कई वर्षों की योजना, चर्चा और कानूनी प्रक्रियाओं के बाद भारत में नए लेबर कोड आखिरकार लागू हो गए हैं। यह बदलाव देश के औद्योगिक संबंधों और रोजगार व्यवस्था में एक बड़ा सुधार माना जा रहा है।
सरकार ने पुराने और जटिल श्रम कानूनों में सुधार करते हुए 29 केंद्रीय श्रम कानूनों को मिलाकर सिर्फ चार प्रमुख लेबर कोड बना दिए हैं:
वेतन संहिता (Code on Wages)
औद्योगिक संबंध संहिता (Code on Industrial Relations)
सामाजिक सुरक्षा संहिता (Code on Social Security)
व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य परिस्थितियाँ संहिता (Occupational Safety, Health and Working Conditions Code)
इन नए कोड का उद्देश्य भारत की जटिल श्रम व्यवस्थाओं को सरल बनाना, अंतरराष्ट्रीय निवेश आकर्षित करना, और सबसे महत्वपूर्ण—
उन लाखों कामगारों को सामाजिक सुरक्षा और वेतन सुरक्षा से जोड़ना है, जिन्हें पहले इन लाभों का अधिकार नहीं मिल पाता था।
नए नियमों का प्रभाव लगभग हर कर्मचारी पर पड़ेगा—
चाहे वह फुल-टाइम कॉरपोरेट नौकरी करता हो, फैक्ट्री में काम करता हो, कॉन्ट्रैक्ट पर नियुक्त हो या गिग-इकोनॉमी (जैसे डिलीवरी, राइडर आदि) में काम करता हो।
2025 में हर भारतीय कर्मचारी के लिए इन 10 बड़े बदलावों को समझना बेहद ज़रूरी है, क्योंकि ये सीधा आपकी नौकरी, वेतन, छुट्टियों और सुरक्षा को प्रभावित करेंगे।
लेबर लॉ ऐसे नियम, कानून और प्रावधान होते हैं जो नियोक्ता (Employer), कर्मचारी (Employee) और ट्रेड यूनियन (Trade Union) के बीच संबंधों को नियंत्रित करते हैं। इन कानूनों का उद्देश्य कामकाज से जुड़े अधिकारों, ज़िम्मेदारियों और प्रक्रियाओं को स्पष्ट करना होता है।
भारत में ऐतिहासिक रूप से लेबर लॉ बहुत बिखरे हुए थे।
ब्रिटिश काल और स्वतंत्रता के बाद अलग-अलग उद्योगों—जैसे फैक्ट्री, खान, प्लांटेशन—के लिए अलग-अलग कानून बनाए गए। नतीजतन, देश में श्रम कानूनों की एक जटिल और असमान व्यवस्था बन गई थी।
लेबर लॉ यह सुनिश्चित करते हैं कि कर्मचारियों को न्यूनतम वेतन, उचित काम के घंटे, सुरक्षित कार्यस्थल, और न्यायपूर्ण व्यवहार मिले। इससे शोषण की संभावना कम होती है और कर्मचारियों को बुनियादी सुरक्षा मिलती है।
लेबर लॉ कंपनियों और कर्मचारियों दोनों को PF (प्रोविडेंट फंड) और ESI (कर्मचारी राज्य बीमा) जैसी योजनाओं में योगदान करने के लिए बाध्य करते हैं।
इनसे कर्मचारियों को बुढ़ापे, बीमारी, दुर्घटना या विकलांगता की स्थिति में वित्तीय सुरक्षा मिलती है।
ये कानून विवादों को सुलझाने की स्पष्ट प्रक्रिया प्रदान करते हैं, जिससे हड़ताल, लॉकआउट और अन्य संघर्षों की संभावना कम होती है।
इससे उद्योगों में स्थिरता आती है और कंपनियों तथा कर्मचारियों के बीच बेहतर संबंध बने रहते हैं।
साफ और सरल लेबर लॉ व्यवसायों को अधिक से अधिक कर्मचारियों को फॉर्मल तरीके से नियुक्त करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।
इससे अधिक लोग नियामित क्षेत्र में आते हैं, जहाँ उन्हें कानूनन मिलने वाले सभी लाभों का अधिकार मिलता है।
वेतन की एक समान परिभाषा लागू करते हैं।
सभी कर्मचारियों को न्यूनतम सुरक्षा उपलब्ध कराते हैं।
नियमों को सरल और सार्वभौमिक बनाते हैं।
एक आधुनिक और पारदर्शी श्रम व्यवस्था तैयार करते हैं।
नतीजतन, कर्मचारियों को अधिक सुरक्षा मिलती है और कंपनियों के लिए नियमों का पालन करना आसान हो जाता है।
नई लेबर कोड में फिक्स्ड-टर्म (समय-सीमित) कर्मचारियों को स्थायी कर्मचारियों की तरह सामाजिक सुरक्षा का हक दिया गया है।
क्या बदला है: अब फिक्स्ड-टर्म कर्मचारी सिर्फ 1 साल पूरा करने के बाद ग्रेच्युटी के हकदार होंगे। पहले यह सीमा 5 साल थी।
असर: आईटी, मीडिया, लॉजिस्टिक्स, सर्विस सेक्टर जैसे क्षेत्रों में काम करने वाले लाखों कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारियों को अब बुनियादी सुरक्षा मिलेगी। इससे नौकरी में लचीलापन बढ़ेगा और कर्मचारी भी सुरक्षित रहेंगे।
क्या बदला है: अब सालाना पेड लीव पाने के लिए कर्मचारी को 180 दिन (6 महीने) काम करना होगा।
पुराना नियम: 240 दिन काम करने की आवश्यकता थी।
असर: सीज़नल, कॉन्ट्रैक्ट या हाई-एट्रिशन नौकरियों में काम करने वाले कर्मचारी भी अब आसानी से अपनी पेड लीव कमा और उपयोग कर सकेंगे। इससे काम और निजी जीवन में बेहतर संतुलन बनेगा।
काम के घंटे:
8 घंटे के कार्य-दिवस और 48 घंटे के कार्य-सप्ताह का नियम वही रहेगा।
हालांकि, राज्यों को विकल्प दिया गया है कि वे सप्ताह की संरचना बदल सकते हैं—जैसे:
4 दिन × 12 घंटे
5 दिन × 9.6 घंटे
6 दिन × 8 घंटे
48 घंटे की सीमा नहीं बदली जाएगी।
ओवरटाइम:
ओवरटाइम स्वैच्छिक होगा और इसके लिए दोगुना वेतन देना होगा।
यह बदलाव कर्मचारियों को सुरक्षित रखते हुए कंपनियों को अधिक लचीलापन देता है।
अब हर कर्मचारी—चाहे वह किसी भी क्षेत्र में काम करता हो—को लिखित नियुक्ति पत्र मिलना जरूरी है।
इसमें शामिल होगा:
वेतन
काम के घंटे
कर्तव्य
लीव और PF जैसी सुविधाएँ
असर: इससे रोजगार स्पष्ट और सुरक्षित होगा और विवाद की स्थिति में कर्मचारियों के पास लिखित प्रमाण होगा।
नई लेबर कोड के बाद न्यूनतम वेतन अब पूरे देश के हर सेक्टर में लागू होगा।
नेशनल फ़्लोर वेज: केंद्र सरकार एक राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन तय करेगी, और राज्यों को उससे कम वेतन तय करने की अनुमति नहीं होगी।
असर: कृषि, असंगठित क्षेत्र और छोटे उद्योगों में काम करने वाले करोड़ों कर्मचारियों को वित्तीय सुरक्षा मिलेगी।
क्या बदला है: “Wages” की नई परिभाषा के अनुसार भत्ते (जैसे HRA, conveyance, बोनस आदि) कुल वेतन के 50% से ज़्यादा नहीं हो सकते।
असर:
PF और ग्रेच्युटी का कैलकुलेशन अब अधिक बेसिक वेतन पर होगा, जिससे कर्मचारियों की PF कटौती बढ़ेगी और हाथ में आने वाली सैलरी थोड़ी कम होगी।
हालाँकि, दीर्घकाल में PF और ग्रेच्युटी ज्यादा मिलेंगे।
पहले समय पर वेतन देने का नियम सिर्फ कम आय वाले कर्मचारियों पर लागू था।
अब:
यह नियम सभी कर्मचारियों पर लागू है, चाहे उनका वेतन कितना भी हो।
असर:
देरी से वेतन देने पर भारी पेनल्टी लगेगी, जिससे कर्मचारियों की आर्थिक सुरक्षा बढ़ेगी।
यदि कर्मचारी ऑफिस आने-जाने के दौरान किसी तय शर्त के तहत दुर्घटना का शिकार होता है, तो उसे अब कार्यस्थल दुर्घटना माना जाएगा।
असर:
कर्मचारियों को ESI, बीमा और मुआवज़े का लाभ आसानी से मिलेगा, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ आवागमन जोखिम भरा होता है।
अब ESIC सिर्फ “नोटिफाइड एरिया” तक सीमित नहीं है।
अब कवरेज मिलेगा:
दुकान
फैक्ट्री
प्लांटेशन
खतरनाक छोटे यूनिट
देश के हर हिस्से में।
असर:
लाखों कर्मचारियों को चिकित्सा, मातृत्व, विकलांगता और अन्य सामाजिक सुरक्षा लाभ मिलेंगे।
अब पत्रकार, OTT वर्कर्स, डिजिटल क्रिएटर्स, डबिंग आर्टिस्ट, फिल्म क्रू आदि को लिखित अपॉइंटमेंट लेटर देना अनिवार्य है।
असर:
कॉन्ट्रैक्ट की अस्पष्टता खत्म होगी और तेजी से बढ़ते डिजिटल व क्रिएटिव सेक्टर में भी कर्मचारियों को कानूनी सुरक्षा मिलेगी।
भारत के नए लेबर कोड देश के रोजगार ढांचे को आधुनिक बनाने की दिशा में बड़ा कदम हैं। इसका उद्देश्य कर्मचारियों को अधिक सुरक्षा, व्यवसायों को स्पष्ट नियम, और पूरे श्रम बाज़ार को अधिक पारदर्शिता प्रदान करना है।
हालांकि कुछ कर्मचारियों की टेक-होम सैलरी अस्थायी रूप से कम हो सकती है, लेकिन लंबी अवधि में लाभ—जैसे सार्वभौमिक न्यूनतम वेतन, सभी के लिए अपॉइंटमेंट लेटर, और सामाजिक सुरक्षा का विस्तार—भारत के श्रम बाज़ार को अधिक सुरक्षित और संगठित बनाएंगे।