ग़रीबी और भुखमरी के कारक

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20 Oct 2021
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ग़रीबी और भुखमरी दुनिया में वह क्रुर सच है, जिससे हम चाहकर भी मुंह नहीं मोड़ सकते हैं। इसने हमारे समाज को इस क़दर प्रभावित किया है कि प्रत्येक क्षेत्र के कार्य पर इसका असर पड़ता है। ग़रीबी और भुखमरी के कई कारण हैं जिन्हें दूर करना हमारे हाथों में है तथा थोड़े प्रयास से जिन्हें पूर्ण रूप से नष्ट किया जा सकता है।

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हमारा समाज कई तथ्यों से बनता है। इसको एक निश्चित चेहरा देने में प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी कारण से भागीदार अवश्य बनता है। दो वर्गों में बंटा देश विकास की राह पर अग्रसर तो है, परन्तु कई ऐसे पहलू भी हैं जो रास्ते का अवरोध बन रहे हैं। टेक्नोलॉजी ने अपना दायरा बढ़ाया है मानव की मानसिकता ने अपनी चादर को बड़ा किया है और स्वयं को आधुनिक विचारों वाला बताया है। इन सबके बावजूद हम कुछ क्षेत्रों को उनकी सबसे खराब परिस्थिति से निकालकर बेहतर स्थिति में भी नहीं ला पा रहे हैं। ग़रीबी और भुखमरी दुनिया का वह क्रुर सच है, जिससे हम चाहकर भी मुंह नहीं मोड़ सकते हैं। इसने हमारे समाज को इस क़दर प्रभावित किया है कि प्रत्येक क्षेत्र के कार्य पर इसका असर पड़ता है। ग़रीबी और भुखमरी के कई कारण हैं जिन्हें दूर करना हमारे हाथों में है तथा थोड़े प्रयास से जिन्हें पूर्ण रूप से नष्ट किया जा सकता है।

ग़रीबी और भुखमरी एक महामारी है, जो दुनिया को सबसे अधिक प्रभावित कर रही है। कोई व्यक्ति आपके पास एक वक्त का खाना मांगने आए और हम उसे खाना केवल इसलिए नहीं दे सकते क्योंकि हमारे पास अपने लिए ही पर्याप्त नहीं है। यह एक दयनीय स्थिति है। यह हमें मानसिक रूप से बीमार करता है, जो हमारे लिए विकट समस्या है।

दुनिया बहुत ही खूबसूरत है। इसकी खुबसूरती को हम मानव दिन-प्रतिदिन खत्म करते जा रहे हैं। जनसंख्या में अनियमित वृद्धि संसार में लगातार बढ़ती ग़रीबी और भुखमरी का मुख्य कारक है। जनसंख्या में निरंतर बढ़ोतरी हो रही है तथा अपेक्षाकृत संसाधनों की परिपूर्णता नहीं हो पा रही है। जिसका नतीजा यह निकल रहा है कि हम इस समस्या को नियंत्रित नहीं कर पा रहे हैं। हालांकि कुछ देशों ने इसकी गंभीरता को समझा है तथा जनसंख्या नियंत्रण को कानूनी तौर पर लागू किया है। परन्तु आज भी कई देश हैं, जो इसकी गंभीरता को स्वीकार नहीं करना चाहते तथा परिस्थिति को और भी ख़राब करते जा रहे हैं।

दोहरे व्यवहार तथा दूसरे को स्वयं से नीचे देखने की भावना

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि मानव प्रवृत्ति ऐसी हीन भावना से ग्रसित है, जिसमें वह दूसरों को स्वयं से ऊंचा देखकर खुश नहीं होता है। साथ ही वह ऐसे लोगों को ज़्यादा सम्मान देना महत्त्वपूर्ण समझता है, जो आर्थिक रूप से अधिक सक्षम हैं। इस भावना में हम उन लोगों को आगे बढ़ने का अवसर ही नहीं देते, जो इसके हक़दार होते हैं। यहां तक कि हम कोशिश करते हैं कि वे उसी स्तर पर बने रहें, जिससे हमारा कद उनसे ऊंचा रहे। ऐसे बहुत कम लोग हैं जो इस भावना के विपरीत हैं तथा सबको समान स्तर पर देखना चाहते हैं।

नेतृत्व की असफल होती नीतियां

जो लोग देश का नेतृत्व करते हैं उन पर यह जिम्मेदारी होती है कि वह समाज द्वारा सामना कर रहे संकट को दूर करने का कार्य करें। वह ऐसे नियमों का अवलोकन करें, जिससे गरीब लोगों का सही मायने में भला हो सके। वह समाज को वह दिशा देने का काम करें जहां से भुखमरी ख़त्म हो सके। वह ऐसा करने में कहीं न कहीं असफल हैं, नतीजन ग़रीबी खुद को ऊंचा करती जा रही है।

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