किसने डिज़ाइन किया देश का सर्वोच्च सम्मान, परमवीर चक्र

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29 Nov 2021
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परमवीर चक्र भारत का सर्वोच्च सम्मान है। यह पुरस्कार भारत में किसी व्यक्ति को उसके वीरता और शौर्य के लिए दिया जाता है। इसे युद्धकाल के दौरान वीरता के विशिष्ट कार्यों को करने के लिए दिया जाता है। यह एक ऐसा अलंकरण है, जिसका नाम सुनकर ही हमारे भीतर जोश और बलिदान की लहर दौड़ जाती है। इसी देश के सर्वोच्च सम्मान को डिज़ाइन करने वाली महिला थीं सावित्री बाई खालोनकर।

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परमवीर चक्र Param Vir Chakra भारत का सर्वोच्च सम्मान है। यह पुरस्कार भारत में किसी व्यक्ति को उसके वीरता और शौर्य के लिए दिया जाता है। यह अलंकरण अधिकांश स्थितियों में मरणोपरांत दिया गया है। अभी तक बहुत ही कम ऐसे अवसर आए हैं, जिनमें यह सम्मान जीवित रहते हुए किसी ने ग्रहण किया है। देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न के बाद इस पुरस्कार को सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार माना गया है। इस पुरस्कार की स्थापना 26 जनवरी 1950 को की गई थी, अब तक भारत में 21 वीर योद्धाओं को यह पुरस्कार दिया जा चुका है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र के डिज़ाइन को तैयार करने वाला कौन था। चलिए जानते हैं कि इसके डिज़ाइन को किसने तैयार किया था। 

कौन थीं परमवीर चक्र को डिज़ाइन करने वाली महिला

भारत के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र को डिज़ाइन करने वाली महिला भारतीय नहीं बल्कि एक विदेशी महिला थी। यह महिला स्विट्ज़रलैंड की रहने वाली थी और इसका नाम इवा योन्ने लिंडा था। इनके पिता हंगरी से और माता रुस से थीं। इनको किताबें पढ़ने का शौक था और यहीं से इनको भारतीय सभ्यता के बारे में जानने का मौका मिला। दरअसल इवा की मुलाकात विक्रम रामजी खानोलकर Vikram Ramji Khanolkar से हुई, जो इंडियन आर्मी कैडेट के सदस्य थे और वे ब्रिटेन में ट्रेनिंग के लिए गए थे। इसके बाद इवा कुछ साल के बाद भारत आ गयीं और उन्होंने रामजी से शादी कर ली। 

शादी के बाद बदल गयी ज़िंदगी

मराठी रीति रिवाज से शादी संपन्न होने के बाद इवा ने हिन्दू धर्म अपना लिया और अब यहीं से उनकी पूरी ज़िंदगी बदल गयी। अब इवा से वे बन गयी थीं सावित्री बाई खालोनकर। सावित्री बाई खालोनकर अब पूरी तरह से भारतीय बन गयीं। अब उन्होंने यहीं की सभ्यता और संस्कृति को अपना लिया और यहीं की होकर रह गयीं। इसके बाद सावित्री ने पटना विश्वविद्यालय में एडमिशन लेकर संस्कृत, नाटक, वेद और उपनिषद का गहन अध्ययन किया। वे अब तक हिंदी, मराठी और संस्कृत भाषा भी सीख चुकी थीं। उन्होंने कुछ किताबें भी लिखीं जैसे संस्कृत डिक्शनरी ऑफ़ नेम्स, सेंट्स ऑफ़ महाराष्ट्र आदि। वह स्वामी रामकृष्ण मिशन से भी जुड़ी रहीं, इससे उन्हें संगीत और नृत्य का भी पूरा ज्ञान हो गया। 

कैसे मिला मौका परमवीर चक्र को डिज़ाइन करने का

दरअसल 1947 में भारत और पाकिस्तान युद्ध में साहस और शौर्य का प्रदर्शन करने वाले वीरों को सम्मानित करने के लिए एक पदक की तैयारी हो रही थी। पदक को बनाने पर काम चल रहा था और इस पदक की पूरी जिम्मेदारी हीरा लाल अट्टल पर थी। हीरा लाल अटल Hira Lal Atal ने इस काम की जिम्मेदारी सौंप दी सावित्री बाई खालोनकर को। क्योंकि उन्हें पता था कि एक यही हैं, जो इस जिम्मेदारी को पूरी ईमानदारी और अपनी बुद्धिमता के दम पर अच्छी तरह से निभा सकती हैं और ऐसा हुआ भी। सावित्री बाई खालोनकर ने पूरी तन्मयता और मेहनत से इस परमवीर चक्र के डिज़ाइन को तैयार किया। सावित्री बाई ने इसे तैयार करके जैसे ही हीरा लाल अट्टल को भेजा, उन्हें यह डिज़ाइन पल भर में ही पसंद आ गया। बस फिर क्या था डिज़ाइन को रंग रूप दिया गया और डिज़ाइन उसी वक्त पास हो गया। इस तरह से परमवीर चक्र के साथ सावित्री बाई खालोनकर का नाम जुड़ गया।

परमवीर चक्र के अलावा किये अन्य सम्मान भी डिज़ाइन 

26 जनवरी 1950 को पहले गणतंत्र दिवस पर सेनानियों को सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र पुरस्कार से सम्मानित किया गया। परमवीर चक्र में चारों तरफ वज्र के चार चिन्ह, बीच में राष्ट्र चिन्ह और दूसरी तरफ कमल का चिन्ह है। इसमें बीच में हिंदी और इंग्लिश दोनों भाषाओं में परमवीर चक्र लिखा गया है। परमवीर चक्र में बैंगनी रंग की रिबन की पट्टी के साथ कांस्य धातु की गोलाकार आकृति बनायी गयी है। परमवीर चक्र का डिज़ाइन बनाने के बाद सावित्री बाई खालोनकर को सम्मान डिज़ाइन करने का पूरा आईडिया हो गया था। मेजर सोमनाथ शर्मा को सबसे पहला परमवीर चक्र प्राप्त हुआ, जो कि सावित्री बाई खालोनकर द्वारा डिज़ाइन किया गया था। परमवीर चक्र का डिज़ाइन बनाने के बाद सावित्री ने और भी कई सम्मान डिज़ाइन किये। उन्होंने जैसे महावीर चक्र, अशोक चक्र आदि के डिज़ाइन भी तैयार किये। पति विक्रम रामजी खानोलकर की मौत के बाद उन्होंने अपना पूरा जीवन समाज की सेवा में बिताया।

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