भारत का स्टार्टअप इकोसिस्टम आज नई ऊँचाइयों पर पहुँच रहा है। साल 2025 की शुरुआत तक भारत में 1.59 लाख से ज्यादा सरकारी मान्यता प्राप्त स्टार्टअप मौजूद हैं, जबकि 2016 में यह संख्या केवल 500 थी। यह तेज़ी दिखाती है कि देश में उद्यमिता की लहर कितनी मज़बूत हो चुकी है।
भारत आज दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप इकोसिस्टम बन चुका है। देश में 120 से ज्यादा यूनिकॉर्न (ऐसी कंपनियाँ जिनकी वैल्यू 1 बिलियन डॉलर से अधिक हो) हैं और सिर्फ 2025 में ही 11 नए स्टार्टअप्स इस क्लब में शामिल हुए हैं।
यह उपलब्धि उन युवा उद्यमियों की सोच और मेहनत का नतीजा है जो सिर्फ कंपनियाँ ही नहीं बना रहे, बल्कि इंडस्ट्रीज़ को बदल रहे हैं, रोजगार पैदा कर रहे हैं और देश की अर्थव्यवस्था को नई दिशा दे रहे हैं।
"स्टार्टअप इंडिया" जैसी सरकारी पहल ने भी इस बदलाव में अहम भूमिका निभाई है। खासतौर पर Startup India Seed Fund Scheme जैसी योजनाओं ने शुरुआती चरण के स्टार्टअप्स को ज़रूरी आर्थिक मदद दी है।
चाहे फिनटेक हो, मोबिलिटी, ई-कॉमर्स या कंज़्यूमर गुड्स—भारत के ये युवा लीडर्स हर क्षेत्र में नए मानक स्थापित कर रहे हैं। इस लेख में हम 2025 के 6 प्रमुख युवा उद्यमियों की प्रेरणादायक कहानियाँ Inspiring Stories from 6 Leading Young Entrepreneurs of 2025 साझा करेंगे, जो इस क्रांति की अगुवाई कर रहे हैं।
रितेश अग्रवाल की कहानी इस बात का उदाहरण है कि कैसे एक साधारण-सा आइडिया, जब जुनून और मेहनत से जुड़ता है, तो वह एक बड़े साम्राज्य में बदल सकता है। सिर्फ 19 साल की उम्र में उन्होंने 2013 में OYO Rooms की शुरुआत की। उनका मकसद था बजट होटल्स को स्टैंडर्ड बनाना और यात्रियों को भरोसेमंद और गुणवत्तापूर्ण अनुभव देना।
उनकी शुरुआत "Oravel Stays" से हुई थी, जो बजट होटलों और गेस्ट हाउस की ऑनलाइन बुकिंग प्लेटफॉर्म थी। बचपन से ही उन्हें यात्रा करना पसंद था और सिर्फ 10 साल की उम्र में उन्होंने कोडिंग सीख ली थी। यही वजह रही कि उन्होंने भारत के होटल इंडस्ट्री की सबसे बड़ी समस्या—गुणवत्ता और भरोसे की कमी—को हल करने का बीड़ा उठाया।
OYO की यात्रा बजट होटल एग्रीगेटर से शुरू हुई थी, लेकिन आज यह एक ग्लोबल हॉस्पिटैलिटी टेक्नोलॉजी कंपनी बन चुकी है। OYO अब चीन, अमेरिका और यूरोप जैसे देशों में भी काम कर रही है और लाखों होटल्स और प्रॉपर्टीज़ को मैनेज करती है। रितेश की सोच और इनोवेशन पर फोकस ने उन्हें कई उपलब्धियाँ दिलाई हैं, जिनमें Forbes “30 Under 30” की लिस्ट में शामिल होना भी है।
हाल ही में, OYO की पैरेंट कंपनी Oravel Stays फिर से चर्चा में है क्योंकि कंपनी लंबे समय से प्रतीक्षित IPO लाने की तैयारी कर रही है। कंपनी के अनलिस्टेड शेयरों में तेजी देखी जा रही है और FY26 की पहली तिमाही में टैक्स के बाद प्रॉफिट दोगुना हो गया है।
रितेश अग्रवाल की यह यात्रा दिखाती है कि अगर आपके पास साफ़ विज़न और लगन हो, तो एक युवा उद्यमी भी दुनिया के बिज़नेस मानकों को बदल सकता है।
निखिल कामथ और उनके भाई नितिन कामथ Zerodha के संस्थापक हैं। Zerodha ने भारत में निवेश को आसान और सस्ता बनाने का काम किया है। 1986 में जन्मे निखिल को बचपन से ही शेयर मार्केट में दिलचस्पी थी और उन्होंने खुद से ट्रेडिंग सीख ली थी।
उन्होंने और उनके भाई ने देखा कि भारत में रिटेल निवेशकों के लिए ब्रोकरेज फीस बहुत ज़्यादा है और प्लेटफॉर्म भी जटिल हैं। इसी कमी को दूर करने के लिए 2010 में उन्होंने Zerodha लॉन्च किया। Zerodha ने इक्विटी डिलीवरी ट्रेड्स पर ज़ीरो ब्रोकरेज की सुविधा दी और एक आसान डिजिटल प्लेटफॉर्म बनाया। इस बदलाव ने करोड़ों युवाओं को निवेश की दुनिया से जोड़ा और भारतीय ब्रोकरेज इंडस्ट्री को पूरी तरह बदल दिया।
2025 तक Zerodha की वैल्यूएशन 8.2 बिलियन डॉलर तक पहुँच चुकी है, और यह भारत के सबसे मूल्यवान यूनिकॉर्न्स में से एक है।
निखिल कामथ सिर्फ Zerodha तक सीमित नहीं हैं। उन्होंने True Beacon नाम की एक एसेट मैनेजमेंट कंपनी भी शुरू की और कई स्टार्टअप्स में निवेश किया है। हाल ही में उन्होंने Nothing नामक कंज़्यूमर टेक्नोलॉजी कंपनी में 200 मिलियन डॉलर की फंडिंग राउंड में निवेश किया।
निखिल की कोशिशें केवल बिज़नेस तक सीमित नहीं हैं। वह वित्तीय साक्षरता (financial literacy) को बढ़ावा देने और नई कंपनियों में निवेश कर देश की आर्थिक प्रगति में योगदान दे रहे हैं। आज वह भारत के उद्यमिता और निवेश जगत के एक अहम चेहरे बन चुके हैं।
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भाविश अग्रवाल की कहानी एक साधारण-से विचार से शुरू हुई—भारत की परिवहन समस्या को हल करना। पंजाब में जन्मे और IIT मुंबई से पढ़ाई करने वाले भाविश ने 2010 में अंकित भाटी के साथ मिलकर Ola Cabs की शुरुआत की। माइक्रोसॉफ्ट रिसर्च में काम करते हुए उन्होंने दो पेटेंट हासिल किए, लेकिन जल्द ही उन्हें एहसास हुआ कि भारत के मोबिलिटी सेक्टर में बड़ी संभावनाएँ हैं।
Ola ने शुरुआत में कारों के लिए कैब सेवा दी और बाद में बाइक और ऑटो-रिक्शा को भी शामिल किया। यह मॉडल बेहद सफल रहा और जल्दी ही लोकप्रिय हो गया। आज भाविश के नेतृत्व में Ola दुनिया भर के 250 से अधिक शहरों में काम कर रही है और इसके साथ 15 लाख से ज्यादा ड्राइवर जुड़े हुए हैं।
हाल के वर्षों में भाविश ने मोबिलिटी से आगे बढ़कर इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (EV) पर बड़ा दांव लगाया। उनकी कंपनी Ola Electric ने 2024 के अंत में सफलतापूर्वक IPO लॉन्च किया। हालांकि इस सफर में चुनौतियाँ भी आईं, लेकिन भाविश ने हमेशा इनोवेशन को प्राथमिकता दी।
Ola Electric के साथ-साथ उन्होंने AI क्षेत्र में भी कदम रखा और Krutrim नाम का वेंचर शुरू किया। आंतरिक बदलावों के बावजूद, भाविश का लक्ष्य भारत का पहला फुल-स्टैक AI प्लेटफॉर्म बनाना है। यह दिखाता है कि वह जटिल तकनीकी चुनौतियों का समाधान ढूंढने और भारत की टेक्नोलॉजी ताकत को आगे बढ़ाने के लिए पूरी तरह समर्पित हैं।
विजय शेखर शर्मा की कहानी दृढ़ता और दूरदृष्टि की मिसाल है। उत्तर प्रदेश के एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मे विजय ने शुरुआती दौर में कई कठिनाइयों का सामना किया, खासकर कॉलेज के दिनों में अंग्रेज़ी भाषा की बाधा। लेकिन तकनीक के प्रति उनका जुनून और समस्याओं को हल करने की उनकी क्षमता ने उन्हें 2000 में One97 Communications शुरू करने के लिए प्रेरित किया। यही कंपनी आगे चलकर Paytm बनी।
Paytm ने शुरुआत मोबाइल रिचार्ज प्लेटफॉर्म के रूप में की, लेकिन धीरे-धीरे यह एक बड़े फिनटेक इकोसिस्टम में बदल गया। इसमें बिल पेमेंट, डिजिटल वॉलेट, ई-कॉमर्स और कई अन्य सेवाएँ जुड़ती गईं। 2016 में नोटबंदी के दौरान Paytm का डिजिटल वॉलेट देशभर में तेजी से लोकप्रिय हुआ और यह हर घर का नाम बन गया। 2015 में Paytm भारत का पहला फिनटेक यूनिकॉर्न बना।
विजय के नेतृत्व में Paytm ने जबरदस्त प्रतिस्पर्धा और कई रेग्युलेटरी चुनौतियों का सामना किया। 2025 में Paytm ने अपनी रणनीति बदली है और अब यह डिजिटल पेमेंट टेक्नोलॉजी सॉल्यूशंस पर ध्यान दे रहा है। हाल ही में कंपनी ने Axis Bank के साथ साझेदारी की है।
हालाँकि हाल के दिनों में कंपनी को कानूनी और रेग्युलेटरी दिक्कतों का सामना करना पड़ा है, फिर भी विजय शेखर शर्मा की नवाचार करने की सोच और जोखिम उठाने की क्षमता ने उन्हें भारत के फिनटेक सेक्टर का अहम चेहरा बना दिया है। उनकी कहानी आज भी हजारों युवाओं को उद्यमिता के लिए प्रेरित करती है।
पीयूष बंसल वह उद्यमी हैं जिन्होंने भारत के आइवियर मार्केट (eyewear market) को पूरी तरह बदल दिया। कनाडा की McGill University से पढ़ाई पूरी करने के बाद जब वे भारत लौटे, तो उन्होंने चश्मे के बाज़ार में एक बड़ी कमी और अवसर को पहचाना। उस समय चश्मा खरीदने की पारंपरिक प्रक्रिया महंगी, सीमित और समय लेने वाली थी।
उनका पहला स्टार्टअप SearchMyCampus था, जिसने उन्हें युवाओं की ज़रूरतों को समझने का अनुभव दिया। इसी अनुभव से 2010 में उन्होंने अमित चौधरी और सुमीत कपूर के साथ मिलकर Lenskart की शुरुआत की।
Lenskart का बिज़नेस मॉडल अनोखा था। इसमें ऑनलाइन प्लेटफॉर्म को ऑफलाइन स्टोर्स से जोड़ा गया। इसके साथ ही ग्राहकों को वर्चुअल ट्राई-ऑन (virtual try-on) और घर पर आंखों की जांच जैसी सुविधाएँ दी गईं। इसने कंपनी को तेज़ी से आगे बढ़ने में मदद की।
2025 में Lenskart की वैल्यूएशन 4.5 बिलियन डॉलर तक पहुँच चुकी है और इसके 1,000 से अधिक स्टोर दुनिया भर में खुल चुके हैं। पीयूष न सिर्फ एक सफल उद्यमी बने, बल्कि उन्होंने अन्य स्टार्टअप्स में निवेश किया और Shark Tank India के जज के रूप में नए उद्यमियों को मार्गदर्शन भी दिया।
Lenskart की सफलता इस बात का उदाहरण है कि कैसे तकनीक का सही उपयोग किसी पारंपरिक बाज़ार को बदल सकता है और ज़रूरी प्रोडक्ट्स को सभी के लिए सुलभ बना सकता है।
सचिन बंसल भारत की उद्यमिता की कहानी में एक बड़ा नाम हैं। उन्हें देश में ई-कॉमर्स क्रांति (e-commerce revolution) लाने का श्रेय दिया जाता है। 2007 में उन्होंने बिन्नी बंसल के साथ मिलकर Flipkart की स्थापना की। कंपनी की शुरुआत बेंगलुरु के एक छोटे से फ्लैट से ऑनलाइन बुकस्टोर के रूप में हुई थी। उनका विज़न साफ़ था—भारत में ऑनलाइन शॉपिंग को आसान और भरोसेमंद बनाना।
Flipkart की यात्रा प्रेरणादायक रही। इसने कैश-ऑन-डिलीवरी जैसे नए कॉन्सेप्ट लाए और एक मज़बूत लॉजिस्टिक्स नेटवर्क बनाया, जिससे उपभोक्ताओं का ऑनलाइन शॉपिंग पर भरोसा बढ़ा। कंपनी ने फैशन प्लेटफॉर्म Myntra और फिनटेक कंपनी PhonePe जैसी रणनीतिक खरीदारी भी की, जिससे इसकी पकड़ और मज़बूत हुई।
2018 में Walmart ने Flipkart में बहुमत हिस्सेदारी खरीदी और उस समय कंपनी की वैल्यूएशन 20 बिलियन डॉलर से अधिक थी। Flipkart से बाहर निकलने के बाद सचिन ने नई राह चुनी और Navi Technologies नाम की फिनटेक कंपनी शुरू की। यह कंपनी लोन और इंश्योरेंस जैसी सेवाएँ प्रदान करती है।
2025 में सचिन बंसल के पब्लिक होल्डिंग्स और प्राइवेट इन्वेस्टमेंट्स, खासकर फाइनेंशियल सर्विसेज और इलेक्ट्रिक व्हीकल्स के क्षेत्र में, उनकी निरंतर सक्रियता और भारत की ग्रोथ स्टोरी में विश्वास को दर्शाते हैं।
उनकी यात्रा यह साबित करती है कि उद्यमिता एक निरंतर चक्र है—कभी आप एक क्रांति लाते हैं, फिर उससे बाहर निकलते हैं, और फिर नए विचारों के साथ नई शुरुआत करते हैं।
जहाँ इन महान उद्यमियों की कहानियाँ आज भी प्रेरणा देती हैं, वहीं 2025 में एक नई पीढ़ी के युवा उद्यमी सामने आ रहे हैं। ये युवा दिखा रहे हैं कि भारत का स्टार्टअप इकोसिस्टम कितना तेज़ और गतिशील है।
Zepto के संस्थापक आदित पलीचा और कौवल्य वोहरा दुनिया के सबसे युवा यूनिकॉर्न फाउंडर्स में गिने जाते हैं। उनकी इंस्टेंट ग्रॉसरी डिलीवरी सर्विस ने उपभोक्ताओं और निवेशकों दोनों का ध्यान खींचा है।
क्विक-कॉमर्स जैसे प्रतिस्पर्धी क्षेत्र में उन्होंने कम समय में बड़ी सफलता पाई है। उनकी यह यात्रा बताती है कि जब ग्राहकों की ज़रूरतों को तेज़ी और कुशलता से पूरा किया जाए, तो बड़ा बिज़नेस खड़ा किया जा सकता है।
रीना और रही अंबानी ने अपने ब्रांड Terractive के साथ भारत के तेजी से बढ़ते स्पोर्ट्सवियर और एथलीज़र मार्केट में कदम रखा है। उनकी कंपनी ऐसे स्पोर्ट्सवियर बना रही है जो बहुउपयोगी, आरामदायक और टिकाऊ फैब्रिक से बने होते हैं।
उनकी सरल और अनुकूलन योग्य डिज़ाइन पर फोकस ने उन्हें युवाओं के बीच लोकप्रिय बना दिया है। Terractive की कहानी दिखाती है कि कैसे नए उद्यमी D2C (Direct-to-Consumer) मॉडल के जरिए निच बाज़ारों में भी बड़ी पहचान बना रहे हैं।
अंशिता मेहरोत्रा की कहानी यह साबित करती है कि कई बार व्यक्तिगत समस्या ही बिज़नेस का सबसे बड़ा आइडिया बन जाती है। उन्हें भारत में कर्ली हेयर केयर प्रोडक्ट्स की कमी महसूस हुई। इसी कमी को दूर करने के लिए उन्होंने Fix My Curls की शुरुआत की।
आज उनका ब्रांड कर्ली, वेवी और कॉयली बालों के लिए खास, उच्च-गुणवत्ता वाले प्रोडक्ट्स उपलब्ध कराता है। यह सेगमेंट लंबे समय तक पारंपरिक ब्यूटी ब्रांड्स द्वारा नज़रअंदाज़ किया गया था। Fix My Curls ने इस गैप को भरते हुए मज़बूत मार्केट तैयार किया है।
ये नए उद्यमी सिर्फ अपने पूर्वजों के कदमों पर नहीं चल रहे, बल्कि खुद की अलग राह बना रहे हैं। वे असली समस्याओं का हल निकाल रहे हैं, स्थायी बिज़नेस बना रहे हैं और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बन रहे हैं।
उनकी मेहनत और दूरदर्शिता यह साबित करती है कि भारत की उद्यमिता की आत्मा पहले से कहीं ज़्यादा जीवंत है। ये युवा उद्यमी आने वाले दशकों तक देश की अर्थव्यवस्था और विकास की दिशा तय करेंगे।