मेरे घर में फिलोडेंड्रॉन पौधों की तीन अलग-अलग प्रजातियाँ एक अनोखे लेकिन कारगर तरीके से पनप रही हैं। ये पौधे मिट्टी से नहीं, बल्कि उन मछलियों के टैंक से आने वाले पोषक तत्वों से भरपूर पानी से अपनी ऊर्जा ले रहे हैं, जिनमें अफ्रीकी सिकलिड मछलियाँ रहती हैं।
यह तरीका एक्वास्केपिंग और टेरारियम तकनीकों का मिश्रण है, जो प्राचीन चीनी ‘धान-मछली खेती’ प्रणाली से प्रेरित है, लेकिन इसका रूप आधुनिक है। यह एक्वापोनिक्स का उदाहरण है, जो हाइड्रोपोनिक्स की एक नजदीकी तकनीक है।
इस छोटे से घरेलू प्रयोग में हाइड्रोपोनिक्स की पूरी अवधारणा समाई हुई है – बिना मिट्टी के खेती, सिर्फ पोषक तत्वों से भरपूर पानी की मदद से। यह नई तकनीक अब सिर्फ प्रयोगशाला तक सीमित नहीं है, बल्कि दुनियाभर में तेजी से फैल रही है, खासकर भारत में।
तेजी से होते शहरीकरण के कारण खेती योग्य भूमि घट रही है, जल संकट बढ़ रहा है, और लोग अब ज़्यादा जैविक व कीटनाशक-मुक्त सब्ज़ियों की माँग कर रहे हैं। ऐसे में हाइड्रोपोनिक्स एक प्रभावी समाधान बनकर उभर रहा है। सरकार भी कृषि-तकनीकी नवाचारों को बढ़ावा दे रही है, जिससे इस क्षेत्र को बड़ी ताकत मिल रही है।
भारत में हाइड्रोपोनिक्स का बाज़ार 2022 में लगभग 1.4 बिलियन डॉलर का था और यह अनुमान है कि 2031 तक यह 5.3 बिलियन डॉलर तक पहुँच जाएगा। इसकी सालाना विकास दर लगभग 17.6% रहने की संभावना है।
यह लेख हाइड्रोपोनिक्स की तकनीक Technique of Hydroponics, उससे जुड़ी सहायक विधियाँ, निवेश के अवसर और इससे जुड़ी चुनौतियों पर रोशनी डालता है – ताकि इस क्षेत्र की पूरी संभावनाओं को समझा और अपनाया जा सके।
हाइड्रोपोनिक्स एक ऐसी तकनीक है जिसमें पौधे मिट्टी की जगह पानी में घुले पोषक तत्वों की मदद से उगाए जाते हैं। इस पद्धति में किसान को पौधे की ज़रूरत के अनुसार पोषण देने पर पूरा नियंत्रण रहता है, जिससे पौधों की ग्रोथ तेज़ होती है और पारंपरिक खेती के मुकाबले उत्पादन भी ज़्यादा होता है।
मिट्टी का उपयोग न होने से कीटों और बीमारियों का खतरा कम हो जाता है और ज़मीन की जरूरत भी नहीं रहती। इसके अलावा, इस तकनीक से मौसम पर निर्भर हुए बिना पूरे साल फसलें उगाई जा सकती हैं।
दुनियाभर में हाइड्रोपोनिक्स का बाज़ार बहुत तेजी से बढ़ रहा है। 2024 में इसका अनुमानित मूल्य करीब 14.57 बिलियन डॉलर था और यह 2032 तक बढ़कर 34.32 बिलियन डॉलर तक पहुँच सकता है। इसका औसत सालाना विकास दर (CAGR) 11.3% अनुमानित है। वहीं, कुछ रिपोर्टों के अनुसार यह बाज़ार 2034 तक 18.12 बिलियन डॉलर तक पहुँच सकता है, जिसमें CAGR 12.60% हो सकती है।
भारत में भी यह तकनीक तेज़ी से लोकप्रिय हो रही है, खासकर शहरों और आसपास के इलाकों में, जहाँ ज़मीन और पानी की कमी है। 2023 में भारत में हाइड्रोपोनिक्स का बाज़ार लगभग 218.75 मिलियन डॉलर का था और यह 2035 तक 2,227.04 मिलियन डॉलर तक पहुँच सकता है। इसकी औसत सालाना विकास दर 21.43% अनुमानित है।
2022 में कुछ रिपोर्टों ने इस मार्केट का आकार 1.4 बिलियन डॉलर बताया था, जबकि 2024 की नई रिपोर्टों में इसका अनुमान 506.7 मिलियन डॉलर दिया गया है, जो 2033 तक 2,292.7 मिलियन डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है, 16.91% की CAGR के साथ।
हालाँकि अलग-अलग रिपोर्टों में कुछ आंकड़ों में फर्क है, लेकिन सबका यही मानना है कि हाइड्रोपोनिक्स का भविष्य बहुत उज्ज्वल है।
यह सबसे बड़ा क्षेत्र है, जो बाजार का करीब 60% हिस्सा रखता है। इसमें बड़े पैमाने पर फॉर्म्स शामिल हैं, जो रिटेल और फूड इंडस्ट्री को ताज़ा सब्ज़ियाँ और फल सप्लाई करते हैं। यह क्षेत्र हर साल करीब 22% की दर से बढ़ रहा है।
इसका बाजार में हिस्सा लगभग 25% है। लोग अब अपने घर या समुदायों में खुद सब्ज़ियाँ उगाने में रुचि दिखा रहे हैं। यह क्षेत्र सालाना करीब 18% की दर से बढ़ रहा है।
इस क्षेत्र का योगदान करीब 15% है। इसमें विश्वविद्यालय और संस्थान नई तकनीकों पर रिसर्च कर रहे हैं और भविष्य के एग्री-टेक एक्सपर्ट्स को ट्रेनिंग दे रहे हैं। यह क्षेत्र सालाना 15% की दर से बढ़ रहा है।
हाइड्रोपोनिक्स तकनीक को तेजी से अपनाने और इसके तेजी से बढ़ने के पीछे कई महत्वपूर्ण वजहें हैं:
जैसे-जैसे शहर फैलते जा रहे हैं, खेती के लिए ज़मीन कम होती जा रही है। ऐसे में पारंपरिक खेती करना मुश्किल हो गया है। हाइड्रोपोनिक्स की मदद से अब छतों, गोदामों और घर के अंदर भी खेती की जा सकती है, जिससे शहरी क्षेत्रों में भी उत्पादन संभव हो गया है।
पारंपरिक खेती भारत के कुल जल उपयोग का लगभग 80% हिस्सा लेती है। वहीं, हाइड्रोपोनिक्स में पानी का इस्तेमाल 90% तक कम हो सकता है क्योंकि इसमें पानी बार-बार रीसायकल होता है। यह खासकर सूखे इलाकों के लिए बहुत उपयोगी तकनीक है।
लोग अब अपने खाने की गुणवत्ता को लेकर पहले से ज्यादा जागरूक हो गए हैं। वे ऐसे फल-सब्ज़ियाँ चाहते हैं जो कीटनाशकों से मुक्त हों। हाइड्रोपोनिक्स एक नियंत्रित वातावरण में होता है, जिससे कीटनाशकों और खरपतवार नाशकों की जरूरत बहुत कम पड़ती है।
हाइड्रोपोनिक सिस्टम आमतौर पर एक नियंत्रित वातावरण में काम करते हैं, जिससे सूखा, बाढ़ या अत्यधिक गर्मी-सर्दी जैसे मौसम का असर फसलों पर नहीं पड़ता। इससे पूरे साल लगातार उत्पादन किया जा सकता है।
भारत सहित कई देशों की सरकारें अब कृषि में तकनीकी नवाचारों को बढ़ावा दे रही हैं। हाइड्रोपोनिक्स जैसी तकनीकों को अपनाने के लिए सब्सिडी, प्रशिक्षण और अन्य सहायता दी जा रही है।
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हाइड्रोपोनिक्स के क्षेत्र में निवेशकों की रुचि लगातार बढ़ रही है। कई इनोवेटिव स्टार्टअप्स को बड़े निवेश मिले हैं। कुछ प्रमुख उदाहरण नीचे दिए गए हैं:
अर्बनकिसान (UrbanKissan): बेंगलुरु की इस कंपनी को 2022 में कालारी कैपिटल से $3 मिलियन का निवेश मिला। यह वर्टिकल हाइड्रोपोनिक्स पर काम करती है।
क्लोवर (Clover): हैदराबाद की इस कंपनी ने IoT आधारित बड़े पैमाने पर हाइड्रोपोनिक सिस्टम तैयार किए हैं। इसे 2021 में एक्सेल और ऑम्निवोर से $5.5 मिलियन का निवेश मिला।
फ्यूचर फार्म्स (Future Farms): यह कंपनी चेन्नई में व्यावसायिक हाइड्रोपोनिक फार्म चलाती है। इसे 2023 में हाई नेट वर्थ इंडिविजुअल्स (HNIs) और फैमिली ऑफिसेज़ से $2 मिलियन का फंड मिला।
इन निवेशों से यह साफ है कि वेंचर कैपिटल और प्राइवेट निवेशक इस सेक्टर की संभावनाओं को लेकर आश्वस्त हैं।
भारत में अन्य सक्रिय कंपनियों में शामिल हैं:
Nutrifresh, Letcetra Agritech, Rise Hydroponics, Acqua Farms, और BitMantis Innovations.
हाइड्रोपोनिक्स की असली ताकत तब सामने आती है जब इसे आधुनिक तकनीकों के साथ जोड़ा जाता है, जिससे कृषि के नए युग, यानी Agriculture 4.0 की शुरुआत होती है।
कैसे जुड़ते हैं:
आईओटी डिवाइस और स्मार्ट सेंसर पौधों के लिए जरूरी पर्यावरणीय पैरामीटर जैसे पानी का स्तर, pH, तापमान, रोशनी की तीव्रता और पोषक तत्वों की मात्रा को रियल टाइम में मॉनिटर करते हैं।
फायदे:
इससे पोषक तत्वों का स्वचालित वितरण, संसाधनों का बेहतर उपयोग, भविष्य में समस्या की पहचान और पौधों की सेहत का जल्द पता लगाना संभव होता है। उदाहरण के लिए Aerospring Hydroponics या CropX जैसे स्मार्ट हाइड्रोपोनिक्स किट्स।
कैसे जुड़ते हैं:
एआई एल्गोरिदम सेंसर से मिले डेटा, मौसम की जानकारी और पौधों के विकास पैटर्न का विश्लेषण करते हैं। वे पोषक चक्र को बेहतर बनाते हैं, फसल की उपज का पूर्वानुमान लगाते हैं, बीमारियों का पता लगाते हैं और सबसे अच्छे बढ़ने के माहौल की सलाह देते हैं।
फायदे:
स्वचालित निर्णय लेना, सटीक उपज की भविष्यवाणी और संसाधनों का सही नियंत्रण कर अधिकतम उत्पादकता सुनिश्चित होती है। GroLab जैसी कंपनियाँ एआई आधारित सिस्टम का उपयोग करती हैं।
कैसे जुड़ता है:
ब्लॉकचेन तकनीक पूरे फसल चक्र का एक पारदर्शी और अपरिवर्तनीय रिकॉर्ड बनाती है, बीज से लेकर कटाई और वितरण तक।
फायदे:
यह आपूर्ति श्रृंखला में भरोसा बढ़ाता है, गुणवत्ता सुनिश्चित करता है, और बिचौलियों को खत्म कर उपभोक्ताओं के लिए विश्वास बनाता है। AgriLedger जैसी स्टार्टअप्स ब्लॉकचेन पर आधारित समाधान दे रही हैं।
कैसे जुड़ता है:
एरोपोनिक्स हाइड्रोपोनिक्स का उन्नत रूप है, जिसमें पौधों की जड़ें हवा में टंगी रहती हैं और पोषक तत्वों का स्प्रे किया जाता है।
फायदे:
जड़ों को अधिक ऑक्सीजन मिलती है, जिससे पौधों की वृद्धि तेज होती है और पानी की खपत भी पारंपरिक हाइड्रोपोनिक्स से कम होती है। NASA ने इसे स्पेस में फसल उगाने के लिए इस्तेमाल किया था।
कैसे जुड़ता है:
यह मछली पालन और हाइड्रोपोनिक्स का संयोजन है। मछलियों का मल पौधों के लिए प्राकृतिक खाद का काम करता है, और पौधे पानी को साफ करते हैं, जिससे एक बंद चक्र बनता है।
फायदे:
यह एक स्वचालित और स्थायी प्रणाली है, जो रासायनिक उर्वरकों की जरूरत खत्म कर देती है और पानी की बचत करती है। WaterFarmers Aquaponics भारत में इस तकनीक का उदाहरण है।
कैसे जुड़ता है:
वर्टिकल फार्मिंग में हाइड्रोपोनिक्स तकनीक का इस्तेमाल कर अंदर या नियंत्रित वातावरण में ऊंचाई पर कई परतों में फसल उगाई जाती है।
फायदे:
यह जगह की बचत करता है, पानी की खपत कम करता है, और शहरी क्षेत्रों में पूरे साल फसल उगाने की सुविधा देता है। AeroFarms और UrbanKissan इस मॉडल को भारत में लागू कर रहे हैं।
कैसे जुड़ता है:
सोलर पैनल पूरे हाइड्रोपोनिक सिस्टम को बिजली देते हैं, जैसे पानी पंप, लाइटिंग और पर्यावरण नियंत्रण।
फायदे:
इससे लागत कम होती है, स्थिरता बढ़ती है और दूरदराज के इलाकों में ऑफ-ग्रिड खेती संभव होती है। राजस्थान में सोलर हाइड्रोपोनिक फार्म इस तकनीक का अच्छा उदाहरण हैं।
कैसे जुड़ते हैं:
रोबोटिक्स हाइड्रोपोनिक फार्मिंग में पौधारोपण, निगरानी, छंटाई और कटाई जैसे श्रम-गहन कार्यों को ऑटोमेट करता है।
फायदे:
यह काम की लागत कम करता है, सटीकता बढ़ाता है, मानवीय त्रुटि घटाता है और गुणवत्ता और उपज में निरंतरता सुनिश्चित करता है। Iron Ox जैसी अमेरिकी कंपनियाँ स्वचालित रोबोट्स का उपयोग करती हैं।
कैसे जुड़ते हैं:
उन्नत एलईडी लाइटें पौधों की जरूरत के हिसाब से रोशनी का सही स्पेक्ट्रम देती हैं, जिससे प्राकृतिक सूरज की रोशनी की जरूरत नहीं होती।
फायदे:
इससे पौधों की वृद्धि तेज होती है, ऊर्जा की बचत होती है और कम कार्बन उत्सर्जन होता है। Philips GreenPower LED सिस्टम इस क्षेत्र में लोकप्रिय हैं।
कैसे जुड़ते हैं:
यह प्लेटफॉर्म्स IoT सेंसर, मौसम की जानकारी, पौधों की जीन जानकारी और विकास पैटर्न का डेटा इकट्ठा कर उसका विश्लेषण करते हैं।
फायदे:
इससे खेती का पूर्वानुमान, संसाधनों का बेहतर प्रबंधन और अधिक उपज व गुणवत्ता के लिए सही निर्णय लेने में मदद मिलती है। Agrivi जैसे क्लाउड-आधारित फार्म मैनेजमेंट सिस्टम इसका उदाहरण हैं।
हाइड्रोपोनिक्स में बहुत संभावनाएँ हैं, लेकिन इसके रास्ते में कुछ बड़ी चुनौतियाँ भी हैं:
एक उन्नत हाइड्रोपोनिक फार्म स्थापित करने में काफी निवेश करना पड़ता है। इसमें खास उपकरण, पर्यावरण नियंत्रण सिस्टम और तकनीकी इंटीग्रेशन शामिल होते हैं। यह लागत कई लोगों के लिए बाधा बन सकती है।
अधिकांश पारंपरिक किसान हाइड्रोपोनिक्स के बारे में ज्यादा नहीं जानते। पुराने खेती के तरीकों को छोड़कर नई तकनीक अपनाना उनके लिए चुनौतीपूर्ण होता है, जिसके लिए व्यापक शिक्षा और प्रदर्शन की जरूरत होती है।
हाइड्रोपोनिक्स एक नई और विकसित होती हुई कृषि पद्धति है। इसलिए, हाइड्रोपोनिक उत्पादों के लिए कुछ क्षेत्रों में नियम और मानक अभी पूरी तरह से तय नहीं हुए हैं, जिससे असमंजस की स्थिति बनती है।
जहां बड़े व्यवसाय आसानी से हाइड्रोपोनिक्स को बढ़ा सकते हैं, वहीं छोटे और व्यक्तिगत किसानों के लिए इसे सस्ता और व्यवहारिक बनाना अभी भी मुश्किल है।
हाइड्रोपोनिक सिस्टम, खासकर जिनमें उन्नत नियंत्रण और लाइटिंग होती है, निरंतर और भरोसेमंद बिजली की जरूरत होती है। यह उन इलाकों में समस्या हो सकती है जहां बिजली आपूर्ति अस्थिर हो।
हाइड्रोपोनिक सिस्टम को सही तरीके से चलाने और बनाए रखने के लिए पौधों के पोषण, पानी की रसायन शास्त्र और सिस्टम प्रबंधन में तकनीकी ज्ञान होना जरूरी है।
इन चुनौतियों के साथ-साथ नई सोच और नवाचार के मौके भी हैं। लागत कम करने, सरल सिस्टम विकसित करने और किसानों व नए कृषि उद्यमियों को अच्छी ट्रेनिंग और सहायता देने के अवसर मौजूद हैं।
भारत सरकार हाइड्रोपोनिक्स सिस्टम को बढ़ावा देने के लिए अब ज़्यादा सक्रिय हो रही है। अक्टूबर 2024 में केंद्र सरकार ने हाइड्रोपोनिक्स, एक्वापोनिक्स, वर्टिकल फार्मिंग और प्रिसिजन एग्रीकल्चर को मिशन फॉर इंटीग्रेटेड डेवलपमेंट ऑफ हॉर्टिकल्चर (MIDH) के तहत शामिल करने का फैसला किया। यह कदम इन नई और आधुनिक खेती के तरीकों को बढ़ावा देने की सरकार की ठोस इच्छा को दर्शाता है। कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय MIDH के संचालन के नियमों और लागत मानकों को अपडेट कर रहा है, जिसमें लागत मानकों में लगभग 20% की बढ़ोतरी हो सकती है।
पीएम-कुसुम योजना (PM-KUSUM Scheme): यह योजना सौर ऊर्जा से चलने वाले हाइड्रोपोनिक फार्मों को बढ़ावा देती है, जिससे लागत कम होती है और टिकाऊ, ऑफ-ग्रिड खेती संभव होती है।
एग्री-इन्फ्रा फंड (Agri-Infra Fund): इस फंड में 1 लाख करोड़ रुपये का बड़ा बजट है जो हाइड्रोपोनिक सिस्टम की स्थापना और सुधार के लिए पूंजी उपलब्ध कराता है।
स्टार्टअप इंडिया (StartUp India): यह प्रमुख पहल हाइड्रोपोनिक्स क्षेत्र में नवाचार और उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए वित्तीय और इनक्यूबेशन सपोर्ट देती है।
शोध और विकास (Research & Development): ICAR के प्रमुख संस्थान जैसे ICAR-IIHR, ICAR-CPRI और ICAR-CISH हाइड्रोपोनिक और एरोपोनिक तकनीकों का विकास कर रहे हैं और किसानों को प्रशिक्षण व डेमोंस्ट्रेशन दे रहे हैं।
सरकार की ये प्रयास हाइड्रोपोनिक्स को बढ़ाने के लिए अनुकूल माहौल बनाने के साथ-साथ राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा और कृषि आधुनिकीकरण के लक्ष्य से मेल खाते हैं।
चुनौतियों के बावजूद, हाइड्रोपोनिक्स में कई आकर्षक निवेश के अवसर हैं:
शहरी हाइड्रोपोनिक फार्म: ये फार्म शहरों में ताजा, स्थानीय और बिना कीटनाशक की सब्जियों की बढ़ती मांग को पूरा करते हैं। इससे ट्रांसपोर्टेशन की लागत कम होती है और ताजा उत्पाद तुरंत उपलब्ध होता है।
कम्युनिटी हाइड्रोपोनिक्स प्रोजेक्ट: शहरी और आसपास के इलाकों में सहयोगी खेती को बढ़ावा देते हैं, जिससे स्थानीय समुदाय अपने भोजन का उत्पादन कर सकते हैं और खाद्य दूरी कम होती है।
निर्यात-उन्मुख हाइड्रोपोनिक्स: महंगे औषधीय पौधों, विशेष सब्जियों और विदेशी जड़ी-बूटियों की खेती पर ध्यान केंद्रित कर ये व्यवसाय अंतरराष्ट्रीय बाजार में अच्छी कमाई कर सकते हैं।
तकनीकी और इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रदाता: हाइड्रोपोनिक उपकरण, स्मार्ट सेंसर्स, एआई-चालित सॉफ्टवेयर और ऑटोमेशन सिस्टम बनाने वाली कंपनियों में निवेश लाभकारी हो सकता है।
प्रशिक्षण और सलाहकार सेवाएं: नए किसानों और व्यवसायों को तकनीकी ज्ञान देने के लिए प्रशिक्षण और कंसल्टेंसी के क्षेत्र में अवसर हैं।
इंवेस्ट इंडिया के एग्री-फूड सेक्टर के वाइस प्रेसिडेंट गौरव सिसोदिया कहते हैं, "हाइड्रोपोनिक्स सिर्फ एक नई खेती की तकनीक नहीं, बल्कि तेजी से बढ़ती शहरी आबादी और संसाधन सीमाओं के समय टिकाऊ कृषि की नींव है। आधुनिक तकनीक, रणनीतिक निवेश और मजबूत सरकारी समर्थन से हम जैविक खाद्य उत्पादन को अधिक प्रभावी, टिकाऊ और पेस्टीसाइड मुक्त बना सकते हैं।"
हाइड्रोपोनिक्स, खासकर जब इसे अन्य उन्नत तकनीकों के साथ जोड़ा जाता है, तो यह एग्रीकल्चर 4.0 का मुख्य हिस्सा बन जाता है। यह शहरी खेती, जलवायु-प्रतिरोधी कृषि और वैश्विक खाद्य सुरक्षा के लिए अहम है। जलवायु परिवर्तन के चलते पारंपरिक खेती पर बढ़ता दबाव, संसाधनों की कमी और बढ़ती मांग को देखते हुए, हाइड्रोपोनिक्स एक नियंत्रित, संसाधन-कुशल विकल्प है जो लगातार उच्च गुणवत्ता वाले फसल उत्पादन में सक्षम है।
भारत का हाइड्रोपोनिक्स बाजार 2023 में 75 मिलियन डॉलर से बढ़कर 2030 तक 325 मिलियन डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है, जो 20% से ज्यादा की वार्षिक वृद्धि दर दर्शाता है। विश्व स्तर पर भी यह क्षेत्र 18-20% की CAGR से बढ़ने वाला है और टिकाऊ कृषि की आधारशिला बन रहा है।
निवेशक, उद्यमी और नीति निर्माता इस बढ़ती प्रवृत्ति का फायदा उठा सकते हैं, शुरुआती स्टार्टअप्स का समर्थन कर, सरकारी एग्री-टेक प्रोग्राम्स के साथ साझेदारी कर, और शहरी हाइड्रोपोनिक्स प्रोजेक्ट्स को बढ़ावा देकर।
इंवेस्ट इंडिया की वाइस प्रेसिडेंट सुजाता यूजी कहती हैं, "हाइड्रोपोनिक्स भारत में टिकाऊ कृषि के भविष्य को नए सिरे से परिभाषित करने जा रहा है। यह न केवल खाद्य सुरक्षा का वादा करता है बल्कि तकनीक-संचालित ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए अवसर भी बनाएगा, पारंपरिक और आधुनिक कृषि के बीच सेतु बनेगा।"
सीमित भूमि, पानी की कमी और बढ़ती खाद्य मांग जैसी जटिलताओं के बीच, हाइड्रोपोनिक्स सिर्फ विकल्प नहीं बल्कि भविष्य की उच्च-प्रभावी, तैयार खेती प्रणाली की चाबी है जो आने वाली पीढ़ियों का पोषण कर सकेगी।