanent Magnet जरूरतों को खुद पूरा कर सके और भविष्य में इन्हें निर्यात करने की स्थिति में आए।
मुख्य लक्ष्य ये हैं-
> हर साल 6,000 MT मैन्युफैक्चरिंग क्षमता
> आयात पर निर्भरता खत्म करना
> EV, इलेक्ट्रॉनिक्स, डिफेंस जैसे सेक्टरों को सपोर्ट देना
> ग्लोबल टेक्नोलॉजी सप्लाई चेन में भारत की हिस्सेदारी बढ़ाना
Rare Earth Permanent Magnet (REPM) सबसे शक्तिशाली मैग्नेट माने जाते हैं, यह नियोडिमियम और सैमरियम जैसे Rare Earth Elements से बनाए जाते हैं, इनका उपयोग कई जगहों पर होता है, जैसे-
> इलेक्ट्रिक गाड़ियों (EV Motors)
> विंड टर्बाइन
> एयरोस्पेस
> डिफेंस सिस्टम
> मोबाइल, लैपटॉप और इलेक्ट्रॉनिक्स
> रोबोटिक्स और मेडिकल मशीनों में
भारत में EV सेक्टर बहुत तेजी से बढ़ रहा है, ऐसे में REPM की मांग अगले 5 साल में दोगुनी होने की संभावना है।
सिंटर्ड Rare Earth Permanent Magnet बनाने के कई स्टेप होते हैं-
> Rare Earth Oxides को धातु में बदला जाता है।
> धातु से Alloy तैयार की जाती है।
> Alloy को पाउडर रूप में बदलकर Heat Compression किया जाता है।
> इससे Solid Magnet तैयार होता है।
यह प्रक्रिया हाई-टेक और हाई-प्रिसिजन वाली होती है, इसी वजह से दुनिया में बहुत कम देश इसे करते हैं।
सरकार के अनुसार 2025 से 2030 के बीच भारत में REPM की खपत दोगुनी हो सकती है, इसकी कई वजहें हैं, जैसे-
> इलेक्ट्रिक वाहनों की बूम
> रिन्यूएबल एनर्जी प्रोजेक्ट्स की बढ़ोतरी
> इलेक्ट्रॉनिक्स की बढ़ती मांग
> डिफेंस और एयरोस्पेस निवेश में तेजी
अभी भारत की REPM जरूरत का बड़ा हिस्सा चीन और अन्य देशों से आयात किया जाता है।
सरकार इस योजना के तहत वैश्विक प्रतिस्पर्धी बोली के जरिए 5 कंपनियों का चयन करेगी।
> 1,200 MT प्रति वर्ष क्षमता
> 5 साल तक प्रोत्साहन
> Capex सपोर्ट
> टेक्नोलॉजी और R&D में सहयोग
यह मॉडल उन कंपनियों को चुनेगा जो भारत को माइक्रो-मोबिलिटी और हाई-एंड मैन्युफैक्चरिंग में आगे ले जा सकें।
सरकार के अनुसार इस योजना की कुल अवधि 7 वर्ष होगी, इसमें शामिल हैं:
> 2 साल- यूनिट लगाने के लिए
> 5 साल- उत्पादन पर प्रोत्साहन देने के लिए
इस दौरान भारत में Rare Earth Magnet उत्पादन एक नए स्तर पर पहुंच जाएगा।
इस स्कीम से सबसे अधिक फायदा इन सेक्टरों को मिलेगा-
> इलेक्ट्रिक वाहन (EV Sector)
> रिन्यूएबल एनर्जी (Wind & Solar Tech)
> डिफेंस टेक
> एयरोस्पेस
> कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स
> मेडिकल उपकरण
> हाई-पावर मोटर और रोबोटिक्स
भारत को इन सभी क्षेत्रों में एक मजबूत वैल्यू चेन बनाने में मदद मिलेगी।
इस स्कीम के बाद भारत को कई फायदे होंगे, जैसे-
> Rare Earth Magnets का नेट प्रोड्यूसर बन सकेगा
> ग्लोबल कंपनियों को सप्लाई कर सकेगा
> चीन पर निर्भरता घटेगी
> एशिया का बड़ा उत्पादन केंद्र बन सकता है।
> Strategic Sectors में आत्मनिर्भरता बढ़ेगी
> हजारों नई नौकरियां
> MSME सप्लाई चेन मजबूत होगी
> हाई-टेक मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा
> बड़ा निर्यात संभावित
> विदेशी निवेश आकर्षित होगा
केंद्रीय कैबिनेट का यह फैसला भारत को Rare Earth Magnet मैन्युफैक्चरिंग में वैश्विक शक्ति बनाने की दिशा में एक गेम-चेंजर कदम है, 7,280 करोड़ रुपए की इस योजना से देश की टेक्नोलॉजी, डिफेंस, EV, इलेक्ट्रॉनिक्स और ऊर्जा से संबंधित इंडस्ट्री को नया जीवन मिलेगा, आने वाले वर्षों में भारत का लक्ष्य सिर्फ आत्मनिर्भर बनना नहीं, बल्कि ग्लोबल मार्केट में नेतृत्व हासिल करना है।