जनरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (GenAI) की तेज़ और अभूतपूर्व प्रगति ने एक पुरानी आर्थिक बहस को फिर से ज़िंदा कर दिया है — क्या ऑटोमेशन इंसानों की नौकरियां खत्म कर देगा, या यह एक ऐसी तकनीकी क्रांति की शुरुआत है जो वैश्विक स्तर पर उत्पादकता, वेतन और जीवन स्तर को ऊंचा उठाएगी?
दुनिया के प्रमुख आर्थिक संस्थानों की राय है कि आने वाले वर्षों में काम का भविष्य बेरोजगारी से नहीं, बल्कि नौकरियों के स्वरूप में बड़े और तेज़ बदलाव से तय होगा।
शुरुआती दौर में ऑटोमेशन ने केवल मैन्युअल और दोहराए जाने वाले कामों को प्रभावित किया था। लेकिन अब GenAI जैसे लार्ज लैंग्वेज मॉडल्स (Large Language Models) सीधे व्हाइट-कॉलर नौकरियों पर असर डाल रहे हैं — यानी वे काम जो अब तक सुरक्षित माने जाते थे।
यह बदलाव सरकारों, कंपनियों और आम लोगों — तीनों के लिए एक बड़ी चुनौती और ज़िम्मेदारी लेकर आया है।
अब ज़रूरत है एक रणनीतिक और सामूहिक प्रयास की, ताकि तकनीकी बदलावों से समाज में असमानता न बढ़े और हर वर्ग को विकास के अवसर मिलें।
इस परिवर्तन को समझने के लिए हमें तीन अहम पहलुओं पर ध्यान देना होगा —
पहला, कौन-से क्षेत्र नौकरियों के नुकसान का सामना कर रहे हैं।
दूसरा, कौन-से नए और उच्च मूल्य वाले रोजगार तेजी से बढ़ रहे हैं।
और तीसरा, सरकारों और कंपनियों को कौन-से कदम उठाने चाहिए ताकि यह बदलाव समावेशी और संतुलित बने।
पहले के ऑटोमेशन दौर में मशीनें मुख्य रूप से फैक्ट्रियों और उत्पादन इकाइयों में काम करने वाले कर्मचारियों की नौकरियों को प्रभावित करती थीं। लेकिन आज की जनरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (GenAI) सीधे सेवा क्षेत्र, क्लेरिकल कार्यों, और कानूनी सहायता जैसे पेशों को प्रभावित कर रही है — जो अब तक स्थिर और सुरक्षित माने जाते थे।
इसका कारण है GenAI की क्षमता, जो भाषा, डेटा विश्लेषण और कंटेंट निर्माण जैसे मानसिक और जटिल कार्यों को तेज़ी और सटीकता से पूरा कर सकती है।
जनरेटिव एआई अब केवल सवालों के जवाब देने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक “AI Copilot” की तरह काम करते हुए मानव कर्मचारियों की उत्पादकता में 14% तक की बढ़ोतरी कर रहा है।
अमेरिका की एक सॉफ्टवेयर कंपनी पर किए गए NBER अध्ययन के अनुसार, एआई टूल्स नए कर्मचारियों को अनुभवी कर्मचारियों के स्तर तक लाने में मदद करते हैं। हालांकि, इसके चलते प्रबंधन अब टीमों का आकार घटा रहा है और एआई पर ज़्यादा निर्भर हो रहा है।
2025 का डेटा पॉइंट:
उद्योग रिपोर्ट्स के मुताबिक, अब AI चैटबॉट्स बड़े कॉल सेंटरों की जगह ले रहे हैं, जिससे एंट्री-लेवल नौकरियां सबसे अधिक खतरे में हैं। कंपनियां तेजी से “AI-first customer interaction” की ओर बढ़ रही हैं।
नतीजा:
इसका सीधा असर यह है कि कंपनियां कर्मचारियों की संख्या घटा रही हैं, जिससे बचे हुए कर्मचारियों पर ज़्यादा जटिल और भावनात्मक मामलों को संभालने का दबाव बढ़ रहा है।
रोजमर्रा के प्रशासनिक और कंटेंट-आधारित काम अब लार्ज लैंग्वेज मॉडल्स (LLMs) की वजह से तेजी से ऑटोमेट हो रहे हैं।
कानूनी क्षेत्र में:
University of Pennsylvania और OpenAI के शोध के अनुसार, लीगल क्लर्क्स और पैरालीगल्स उन पेशों में आते हैं जहां कम से कम 50% कार्यों को एआई द्वारा ऑटोमेट किया जा सकता है।
कई प्रमुख लॉ फर्म्स पहले ही GenAI टूल्स से मेमो और लीगल ड्राफ्ट मिनटों में तैयार कर रही हैं, जिससे रूटीन कामों के बिल योग्य घंटों में कमी आ रही है।
प्रशासनिक और क्लेरिकल क्षेत्र में:
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (WEF) की फ्यूचर ऑफ जॉब्स रिपोर्ट 2025 World Economic Forum’s (WEF) Future of Jobs Report 2025 के अनुसार, आने वाले वर्षों में क्लेरिकल और सेक्रेटेरियल नौकरियों में भारी गिरावट देखी जाएगी, क्योंकि एआई टूल्स रिपोर्ट लेखन, एडिटिंग और डिजाइन जैसे कार्यों को अधिक कुशलता से कर रहे हैं।
मीडिया कंपनियों ने भी स्वीकार किया है कि AI अब हेडलाइन बनाने, वीडियो सारांश तैयार करने और बेसिक एडिटिंग जैसे कार्यों को आसान बना रहा है — जिससे जूनियर एडिटर्स की आवश्यकता कम हो रही है।
वैश्विक प्रभाव:
गोल्डमैन सैक्स रिसर्च Goldman Sachs Research का अनुमान है कि आने वाले वर्षों में 300 मिलियन से अधिक फुल-टाइम नौकरियां स्वचालित हो सकती हैं। वर्तमान में लगभग दो-तिहाई व्यवसायों के कार्यों में कुछ न कुछ परिवर्तन देखने को मिलेगा — जो दर्शाता है कि यह बदलाव केवल किसी एक देश या क्षेत्र तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि पूरी वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगा।
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एआई के बढ़ते प्रभाव की कहानी सिर्फ नौकरियां खत्म होने की नहीं है, बल्कि यह बदलाव और नए अवसरों की कहानी भी है। ऑटोमेशन हमेशा नौकरियां खत्म नहीं करता, बल्कि काम के तरीकों और जरूरी कौशलों को बदल देता है। अब सबसे ज्यादा मांग उन लोगों की है जो या तो एआई सिस्टम को बनाते, संभालते और सुरक्षित रखते हैं, या फिर ऐसे काम करते हैं जिनमें रचनात्मकता, सोचने की क्षमता और भावनात्मक समझ जैसी मानव-केंद्रित क्षमताएं जरूरी होती हैं।
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (WEF) की Future of Jobs Report 2025 के अनुसार, 2030 तक दुनिया भर में करीब 7.8 करोड़ नई नौकरियां बनने की संभावना है, जो मुख्य रूप से तकनीकी विकास की वजह से होंगी। विशेष रूप से एआई और मशीन लर्निंग विशेषज्ञों की मांग 2027 तक 40% तक बढ़ने की उम्मीद है, जिससे लगभग 10 लाख नई नौकरियां पैदा होंगी।
सबसे तेजी से बढ़ने वाले और ज्यादा वेतन देने वाले कामों में शामिल हैं –
डेटा एनालिस्ट और डेटा साइंटिस्ट्स
साइबर सिक्योरिटी विशेषज्ञ
प्रॉम्प्ट इंजीनियर्स – ऐसे विशेषज्ञ जो जेनरेटिव एआई मॉडलों को सही दिशा में काम कराने के लिए इनपुट (प्रॉम्प्ट्स) तैयार और अनुकूलित करते हैं।
एआई एथिक्स और गवर्नेंस विशेषज्ञ – जो यह सुनिश्चित करते हैं कि एआई का इस्तेमाल जिम्मेदारी से, निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से किया जाए।
यह बदलाव एक “कौशल संकट” को उजागर करता है। नौकरियां पूरी तरह खत्म नहीं होंगी, लेकिन उनके लिए जरूरी कौशल बहुत तेजी से बदल रहे हैं। IBM Institute for Business Value की एक रिपोर्ट बताती है कि अगले तीन वर्षों में दुनिया की 40% कार्यबल को किसी न किसी रूप में नए कौशल सीखने की जरूरत पड़ेगी, क्योंकि एआई काम करने के तरीकों को बदल रहा है।
इसका मतलब है कि एआई नौकरियां खत्म नहीं कर रहा, बल्कि पुराने कौशलों को अप्रासंगिक बना रहा है। जो लोग जल्दी अनुकूलन करेंगे और एआई-समर्थित पेशेवर (AI-Augmented Professionals) बनेंगे, वे भविष्य में आगे रहेंगे।
एआई से जुड़ी सबसे बड़ी सामाजिक चुनौती बेरोजगारी नहीं, बल्कि आय और संपत्ति में बढ़ती असमानता है।
गोल्डमैन सैक्स के अनुसार, एआई से सबसे ज्यादा प्रभावित नौकरियां उच्च वेतन वाले व्हाइट-कॉलर सेक्टर में हैं। लेकिन खतरा यह है कि जिन लोगों की नौकरियां थोड़ी सुरक्षित हैं, उनके पास नए कौशल सीखने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं हैं।
कम आय वाले कर्मचारी: जिनकी नौकरियां एआई से सीधे प्रभावित नहीं भी होतीं, उनकी आय पहले से ही सीमित है, इसलिए वे नई टेक्नोलॉजी सीखने में पीछे रह सकते हैं।
संपत्ति का अंतर: IMF के अध्ययन में बताया गया है कि भले ही एआई कुछ अमीर कर्मचारियों की आय को कम करे, लेकिन संपत्ति की असमानता बढ़ेगी, क्योंकि वही लोग एआई कंपनियों में निवेश और हिस्सेदारी से ज्यादा फायदा कमाएंगे।
अगर सरकारें और कंपनियां जल्दी नीति-स्तर पर बदलाव नहीं करतीं, तो यह खाई और चौड़ी होगी। McKinsey Global Institute ने चेतावनी दी है कि अगर जोखिमग्रस्त कर्मचारियों के लिए नए रोजगार और प्रशिक्षण के रास्ते नहीं बनाए गए, तो एआई आधारित विकास राजनीतिक और सामाजिक रूप से अस्थिर हो जाएगा।
भविष्य में यह खतरा हो सकता है कि कुछ उच्च-कुशल लोग एआई डिजाइन और नियंत्रित करें, जबकि बड़ी आबादी अस्थायी गिग-वर्क में उलझी रह जाए, जो लगातार नए कौशल सीखने की दौड़ में बनी रहे।
एआई के युग में समावेशी विकास (Inclusive Growth) सुनिश्चित करने के लिए सरकार और कंपनियों—दोनों को मिलकर एक संतुलित और सोच-समझकर बनाई गई रणनीति अपनानी होगी। इसमें एक तरफ सख्त नियम और नीतियां (Regulatory Guardrails) जरूरी हैं, तो दूसरी तरफ मानव पूंजी (Human Capital) में निवेश भी उतना ही महत्वपूर्ण है।
सरकारों को अब सिर्फ एआई के विकास को देखने की भूमिका नहीं निभानी चाहिए, बल्कि इस परिवर्तन के सक्रिय निर्माता (Active Architects) बनना चाहिए।
विश्वास के लिए नियमन (Regulation for Trust):
यूरोपीय संघ (European Union) जैसे देशों ने अपने AI Act के जरिए स्पष्ट नियम बनाए हैं, जो कंपनियों को पारदर्शिता और जोखिम प्रबंधन के लिए जिम्मेदार बनाते हैं। इसका उद्देश्य जनता में भरोसा बढ़ाना और एआई के जिम्मेदार उपयोग को सुनिश्चित करना है, ताकि नवाचार (Innovation) पर रोक भी न लगे।
नई स्किल्स में निवेश (Funding Reskilling):
एआई से जुड़े जोखिमों और फायदों को समान रूप से बांटने के लिए सरकारों को ट्रेनिंग और री-स्किलिंग प्रोग्राम्स में निवेश करना चाहिए। इसमें एआई शिक्षा को स्कूल और कॉलेज स्तर पर शामिल करना और राष्ट्रीय स्तर पर अपस्किलिंग मिशन शुरू करना शामिल है।
भारत में नीति आयोग (NITI Aayog) की AI for Viksit Bharat NITI Aayog’s AI for Viksit Bharat initiative पहल इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इस योजना का लक्ष्य 2035 तक भारत को एआई टैलेंट का वैश्विक केंद्र (Global AI Talent Hub) बनाना है।
कंपनियों के लिए एआई ट्रांज़िशन सिर्फ “पालना करने का नियम” नहीं, बल्कि रणनीतिक निवेश (Strategic Investment) का अवसर है। मौजूदा कर्मचारियों को नए कौशल सिखाना, बाहर से नए लोगों को भर्ती करने की तुलना में ज्यादा फायदेमंद और किफायती होता है।
संस्थागत ज्ञान को बचाना (Preserving Institutional Knowledge):
IBM की मुख्य मानव संसाधन अधिकारी (CHRO) ने Harvard Business Review में कहा कि री-ट्रेनिंग करना, खासकर उन्नत एनालिटिक्स से जुड़े पदों के लिए, नई भर्ती करने से सस्ता और प्रभावी होता है। मौजूदा कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने से कंपनी का अनुभव और ज्ञान बरकरार रहता है और नए कर्मचारियों की भर्ती से जुड़ा समय और खर्च दोनों घटते हैं।
बड़ी पहलें (Large-Scale Initiatives):
दुनिया की कई बड़ी कंपनियां इस दिशा में उदाहरण पेश कर रही हैं –
Microsoft की Global Skills Initiative के तहत लाखों लोगों को डिजिटल और जेनरेटिव एआई (GenAI) कौशल में प्रशिक्षित किया गया है।
Amazon अपने कर्मचारियों को Machine Learning University में मुफ्त दाखिला देता है। कंपनी के आंकड़ों के मुताबिक, जो कर्मचारी यह कोर्स पूरा करते हैं, वे दो साल के भीतर बेहतर वेतन वाली तकनीकी भूमिकाओं में पहुंच जाते हैं।
PwC की 2024 रिपोर्ट 2024 PwC survey of investors and analysts के अनुसार, निवेशक और विश्लेषक मानते हैं कि एआई से विकास तभी संभव है जब कंपनियां एआई तकनीक और मानव संसाधन दोनों में समान रूप से निवेश करें। सिर्फ कर्मचारियों की छंटनी करने से अल्पकालिक लाभ तो मिल सकता है, लेकिन लंबे समय में यह कंपनी की प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता (Competitiveness) को कमजोर कर देता है।
नौकरियों का भविष्य इंसानी बुद्धिमत्ता और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के बीच एक नए संतुलन से तय होगा। एआई कोई ऐसा अंत नहीं है जो इंसानों के काम को खत्म कर देगा, बल्कि यह एक आर्थिक शक्ति (Economic Force) है जो हमें एक नया सामाजिक समझौता (New Social Contract) बनाने के लिए प्रेरित करती है।
यह सच है कि आने वाले समय में कॉल सेंटर, कानूनी सहायता, और कंटेंट सेवाओं जैसी कुछ नौकरियां धीरे-धीरे खत्म होंगी। लेकिन उतना ही निश्चित है कि डेटा साइंस, साइबर सुरक्षा और मानव-केंद्रित डिजाइन (Human-Centric Design) जैसे क्षेत्रों में नए और उच्च मूल्य वाले रोजगार तेजी से पैदा होंगे।
सफलता का रहस्य इन दोनों शक्तियों के बीच संतुलन बनाने में है।
सरकारों को एआई के उपयोग के लिए स्पष्ट नियम बनाने होंगे और आजीवन शिक्षा (Lifelong Learning) को बढ़ावा देना होगा। वहीं, कंपनियों को कर्मचारियों की दोबारा नियुक्ति (Worker Redeployment) को रणनीतिक संपत्ति (Strategic Asset) के रूप में देखना चाहिए, न कि बोझ के रूप में।
यदि सरकारें और कॉर्पोरेट जगत मिलकर काम करें, तो वे इस ऑटोमेशन की लहर को एक नई औद्योगिक क्रांति (New Industrial Revolution) की दिशा में मोड़ सकते हैं —
एक ऐसी क्रांति, जो उत्पादकता में वृद्धि (Productivity Boom) और समावेशी विकास (Inclusive Prosperity) लेकर आएगी,
न कि बेरोजगारी और सामाजिक अस्थिरता (Mass Dislocation and Social Instability) का कारण बनेगी।