पिछले एक दशक में भारत ने महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण को अपने विकास एजेंडा के केंद्र में रखा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार हो या एनडीए की राज्य सरकारें—सभी ने महिलाओं को सामाजिक, आर्थिक और तकनीकी रूप से आगे बढ़ाने के लिए लगातार काम किया है।
स्वास्थ्य, आजीविका, उद्यमिता, डिजिटल सुविधा और कौशल विकास जैसे क्षेत्रों में शुरू की गई योजनाओं ने महिलाओं के जीवन में बड़ा बदलाव लाया है।
इसी श्रृंखला में बिहार की मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना (MMRY) Chief Minister Women Employment Scheme (MMRY) —जिसे आम तौर पर महिला रोजगार योजना कहा जाता है—महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण की दिशा में एक बेहद महत्वपूर्ण कदम है।
यह योजना 29 अगस्त 2025 को शुरू की गई थी, जिसका वर्चुअल उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया। इस योजना का उद्देश्य राज्य की महिलाओं को अपना व्यवसाय शुरू करने, आसानी से ऋण (लोन) पाने और स्थायी आर्थिक स्वतंत्रता हासिल करने में मदद करना है।
इस लेख में हम जानेंगे कि यह योजना कैसे काम करती है, इसमें किसे लाभ मिलेगा और यह महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के भारत के बड़े लक्ष्य से कैसे जुड़ी है।
पिछले ग्यारह वर्षों में मोदी सरकार की नीतियों का मुख्य केंद्र हमेशा महिलाएँ रही हैं। उज्ज्वला योजना, पोषण अभियान, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, जल जीवन मिशन, प्रधानमंत्री आवास योजना, पीएम विश्वकर्मा और लक्षपति दीदी जैसी योजनाओं ने शहरों और गाँवों की करोड़ों महिलाओं को सुरक्षा, सम्मान, रोज़गार और आर्थिक मजबूती दी है।
आज महिलाएँ सामाजिक और आर्थिक बदलाव की असली ताकत बनकर उभरी हैं। जैसे एक परमाणु का केंद्र या कोशिका में मौजूद माइटोकॉन्ड्रिया पूरी संरचना को ऊर्जा देते हैं, उसी तरह एक महिला की प्रगति से पूरा परिवार और फिर पूरा समाज आगे बढ़ता है।
मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना बिहार सरकार की एक बड़ी पहल है। ग्रामीण क्षेत्रों में इसे जीविका के माध्यम से ग्रामीण विकास विभाग और शहरी इलाकों में नगर विकास विभाग द्वारा लागू किया जा रहा है, जिससे यह योजना पूरे राज्य में महिलाओं तक पहुँच सके।
यह योजना उन परिवारों और महिलाओं तक आर्थिक मदद पहुँचाने के लिए बनाई गई है, जिन्हें इसकी सबसे अधिक आवश्यकता है।
योजना का उद्देश्य प्रत्येक परिवार की एक महिला को अपना छोटा व्यवसाय या आजीविका शुरू करने में सक्षम बनाना है।
योजना की शुरुआत में 75 लाख महिलाओं के बैंक खातों में ₹10,000 की प्रारंभिक राशि भेजी गई। यह कुल ₹7,500 करोड़ का बड़ा निवेश है, जिससे महिलाओं को तुरंत व्यवसाय शुरू करने की मदद मिल सके।
लाभार्थी महिला बिहार की निवासी होनी चाहिए।
आयु 18–60 वर्ष के बीच होनी चाहिए।
महिला किसी स्वयं सहायता समूह (SHG) की सदस्य होनी चाहिए।
न महिला और न ही उसके पति आयकर दाता होने चाहिए।
न ही वे नियमित या संविदा सरकार कर्मचारी होने चाहिए।
इन शर्तों से सुनिश्चित किया गया है कि सहायता उन्हीं परिवारों तक पहुँचे जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं।
योजना की वित्तीय सहायता कई चरणों में दी जाती है, ताकि महिलाएँ पहले व्यवसाय शुरू करें और फिर धीरे-धीरे उसे आगे बढ़ाएँ।
प्रारंभिक ₹10,000 की राशि महिला को छोटा व्यवसाय शुरू करने के लिए दी जाती है। यह राशि कैश सहायता नहीं बल्कि व्यवसाय शुरू करने के लिए एक कोष (कॉर्पस) है।
इसके माध्यम से महिलाएँ सिलाई, हैंडीक्राफ्ट, छोटी दुकानें, मुर्गी पालन, बकरी पालन आदि का काम शुरू कर सकती हैं।
जब व्यवसाय की समीक्षा, प्रशिक्षण और ज़रूरत का मूल्यांकन हो जाता है, तब लाभार्थी को आगे बढ़ने के लिए ₹2,00,000 (₹2 लाख) तक की अतिरिक्त वित्तीय सहायता दी जाती है।
कुल मिलाकर, ₹2.10 लाख तक की सहायता उपलब्ध है, जिससे एक छोटा प्रयास धीरे-धीरे एक स्थायी और बढ़ते हुए व्यवसाय में बदल सकता है।
महिला रोजगार योजना की सफलता का सबसे बड़ा आधार स्वयं सहायता समूहों (SHGs) का मजबूत नेटवर्क है। केंद्र सरकार की दीनदयाल अंत्योदय योजना–राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (DAY-NRLM) ने SHGs को नई ऊर्जा और संरचना दी है, जिससे महिलाएँ अब आर्थिक और सामाजिक दोनों स्तरों पर अधिक सक्षम हुई हैं।
SHG छोटे-छोटे समूह होते हैं जिनमें अधिकतर महिलाएँ जुड़ती हैं। वे अपनी बचत मिलाकर आपस में छोटे ऋण देती हैं या छोटे व्यवसाय शुरू करने के लिए माइक्रो-लोन लेती हैं। यह मॉडल महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने, बचत करने और कम ब्याज में पूंजी पाने में मदद करता है।
2025 के अंत तक, Deendayal Antyodaya Yojana-National Rural Livelihoods Mission (DAY-NRLM) ने पूरे देश में 90.90 लाख SHGs का नेटवर्क तैयार किया है, जिसमें 10.05 करोड़ से अधिक ग्रामीण महिलाएँ शामिल हैं। यह देश में वित्तीय समावेशन, कौशल विकास और गरीबी उन्मूलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
बिहार में जीविका कार्यक्रम के तहत लगभग 10.6 लाख SHGs सक्रिय हैं। ये समूह महिलाओं को संस्थागत सहायता, माइक्रो-लोन, प्रशिक्षण और सामुदायिक नेतृत्व के माध्यम से सशक्त बनाते हैं।
ग्रामीण हाट-बाज़ार जैसे पहलों से SHGs की महिलाओं को अपने उत्पाद बेचने और बाज़ार से जुड़ने में भी मदद मिलती है।
SHG से जुड़े छोटे उद्यम स्थानीय ज़रूरतों को बेहतर समझते हैं और उसी अनुसार उत्पाद बनाते हैं। इससे स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा मिलता है और स्थानीय अर्थव्यवस्था मजबूत होती है।
महिला रोजगार योजना (MMRY) इन उद्यमों को आगे बढ़ने पर प्रोत्साहन देती है।
जो व्यवसाय ₹10,000 की छोटी राशि से शुरू होते हैं, वे आगे चलकर अधिक पूंजी और बड़ी बाज़ार क्षमता वाले उद्यम बन सकते हैं।
लक्षपति दीदी मिशन Lakhpati Didi mission, जिसे 2023 में शुरू किया गया था, ग्रामीण SHG महिलाओं को सालाना ₹1 लाख से अधिक आय प्राप्त करने के लिए तैयार करता है। इसमें कौशल प्रशिक्षण, वित्तीय जागरूकता और उद्यमिता का पूरा समर्थन मिलता है।
शुरुआत में 2 करोड़ महिलाओं को लक्ष्य किया गया था, लेकिन 2024-25 के अंतरिम बजट में इसे बढ़ाकर 3 करोड़ कर दिया गया।
2025 के अंत तक 2 करोड़ से अधिक महिलाएँ पहले ही लक्षपति दीदी बन चुकी हैं।
बिहार की महिलाएँ MMRY के तहत मिलने वाली ₹2.10 लाख तक की वित्तीय सहायता, प्रशिक्षण और मेंटरशिप की मदद से आसानी से लक्षपति दीदी बनने की राह पर आगे बढ़ सकती हैं। यह न सिर्फ महिलाओं की आय बढ़ाता है, बल्कि बिहार की अर्थव्यवस्था में भी बड़ा योगदान देता है।
प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (PMMY) Pradhan Mantri Mudra Yojana (PMMY) 2015 से मौजूदा छोटे उद्यमों को बिना गारंटी के ऋण देती है। लेकिन यह उन लोगों पर केंद्रित है जो पहले से व्यवसाय चला रहे हैं।
महिला रोजगार योजना (MMRY) इससे एक कदम आगे है।
यह उन महिलाओं को लक्ष्य करती है जिनके पास व्यवसाय शुरू करने के लिए शुरुआती पूंजी भी नहीं होती।
योजना उन्हें शुरुआत करने के लिए आर्थिक मदद देती है, जिससे वे अपना पहला कदम आत्मविश्वास से उठा सकें।
इस तरह MMRY उस आर्थिक अंतर को भरती है जो एक उद्यम शुरू होने से पहले आता है और जिसे अक्सर कोई भी योजना कवर नहीं करती।
लाखों महिलाओं को पहली बार बिना झंझट के कर्ज तक पहुंच मिल रही है।
ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में एसएचजी (स्वयं सहायता समूह) का नेटवर्क और मजबूत हो रहा है।
महिलाओं द्वारा संचालित टिकाऊ और छोटे व्यवसायों को बढ़ावा मिल रहा है।
माइक्रो-उद्यमिता के जरिए राज्य की अर्थव्यवस्था को नई ऊर्जा मिल रही है।
आर्थिक आत्मनिर्भरता से सामाजिक स्थिति में सुधार हो रहा है।
परिवारों को लंबे समय तक आर्थिक स्थिरता और तरक्की के अवसर मिल रहे हैं।
जिस राज्य को कभी कानून-व्यवस्था की चुनौतियों और रोजगार की कमी के लिए जाना जाता था, वहीं अब महिला रोजगार योजना महिलाओं के नेतृत्व में विकास के नए युग की शुरुआत कर रही है।
महिला रोजगार योजना सिर्फ आर्थिक सहायता देने वाली योजना नहीं है। यह एक बड़ा परिवर्तनकारी प्रयास है, जिसका उद्देश्य लाखों महिलाओं की प्रतिभा और सपनों को आगे बढ़ाना है। बीज धन, प्रशिक्षण और आसान कर्ज उपलब्ध कराकर यह योजना महिलाओं को अपने कौशल को एक सफल व्यवसाय में बदलने का मौका देती है।
आज जब भारत में विकास की कहानी महिलाओं के नेतृत्व में आगे बढ़ रही है, बिहार की यह पहल अन्य राज्यों के लिए एक प्रेरक मॉडल बन रही है। यह योजना हमें एक महत्वपूर्ण सच्चाई याद दिलाती है—जब एक महिला आगे बढ़ती है, तो वह सिर्फ खुद को नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी ऊपर उठाती है।
बिहार की महिलाओं के लिए यह सिर्फ एक सरकारी योजना नहीं, बल्कि आत्मविश्वास, अवसरों और सम्मान से भरे नए आर्थिक भविष्य की शुरुआत है।